Friday, March 7, 2014

गुजरात के गांवों में पीने का पानी नहीं है.

जल जंगल और जमीन 

विकास के शीर्ष माडल दिल्ली और गुजरात 

पानी कहाँ गया ?

ज सबसे बड़ा मुद्दा पानी का है अधिकतर लोग सोचते हैं पानी आसमान से आता है किन्तु बहुत कम लोग ये जानते हैं कि पानी जमीन की देन है. पानी जमीन में रहता है. जमीन कोई बे जान चीज़ नहीं है वह  तमाम जीवजंतु ,जानवर ,कीड़े मकोड़े , जंगल , असंख्य आँखों से ना दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीवाणु और हम लोग से मिलकर बनी है . इन  तमाम जीवित विविधताओं  का सीधा सम्बन्ध पानी से रहता है. ये विविधताएं  पानी को संगृहित करके रखती हैं. ये पानी वास्प बन कर बादल में तब्दील हो जाता है जो बरसात बन बरसता है. जिस से हमारे कुए ,नाले नदी और समुन्द्र को पानी मिलता है. जहाँ हरियाली रहती है वहाँ विवधताएं खूब पनपती हैं. भरपूर पानी रहता है.


किन्तु विडंबना ये है कि हमारे देश की राजधानी दिल्ली में पानी नहीं है वहाँ आज़ादी के बाद से विकास के लिए क्या क्या नहीं किया गया किन्तु लोग आज भी वहाँ बूँद बूँद पानी के लिए तरस रहे हैं वहाँ की कांग्रेस की सरकार इस पानी के मुद्दे पर ढेर हो गयी और  अब गुजरात में भी वही हाल है पानी नहीं है. पानी के नहीं होने का मूल कारण हरियाली का नहीं होना है.

हरियाली विकास का सही पैमाना है.

असल में जब से भारत में गहरी जुताई और जहरीले रसायनो की खेती का आगाज़ हुआ है जिसे हरित क्रांती का नाम दिया गया है तब से हरियाली नस्ट हो रही है हरे भरे वन  ,स्थाई चरागाह और बाग़ बगीचे सब इस हिंसात्मक खेती के भेंट चढ़ते जा रहे हैं. इसलिए भूजल का स्तर घटते जा रहा है. गुजरात में यह एक हजार फीट से भी नीचे चला गया है. 
सरदारसरोवर बाँध 

आज़ादी के बाद से जितनी सरकारें यहाँ आयीं सब विकास के नाम पर गैर कुदरती विकास करती गयीं जिस से हरियाली नस्ट होती गयी और जमीन का पानी नीचे और नीचे जाता गया आज हालत ये है कि जमीन में पानी बचा ही नहीं इस लिए सरकारें आस पास के प्रदेशों की नदियों पर बाँध बना कर पानी खींचने लगीं हैं.ये बहुत बड़ा शोषण है. दिल्ली हरियाणा का पानी खींच रही है गुजरात मप. का  पानी खींच रहा है.पंजाब हिमालय की हरियाली का पानी खींच रहा है. यह चोरी है.

जब तक सरकारें खुद अपने प्रदेश में हरियाली को बढ़ाने के लिए ध्यान नहीं देतीं भूमिगत जल में इजाफा नहीं हो सकता है.मोदीजी कहते हैं कि गुजरात इस लिए प्यासा है क्योकि मप. वाले बांध में गेट नहीं लगाने देते है. वैसे  ही मप. के अनेक जंगल और जमीन इस में डूब गए है हजारों लोग बेघर हो गए हैं और अब मोदीजी मप. को लूटने में लगे हैं. पंजाब हिमाचल को लूट रहा है ,दिल्ली हरियाणा को लूट रहा है गुजरात मप. को लूट रहा है.
इस लूट को विकास का नाम दिया जा रहा है.

हम पिछले २७ सालो से बिना-जुताई की अहिंसात्मक खेती कर रहे हैं जिसे हम ऋषि-खेती कहते हैं. ये खेती हरियाली के साथ हरियाली के लिए होती है. इस से एक और जहाँ तमाम जीवित विविधताएं पनपतीं हैं वहीं भूमिगत जल का स्तर निरंतर बढ़ते जाता है. हमारे कुए जो जुताई आधारित खेती करने के कारण सूख गए थे अब लब लब हो गए हैं ऐसा हरियाली के पनपने के कारन हुआ है.
पानी के लिए ऋशिखेती 
हरियाली को जीवित रखने की जवाबदारी सरकारों की है किन्तु भ्रस्टाचार के चलते सरकारें हरियाली को बचाने में ना कामयाब हैं. यदी यही हाल रहा तो सारा देश रेगिस्तान में तब्दील हो जायेगा।

अधिकतर लोग पानी की कमी से निपटने के लिए बड़े बांधों को एक कारगर उपाय मानते हैं किन्तु यह भ्रांती है. बड़े बाँध जहाँ बनते उसके ऊपर की जमीन डूब जाती है यानी मर जाती है तथा नीचे की जमीन सोख जाती है. सवाल ये उठता है कि जमीन को मारकर पानी कैसे प्राप्त किया जा सकता है.  हरियाली नहीं रहेगी तो पानी कहाँ से आयेगा और बाँध कैसे भरेगा ?
मेधा पाटकर जी  वर्षों से नर्मदा नदी को बचाने के लिए आंदोलन कर रही हैं.

इसलिए बड़े बांधों की अपेक्षा जहाँ भी पानी की समस्या है वहाँ हरियाली बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। ऋषि खेती हरियाली का दर्शन है. इसे अपनाकर कोई भी किसान या प्रदेश पानी को संगृहीत कर सकता है जैसे हम ने किया है.जब जमीन को जोता नहीं जाता है तो बरसात का पानी केंचुओं,चूहों आदि के बिलों से जमीन में समां जाता है. हरियाली की जड़े इसमें अतिरिक्त सहयोग करती हैं. हम ने जब से ऋषि खेती को अपनाया है हमने कभी भी बरसात के पानी को बह कर खेतों से बाहर जाते नहीं देखा है सारा पानी जमीन के द्वारा सोख लिया जाता है.
गुजरात के ४००० गांवों में पीने का पानी नहीं है.

आज भले गुजरात को सीमेंट, कंक्रीटऔर डामल  के जंगलों के  रूप में विकसित समझा जा रहा है किन्तु गुजरात पानी के मामले में बिलकुल विकसित नहीं है. मप. भी अब गुजरात का अनुशरण कर मरुस्थल में तब्दील होने लगा है यहाँ के खेत भी हिंसात्मक खेती के कारण मरुस्थल में तब्दील हो रहे  हैं किसान घाटे  की खेती से तंग आ गए हैं वे आत्म हत्या करने लगे हैं.













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