Saturday, July 15, 2017

शर्करायुक्त (Carbohydrates) आहार से बीमारियां हो रही है !

शर्करायुक्त (Carbohydrates) आहार से बीमारियां हो रही है !

जुताई आधारित हरित क्रांति के कारण बीमारियां हो रही हैं । यह  अनाजों ,आलू और गन्ने जैसे कार्बो के लिए तो  कारगर है जबकि दालों के उत्पादन में फेल है। शर्करायुक्त फसलों में जबरदस्त यूरिया की मांग रहती है जबकि दलहनी फसले कुदरती यूरिया बनाती है। जुताई करने से खेत बीमार हो जाते हैं जिनमे बीमार फसले पैदा होती हैं जो मधुमेह ,मोटापे और कैंसर जैसी बीमारी का मूल कारण हैं।  

 
 

मेने और मेरी पत्नी ने जब से शर्करायुक्त  आहार छोड़ा है तब से हम दोनों स्वस्थ रहने लगे हैं।  मै इन दिनों 71 + और मेरी पत्नी 67 + में है। सब से पहले मुझे मधुमेह  का पता तब चला जब मुझे पहला हार्ट अटैक आया था। डाक्टरों ने बताया  की यह अटैक मधुमेह के कारण है तब ब्लड शुगर 320  था  मुझे स्टंट उपचार निर्देशानुसार करना पड़ा। किन्तु मात्र तीन माह  में मुझे जबरदस्त हार्ट अटैक आया जिसने  मेरा  हार्ट डाक्टरों के अनुसार आधा ख़राब कर दिया जैसा डाक्टरों ने बताया था। यह घटना मेरे परिवार के लिए बहुत बड़े सदमे की थी जिसके कारण मेरी पत्नी को भी शुगर की बीमारी लग गयी इसका पता लगने से हम दोनों मेटफोर्मिन और इन्सुलिन लेने लगे इसके बावजूद मेरी पत्नी को हार्ट अटैक और मुझे पैरालिटिक अटैक आ गया था। 
शर्करायुक्त (Carbohydret)  बंद करने से इस समस्या को रोका जा सकता है यह जानलेवा है। 

फिर  क्या था हम पूरी तरह डाक्टरी इलाज में फंस गए मेरी पत्नी को मल्टी ब्लॉक बताये थे उन्हें बाय पास सर्जरी  सलाह दी गई थी। जो बहुत खतरनाक है हम घबड़ा गए थे। हमारे सामने आगे पहाड़ पीछे खाई वाली स्थिति थी  इस दौरान  निर्णय लिया की हमे बाय पास नहीं करवाना है।  हम दोनों का करीब एक सा रासायनिक इलाज चल रहा था। हम यह जान गए थे हम दोनों को यह बीमारी मूलत: मधुमेह के कारण है। चूंकि मेरी माताजी  +पिताजी + बड़े भाई का निधन समय पूर्व मधुमेह से हुआ था इसलिए चिंतित होना लाज़मी था। 

 किन्तु पिछले अनेक सालो से बिना रसायनो  और बिना जुताई  की ऋषि खेती करने के  कारण  हमे भरोसा था कि  हम कोई न कोई कुदरती इलाज का तरीका खोज लेंगे। इस खोज में हमारे फेसबुक फ्रेंड श्री विपिन गुप्ताजी जो अनेक सालो से बिना दवाई मधुमेह ,मोटापे और थाइरोइड का इलाज कर रहे हैं   ने हमे बताया था की मधुमेह  गेंहू की रोटी छोड़ने से ठीक हो जाती है उन्होंने हमे गेंहू की रोटी छोड़ कर कच्चा और हरा खाने की सलाह दी थी हमने एक माह ऐसा किया था।  जिस से हमने ब्लड शुगर को कम होते देखा था इसलिए हमे भरोसा था की  शुगर हम दोनों की ठीक हो सकती है। चूंकि हमने अपना इलाज जैसा विपिन गुप्ताजी  ने बताया था को जारी नहीं रख सके थे इसलिए हमे यह मुसीबत झेलनी पड़ी थी। 

 इस दौरान हमारी खोज जारी रही हमने पाया की अधिकतर लोग मधुमेह  और मोटापे के लिए शर्करायुक्त आहार को छोड़ने कि सलाह देते हैं। हमने तुरंत अनाजों का सेवन बंद कर दिया  आलू ,शकर शहद भी त्याग दिया। इसके बदले हमने दालों का सेवन जारी रखा साथ में हमने नारियल के आटे ( बूरे )  और चने का आटा ( बेसन ) को मिला कर रोटी बनाकर खाना  शुरू कर दिया।  असल में हम गेंहू की रोटी के आदि हैं इसलिए रोटी जैसा जब तक न मिले तसल्ली नहीं होती है। हमने में वसा युक्त आहार के लिए दही का सेवन जारी रखा साथ में अंकुरित दालों  सेवन  जारी रखा। घर में जो सब्जियां सामन्यत: बनती हैं वो भी चलती रहीं।

हमने पाया की जिस दिन से हमने अपने आहार में बदलाव लाया था उस दिन से ब्लड शुगर बढ़ना बंद हो गई और वह  घटने लगी इस दौरान हमने मेटफोर्मिन और इन्सुलिन जो मधुमेह की आम दवाइयां हैं को भी बंद कर दिया क्योंकि हमारी शुगर लगातार घट रही थी इसलिए हमे शुगर कम हो जाने का खतरा हो गया था।  अटैक के बाद जितनी दवाइयां दी जा रही थीं सब हमने छोड़ दी। 

शर्करायुक्त आहार छोड़ने का एक अतिरिक्त लाभ मेने पाया की मेरा वजन भी घटने लगा जो 90 + करीब एक माह में 73 हो गया और मेरी मेरी पत्नी का वजन जहां का तहाँ रहा पर उनका बी पी भी बिना दवाई के सामान्य  हो गया। हमने ऊपर वाले का बहुत धन्यवाद किया की उसने हमे एक जान लेवा बीमारी से बचा लिया। 

किन्तु हमारी खोज जारी रही की आखिर शर्करायुक्त आहार में ऐसा क्या है जिस से मधुमेह और ब्लड प्रेशर और मोटापा  बीमारियां आम होने लगी हैं । मेरी छोटी बहन भी मोटापे की मरीज थी जिसे थाइरोड बताया गया था वह भी शर्करायुक्त  आहार को छोड़ने से ठीक हो गई है उसका करीब एक माह में 10  किलो वजन कम हो गया है। 

 हमने पाया की  यह खेती के कारण हो रहा है जब खेतों में जुताई की जाती है तो उसकी नत्रजन (कुदरती यूरिया ) गैस बन कर उड़ जाती  है यह नत्रजन असल में शर्करायुक्त फसलों की जान होती है इसलिए जब वह नहीं रहती है तो कृत्रिम रासायनिक नत्रजन (यूरिया ) डाली जाती है। इस से  फसले  पैदा तो  हो जाती है किन्तु उनमे कुदरती ताकत नहीं रहती है।  इसलिए जहां एक रोटी की जरूरत रहती है वहां अनेक रोटी से भी पेट नहीं भरता है। बिना ताकत के आहार से ये बीमारियां होती हैं। किन्तु दालों में अपेक्षाकृत मामला उल्टा है जहां शर्करायुक्त फसले यूरिया मांगती हैं दालें इसके विपरीत कुदरती यूरिया बनाने का काम करती है। 

यह अनुभव  हमे बिना जुताई ,बिना खाद और बिना दवाई की खेती करने से मिला है हम अपने खेतों में पिछले अनेक सालो से दलहनी फसलों और शर्करायुक्त फसलों जिन्हे  सामन्य भाषा में अनाज कहा  जाता है के समन्वय से खेती कर रहे हैं। जिसकी खोज जापान के जाने माने स्व मस्नोबू फुकुओकाजी ने की है। 

हमारे देश में यह समस्या हरित क्रांति के आने के बाद से आयी है। यह क्रांति मूलत: गेंहू ,चावल,आलू  और गन्ने की खेती में ही अधिक सफल रही है दालों की फसलों  में यह इस कारण पीछे है। इसके लिए हम रासयनिक यूरिया से कहीं अधिक दोष खेतों की जुताई को देते हैं। जुताई करने से खेत की एक बार में आधी ताकत नस्ट हो जाती है हर बार यह  नुक्सान होता रहता है। इस कारण खेत बीमार हो जाते हैं। जिस से हम भी बीमार हो जाते हैं। 

हमने यह भी पाया है  कि हमारे शरीर को शर्करायुक्त आहार की कोई जरूरत नहीं है। किन्तु दालों और वसायुक्त  आहार की जरूरत है। किन्तु यदि हम बिना जुताई की कुदरती खेती करते हैं तो हम सब खा सकते हैं। हमने यह भी पाया है की जब तक हम मधुमेह ,मोटापे और अन्य बीमारियों की गिरफ्त में हैं हमे शर्करायुक्त आहार के परहेज की जरूरत है बाद में कम से कम 6 माह के उपरांत हम कुदरती शर्करायुक्त आहार बे खौफ खा सकते हैं। 

इन दिनों ऑर्गनिक की एक और बीमारी तेजी से पनप रही है कहा  यह जा रहा है सब बीमारियां कृषि रसायनो  से हो रही हैं यह गलत है।  असल में खेतों में बीमारियां जुताई के कारण हैं और बीमार  खेतों में बीमार फसलें  होती हैं इसलिए हम बीमार हो रहे हैं।

राजू टाइटस 

कुदरती खेती के किसान 

 

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