Wednesday, July 20, 2016

गाजर घास से करे बिना -जुताई की खेती

गाजर घास से करे बिना -जुताई की खेती

खेत और किसान को ताकतवर बनाने की योजना 

बिना जुताई की खेती के कारण खेत का पानी खेत के द्वारा सोख लिया जाता है वह बहता नहीं है इसलिए खेत की खाद और मिट्टी का बहना भी रुक जाता है। 


गाजर घास की फसल 
ब से खेती में की जा रही जमीन की  जुताई और कृषि रसायनों के उपयोग को हमारे पर्यावरण के प्रतिकूल पाया गया है तब से बिना जुताई की खेती कर सीधी  बुआई का चलन तेजी से होने लगा है। केवल दक्षिण अमेरिका में दो तिहाई से अधिक जमीन स्थाई तौर पर बिना -जुताई की खेती के आधीन आ चुकी है।

 बिना -जुताई की खेती करने से एक और जहाँ लागत और श्रम में इजाफा  होता है वहीँ बरसात का पानी जमीन में समा जाता है जिस से बाढ़ और सूखा दोनों में इजाफा होता है। भूमि और जल के  छरण  के रुक जाने से  खेत ताकतवर और पानीदार हो जाते है।

क्ले से बनी बीज गोलियां 
बिना-जुताई की खेती की तीन विधियां प्रचलन में हैं  पहली बिना जुताई की संरक्षित खेती इसमें रसायनों का उपयोग जुताई वाली खेती की तरह ही किया जाता है। खरपतवारों  को मारने  के लिए ख़रपतवार नाशक जहरों का उपयोग होता है जो बहुत हानिकारक है। कृषि कार्य सब मशीनों से होता है।
बिना जुताई की संरक्षित खेती 

दूसरी विधि जो बिना-जुताई की जैविक खेती के नाम से जानी जाती है जिसमे पहले खेत में भूमि ढकाव की फसल पैदा की जाती है जिसे क्रिम्पर रोलर की सहायता से सुला दिया है जिसमे जीरो टिलेज सीड ड्रिल की सहायता से बुआई कर दी जाती है।
बिना जुताई की जैविक खेती 

तीसरी विधि जिसकी खोज जापान के फुकुओका गुरूजी ने की है जिसमे मशीनों ,रसायनों आदि की जरूरत नहीं रहती है जो दुनिया भर में नेचरल फार्मिंग के नाम से जानी जाती है जिसे हम पिछले तीस साल  से अमल में ला रहे हैं जिसमे हम गाजर घास के  भूमि ढकाव की फसल को बचा कर , उसमे हम क्ले से बनी बीज गोलियों को बिखरा देते है।
बिना जुताई की कुदरती खेती 

इसमें हमने गाजर घास को  बहुत सहयोगी पाया है गाजर घास का भूमि ढकाव जब बड़ा हो जाता है वह सभी वनस्पतियों को नियंत्रत कर लेता है इसके ढकाव में क्ले से बनी बीज गोलियों को छिड़क कर हम पांव से गाजर घास को सुला देते हैं।  सोये हुए गाजर घास में एक ओर  बीज गोलियां सुरक्षित हो जाती है वहीं वह सड़  कर उत्तम जैविक खाद में बदल जाता है। क्ले में असंख्य जमीन को उर्वरकता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं। जो गाजर घास के ढकाव में तेजी से पनपते हैं।
 जैव -विविधताओं से फसलों के लिए पर्याप्त पोषक तत्वों की आपूर्ति हो जाती है।

फसले कुदरती पैदा होती हैं ,जिन का सेवन करने से एक और जहां कुपोषण खत्म हो जाता है वहीं केसर जैसे रोग भी ठीक  किये जा रहे हैं।  कुदरती अनाज ,फल ,सब्जियां आठ गुना अधिक कीमत रखती हैं घर बैठे बिक जाती हैं।  इसे कहते हैं "आम के आम और गुठलियों  के दाम " .

कुदरती उगाए ,कुदरती खाएं ,कुदरती से कमाएं !

Sunday, July 10, 2016

बाढ़ में सूखा

बाढ़ में सूखा 

पानी गिरा  नहीं की बाढ़ आ गयी और कुओं में पानी नहीं 


जंगल काट कर खेत बना दिए अब बरसात का पानी जमीन के अंदर नहीं जा रहा है इसलिए सूखा और बाढ़ दोनों कहर ढा रहे हैं। 

बिना-जुताई  बिना जल- भराई  की खेती है समाधान। 

जलभराव के कारण भूमिगत जल  आ रही है। 
ध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालो से कृषि कर्मण्य पुरूस्कार मिल रहा है। इसका मतलब यह है। हम खाद्यानो में आत्म निर्भर हो गए हैं। 

कल मेरे एक मित्र न कहा  की हमने एक गढ्डे को पूरने के लिए अनेक गढ्डे बना दिए हैं। 

जंगल काट कर खेत बनाना  अब हमको बहुत महंगा पड़ने वाला है। पिछले हजारों सालो से हम हरियाली के कारण पर्यावरण में आत्म निर्भर थे ,हवा ,पानी और हमारी फसलों में कोई कमी नहीं थी।  फिर भी हमने "हरित क्रांति " नामक औद्योगिक खेती को अपना कर हमे पर्यावरणीय भिखारी  बना लिया है। 

एक तो यह समस्या है कि  बादल आ रहे हैं पर बरस नहीं रहे थे और जब बरसे तो दो दिन में इतना बरसे कि बाढ़ ने कहर ढा दिया।  असल मे यह बरसात कोई काम की नहीं है पानी  सब बह कर समुद्र में चला जाता है। इसका मूल सम्बन्ध खेती करने की गैर कुदरती तकनीकी है जो पेड़ों की कटाई ,जमीन की जुताई ,जल-भराई जहरीले रसायनों और भारी मशीनों से की जा रही है।
उथले कुओं का पानी स्वास्थ  वर्धक रहता है। 

परंपरागत भारतीय खेती किसानी में पहले हर किसान अपने खेतों में पेड़ रखता था जिस भूमिगत  जल और बादलों के बीच सम्बन्ध स्थापित रहता था। जिस कुदरती जल चक्र बना रहता था। समय पर बरसात आती थी जो कम से कम  चार माह तक रहती थी। किन्तु हरित क्रांति मात्र कुछ सालों में स्थिति इतनी गम्भीर हो जयेगी इसका अनुमान किसी ने नहीं लगाया था। 

अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं हम अपने इलाके को लातूर और बुंदेलखंड बंनने से बचा सकते हैं हमे केवल बिना जुताई  की खेती पर जोर देने की जरूरत है। बिना जुताई  की खेती से खेत  हरियाली से भर जाते  और कृषि  उत्पादन भी बढ़ता जाता है। इस से बरसात का पानी खेतों के द्वारा सोख लिया जाता है।  भूमिगत जल का स्तर हर साल बढ़ता जाता है ,जिस से उथले कुएं लबालब हो जाते हैं।