Sunday, July 26, 2015

थैंक्यू भास्कर

मध्यप्रदेश में सरकारी योजनाओ का लाभ रिश्वत खोरी के कारण  नहीं  मिल रहा है। 

थैंक्यू  भास्कर 

माननीय मुख्यमंत्रीजी ने महिलाओं की शिक्षा के लिए लोन बिना गारंटी के दिलवाने की यजना बनाई है किन्तु यह बिना रिश्वत के नहीं मिलता है।  इस काम के लिए बैंक के अधिकारी हजारों रु की रिश्वत मांगते है। 

ऐसा ही मामला वंदना का है जब इसकी खबर दैनिक भास्कर के माध्यम से आई तब कलेक्टर महोदय और बैंक जागे तब जाकर बिना रिश्वत वंदना को लोन मिला है।  इसके लिए उन्होंने भास्कर को थेंक्यू कहा है। 
सरकार को बैंक अधिकारीयों को दण्डित करने की जरूरत है। 

Tuesday, July 21, 2015

जुताई आधारित खेती के कारण मौसम बदल रहा है अब समस्या एमपी में भी आ गयी है।



जुताई आधारित खेती के कारण मौसम बदल रहा है अब समस्या एमपी में भी आ गयी है। 




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Friday, July 17, 2015

मिनी पंजाब कहलाने वाला तवा (मध्य भारत ) का छेत्र सूखे की चपेट में !



मिनी पंजाब कहलाने वाला तवा (मध्य भारत ) का छेत्र सूखे की चपेट में !

वैज्ञानिक खेती है सूखे का मूल कारण। 

ट्रेक्टर की जुताई सबसे हानिकारक है। 


Thursday, July 16, 2015

सूखे की समस्या से निजात पाने के लिए बकरी पालन

सूखे की समस्या से निजात पाने के लिए बकरी पालन 

यह लेख सूखे से परेशान महाराष्ट्र के मित्र सुभाष बड़े जी  से बातचीत से प्रेरित होकर लिखा गया है। 

सामान्यत: बकरी को पर्यावरण  नुक्सान पहुँचाने वाला पशु माना जाता है। यह भ्रान्ति है।  हमारे पर्यावरण को सबसे अधिक नुक्सान जमीन की जुताई से हो रहा है।  इस कारण  सूखा पड़  रहा है।   खेती करना ना  मुमकिन होते जा रहा है।

ऐसे में किसान जमीन की जुताई बंद कर यदि उसमे बकरी पालन करते हैं तो उस से दो फायदे हैं पहला किसान की आमदनी बरकार रहती है तथा जमीन हरियाली से भर जाती है जिस से सूखे की समस्या का निदान हो जाता है।

 सूखे की समस्या का मूल कारण जमीन की जुताई है इसके कारण बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है इसलिए हरियाली की भारी कमी हो जाती है। किन्तु जब हम जमीन की जुताई बंद कर देते हैं तो जमीन असंख्य हरी वनस्पतयों से ढँक जाती है जिसके कारण बरसात होने लगती है और जुताई के नहीं करने के कारण बरसात का पूरा पानी जमीन के अंदर सोख लिए जाता है।

वैसे तो आज कल अनेक प्रकार की खेती बिना जुताई के होने लगी है किन्तु हम  पिछले तीन दशकों से अपने खेतों में बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं जिसे हम ऋषि खेती कहते हैं। इसमें हम गेंहूँ ,चावल दालों ,सब्जियों ,फल आदि की  की खेती के आलावा बड़े पैमाने पर सुबबूल लगते हैं जिस से हमे बकरियों का हरा चारा साल भर उपलब्ध रहता है साथ में बड़े पैमाने पर जलाऊ लकड़ी मिलती है।
 हमने बकरी पालन को बहुत महत्व दिया है। बकरी का  हरियाली से सीधा सम्बन्ध है।  वह हरभरी अनेक किस्मों की पत्तियां खाती जाती है तथा उनके  के बीजों की बुआई भी करती जाती है उसकी मेंगनी  बहुत बढ़िया जैविक खाद है जो अपने आप खेतों में फैलती जाती है।

बकरी की देख रेख अन्य बड़े पशुओं की अपेक्षा बहुत आसान है। बकरियां आसानी से देशी किस्म के घर में रह जाती हैं उन्हें पीने के लिए साफ़ पानी की जरूरत रहती है।  बकरी का दूध एक कुदरती दवाई है जिस के सेवन से कैंसर  जैसी बीमारी भी ठीक  हो जाती है।  मधुमेह ,उच्य रक्तचाप, महिलाओं में खून की कमी आदि में यह रामबाण है,कुपोषण में इसके बहुत अच्छे प्रभाव देखे गए हैं।

बकरी को किसान का एटीएम माना  जाता है जब चाहे  तब बकरियों को बेच कर आमदनी प्राप्त की जा  सकती है। जबकि बड़े पशुओं को बेचना बहुत बड़ी समस्या है। बकरी बहुत साफ़ सफाई पसंद जानवर है।  उसके पालने  से मक्खियों और मछरों की कोई समस्या नहीं रहती है।  जबकि गोबर के कारण मक्खियों और मछरों की गंभीर समस्या रहती है।

बकरी पालन से खेतों में असंख्य प्रकार की वनस्पतयां उत्पन्न हो जाती हैं जो जमीन को बहुत गहराई तक उपजाऊ और पानीदार बना देती है। एक बकरी साल में दो बार बच्चे देती है सामन्यत: वह  में दो बच्चे देती है कभी कभी वह तीन बच्चे भी दे देती हैं।

बकरियां प्रति दिन घूमना  चाहती हैं उन्हें लगातार बाँध कर पालना महंगा पड़ता है। घूमने से चरवाहा और बकरियां दोनों स्वस्थ रहते हैं। बकरियों को अपनी जमीन में ही चराना चाहये इस से वे बीमारियों से बच जाती है।  अनेक ऐसे फलदार पेड़ हैं जैसे सीताफल,निम्बू आदि वे बकरियों की चरोखरों में तेजी से पनपते हैं।

मात्र ५ साल में बकरी पालन से सूखी रेगिस्तानी जमीन हरियाली से भर जाती है कुओं का जल स्तर बढ़ जाता है।  बरसात भी अधिक होने लगती है।

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है जिसमे झूम खेती ,उतेरा खेती तथा देशी परंपरागत खेती में बिना जुताई का विशेष महत्व है।  ये खेती की विधियां आज भी हजारों साल से टिकाऊ हैं। किन्तु मात्र हरितक्रांति की व्यपारिक खेती ने  कुछ वर्षों में किसानो को और उपजाऊ जमीनो को मारने  काम किया है।

भारत में आज तक ऐसा कोई भी वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं हुआ जिसने देश के टिकाऊ के विकास में कोई योगदान दिया है। वरन  उसने देश की हजारों साल से विकसित की गयी देशी खेती किसानी को नस्ट कर दिया है। इसलिए देश आज पर्यावरण प्रदूषण के गंभीर संकट में फंस गया है जिसमे सूखे की समस्या सबसे गंभीर समस्या है इसके निदान में अब सबको मिलकर काम करने की जरूरत है। जिसमे बकरी पालन की एक महत्व पूर्ण भूमिका है। 

Friday, July 3, 2015

"जैविक खेती" का भ्रम

"जैविक खेती" का भ्रम 

भारत एक कृषि प्रधान देश है। जिसमे परम्परागत खेती किसानी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह खेती हजारों साल स्थाई रही है। किन्तु मात्र कुछ से सालो से "हरित क्रांति " के नाम से लाई गयी वैज्ञानिक खेती ने इसे बर्बाद कर दिया है , किसान खेती छोड़ रहे हैं , लाखों किसान आत्महत्या करने लगे हैं।

इसके पीछे खेती करने के लिए की जा रही गहरी जुताई का बहुत बड़ा योगदान है। जुताई करने से बखरी बारीक मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है इस कारण बरसात का पानी तेजी से बहता है अपने साथ खेत की उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है। यह मिटटी असली जैविक खाद है इसमें असंख्य जमीन को उर्वरता प्रदान करने वाले जीव ,जंतु कीड़े मकोड़े और सूख्स्म जीवाणु रहते हैं।
 मटमैले पानी में असली खेत की जैविक खाद है करीब एक एकड़ से १५ टन
प्रति वर्ष जैविक खाद बह जाती है जो बहुत बड़ा राष्ट्रीय नुक्सान है। 

हमारी देशी परम्परागत खेती किसानी में बिना जुताई की खेती का  चलन आज भी आदिवासी अंचलों में देखने को मिल जाता है। जिसमे बेगा ,उतेरा आदि हजारों सालो  से आज भी उतनी संपन्न हैं जितनी वो पहले थीं। जुताई आधारित देशी खेती किसानी में किसान जुताई के कारण   कमजोर होते खेतों में  कुछ साल के लिए जुताई बंद कर देते थे   जिस से खेत उपजाऊ हो जाते थे।

जब से जुताई आधारित वैज्ञानिक खेती पर प्रश्न चिन्ह लगा है तबसे "जैविक खेती " करने की बात वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने लगी है।यानि खेत की जैव -विविधताओं को बचा कर की जाने वाली खेती , अच्छे संकेत हैं।  किन्तु जो लोग जुताई करके कृषि रसायनों के बदले जैविक तत्वों को डालने की बात करते हैं वो भूल कर रहे हैं उन्हें मालूम नहीं है की एक बार जुताई करने से करने से खेत की आधी जैविकता नस्ट हो जाती है बार बार  रहने से खेत मरुस्थल में तब्दील  हो जाते हैं।

अधिकतर लोग "जैविक खेती " को गौ माता की धार्मिक आस्था के साथ जोड़ कर देखते हैं। यह सही है गौ  साथ हमारा खेती किसानी के माध्यम से एक पारिवारिक सम्बन्ध रहा है।  किसान पशुपालन  के लिए बिना जुताई की चरोखर और चारे पेड़ अपने खेतों में रखते थे।  जुताई नहीं करते थे या कम और हलकी जुताई करते थे और  कमजोर होते खेतों को वो चरोखरों से बदल लिए करते थे।  इसे वो "अल्टा पलटा "कहते थे।

जुताई आधारित रसायनिक खेती ,जैविक खेती और जीरो बजट खेती एक ही हैं इनसे खेत मरुस्थल में बदल रहे हैं  सूखा पड़ रहा है किसान आत्म हत्या कर रहे हैं हजारो लाखों किसान खेती छोड़ रहे हैं।
हम कोई भी खेती करें खेत में एक वर्ग फुट में कम से कम 10 केंचुओं
के घर होना जरूरी हैं। 

बिना जुताई की कुदरती खेती (ऋषि खेती ) ,बिना जुताई की जैविक खेती (No Till Organic farming),बिना जुताई की संरक्षित खेती (No Till consevative farming )आदि टिकाऊ खेती की श्रेणी में आती है किसानो को इन्हे अमल में लाकर अपने को ,खेतों को और खाद्य सुरक्षा को बचाने में सहयोग करने की जरूरत है।

जुताई नहीं करने से खेतों की जैविकता और पानी खेत में ही रहता  है इसके कारण किसी भी प्रकार की मानव निर्मित खाद और दवाई की जरूरत नहीं रहती है। बहुत केंचुए पनप जाते है। जिनसे हम अपने खेतों की बढ़ रही कुदरती ताकत का पता लगा लेते हैं।