Monday, July 31, 2017

Sushama Bokil बेसन पचानेमें हेवी समझा जाता है ?

Sushama Bokil बेसन पचानेमें हेवी समझा जाता है ?

असल में नारियल का बुरा प्रमुख है रोटी बनाने के लिए बेसन मिलाते हैं वैसे अन्य दालों जैसे उड़द ,फलों का रस और हरी पत्तियों के रस से भी काम चल जाता है  किन्तु गेंहू ,आलू ,चावल और शक्कर मधुमेह /मोटापे का मूल कारण है। जो आगे चल कर अनेक बीमारियों में बदल जाते है ऐसा मेरा निजी अनुभव है मेने मधुमेह के कारण दो हार्ट और एक पैरालेसिस के अटेक झेले हैं। मेरी पत्नी को भी मधुमेह था जिसके कारण उन्हें हार्टअटैक आया था मल्टीपल ब्लॉकेज पता चला था जो मात्र ३-४ माह में खुल गए है बी पी /शुगर नार्मल है।  मेटाफोर्मिन और इन्सुलिन इंजेक्शन विपरीत असर डालते है। हमने पिछले तीन ,चार माह से कोई भी कार्बो नहीं खाया है। ना  दवाई ली है। असल में आज कल सभी कार्बो यूरिया से पैदा किए जाते हैं। दालों  में नत्रजन खाद की जरूरत नहीं पड़ती है । हमने पाया है की हमारे शरीर को कार्बो युक्त आहार जरूरी नहीं है किन्तु कुदरती वसा जरूरी है।  

Thursday, July 27, 2017

गाजर घास के भूमि ढकाव में करें ऋषि खेती

गाजर घास के भूमि ढकाव में करें ऋषि खेती 

 गाजर घास जिसे पार्थेनियम कहा जाता है ,  यह बहुत बदनाम वनस्पति है इसके पीछे अनेक भ्रान्ति हैं। यह कहा जाता है की इस से अनेक प्रकार की बीमारियां होती हैं। इसलिए अनेक दवाइयां कम्पनिया बना रही हैं। 
 जबकि यह बिना जुताई की कुदरती खेती में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जब खेतों में जुताई नहीं की जाती है तो गाजर घास जैसी वनस्पतियां खेतों को ढँक लेती हैं। क्योंकि धरती माँ असंख्य जीव जंतुओं ,कीड़े मकोड़ों का घर रहती है। इन जैव-विवधताओं को ऐसे ढकाव की जरूरत रहती है जिसमे वो आसानी से पनप सकें। ये जैव-विवधताएँ अपने जीवन चक्र के जरिये खेत में उन तमाम पोषक तत्वों की आपूर्ति कर देते हैं जिनकी हमारी फसलों को जरूरत रहती है। जिसके कारण किसी भी प्रकार की खाद की जरूरत नहीं रहती है।
दूसरा यह अपने नीचे से उन तमाम नींदों को भी साफ़ कर देती है जो हमारी फसलों में अवरोध उत्पन्न करते हैं।
तीसरा गाजर घास की जड़ें खेत की अच्छे से जुताई कर देती हैं इसमें इनका साथ केंचुए जैसे अनेक जीव जंतु देते हैं।
गाजर घास का यह भूमि ढकाव इनके साथरहने वाले पेड़ों को भी बहुत लाभ पहुंचती है उनकी  बढ़वार अच्छी होती है ,नमि का संरक्षण रहता है तथा बीमारियां नहीं लगती हैं।
इस ढकाव में फसलों को लेने के लिए सीधे या सीड बॉल बना कर बीज डाल  दिए जाते हैं तथा इसे काट कर वहीं बिछा  दिया जाता है।  दूसरा तरीका जो उत्तम है  इन्हे  पांव से चलने वाले
क्रिम्पर से सुला दिया जाता है। इसका  फायदा यह रहता है की गाजर घास एक दम मरती नहीं है जिस से अन्य नींदे नियंत्रित रहते हैं और सोयी हुई गाजर घास तेजी से नमि और पोषक तत्वों को खींचती है जो हमारी फसलों को मिलती है जिस से बंपर उत्पादन प्राप्त होता है।
 गाजर घास को कोई जानवर नहीं खाता है इसलिए इसके लिए फेंसिंग की जरूरत नहीं रहती है। इसके ढकाव में हर प्रकार की फसलें  आनाज ,सब्जियां  ,फल के पेड़ अच्छे पनपते हैं।
गाजर घास में गेंहूं बिना जुताई खाद दवाई की खेती
गाजर घास में गेंहूं की खेती 

गाजर घास से भरा खेत इसमें गेंहू बोया है। 


Tuesday, July 25, 2017

सीड बॉल से मक्का /बरबटी की खेती

सीड बॉल से मक्का /बरबटी की खेती 

मक्का के सीड बॉल (राजू टाइटस )


ज हम मक्का के सीड बॉल बना रहे हैं ये मक्काकी सीड बॉल हैं। मक्का की यह खासियत यह है की यह खरपतवारो के बीच अच्छी पनपती है बड़ी होकर खरपतवारों से बाहर निकल आती है इसकी हार्वेस्टिंग भी सरल है दूसरा यह आगे की  फसलों के लिए पर्याप्त जैविक पदार्थ भी देती है। यदि हम दुधारू पशु पालते हैं तो मक्का का आधा चारा हम गायों के लिए रख सकते हैं और आधा  हम खेत को लोटा सकते हैं जिस से खेत भी संपन्न होते रहते हैं। आज कल गोशालाओं में रासयनिक खेतों से मिलने वाले सूखे चारे जैसे भूसा और पुआल का उपयोग किया जाता है जो उचित नहीं है है इस से दुधारू पशुओं का स्वास्थ बीडग जाता है और दूध भी पोस्टिक नहीं रहता है। मक्का काटने  से पूर्व खड़ी मक्का में बरबटी के बीजों की सीड बॉल डाल  दी जाती है।  बरबटी एक दलहनी फसल है जो मक्का के बाद उसके जैविक स्ट्रॉ में खूब पनपती है।  यह सब्जी ,दाल और चारे में काम आने वाली और जबरदस्त कुदरती यूरिया बनाने वाली फसल है। ऋषि खेती की सीड बॉल तकनीक में बिना जुताई/ खाद  का यह फसल चक्र बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ हुआ है।  धन्यवाद 9179738049
 


 

उर्वरको का उल्टा असर होता है।

उर्वरको का उल्टा असर होता है। 

जुताई नही करने और वनस्पतयों के साथ तमाम जैव विवविवधतायों के पनपने से खेतों में पोषक तत्वों का संचार हो जाता है जैसा कुदरती वनो में होता है। जमीन की उर्वरकता बढ़ाने  वाले सूक्ष्म जीवाणु इसमें अहम् भूमिका निभाते है। जब हम क्ले मिट्टी से सीड बॉल बनाकर डालते हैं तो हम असंख्य जमीन को उर्वरता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणु भी खेत  में डाल  देते हैं जो क्ले में रहते हैं।
असंख्य खेत को उर्वरकता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं वाली क्ले से बनी सीड बाल 

जबकि  रासायनिक उर्वरक उल्टा काम करते हैं जैसे हमारे शरीर में कोई विष या विष्णु के आने से उलटी हो जाती है वैसा ही रासयनिक उर्वरक डालने से होता है जिस से खेत कमजोर हो जाते हैं। सभी रासायनिक उर्वरक जहरीले होते हैं जिन्हे खेत पसंद नहीं करते हैं इसलिए 'उल्टी ' की प्रक्रिया होती है। 9179738049 

Friday, July 21, 2017

बरसात में जब क्ले नहीं मिले तो क्या करें ?

बरसात में जब क्ले नहीं मिले तो क्या करें ?

मै हमेशा यह कहते आया हूँ की क्ले को गर्मियों में इकठा कर पाउडर बना कर उसके सीड बाल बना लेना चाहिए। किन्तु अनेक लोगों को क्ले मिलने और पहचानने में तकलीफ हो रही है इसलिए मेने सलाह दी है की खेत की मेड की मिट्टी जो अनेक सालो से जुताई से बची है जिसमे केंचुओं के घर रहते हैं  को बरसात में ले आएं और उनकी सीड बाल बनाकर बुआई कर ली जाये। किन्तु मेने पाया है की गीली खेत  की मिट्टी अनेक बार इतनी कड़क नहीं रहती जिसे चूहे ना खा सकें इसलिए मेने एक प्रयोग किया है। मेने खेत की मिट्टी में POP(प्लास्टर ऑफ़ पेरिस ) मिलाकर  सीड  बनाये है। POP से सीड बॉल खेत की मिट्टी से अच्छे कड़क बन जाते है और तुरंत सूख जाते हैं।इन्हे जब हम खेत में डालते हैं चूहे नहीं खा पाते हैं ठीक क्ले जैसी कड़क सीड बाल बनाने के लिए हम बरसात में POP का इस्तमाल कर सकते हैं   यह बहुत सस्ता बाजार में मिल जाता है।  यह डिग्रेडेबल पर्या मित्र पदार्थ है। जो क्ले ही है और क्ले की जगह इस्तमाल किया जाता है। जिसका नाम जिप्सम है। यह खाद के लिए भी इस्तमाल होता है।  इसे तीन भाग मिट्टी में एक भाग मिला कर सीड बॉल बनाया जा सकता है।  इसकी सीड बॉल तुरंत सूख कर कड़क हो जाती है जिस से बीज फूल कर खराब भी नहीं होते हैं। खेत में ये सीड बॉल पानी को सोख लेते हैं जिस से बीज फूलकर बॉल को फोड़ लेते हैं और अंकुरित हो जाते हैं।

मुर्गा  जाली से सीड बॉल बनाने के लिए यहां क्लिक करें https://get.google.com/albumarchive/104446847230945407735/album/AF1QipNjehmb859gjXHJE6uqvGkx5WsETSdZH8UOD1cz
 

Thursday, July 20, 2017

ऋषि -खेती शुरू कैसे करें

ऋषि -खेती 

शुरू कैसे करें 

 

ब हम ऋषि खेती जो असल में नेचरल फार्मिंग है जिसे फुकुओका फार्मिंग भी कहा जाता है करते हैं तब हमारा उदेश्य मात्र पैसा कमाना नहीं रहता है। ऋषि खेती वाकई में एक भूमि सुधार योजना है। हम अपनी जमीन को जुताई आधारित खेती के कारण पनपते मरुस्थल से बचा लेते हैं। पहले साल में हमारे खेत हरियाली से भर जाते हैं उसमे कुदरती हवा ,पानी का संचार शुरू हो जाता है। बरसात का पानी जो हर साल बह कर हमारे खेत से निकल जाता था वह  रुक जाता है इस कारण खेत की जैविक खाद का बहना भी रुक जाता है। 

यह सब जानते हैं की फसलों का उत्पादन पूरी तरह खाद और पानी पर निर्भर रहता है  खाद पानी से हमारे खेत भर जाते हैं तो फसलों को तो होना ही है। इसमें हम सीधे बीजों को भी बिखेर सकते हैं। बीजों को सीड बॉल बना कर डालना सबसे सुरक्षित उपाय है।  अनेक फलदार पेड़ों के रोपे  भी लगाते जाते हैं  उदेश्य हमारा अपने खेत को हरयाली से भरना है।  जैसे ही हम जुताई छोड़ते हैं पहली बरसात में हमारे खेत हरयाली से भर जाते हैं ये वनस्पति जो आम भाषा में खरपतवार कहलाती है ऋषि खेती की जान होती है इसको बचाना ऋषि खेती की प्राथमिकता रहती है । इस वनस्पति को हम भूमि ढकाव की फसल कहते हैं जो अपने आप आती है। इसके नीचे असंख्य जीव जंतु , कीड़े मकोड़े ,केंचुए ,सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं जो अपने खेत में खाद बना देते हैं। हमारी फसलों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। हम इस वनस्पतियों को सीड बॉल डालते हुए अपनी फसलों से बदल देते हैं जिस से ये लुप्त हो जाती हैं। इन्हे मारने से हमारी फसलें दुखी होकर बीमार हो जाती है । 

सीड बॉल की जानकारी केलिए http://rishikheti.blogspot.in/2016/06/blog-post_20.html क्लिक करें। 

राजू टाइटस 

     

 

Saturday, July 15, 2017

शर्करायुक्त (Carbohydrates) आहार से बीमारियां हो रही है !

शर्करायुक्त (Carbohydrates) आहार से बीमारियां हो रही है !

जुताई आधारित हरित क्रांति के कारण बीमारियां हो रही हैं । यह  अनाजों ,आलू और गन्ने जैसे कार्बो के लिए तो  कारगर है जबकि दालों के उत्पादन में फेल है। शर्करायुक्त फसलों में जबरदस्त यूरिया की मांग रहती है जबकि दलहनी फसले कुदरती यूरिया बनाती है। जुताई करने से खेत बीमार हो जाते हैं जिनमे बीमार फसले पैदा होती हैं जो मधुमेह ,मोटापे और कैंसर जैसी बीमारी का मूल कारण हैं।  

 
 

मेने और मेरी पत्नी ने जब से शर्करायुक्त  आहार छोड़ा है तब से हम दोनों स्वस्थ रहने लगे हैं।  मै इन दिनों 71 + और मेरी पत्नी 67 + में है। सब से पहले मुझे मधुमेह  का पता तब चला जब मुझे पहला हार्ट अटैक आया था। डाक्टरों ने बताया  की यह अटैक मधुमेह के कारण है तब ब्लड शुगर 320  था  मुझे स्टंट उपचार निर्देशानुसार करना पड़ा। किन्तु मात्र तीन माह  में मुझे जबरदस्त हार्ट अटैक आया जिसने  मेरा  हार्ट डाक्टरों के अनुसार आधा ख़राब कर दिया जैसा डाक्टरों ने बताया था। यह घटना मेरे परिवार के लिए बहुत बड़े सदमे की थी जिसके कारण मेरी पत्नी को भी शुगर की बीमारी लग गयी इसका पता लगने से हम दोनों मेटफोर्मिन और इन्सुलिन लेने लगे इसके बावजूद मेरी पत्नी को हार्ट अटैक और मुझे पैरालिटिक अटैक आ गया था। 
शर्करायुक्त (Carbohydret)  बंद करने से इस समस्या को रोका जा सकता है यह जानलेवा है। 

फिर  क्या था हम पूरी तरह डाक्टरी इलाज में फंस गए मेरी पत्नी को मल्टी ब्लॉक बताये थे उन्हें बाय पास सर्जरी  सलाह दी गई थी। जो बहुत खतरनाक है हम घबड़ा गए थे। हमारे सामने आगे पहाड़ पीछे खाई वाली स्थिति थी  इस दौरान  निर्णय लिया की हमे बाय पास नहीं करवाना है।  हम दोनों का करीब एक सा रासायनिक इलाज चल रहा था। हम यह जान गए थे हम दोनों को यह बीमारी मूलत: मधुमेह के कारण है। चूंकि मेरी माताजी  +पिताजी + बड़े भाई का निधन समय पूर्व मधुमेह से हुआ था इसलिए चिंतित होना लाज़मी था। 

 किन्तु पिछले अनेक सालो से बिना रसायनो  और बिना जुताई  की ऋषि खेती करने के  कारण  हमे भरोसा था कि  हम कोई न कोई कुदरती इलाज का तरीका खोज लेंगे। इस खोज में हमारे फेसबुक फ्रेंड श्री विपिन गुप्ताजी जो अनेक सालो से बिना दवाई मधुमेह ,मोटापे और थाइरोइड का इलाज कर रहे हैं   ने हमे बताया था की मधुमेह  गेंहू की रोटी छोड़ने से ठीक हो जाती है उन्होंने हमे गेंहू की रोटी छोड़ कर कच्चा और हरा खाने की सलाह दी थी हमने एक माह ऐसा किया था।  जिस से हमने ब्लड शुगर को कम होते देखा था इसलिए हमे भरोसा था की  शुगर हम दोनों की ठीक हो सकती है। चूंकि हमने अपना इलाज जैसा विपिन गुप्ताजी  ने बताया था को जारी नहीं रख सके थे इसलिए हमे यह मुसीबत झेलनी पड़ी थी। 

 इस दौरान हमारी खोज जारी रही हमने पाया की अधिकतर लोग मधुमेह  और मोटापे के लिए शर्करायुक्त आहार को छोड़ने कि सलाह देते हैं। हमने तुरंत अनाजों का सेवन बंद कर दिया  आलू ,शकर शहद भी त्याग दिया। इसके बदले हमने दालों का सेवन जारी रखा साथ में हमने नारियल के आटे ( बूरे )  और चने का आटा ( बेसन ) को मिला कर रोटी बनाकर खाना  शुरू कर दिया।  असल में हम गेंहू की रोटी के आदि हैं इसलिए रोटी जैसा जब तक न मिले तसल्ली नहीं होती है। हमने में वसा युक्त आहार के लिए दही का सेवन जारी रखा साथ में अंकुरित दालों  सेवन  जारी रखा। घर में जो सब्जियां सामन्यत: बनती हैं वो भी चलती रहीं।

हमने पाया की जिस दिन से हमने अपने आहार में बदलाव लाया था उस दिन से ब्लड शुगर बढ़ना बंद हो गई और वह  घटने लगी इस दौरान हमने मेटफोर्मिन और इन्सुलिन जो मधुमेह की आम दवाइयां हैं को भी बंद कर दिया क्योंकि हमारी शुगर लगातार घट रही थी इसलिए हमे शुगर कम हो जाने का खतरा हो गया था।  अटैक के बाद जितनी दवाइयां दी जा रही थीं सब हमने छोड़ दी। 

शर्करायुक्त आहार छोड़ने का एक अतिरिक्त लाभ मेने पाया की मेरा वजन भी घटने लगा जो 90 + करीब एक माह में 73 हो गया और मेरी मेरी पत्नी का वजन जहां का तहाँ रहा पर उनका बी पी भी बिना दवाई के सामान्य  हो गया। हमने ऊपर वाले का बहुत धन्यवाद किया की उसने हमे एक जान लेवा बीमारी से बचा लिया। 

किन्तु हमारी खोज जारी रही की आखिर शर्करायुक्त आहार में ऐसा क्या है जिस से मधुमेह और ब्लड प्रेशर और मोटापा  बीमारियां आम होने लगी हैं । मेरी छोटी बहन भी मोटापे की मरीज थी जिसे थाइरोड बताया गया था वह भी शर्करायुक्त  आहार को छोड़ने से ठीक हो गई है उसका करीब एक माह में 10  किलो वजन कम हो गया है। 

 हमने पाया की  यह खेती के कारण हो रहा है जब खेतों में जुताई की जाती है तो उसकी नत्रजन (कुदरती यूरिया ) गैस बन कर उड़ जाती  है यह नत्रजन असल में शर्करायुक्त फसलों की जान होती है इसलिए जब वह नहीं रहती है तो कृत्रिम रासायनिक नत्रजन (यूरिया ) डाली जाती है। इस से  फसले  पैदा तो  हो जाती है किन्तु उनमे कुदरती ताकत नहीं रहती है।  इसलिए जहां एक रोटी की जरूरत रहती है वहां अनेक रोटी से भी पेट नहीं भरता है। बिना ताकत के आहार से ये बीमारियां होती हैं। किन्तु दालों में अपेक्षाकृत मामला उल्टा है जहां शर्करायुक्त फसले यूरिया मांगती हैं दालें इसके विपरीत कुदरती यूरिया बनाने का काम करती है। 

यह अनुभव  हमे बिना जुताई ,बिना खाद और बिना दवाई की खेती करने से मिला है हम अपने खेतों में पिछले अनेक सालो से दलहनी फसलों और शर्करायुक्त फसलों जिन्हे  सामन्य भाषा में अनाज कहा  जाता है के समन्वय से खेती कर रहे हैं। जिसकी खोज जापान के जाने माने स्व मस्नोबू फुकुओकाजी ने की है। 

हमारे देश में यह समस्या हरित क्रांति के आने के बाद से आयी है। यह क्रांति मूलत: गेंहू ,चावल,आलू  और गन्ने की खेती में ही अधिक सफल रही है दालों की फसलों  में यह इस कारण पीछे है। इसके लिए हम रासयनिक यूरिया से कहीं अधिक दोष खेतों की जुताई को देते हैं। जुताई करने से खेत की एक बार में आधी ताकत नस्ट हो जाती है हर बार यह  नुक्सान होता रहता है। इस कारण खेत बीमार हो जाते हैं। जिस से हम भी बीमार हो जाते हैं। 

हमने यह भी पाया है  कि हमारे शरीर को शर्करायुक्त आहार की कोई जरूरत नहीं है। किन्तु दालों और वसायुक्त  आहार की जरूरत है। किन्तु यदि हम बिना जुताई की कुदरती खेती करते हैं तो हम सब खा सकते हैं। हमने यह भी पाया है की जब तक हम मधुमेह ,मोटापे और अन्य बीमारियों की गिरफ्त में हैं हमे शर्करायुक्त आहार के परहेज की जरूरत है बाद में कम से कम 6 माह के उपरांत हम कुदरती शर्करायुक्त आहार बे खौफ खा सकते हैं। 

इन दिनों ऑर्गनिक की एक और बीमारी तेजी से पनप रही है कहा  यह जा रहा है सब बीमारियां कृषि रसायनो  से हो रही हैं यह गलत है।  असल में खेतों में बीमारियां जुताई के कारण हैं और बीमार  खेतों में बीमार फसलें  होती हैं इसलिए हम बीमार हो रहे हैं।

राजू टाइटस 

कुदरती खेती के किसान 

 

Monday, July 10, 2017

ऋषि खेती से संबधित प्रथापन जी के सवाल और राजू टाइटस के द्वारा जवाब

ऋषि खेती से संबधित प्रथापन  जी के सवाल और राजू टाइटस के द्वारा जवाब 

१-नेचरल फार्मिंग के निम्न सिद्धांत हैं 

१-जुताई नहीं २-खाद नहीं ३-निंदाई नहीं ४- कीटनाशक नहीं ५-फलदार पेड़ों की शाखाओं की छटाईं नहीं
 

२-नेचरल फार्मिंग से पहले 

 कांस घास 
नेचरल फार्मिंग से पहले हम गहरी जुताई से रसायनो और मशीनों से खेती करते थे इसलिए वो मरुस्थल में तब्दील हो गए थे ,कुए सूख गए थे  पेड़ नहीं था  घास हर जगह हो गई थी जिस के कारण खेती करने न मुमकिन हो गया था। 
 
नेचरल फार्मिंग से पहले खेत ऐसे दीखते थे। 
 घास खेतों की जुताई में बाधक रहती है इसकी जड़ें 30 फ़ीट नीचे तक चली जाती है। यह जुताई करने के कारण हो रहे भूमि छरण को रोकने  का कुदरती उपाय है। 
पेड़ो से ढके हमारे खेत 
पहले हमारे खेत सामन्यत: जुताई वाले खेतों की तरह पेड़ों के बिना नजर आते थे।  अब हमारे खेत पूरीतरह पेड़ों से ढक गए हैं।

३-पडोसी खेतों से तुलना 

एक और जहां हमारे खेत पेड़ों से ढके हैं वहीँ हमारे पड़ोसियों के खेत जैसा चित्र में दिख रहा है हरयाली विहीन मरुस्थलों में तब्दील हो गए है। हमारे कुओं में पानी लगातार बढ़ रहा है वहीँ हमारे पड़ोसियों के कुए सूख रहे हैं। 
हमारे खेत रोग निरोग शक्ति वाली फसलों ,फलों ,दूध का उत्पादन कर रहे हैं वहीं पड़ोसियों के खेत जहरीले उतपाद पैदा  कर रहे हैं जिनसे अनेक बीमारियां  हो रही हैं।  

४-मसनेबु फुकुओकाजी  के अनुभवों से मिली सीख 

क्ले से बनी सीड बाल 
 ३० साल पहले हम जब वैज्ञानिक खेती कर रहे थे जुताई खाद दवाइयों और मशीनों के कारण हमारे खेत मरुस्थल बन गए थे। हमें लगातार  आर्थिक ,पर्यावरणीय ,सामाजिक और आध्यात्मिक नुक़्सानो रहा था। हम खेती जिसे शांति का मार्ग समझ रहे थे यह अशांति का कारण बन गई थी। हमे से छोड़ने के बदले कोई मार्ग नहीं बचा था  तब हमे फुकुओकाजी के अनुभवों की किताब "The one straw revolution " पढ़ने को मिली जिसने हमारे सोच को बदल दिया। फुकुओकाजी पहले हिंसात्मक वैज्ञानिक खेती के डाक्टर थे जो बदल कर अहिंसात्मक कुदरती खेती के प्रणेता बन गए थे। उन्होंने  पाया की दुनिया में सबसे बड़ी हिंसा हमारे पर्यावरण की हो रही है जिसमे गैर कुदरती खेती का सबसे बड़ा हाथ है। इसलिए उन्होंने कुदरती खेती का विकास किया जिसमे उनको करीब 30 साल लगे जिसे वे करीब 70 -80 साल तक करते रहे। उन्होंने इस दौरान अनेक किताबे लिखी और अनेक माधयमो से दुनिया को समझाने की कोशिश की इसी दौरान वो हमारे खेतों को देखने भी पधारे थे उन्होंने हमे दुनिया में उनके द्वारा देखे कार्यों में प्रथम स्थान दिया था। 
 
सीड बनाते हम लोग 
दूसरी बार मेरी उनसे मुलाकात गाँधी आश्रम में हुई थी। उस समय वो केवल "सीड बाल "बनाकर बता रहे थे और कह रहे थे सब भूल जाओ पूरी दुनिया गैर कुदरती खेती के कारण मरुस्थल में तब्दील हो रही है हमे इसे बचाने के लिए अब युद्धस्तर पर काम करना पड़ेगा। पनप रहे मरुस्थलों को बचाने के लिए हम क्ले  सीड बाल बनाये और उसे बिखरायें उन्होंने बताया कि  तंजानिया के एक बहुत बड़े गैरकुदरती खेती के कारण बने मरुस्थल को वहां की जन जाती ने सीड बाल से हरियाली में बदल दिया है यदि हम सीड बाल के  विज्ञान और उसके  दर्शन को समझ लेते हैं तो हम आज भी दुनिया में अमन शांति कायम कर सकते हैं। 
 
आज गांधीजी होते तो वो चरखे की तरह सीड बाल बनाने पर जोर देते किन्तु अफ़सोस की बात अब गांधीजी का देश स्वम गैर कुदरती खेती के कारण मरस्थल में तब्दील हो रहा है हमे इसमें ब्रेक लगाने की जरूरत है। 
 

5 -विज़िटर्स ,कार्यशालों और सेमिनार के बारे में 

हम पिछले 30 सालो  से जब से हमने नेचरल फार्मिंग को समझा है और इसे भारत में गैरकुदरती खेती के कारण पनप रहे मरुस्थलों  बचाने के लिए प्राय कर रहे हैं। इस दौरान हमने अनेको लोगों को इसके बारे में बतया है। अनेक लोग हमारे फार्म पर आते हैं जो देशी और विदेशी सभी रहते हैं। अनेक लोग समूहों में आते हैं उन्हें हम कार्यशाला के माध्यम से समझने का काम करते हैं। जो लोग अकेले आते हैं उन्हें हम समझाने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं। हम इस कार्य को सामजिक और आधात्मिक समझ कर करते हैं जिसका कोई भी शुल्क नहीं लेते हैं।
ऑस्ट्रेलिया  से आये फ्रेंड्स 
 
हमे अनेक लोग भिन्न भिन्न प्रांतों में भी बुलाते है  वहां भी कार्य शाला के माध्यम से नैचरलफ़ार्मिंग करना सिखाने का काम करते हैं।  चूंकि हमारा फार्म भारत में पहले फार्म है हमे लोग रिसोर्स के रूप  आमंत्रित करते हैं हमारे रहने खाने के खर्च भी वो लोग वहां करते हैं।  अनेक ऐसे फार्म है जहां हमने किसानो को खेती करना सिखाया है। जिसके अच्छे परिणाम भी देखने को मिले हैं।
अमेरिका से नौकरी छोड़ कर सीड बाल बनाना सीख रहे हैं देवजी 
फिर भी हम यह कह सकते हैं की अभी यह ऊँट के मुंह में जीरे के सामान है। 
अब जबकि हमारे देश में बल्कि हमारे प्रदेश में असंख्य किसान खेती के कर्जों के कारण परेशान होकर आत्म हत्या करने लगे हैं ऐसी हालत में हमारी सरकारों ने और हमारे न्यायालयों ने हाथ खड़े कर दिए हैं। ऐसे में नेचरल फार्मिंग की पूछ परख बहुत बढ़ गई है।
"सीड बाल " बनाना अब क्रांति का रूप ले रही है अनेक स्वम सेवी संस्थाएं इसके महत्व को समझ कर आगे आने लगी हैं। 
 

6 -सरकार और NGO हमारे फार्म पर कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं।   


वन विभाग के साथ 
चूंकि हमे अपनी बात समझाने के लिए मॉडल की जरूरत रहती है इसलिए  अधिकतर सरकारी और NGO के लोगों को हम अपने यहां आमंत्रित करते हैं  आकर नेचरल फार्मिंग की जानकारी लेते है। इसी तारतम्य में वन विभाग और आदिवासी विभाग की कुछ कार्यशालाएं यहां आयोजित हुई हैं। ग्रामीण विकास से जुडी अनेक कार्य कार्यशालाएं यहां आयोजित हुई हैं। 


हिमाचल प्रदेश में सीड बॉल बनाते लोग 



 
भारत के करीब हर प्रदेश में हम सेमीनार हेतु बुलाये गए है और बुलाये जा रहे है अनेक लोगों से इसे अपनाया है और अपनाये जा रहे हैं। 
यमुना नगर में स्कूल के बच्चों के साथ बात चीत 
आज कल हमे नेचरल फार्मिंग को नेचर क्योर से जोड़ कर बात करने लगे हैं।  हमारा मानना है कि हमारा पर्यावरण सीधे हमारे स्वास्थ से जुड़ा है और पर्यावरण हमारी खेती से जुड़ा है। हवा  पानी और हमारा भोजन  ठीक रहेगा तो  स्वस्थ रहेंगे। हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारा परिवार भी स्वस्थ रहेगा ,समाज और देश स्वस्थ रहेगा।

फ़्रांस से नेचरल फार्मिंग सीखने पधारे मित्र 
 
इसलिए हमारा  मानना है की असली  "शांति की कुंजी हमारे खेतों के पास है "
 
 
 
 
 
 
 
 

7 -विज़िटर्स के द्वारा उठाये गए सवाल 

1 -क्या कारण है नेचरल फार्मिंग के विस्तार नहीं होने का ?
2 -यील्ड में क्या अंतर आता है ?
3 -पड़ोसी किसान क्यों नहीं अपना रहे हैं ?
4 -जापान में क्यों इस विधि को नहीं अपनाया है ? 
5 -भारत में कहीं इस से खाना कम तो नहीं पड़ जायेगा?
ये वो सामान्य प्रश्न है जो हमसे पूछे जाते हैं जिनका अधिकतर का हमारे पास कोई जवाब नहीं है। हम सिर्फ इतना जानते हैं की NF नहीं करने की वजह से आज का किसान बहुत बड़ी मुसीबत में है वो कर्जदार हो गया है। यील्ड कम होती जा रही है। खाने का प्रदूषण बढ़ते क्रम में है। अमेरिका हो या जापान सब खेती किसानी के संकट में फंसे है जिस से बहार निकलने का अब कोई और मार्ग  उन्हें दिखाई  रहा है। कुदरती खाने का अकाल पड़ रहा है। 
 
हमारे अनुभव हमको बताते हैं की आज नहीं तो कल इस खेती के आलावा और कोई मार्ग नहीं है। बिना जुताई और बिना रसायनो की खेती ही भविष्य में रहेगी बाकि सब लुप्त हो जाएंगी। इसके बाद ही अमन और शांति का हमारा सपना पूरा हो सकेगा। 
 

8 -फेमली बैक ग्राउंड ,भरोसा और सिद्धांत 

हमारे परिवार के इन खेतों को हमारे माता पिता और दादाजी ने मिलकर खरीदा था। जो एक क्वेकर परिवार के सदस्य थे। जिसने अपना पूरा जीवन घायल कुदरत  पीड़ित मानवता की सवा में अर्पित कर दिया था।  जिसमे केवल में ही ऐसा बिगड़ा बेटा  निकला जिसने ने इसे दिल से अपनाया है। दुर्भाग्य से हमारे दादाजी माता पिता और बड़े भाई इस दुनिया में नहीं है। किन्तु मेरे परिवार को छोड़ कर सभी बच्चे भाई बहनो के परिवार के  बाहर हैं। मेरी पत्नी और बच्चे इस विधा से बहुत संतुस्ट हैं वो कुदरती खान पान और उस से हमारे शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को समझ गए हैं। जो इस से दूर नहीं जाना चाहते हैं।  में आशा करता हूँ की एक दिन आएगा जब बाकि हमारे परिवार के सभी बच्चे इस विधा का महत्व समझ कर कर वापस आएंगे जैसे अनेक लोग जो  बड़ी बड़ी नौकरी छोड़कर अपने गाँव वापस लोट रहे हैं। असल में पैसा कमाना सब चाहते है कमा भी लेते हैं पर कुदरत को कमाना असली कमाई है इसका आभास तब होता है जब हमे बीमारियां घेरने लगती हैं और महानगरों के बड़े बड़े डाक्टर हमे नहीं बचा पाते हैं। केवल कुदरत ही हमको बचा सकती है। 
 
हम सब उस ऊपर वाले पर बहुत भरोसा करते हैं दिन रात  अपने और अपने परिवार की अच्छाई के लिए दुआ मांगते रहते हैं किन्तु ऊपर वाला भी उनकी मदद करता है जो उसके दिए इस शरीर का और पर्यावरण की मदद करता है। जो इस दुनिया में आता है उसे एक दिन जाना ही होता है हम भी अब बूढ़े हो गए हैं कल रहे या नहीं रहें किन्तु कुदरत हमेशा जीवित रहती है हमे वही करना चाहिए जो कल हमारे बच्चो के काम आये । ऊपर वाले का दिया यह शरीर भले नहीं रहेगा पर हमारे बच्चों के बच्चे रहेंगे वैसे हमारे खेत उसमे लगे पेड़ हरियाली बच्चे रहेंगे हमे उनकी सेवा कर ऊपर वाले का कर्ज अदा करना है। 
 

9-अन्य जरूरी जानकारी 

ऋषि खेती की फाउंडर सदस्य 
यहां मै एक बात बताना चाहता हूँ की नेचरल फार्मिंग की शुरुवात फ्रेंड्स रूरल सेंटर रसूलिआ होशंगाबाद के क्वेकर सेंटर से हुई है जिसे गांधीवादी क्वेकर स्व मार्जरी साइक्स और गाँधीवादी क्वेकर परताप अग्रवालजी ने  "ऋषि खेती " के नाम से ग्रामीण विकास के लिए शुरू किया था। किन्तु बड़े खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि अब इस सोच का वहां कोई नहीं रहा है इसलिए यह विधा वहां लुप्त हो गई है।  "ऋषि खेती " नाम स्व आचार्य विनोबा भावेजी ने गाँधी खेती के लिए दिया था।  जो गांधीजी के "सत्य और अहिंसा " के सिद्धांतों पर आधारित है।  जब मार्जरी साइक्स जी बीमार हो गई थीं उन्हें इंग्लॅण्ड वापस जाना था उन्होंने बड़े प्रेम से कहा था की  मुझे कोई चिंता नहीं है क्योंकि तुमने इसे अपना लिया है। इसलिए हम आज बहुत प्रसन्न हैं गांधीजी की ऋषि खेती हमारे फार्म पर जीवित है और क़ुदरत की सेवा में  सलग्न है। रसूलिअ सेंटर में "ऋषि खेती "का जन्म मौजूदा हरित क्रांति के विकल्प में हुई थी जो अब मरणासन्न अवस्था में लाखों खेत और किसान भी हरित क्रांति के कारण मरने लगे हैं। देशी कुए ,नलकूप नदी नाले सूखने लगे हैं। बरसात भी अब नहीं हो रही है। इसलिए सब "ऋषि खेती " की और देखने  लगे हैं। 
 
 
यह लेख मेरे दामादजी श्री परम्यू प्रथापन  जी को समर्पित है जो एक सच्चे गाँधीवादी क्वेकर हैं। लिखने में कोई त्रुटि हो तो छमा करेंगे। मेरी बेटी रानू से विनती है की इस लेख को पढ़ कर प्र्थापन जी सुना दें जिस से वो इसका जहां चाहें उपयोग सकें। 
धन्यवाद 
राजू टाइटस 
10-jul-2017
Titus natural farm hoshangabad.M.P.
461001