Sunday, March 2, 2014

धान की ऋषि-खेती

धान की ऋषि-खेती

समतलीकरण नहीं, खाद और उर्वरक नहीं ,कीचड मचाना नहीं ,पानी भर कर रखना नहीं ,रोपाई नहीं, कोई जहर नहीं।


इस चित्र(फुकुओका जापान ) में धान के दो खेत दिखाई दे रहे हैं
सामने के  खेत में पानी की निकासीकी  नालियां बनायीं गयीं है
ये ऋषि खेत हैं.पीछे वाले खेतों में मेड बनाई गयी है पानी को रोकने के लिए।


ज कल धान की खेती करने के लिए  पहले जमीन को समतल बनाते हैं फिर आसपास मेंड़ बनाई जाती है खेत को दो तीन बार जोता और बखरा जाता है  अनेक प्रकार की खाद और रासयनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है. इसी दोरान धान की नर्सरी बनाई जाती है. मशीनो या पशु बल  से खेतों को खूब मचाया जाता है मिट्टी को कीचड में तब्दील कर दिया जाता है. फिर इस कीचड में धान के रोपों को हाथों से लगाया जाता है. पूरे समय इस बात का ध्यान रखा जाता है खेतों का पानी कहीं सूख नहीं जाये। समय समय पर रासायनिक उर्वरक,कीट और खरपतवार नाशक जहरों को छिड़का जाता है पौधों को कृत्रिम तरीके से बढ़ाने के लिए हॉर्मोन छिड़के जाते हैं किन्तु इस तरीके से खेती की उत्पादकता में जरुरत से अधिक कमी आ जाती है ,फसल की गुणवत्ता बहुत कम हो जाती है खेत कमजोर हो जाते हैं. कमजोर खेतों में कमजोर फसलें पैदा होती हैं जिनमे आसानी से बीमारियां लग जाती हैं थोडा भी मौसम बदलता है फसलें खराब हो जाती हैं किसान घाटे में चले जाते हैं.
हरियाली के ढकाव में धान की खेती (टाइटस फार्म होशंगाबाद )


 ऋषि-खेती करने के लिए उपरोक्त कार्य नहीं किए जाते हैं खेतों में अपने आप उत्पन्न होने वाले हरियाली के ढकाव जिन्हे आम भाषा में खरपतवार ,नींदा या कचरा कहा जाता है को रोका और पाला  जाता है और जब ये घने और करीब एक फीट के हो जाते हैं उनके बीच धान के बीजों को सीधे छिड़क दिया जाता है. फिर इस हरे भूमि ढकाव को जहाँ का तहां सुला दिया जाता है या हँसियों की मदद से काट कर जहां का तहां आड़ा और तिरछा बिछा दिया जाता है. धान के पौधे सोये या बिछे हरे ढकाव  से ऊपर आ जाते है. खेतों में पानी भर कर रखने की जरुरत नहीं रहती है.

हरियाली के ढकाव को पांव से एन्गल की सहायता से जमीन पर सुलाना 
जब पहली बार धान कि ऋषि-खेती की जाती है तो हम ढेंचा या सन से जमीन को ढांकने की सलाह देते हैं.  इस से दो फायदे होते हैं अधिक नत्रजन खर्च करने वाली घांस का नियंत्रण हो जाता है और बीजों को ढाकने के लिए पर्याप्त मात्रा में ढकावन मिल जाती है.

 इस ढकावन  में करीब एक रात भर भीगे धान के बीजों को छिड़क कर ढकाव को सुला दिया जाता है या काटकर बिछा दिया जाता है. धान के बीजों को कीड़े,चूहे आदी खूब शौक से खाते हैं ऐसी परिस्थिती में बुआई के बीजों की मात्रा बढ़ाके उपरांत दी जाती है जरुरत पड़ने पर बीजों को मिट्टी की गोली में बंद कर फेकने से उनका चूहों कीड़ों अदि से संरक्षण हो जाता है. यदि आप चाहे तो जैविक या अजैविक  बीज उपचारक का भी उपयोग कर सकते हैं.
ऋषि चावल की फसल (फुकुओका जापान )

सामान्यत: धान के खेतों में पानी रोक कर खेती करने के चलन है इस लिए किसान पानी को रोकने के लिए मेड बनाते हैं किन्तु ऋषि खेती में नालियां बनाई जाती हैं जिस से पानी की पर्याप्त निकासी हो जाये। किसान खरपतवार नियंत्रण के उदेश्य से पानी भरते हैं किन्तु पानी भरने की प्रक्रिया से खेत कमजोर होते जाते हैं.

ऋषि खेती में धान और गेंहू के चक्र में गेंहूं की फसल काटने के बाद उसकी नरवाई बिना भूसा बनाये खेतों पर जहाँ का तहां आड़ा तिरछा फैला दिया जाता है.इसी प्रकार धान की कटाई के उपरान्त पुआल को भी जहाँ का तहां खेतों में फैला दिया जाता है. इस नरवाई या पुआल को जलाया नहीं जाता है. ये सूखी अवशेषों की ढकवान अनेक काम करती है ये खरपतवार का नियंत्रण करती है.नमी को संरक्षित करती है कीड़ों से फसलों को बचाती है.

राजू टाइटस
ऋषि खेती किसान
होशंगाबाद। 461001 rajuktitus@gmail.com.Mob.09179738049.





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