शुरुवाद ईमानदार खेती से ही होगी
अब समय आ गया है कि हम अपने देश के प्रती जागरूक होकर अपने स्वम के लिए ,परिवार के लिए और समाज के लिए प्रतिनिधि चुने , हम ऐसा प्रतिनिधी चाहते है जो ईमानदार हो, जिसमे सच्चाई कूट कूट कर भरी हो, जो समाज के हर वर्ग से प्रेम करता हो जिसमे सादगी होना जरूरी है.
जब हम सच्चाई की बात करते हैं तब सबसे बड़ी सच्चाई हमारा हमारे पर्यावरण के प्रती जागरूक का होना है जिसमे हरियाली का सबसे बड़ा महत्त्व है. जैसा कहा जाता है कि "हरियाली है जहाँ खुशहाली है वहाँ " एक समय था जब हमारे देश में हरे भरे जंगल थे घी दूध की नदियां बहती थीं ,हमे कुदरती रोटी और पानी की कोई कमी नहीं थी. हमारी संस्कृति माता,पिता ,बुजुर्गों का सम्मान रहता था. महिलाओं का सम्मान होता था. धरती माता को पूजा जाता था. पेड़ों की पूजा होती थी.
किन्तु आज़ादी के बाद से जब हमने अपनी सरकार बनाई धीरे धीरे हमने अपनी हरियाली को विकास के नाम पर नस्ट करना शुरू कर दिया उसके बदले हमने खेत , कारखाने ,सड़कें ,बड़े बाँध बनाना शुरू कर दिए जिस से धीऱे२ हरियाली नस्ट होती गयी और हम जहरीली हवा,पानी और रोटी के जंजाल में फंस गए.
ओद्योगिक क्रांती जिस की शुरुवाद हरित क्रांती के नाम से शुरू की गयी है और जिसे प्रान्त की हर सरकार आज तक विकास के पैमाने के रूप में जनता को छल रही है के दुष्परिणाम हमारे सामने हैं .इस खेती में सबसे पहले हरे भरे कुदरती वनो,चरागाहों और बाग़ बगीचों को नस्ट कर मोटे अनाजों जैसे गेंहूं और चावल के खेत बनाए गए. ये खेती मूलत : बिजली ,पेट्रोल /डीज़ल पर आधारित है.
बड़े बड़े बाँध बनाये गए, ढेरों कोयले की खदान खोदी गयी, अनेक गहरे तेल के कुए खोदे गए. बड़ी बड़ी छोड़ी सड़कों का निर्माण किया गया ,बड़े बड़े पुल बनाये जाने लगे. हरियाली के बदले सीमेंट कांक्रीट का जंगल बनाये जाने लगे ,छोटे छोटे आत्म निर्भर गाँव बिजली पेट्रोल के गुलाम शहर में तब्दील हो गए. जहाँ गंदगी के सिवाय कुछ नहीं है. जितना बड़ा नगर उतनी बड़ी गंदगी।कुदरती हवा,पानी ओर रोटी का नामो निशान नहीं है चोरी बेईमानी चरम सीमा पर है.
रोज खून खराबे ,बलात्कार, बम विस्फोट की ख़बरों के ख़बरों ने दिल को दहला दिया है. छोटे२ रकबों में जहाँ पहले सड़कें नहीं थी वहाँ भी नक्सलवादी घटनाओं ने मन को बहुत दुखी कर दिया है. पहले पढ़े लखे बेरोजगारों की बात होती थी अब उच्य शिक्षित बेरोजगारों की बात होने लगी है.
आज किसानो की आत्महत्याओं की बात हो रही है अब कर्ज दार छोटे उद्मियों ,उच्यशिक्षित बेरोजगारों की आत्महत्याओं की खबर आने लगी है.
इन सारी समस्याओं की जड़ में हरियाली का नहीं होना है सरकारें जिसके प्रती बिलकुल उदासीन हैं. उन्हें केवल और केवल पूंजीपतियों की चिंता रह गयी है. जिनसे खूब चंदा मिलता है. हम सोचते हैं सरकार हम चला रहे हैं ऐसा नहीं है सरकारें बहुरास्ट्रीय कंपनियों के हाथ में हो गयी है.
अब बिजली जब कोयला ख़तम होने लगा ,पेट्रोल ख़तम होने लगा ,गैस कम पड़ने लगी तो अब परमाणु ऊर्जा का संकट लादा जा रहा है. जिस से लोग परमाणु बम की तरह मरने लगेंगे जैसा जापान में हो रहा है. खेतों में उत्पादन कम होने लगा तो अनुवांशिक बीजों के नाम पर बीज कम्पनियों को लाभ पहुँचाया जा रहा है.
इन सब गैर पर्यावरणीय विकास का खामियाजा देश के आम आदमी को भुगतना पड़ता है जो बड़ी ईमानदारी से अपना वोट दे देता है. किन्तु सवाल फिर भी उठता है कि अब जो ईमानदारी और सच्चाई के नाम पर जीत कर आयेगा वह ईमानदारी से काम करेगा और वह क्या करेगा ?
हमारा मानना है जब तक हम बेईमानी की जड़ में नहीं जाते हम बेईमानी को रोकने में नाकामयाब रहेंगे इसलिए हमे शुरुवाद ईमानदार खेती से करना पड़ेगा। ईमानदार खेती केवल कुदरती खाना ही नहीं देती है यह हरियाली भी बढ़ाती है यह कुदरती जल को भी मुहैया कराती है. एक कहावत है "जैसा खाएं अन्न वेसा होय
मन '' यह खेती हमें ईमानदार भी बनाती है. ऋशिखेती (बिना जुताई की कुदरती खेती) इसका जीता जागता उदाहरण है. इसमें बिना मशीन ,बिना रसायन ,बिना जुताई करे कुल ८० % खर्च कम से सर्वोत्तम खेती हो जाती है.
इसलिए इस चुनाव में हमे ईमानदार नेताओं को चुनना जरूरी है इसका चुनाव हम नेताओं के द्वारा चुनाव में किए जा रहे खर्च से पता कर सकते हैं जो बेईमान है वह अंधाधुंध जीतने के लिए करोड़ों रूपए फूंकता दिखेगा,जो जितना अधिक खर्च करेगा वह उतना अधिक बेईमान और भ्रस्टाचारी रहेगा। दूसरा हर नेता का ये फ़र्ज़ है कि वह जनता को बताये कि वह कहाँ से पैसा इकठा कर रहे हैं. क्योंकि गुमनाम पैसा आतंकवादी और नक्सलवादी का भी हो सकता है वह बेईमान कम्पनियो का भी हो सकता है.
हमारे देश में ईमानदार लोगों की कमी नहीं है इस बार चुन चुन कर ईमानदार लोगों को जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा उन्हें टिकिट दिए गए हैं. इनमे जितने लोग जीत कर आएंगे हमारी ईमानदार आवाज़ को बुलंद करेंगे वो सरकार को बैईमानी नहीं करने देंगे। अभी तक पक्ष और विपक्ष मिलकर बेईमानी करते रहे हैं इस लिए हम आज हिंसात्मक विकास के जंजाल में फंस गए हैं.
ईमानदार खेती की पहल |
रोज खून खराबे ,बलात्कार, बम विस्फोट की ख़बरों के ख़बरों ने दिल को दहला दिया है. छोटे२ रकबों में जहाँ पहले सड़कें नहीं थी वहाँ भी नक्सलवादी घटनाओं ने मन को बहुत दुखी कर दिया है. पहले पढ़े लखे बेरोजगारों की बात होती थी अब उच्य शिक्षित बेरोजगारों की बात होने लगी है.
आज किसानो की आत्महत्याओं की बात हो रही है अब कर्ज दार छोटे उद्मियों ,उच्यशिक्षित बेरोजगारों की आत्महत्याओं की खबर आने लगी है.
इन सारी समस्याओं की जड़ में हरियाली का नहीं होना है सरकारें जिसके प्रती बिलकुल उदासीन हैं. उन्हें केवल और केवल पूंजीपतियों की चिंता रह गयी है. जिनसे खूब चंदा मिलता है. हम सोचते हैं सरकार हम चला रहे हैं ऐसा नहीं है सरकारें बहुरास्ट्रीय कंपनियों के हाथ में हो गयी है.
अब बिजली जब कोयला ख़तम होने लगा ,पेट्रोल ख़तम होने लगा ,गैस कम पड़ने लगी तो अब परमाणु ऊर्जा का संकट लादा जा रहा है. जिस से लोग परमाणु बम की तरह मरने लगेंगे जैसा जापान में हो रहा है. खेतों में उत्पादन कम होने लगा तो अनुवांशिक बीजों के नाम पर बीज कम्पनियों को लाभ पहुँचाया जा रहा है.
हरयाली और खुश्बू से भरा कुदरती बगीचा |
इन सब गैर पर्यावरणीय विकास का खामियाजा देश के आम आदमी को भुगतना पड़ता है जो बड़ी ईमानदारी से अपना वोट दे देता है. किन्तु सवाल फिर भी उठता है कि अब जो ईमानदारी और सच्चाई के नाम पर जीत कर आयेगा वह ईमानदारी से काम करेगा और वह क्या करेगा ?
हमारा मानना है जब तक हम बेईमानी की जड़ में नहीं जाते हम बेईमानी को रोकने में नाकामयाब रहेंगे इसलिए हमे शुरुवाद ईमानदार खेती से करना पड़ेगा। ईमानदार खेती केवल कुदरती खाना ही नहीं देती है यह हरियाली भी बढ़ाती है यह कुदरती जल को भी मुहैया कराती है. एक कहावत है "जैसा खाएं अन्न वेसा होय
मन '' यह खेती हमें ईमानदार भी बनाती है. ऋशिखेती (बिना जुताई की कुदरती खेती) इसका जीता जागता उदाहरण है. इसमें बिना मशीन ,बिना रसायन ,बिना जुताई करे कुल ८० % खर्च कम से सर्वोत्तम खेती हो जाती है.
इसलिए इस चुनाव में हमे ईमानदार नेताओं को चुनना जरूरी है इसका चुनाव हम नेताओं के द्वारा चुनाव में किए जा रहे खर्च से पता कर सकते हैं जो बेईमान है वह अंधाधुंध जीतने के लिए करोड़ों रूपए फूंकता दिखेगा,जो जितना अधिक खर्च करेगा वह उतना अधिक बेईमान और भ्रस्टाचारी रहेगा। दूसरा हर नेता का ये फ़र्ज़ है कि वह जनता को बताये कि वह कहाँ से पैसा इकठा कर रहे हैं. क्योंकि गुमनाम पैसा आतंकवादी और नक्सलवादी का भी हो सकता है वह बेईमान कम्पनियो का भी हो सकता है.
हमारे देश में ईमानदार लोगों की कमी नहीं है इस बार चुन चुन कर ईमानदार लोगों को जिन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा उन्हें टिकिट दिए गए हैं. इनमे जितने लोग जीत कर आएंगे हमारी ईमानदार आवाज़ को बुलंद करेंगे वो सरकार को बैईमानी नहीं करने देंगे। अभी तक पक्ष और विपक्ष मिलकर बेईमानी करते रहे हैं इस लिए हम आज हिंसात्मक विकास के जंजाल में फंस गए हैं.
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