Saturday, July 20, 2013

मिड-डे मीलः तेल में कीटनाशक पाए जाने की पुष्टि Economic Times Bihar midday meal tragedy: Forensic report confirms pesticide in meal

मिड-डे मीलः तेल में कीटनाशक पाए जाने की पुष्टि
पटना, एजेंसी
First Published:20-07-13 07:18 PM
Last Updated:20-07-13 07:34 PM
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बिहार के सारण जिला के मशरख प्रखंड में मिड-डे मील मामले में विधि विज्ञान प्रयोगशाला के जांच नमूनों में आर्गेनो फॉसफोरस यौगिक का मोनोक्रोटोफॉस पाए जाने की पुष्टि हुई है। अपर पुलिस महानिदेशक (मुख्यालय) रवींद्र कुमार ने बताया कि इससे जुडे जांच नमूनों की विधिविज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) में जीएसएमएस उपकरण पर मानक विश्लेषण में आर्गेनो फॉसफोरस यौगिक का मोनोक्रोटोफॉस पाए जाने की पुष्टि हुई है।
उन्होंने कहा कि ये पदार्थ कीटनाशक के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, जो मनुष्य और जीवों के लिए अत्यंत विषैला होता है। रवींद्र ने कहा कि जांच के क्रम में यह पाया गया कि खाना बनाने वाले तेल में उक्त कीटनाशक का शीर्ष क्षेत्र बाजार मानक नमूनों के सापेक्ष पांच गुना अधिक था। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों द्वारा विज्ञान प्रौद्योगिकी राष्ट्रीय पुस्तकालय के डाटा बेस का इस्तेमाल करते हुए इस केस के नमूनों को बाजार में उपलब्ध हिल्क्रॉन नामक कीटनाशक से जब मिलान किया तो भी जांच नमूनों में मोनोक्रोटोफॉस कीटनाशक की उपस्थिति प्रमाणित हुई है। रवींद्र ने बताया कि वैज्ञानिक खाना पकाने वाले संदिग्ध विषैले माध्यम जिसे स्कूल में प्लास्टिक के डिब्बा में पाया गया था, बर्तनों से संकलित पके खाद्य नमूने और जूठी थाली से संकलित भोजन के नमूने की जांच के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। उल्लेखनीय है कि मशरख प्रखंड के धरमसती गंडामन गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय में पिछले मंगलवार को विषाक्त मध्याहन भोजन खाने से 23 बच्चों की मौत हो गई, जबकि इस हादसे में बीमार पडी स्कूल की रसोईया और 24 अन्य बच्चों का पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में इलाज अभी भी जारी है।

Bihar midday meal tragedy: Forensic report confirms pesticide in meal
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Patna, Jul 20: A forensic report today confirmed the presence of poisonous pesticide in the midday meal served to the students of the school in Chhapra where 23 children died after taking the contaminated food.


The Forensic Science Laboratory report found Monocrotophos, an organophosphorous compound in the samples of oil from the container, food remains on the platter and mixture of rice with vegetables on Aluminium tasla (utensil), Additional Director General of Police (HQ) Ravinder Kumar told reporters making the report public.

Monocrotophos is used as a pesticide for agricultural purposes. It is very toxic to human beings and other animals, the ADG said quoting the FSL report.

The report confirmed the Bihar government’s apprehension that the food given to the children of Dharmasati Gandaman primary school at Chhapra was poisoned.

A total 23 children died after eating the meal while 24 others and the cook Manju Devi are undergoing treatment at Patna Medical College and Hospital.

“It was also observed from the data available in the FSL report that the peak area of the poisonous substance in the oil was more than 5 times in comparison to the commercial preparation used as a control,” the ADG said.

The ADG said the sample results were compared with a control standard (Hilcron) procured from the market. The peak retention times matched the sample, which again confirmed the presence of the pesticide in the samples.

To highlight authenticity, the report said results were interpreted using NIST library, which is an internationally accepted database.

The FSL scientists tested samples of the suspected poisonous cooking medium found in a plastic container, the cooking utensil and the leftover food from a platter, Kumar said quoting the report.

Some other material like froth from the mouth of one sick child, which was collected in a cotton gauge, water and oil was taken from the place of occurance by the police were also subjected to forensic analysis, he said adding the scientists used standard analytical method on GCMS instrument for the lab test.

Details like from where the killer pesticide came and who mixed it in oil would be answered in reports of the police investigation which is still in progress.

Friday, July 5, 2013

FOOD SECURITY


असली खाद्य सुरक्षा की जड़ खेती किसानी मे है जिसका हाल बहुत बुरा है किसान गरीब हो रहे हैं वे आत्म हत्या कर रहे  हैं।खेत बंजर हो रहे हैं सूखा और बाढ़ आम हो गए हैं।ऐसा आधुनिक वैज्ञानिक खेती के कारण है। जमीन की जुताई और रसायनों के उपयोग के कारण उर्वरकता का छरण हो रहा है, भूजल घट रहा है ,प्रदुषण चरम सीमा पर है।ऐसे में भोजन की कोई गारेंटी नहीं है।

कमजोर किसानो को दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ बड़े किसान उठा रहे हैं वे आयातित तेल के सहारे खूब अनाज पैदा कर रहे हैं जो सामान्य बाजार  में नहीं बिकता है जिसे सरकार ऊंची कीमत देकर खरीद रही है जिसके भण्डारण की समस्या है।यह सड़ रहा है। जिसे सरकार सस्ते दाम पर गरीबों में बाँट रही है। जब आयातित तेल की गारेंटी नहीं तो उसके बल पर पैदा किए जा रहे भोजन की क्या गारेंटी है ?

Wednesday, June 5, 2013

Japanese book on farming in Tamil

Japanese book on farming in Tamil

05th June 2013 09:13 AM
The theme of this year’s World Environment Day set by the UN Environment Programme (UNEP) is Think. Eat. Save.
According to the UNEP website, global food production occupies 25 per cent of all habitable land and is responsible for 70 per cent of fresh water consumption, 80 per cent of deforestation, and 30 per cent of greenhouse gas emissions. It is the largest single driver of biodiversity loss and land-use change.
Many environmentalists are of the opinion that this is the result of a mechanised way of farming. Toeing that line of thinking and advocating an organic way of life is organic farming expert Masanobu Fukuoka’s book The Road back to Nature.
The Japanese book’s Tamil translation, Iyarkaikku Thirumbum Paathai, was recently released by Iyalvaagai Pathippagam. The Tamil translation was done by noted health activist Dr V Jeevanandam.
Fukuoka, who himself was an agricultural scientist, had doubts on modern methods of agriculture. This made him engage in organic farming on his own land. This book narrates his experiences on his own farm and comprises lectures he had given all over the world.
“Agriculture is the roof of one’s culture. If agriculture turns out to be poisonous, then it would have effect on culture as well. When Japan’s traditional farming  blends with culture, we will be able to lead a happy life. This is my dream,”  writes Fukuoka in his book.
In one place, Fukuoka says, “It is shocking to hear that India does not practice Gandhian way of farming”. The author considers organic farming or natural way of farming as a part of the Gandhian way of farming.
Fukuoka also makes criticisms on the activities of the US in the field of agriculture and in agricultural universities. “One cannot separate nature into trees, stem, leaves, roots and so on. Nature comprises everything” he says. Speaking to City Express, Dr V Jeevanandam, the translator said, “Many think that agriculture is bringing about a change in nature. It’s not. We should do farming by joining hands with nature. Fukuoka says that we can do farming even without ploughing. He says we should develop the nutrients of soil or land. But in reality, we try only to maintain the existing nutrients. Through natural farming, we can develop the land’s nutrients.”
On the WED theme, he said, “If we follow the suggestions of Fukuoka we will be able to bring down greenhouse gas emissions”.

Tuesday, June 4, 2013

बिना -जुताई की खेती( पर्यावरण बचाने की योजना )

बिना -जुताई की खेती
पर्यावरण बचाने की योजना  



परिचय 

सामान्यत : फसलोत्पादन के लिए हरे  भरे पेड़ों को काट कर ,झाडयों और अनेक प्रकार की वनस्पतियों को हटा कर जमीन को खूब जोता और खोदा  जाता है  ऐसा करनेसे  हरियाली से भरी हमारी धरती रेगिस्थान में तब्दील हो रही है। मोसम में परिवर्तन हो रहा है बाढ़ और सूखा आम समस्या बन गए हैं।

जमीन को बार बार खोदने और जोतने से एक ओर जहाँ बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता  है वह तेजी से बहता है और  अपने साथ खेत की उपजाऊ मिटटी को भी बहा कर ले जाता है। 

हमारे पूर्वज किसान इस समस्या से भली भांति परिचित थे  वे बिना जुताई करे खेती किया करते थे। अनेक किसान हलकी जुताई कर खेती करते थे और कमजोर होती जमीन को फिर से हरी भरी होने के लिए छोड़ देते थे। 

हरियाली और पशु पालन के साथ समन्वय रहने से जमीन की ताकत बढती रहती थी जिस से फसलों की ताकत भी बढती रहती थी। लोग रोग मुक्त बरसों जीते थे।   

हमारे इन खेतों को देखिये पिछले २७ सालों से अधिक समय से इन्हें जोता  नहीं गया है नाही  इनमे किसी भी प्रकार के गेर कुदरती खाद और दव़ा का उपयोग किया गया है। लगातार फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में लाभ बढ़ते क्रम में प्राप्त हो रहा है। पूरे खेत सालभर हरे भरे हरियाली से भरे रहते हैं। ये बिना जुताई  की कुदरती खेती है।  जिस से एक और जहाँ साल भर कुदरती खान पान ,चारा  ईंधन आदि उपलब्ध रहता है वहीँ ये खेत  वर्षा के जल का संग्रह करते हैं और बरसात को करवाने में सहयोग करते हैं। जिस से हमारे आस पास का पर्यावरण संवर्धित हो रहा है। 

ठीक इस के विपरीत जुताई आधारित खेती को देखिये कोई भी किसान अनाज के खेतों में पेड़ नहीं रखता मुख्य फसल के आलावा एक एक पौधे को बड़ी बे रहमी से मार दिया जाता है। जुताई करने के कारण खेतों में कीचड हो जाती है बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है। खेत प्यासे रह जाते हैं। पानी तेजी से बहता है अपने साथ उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है। इस कारण  खेत भूखे रह जाते हैं। उनकी फसलें भी भूखी और कमजोर रहती हैं।  वे बीमार हो जाती है। 

अनेक प्रकार की खरपतवार  पनपने लगती है। किसान फसलों की बीमारी के इलाज के लिए अनेक प्रकार के जहर खेतों में छिड़कते हैं। जिस से बीमारियाँ और बढ़ जाती है। फसलें भी जहरीली हो जाती हैं। जमीन में रहने वाले तमाम जीवजन्तु ,कीड़े मकोड़े, पेड़ पौधे और सूख्स्म जीवाणु आदि जमीन  को  उर्वरक बनाते हैं वे सभी नस्ट हो जाते हैं। इस से ना  केवल हमारे खेत वरन तमाम हमारा पर्यावरण ख़राब  हो जाता है। बिना जुताई की खेती करने से ठीक इसके विपरीत हमारा पर्यावरण सुधरता जाता है। इस खेती की शुरुवाद करने का श्रेय जापान के सूख्स्म जीवाणु वैज्ञानिक स्व. श्री मस्नोबू फुकुओकाजी  को जाता है। उनके अनुभवों की किताब "दी वन स्ट्रा रिवोलुशन " अंग्रेजी में और "एक तिनके से आयी क्रांति " हिंदी में जग प्रसिद्ध हैं. इसके आलावा ये किताब  अब अनेक देशी एवं विदेशी भाषाओँ

में उपलब्ध है।   

बिना -जुताई की खेती की शुरुवाद 


प्रारंभ में  हमारे खेतों में परंपरागत देशी खेती की जाती थी। हलकी जुताई बेलों से की जाती थी ,गर्मियों में सभी कृषि के अवशेष गोबर,गोंजन आदि को खेतों में वापस डाल दिया जाता था। दलहन फसलों और अनाज की खेती के बीच समन्वय स्थापित कर नत्रजन की कमी को दूर किया जाता था। सिंचाई नहीं की जाती थी।
कुदरती बीजों का उपयोग होता था। कमजोर होते खेतों को छोड़ दिया जाता था उनमे घास पनप जाती थीं जिनमे पशुओं को चराया जाता था। इन चरागाहों में अपने आप अनेक बबूल जाती के पेड़ पैदा हो जाते थे थे जिनसे ईंधन मिल जाता था।   ये एक स्थाई खेती थी। किसान अपने लिए पैदा करता था और इसे अपने आस पास के लोगों के साथ बाँट कर बदले में अपनी जरुरत    को पूरा कर लिया करते थे। 
    उन दिनों भारत में हरित क्रांति का जोर  चल रहा था यह क्रांति खेती में रसायनों,मशीनो और भारी सिंचाई पर आधारित है।.                                                                   इस क्रांति में अधिक से अधिक उत्पादन देने का लोभ था हम भी इस लोभ में फंस गए। करीब  पंद्रह साल  हम इस में फंसे रहे। इस कारण हमारी जमीन मरुस्थल में तब्दील हो गयी।हमें  भारी  आर्थिक घाटा  होने लगा। हमारे सामने खेती को छोड़ने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचा था। इसी दोरान हमें जापान के कुदरती किसान श्री मासानोबू फुकुओकाजी  की किताब "दी वन स्ट्रा रेवोलुशन पढने को मिली" इसने हमारी ऑंखें खोल दी। हमने तुरंत फुकुओकाजी की   "बिना जुताई  की कुदरती खेती" को अपना लिया।

हमारे सामने " दी वन स्ट्रा रेवोलुशन " के आलावा और कोई मार्ग दर्शन नहीं था। हम उसे बार बार पढ़ते और अपने स्तर  प्रयोग करते गए। सीधे बीजों को फेंकना ,मिट्टी की गोलियों में बीजों को बंद कर फेंकना ,स्ट्रा मल्चिंग आदि प्रयोग करने से हमें इस खेती को करने का काफी ज्ञान हासिल हो गया। हमारे खेतों में फसलें पकने लगीं।

कैसे करें  बिना जुताई  की खेती ?





Saturday, May 11, 2013

Climate change 'will make hundreds of millions homeless'

Climate change 'will make hundreds of millions homeless'

Carbon dioxide levels indicate rise in temperatures that could lead agriculture to fail on entire continents
Climate change is amplifying risks from drought
Climate change is amplifying risks from drought, floods, storm and rising seas. Photograph: Simon Maina/AFP
It is increasingly likely that hundreds of millions of people will be displaced from their homelands in the near future as a result of global warming. That is the stark warning of economist and climate change expert Lord Stern following the news last week that concentrations of carbon dioxide in our atmosphere had reached a level of 400 parts per million (ppm).
Massive movements of people are likely to occur over the rest of the century because global temperatures are likely to rise to by up to 5C because carbon dioxide levels have risen unabated for 50 years, said Stern, who is head of the Grantham Research Institute on Climate Change.
"When temperatures rise to that level, we will have disrupted weather patterns and spreading deserts," he said. "Hundreds of millions of people will be forced to leave their homelands because their crops and animals will have died. The trouble will come when they try to migrate into new lands, however. That will bring them into armed conflict with people already living there. Nor will it be an occasional occurrence. It could become a permanent feature of life on Earth."
The news that atmospheric carbon dioxide levels have reached 400ppm has been seized on by experts because that level brings the world close to the point where it becomes inevitable that it will experience a catastrophic rise in temperatures. Scientists have warned for decades of the danger of allowing industrial outputs of carbon dioxide to rise unchecked.
Instead, these outputs have accelerated. In the 1960s, carbon dioxide levels rose at a rate of 0.7ppm a year. Today, they rise at 2.1ppm, as more nations become industrialised and increase outputs from their factories and power plants. The last time the Earth's atmosphere had 400ppm carbon dioxide, the Arctic was ice-free and sea levels were 40 metres higher.
The prospect of Earth returning to these climatic conditions is causing major alarm. As temperatures rise, deserts will spread and life-sustaining weather patterns such as the North Indian monsoon could be disrupted. Agriculture could fail on a continent-wide basis and hundreds of millions of people would be rendered homeless, triggering widespread conflict.
There are likely to be severe physical consequences for the planet. Rising temperatures will shrink polar ice caps – the Arctic's is now at its lowest since records began – and so reduce the amount of solar heat they reflect back into space. Similarly, thawing of the permafrost lands of Alaska, Canada and Russia could release even more greenhouse gases, including methane, and further intensify global warming.

Thursday, March 28, 2013

Foreigners are coming to learn Rishi-kheti (Natural farming)ऋषि खेती सीखने आ रहे विदेशी

ऋषि खेती सीखने आ रहे विदेशी
Foreigners are coming to learn Rishi-kheti (Natural farming)
    होशंगाबाद की ऋषि खेती ने अब दुनिया भर में अपनी पहचान बना ली है।
 Rishi kheti has made its identity in world.
इसी लिए न केवल  भारत के अनेकों प्रान्तों से वरन विदेशों से भी लोग इसे सीखने ऋषि खेती फार्म खोजनपुर में पधार रहे हैं।
Therefore not only from India but from abroad people coming to see Rishi kheti.
 ऋषि खेती रासायनिक जहरों और आयातित तेल के बिना की जाने वाली कुदरती खेती है।
 Rishi kheti  to be done by without poisonous chemicals and without imported oil.
यह खेती जुताई ,दवाई,निंदाई के बिना की जाती है।
 This is done by zero tillage, and without killing of weeds and insects.
 इस को करने से एक और जहाँ अस्सी प्रतिशत खर्च में कमी आती है वहीँ खाद्यों के स्वाद और रोग निवारण की छमता में अत्यधिक विकास होता है
 This farming consumes 80% less expenditure. Food is having anti disease property with very good taste.
 जिसको खाने मात्र से केंसर जैसे असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं।
 Incurable disease as cancer be cured by natural food.

Navduniya Hindi news paper


आज कल ट्रेक्टरों की गहरी जुताई और रसायनों से की जाने वाली खेती से एक और जहाँ खेत उतरते जा रहे हैं. Farm lands are dying due to deep plowing and poisonous chemicals.   खाद्यानो में जहर घुल रहा है. Food is becoming poisonous. जिस से महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या पनप रही है। Malnutrition is common in ladies and children केंसर की बीमारी आम होने लगी है। Disease of cancer is common.जबकि ऋषि खेती उत्पादों से इसके विपरीत परिणाम आ रहे हैं।Whereas rishi kheti  curing   ऋषि खेती पेड़ों के साथ की जाने वाली खेती है। Rishi kheti is done with trees hence harvesting air and water as well.  इस में पेड़ और अनाज एक दुसरे के पूरक रहते हैं। Trees and grain cops are friends.
दायें से मक्स और मिग फ़्रांस से पधारे हैं।
Max and Mig with Farm helpers.

जबकि ट्रेक्टरों से की जाने वाली जुताई में पेड़ दुश्मन माने जाते हैं Whereas trees are enemy in farming done by tillage and chemicals.जिस से मरुस्थल पनप रहे हैं। Are responsible for deserts, ग्लोबल वार्मिंग Global warming , ,मोसम परिवर्तन ,climate change,सूखा drougtsऔर and floodsबाढ़ आम हो गया है। ऋषि खेती वाटर हार्वेस्टिंग का काम करती है Water do not absorbed by farming based on tilling whereas Rishi kheti absorbed most of the rain water.जबकि जुताई वाली खेती से पानी जमीन में नहीं जाता है वह खेत की कुदरती  खाद को भी बहा कर ले जाता है।
ऋषि खेती भारतीय संस्कृति के अनुसार की जाने वाली खेती है। Rishi kheti is a Indian traditional way of farming.

राम जी बाबा होशंगाबाद
Ramji Baba 

ऋषि मुनि जंगलों में निवास करते हुए कुदरती खान पान से हजारों साल जीते हैं Our rishis were living long life in jungle.  आज भी उनके ज्ञान से हम बचे हैं। India is saved by the knowledge of rishis.ऋषि पंचमी  के पर्व में जुताई के बिना उपजे अनाज खाने की परंपरा है।In the festival of rishi panchami  many people eating natural food.होशंगाबाद के रामजी बाबा किसान थे हल चलने से होने वाली हिंसा ने उन्हें झकझोर दिया था इसी लिए वे ऋषि बन गए थे। उनकी याद में हर साल यहाँ मेला लगता है। Ramji baba of Hoshangabad was farmer but he stopped tilling due to realization of violence. Fair is held in his memory.
मक्स और मिग फ़्रांस में कृषि की पढ़ाई कर रहे हैं। Max and Mig are studying Agriculture in France are came in Titus Rishi kheti farm to learn.जब उन्हें ऋषि खेती के बारे में इंटरनेट से पता चला तो वे इसे सीखने यहाँ आ गए। इसे सीख कर वे अपने देश में इस के सहारे अच्छी नोकरी पा सकते हैं और खुद की खेती भी कर सकते हैं।They got information from Internet.

शालिनी एवं राजू टाइटस
Shalini and Raju Titus 

Tuesday, March 12, 2013

भारत में नदियों का प्रदुषण चरम सीमा पर है। POLLUTION OF RIVERS

भारत में नदियों का प्रदुषण चरम सीमा पर है।
          हमारे देश में बढ़ते शहरी करण और उधोगधन्दों के कारण नदियों का पानी अब प्रदुषण की सब सीमायें लाँघ चुका है।आज राज्य सभा में इस विषय पर बड़ी गरमा गरम बहस हुई जिसके अंत में माननीय पर्यावरण मंत्री महोदया जयंती नटराजन जी ने जवाब देते हुए बताया की ये सच है की अभी तक नदियों के प्रदुषण को रोकने के लिए जितने भी प्लान बनाये गए सब नाकाम हुए हैं।  प्रदुषण कम होने की बजाये बढ़ा है।
Pollution of the Indian rivers is beyond our imagination. This is informed by our environment minister Jaynthi Natrajan. She told that all plans to protect rivers from pollution are failed. The polution instead of reduction is increased.
उन्होंने बताया की जितने भी गंदे नाले देहली से निकलते है सब यमुना जी में गिरते हैं जहाँ यमुनाजी पूरी सूखी हैं। जिस पानी में लोग पवित्र स्नान करते हैं यमुना जी की पूजा करते हैं वह पानी दिल्ली वासियों के घरों से निकलने वाला गन्दा पानी है. उन्होंने बताया की कुल गन्दा पानी जो नदियों में मिलता है उसका अस्सी प्रतिशत पानी हमारे घरों से जाता है और बीस प्रतिशत पानी उधोगो से जाता है।
She informed that Yamuna river is dead the water in river is sewage.

उन्होंने यह भी बताया की गंदे पानी को साफ़ करने के लिए जो प्लांट लगाये हैं वे सब शो पीस हैं उनमे गंदे पानी को जोड़ा ही नहीं गया है जहाँ जोड़ा गया है वे काम नहीं कर रहे हैं उनमे या तो कर्मचारी नहीं हैं या बिजली की समस्या है। इस के अलावा एक बड़ी महत्वपूर्ण बात उन्होंने कही वह यह है की यदि पानी साफ़ हो जाता है तो भी वह पानी नदियों में छोड़ने लायक नहीं रहता है।
She also informed that all sewage treatment plants are showpiece. They are not connected properly nor are in working condition.

इसका ये मतलब है की आज तक हमने जो विकास किया है वह विनाश ही रहा है। सबसे बड़ी बात इस बहस में ये रही की इस में हरित क्रांति के श्री स्वामीनाथन जी भी मोजूद थे। इस बहस में कृषि रसायनों से होने वाले प्रदुषण का कहीं भी कोई जिक्र नहीं है।
The founder of green revolution Dr Swaminathan M.P. of Rajy sabha was also present in the debate.He could said any thing about the pollution of Agriculture. This shows that our development going in to revers direction.

कुल मिलाकर ये बहस बे नतीजा ही रही मंत्री महोदया एक ओर  करोड़ों रूपए का बजट नदियों को साफ करने के लिए रखे जाने की जानकारी दे रही थीं वही वे कह रही थीं की  इस बजट का जब तक सही उपयोग नहीं होगा जब तक हम लोग जाग्रत नहीं होते हमें स्वं अपने घरों से निकलने वाले पानी को गन्दा नहीं करना है यदि गन्दा होता है तो उसे व्यग्तिगत या सामूहिक तरीकों से साफ करने के लिए अभियान चलाना होगा।

She told that although Govt. of India giving lot of money for pollution control but is only be succeed when we are all realize and stop pollution in our houses. She explained that 80% pollution is domestic only 20 % is industrial.. 
विगत दिनों मुझे यमुना नगर में यमुना बचाओ अभियान के तहत कुदरती खेती के किसान के रूप में कुदरती खेती को सिखाने के उदेश्य से आमंत्रित किया गया था। जिसमे  अधिकतर किसान थे जो यमुनाजी के किनारे खेती कर रहे हैं।

Last time I was invited as expert in the conference of River friends in the Yamuna nager which was on River saving. I was invited as Natural farmer and mostly participants are farmers doing farming in the coastal area of the river Yamuna. 

हमारा विषय सूखती यमुना जी को बचाने पर आधारित था। हमारा मानना ये है की खेती करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई और रसायनों के अंधाधुन्द उपयोग के कारण नदियों के सूखने और प्रदूषित होने की समस्या सब से अधिक है।
My subject was to protect river from drying. We believe that tilling in farming is responsible for drying and pollution.

खेती करने के लिए जब जमीन की जुताई की जाती है तब बरसात का पानी जमीन में अवशोषित नहीं होता है वह तेजी से बहता है अपने साथ जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है। इस लिए रसायनों का अंधाधुन्द उपयोग होता है। नदी सूख जाती है और उनमे रसायनों का जहर मिल जाता है।
When we till the land ,  rain water do not absorbed by soil it flow fast and washed organics of the soil.  soil could not produce without hazardous chemicals river become dry and polluted.

बिना जुताई की कुदरती खेती करने से बरसात का पानी जमीन के द्वारा सोख लिया जाता है जिस से नदियों को पानी मिलता है और रासायनिक प्रदुषण रुक जाता है। कुदरती आहार हमारे शरीर और दिमाग को स्वस्थ रखता है। ऐसी परिस्थति में हम अपनी मां समान नदियों की रक्षा कर सकते हैं।
No till natural farming allow rain water to absorbed by soil and is free from chemicals. Rivers remain intact with water and free from pollution. Natural food keep our self fit for protection of the rivers.
हमें अफ़सोस है हमारी पर्यावरण मंत्री और हरित क्रांति के प्रणेता स्वामीनाथन जी इस विषय पर कुछ भी नहीं बोले.
With sorrow I want say that our environment minister and Dr Swaminathan could not speak on this issue. They must read "One Straw Revolution".


जब फुकुओका जी यहाँ आये थे तो कह रहे थे की नदियों में पानी नहीं रहेगा तो बरसात भी नहीं होगी. आज अनेक साधू संत सरकार से नदियों को बचाने के लिए आग्रह कर रहे हैं उन्हें किसानो को कुदरती खेती करने के लिए कहना चाहिए। बिना जुताई की कुदरती खेती के बिना हम नदियों को नहीं बचा सकते है।





भारत की खाद्य सुरक्षा Food Security of India

भारत की खाद्य सुरक्षा
Food Security of India
हिलाओं में सत्तर प्रतिशत खून में कमी , पचास प्रतिशत बच्चों में कुपोषण ,हर दसवें घर में केंसर की दस्तक का खतरा ,अनेक नवजात बच्चों की मौत और अपंगता आदि अनेक समस्याएँ हैं और यदि ये आंकड़े जो समय समय पर सामाजिक संस्थाओं के द्वारा दिए जाते हैं सही हैं तो इसका मतलब है की हमें हमारे आहार के माध्यम से उचित मात्रा में पोषण नहीं मिल रहा है। यानि हम खाद्य असुरक्षित हैं।
महिलाओं में खून की कमी ANIMIYA

70% ladies suffering from anemia, 50% children suffering  from malnutrition, every house in ten is waiting for cancer, many newborn children are dying at the time of birth or born disable etc. If these figures which are reporting by many NGO's are true than it is sure that we are not getting proper nutrition through our food. We are not food secured.

कहने को तो यह कहा जाता है की हम इतना खाद्य पैदा कर लेते हैं जिस को रखने की जगह नहीं है ,पहले हम खाना आयात करते थे अब निर्यात करने लगे हैं। हर  साल बढ़ते क्रम में पैसा खेती किसानी में दिया जा रहा है जो  बजट का 60% से अधिक है। अनेक कृषि विश्व विद्यालय बनते जा रहे हैं जिनसे अनेक कृषि वैज्ञानिक तयार हो रहे है ,सिंचाई की व्यवस्था बढ़ायी जा रही है किसानो के हाथों में मनमाफिक खाद ,दवाएं ,बीज मुहया कराया जा रहा है। बिना ब्याज का कर्ज ,अनुदान और मुआवजों की कोई कमी नहीं है। बिजली और डीज़ल में सब्सिडी आदि अनेक सुविधाएँ किसानो को दी जा रही हैं ,फिर भी क्यों कुपोषण की समस्या है ?
No Room अनाज रखने की जगह नहीं है।

We say it is called that we are producing more than our stores , we were importing but are exporting  we are investing money in agriculture more than other commodity.loan without interest,subsidies,and compensation are easily available. Than why we are not getting nutritious food ?
ये एक गंभीर प्रश्न है की एक ओर  हम अपनी पूरी ताकत लगाकर  खाद्य पैदा कर रहे हैं और दूसरी ओर हमारी खाद्य सुरक्षा को खतरा दिन प्रति दिन बढ़ता जा रहा है। खेतों से खूब पैदा हो रहा है रखने की जगह नहीं है और हम भूखे हैं।
This is a very important question that we are producing more and more and dying in hunger.
इसका  असली कारण है की हमारे खेत जो हमारे लिए खाना उगाते हैं वे स्वं भूखे और कुपोषित हैं। उनमे पैदा होने वाली फसलें भी भूखी और कुपोषित रहती हैं इस लिए इन फसलों का सेवन करने से हम भी भूखे और कुपोषित हो जाते हैं।
Main reason of this is that our soil of farms which are producing food  are also hungry and
infertile.


इस समस्या का मूल कारण फसलो  को पैदा करने के लिए की जा रही जमीन की जुताई है. जमीन की जुताई करने से मिट्टी जो असली जैविक खाद है जिसमे अनेक प्रकार के पोषक तत्व रहते हैं बरसात में बह जाते हैं।
इन कुदरती पोषक तत्वों का निर्माण खेतों में रहने वाले असंख्य जीवजन्तु आदि करते हैं। जुताई करने से इन जीवजन्तु के घर मिट जाते हैं वे मर जाते हैं। इस लिए खेत भूखे और पोषकता विहीन हो जाते हैं।
Actually what happens when we till the land for cropping the living biodiversity which producing
nutrients for soil are dye and soil erode due to rain water. Soil remain weak.

जुताई किए बगेर बीजों को उगाने से बरसात के पानी का बहना रुक जाता है वह खेत में जहाँ का तहां सोख लिया जाता है इस से एक ओर जल संग्रह होता है वहीँ जैविक खाद का बहना पूरी तरह रुक जाता है। खेत कमजोर नहीं होते हैं उनकी ताकत हर मोसम बढती जाती है।
EARTHWORMS DYE DUE TO TILLING

Growing crops without tilling is having many advantages.  Rain water absorbed soil it recharge under ground waiter table and top soil which is full of organics saved from erosion. Many soil insects like earth worms etc. remain safe provide all nutrients.
HOUSES OF EARTHWORMS DESTROYS
हमारे खेतों की मिटटी के एक कण को जब हम सूक्ष्म दर्शी यंत्र से देखते हैं
तो उसमे अनेक सूक्ष्म जीवाणु औरअनेक केंचुओं ,चीटे ,चीटी आदि के अंडे दिखाई देते हैं। इसका मतलब मिट्टी जीवित है। जिसे जरा सा भी अस्त व्यस्त करने से वह मरने लगती है. जमीन की जुताई और रसायनों के उपयोग से मिट्टी की जैविकता पर गंभीर असर पड़ता है।
Soil is nothing but a group of microbes ,eggs of earthworms and many small insects. Little disturbance kill soil. we can see this through microscope.

 हरा  भूमि ढकाव जिसे हम खरपतवार कहते हैं इस जैवविविधता  को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
ये जैव विविधता है जो मिट्टी के पोषक तत्वों का निर्माण करती है जिस से जमीन उपजाऊ रहती है।
Green ground cover crops generally known as weed is play very important role in the protection of this biodiversity which is responsible for all essential nutrients of the soil.

ये असली जैविक खेती और कुदरती खेती का मन्त्र है ,जमीन की जुताई, रसायनों के उपयोग से ये जैविकता मर जाती है। जिस से मिट्टी भी मर जाती है जिस में गेरकुद्रती तरीको से फ़सलें पैदा तो हो जाती हैं पर वे कुपोषित रहती है जिनमे आसानी से बीमारियाँ लग जाती हैं। रासायनिक दवाएं जरुरी हो जाती हैं जिस से हमारा भोजन जहरीला हो जाता है।
This is the formula of true organic farming and natural farming. Tilling and use of chemicals kills this biodiversity of the soil. Growing unnatural crops is possible but they become sick. Pestisides become essential makes our food poisonous.

यही कारण है की अनाज तो खूब पैदा हो रहा है रखने की जगह नहीं है और हम सब भूके मर रहे हैं। ये गेर कुदरती आहार है इसमें स्वाद और गुणवत्ता की भारी कमी है। हरित क्रांति से पूर्व जब किसान परंपरागत खेती किसानी करते थे कमजोर होते खेतों को पुन : उपजाऊ बनाने के लिए पड़ती छोड़ देते थे। जिस से खेत खरपतवारों से ढँक जाते थे जिनमे जैव विविधताएँ पनप जाती थीं और खेत पुन: ताकतवर हो जाते थे। हजारों साल ये खेती टिकाऊ रही जिसे आधुनिक वैज्ञानिक खेती के मात्र कुछ सालों ने नस्ट कर दिया। हम कुदरती खाद्यों के संकट में फंस गए है।
This is the reason we are hungry where our grain stores are full. This unnatural food which is without taste and nutrition. Before green revolution of India traditional farmers were keeping land
untitled when it was found poor. Land become fertile by just do nothing. Natural green cover makes it fertile. Thousands of years this method remain sustainable but only few years of green revolution spoiled precious land. We are caught in to the danger of the food security.


 कुछ देशों में किसान इस सच्चाई को समझ गए हैं। उन्होंने बिना जुताई जैविक खेती को शुरू कर दिया है। वे अपने खेतों में खरपतवारों को बचाते हैं जिस से खेतों में जैव विविधताएँ पनप जाती हैं। फिर वहीँ खरपतवारों को सुला कर बीजों की बुआइ कर दी जाती है। हरी खरपतवारों के ढकाव में पानी अपने आप उपर आता है सिंचाई की भी जरुरत नहीं रहती है।

                                                        Some farmers realized this truth the started No Till organic farming.
                                                    

NO TILL ORGANIC FARMING
They protect weed cover for soil health and after crimping weeds they sow seeds in cover.Due to green cover natural irrigation system works no need of artificial irrigation. This method gives bumper crop.




आज हम दावे के साथ कह सकते हैं की भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए इस से अच्छी और कोई तकनीक उपलब्ध नहीं है।
Today we can confidently say that India's food security is not possible without no till natural farming.
 इस का कारण ये है की हम भी सत्ताईस सालों से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं जिस का अविष्कार जापान के विश्व विख्यात कृषि वैज्ञानिक और कुदरती खेती के किसान ने किया है।
Because we are practicing it since last 27 years this method is developed by Masnobu Fukuoka of Japan.

Raju Titus 
Natural farmer of India. 

Thursday, March 7, 2013

SUSTAINABLE AGRICULTURE


SUSTAINABLE AGRICULTURE
 सदा-बहार खेती

सदा-बहार खेती उस खेती को कहा जाता है जिसमे उत्पादन बिना किसी बाहरी मदद के, कुदरत की ताकत से  बढ़ते क्रम में मिलता है, जिसमे भूमि-छरण ,जल का छरण और मिट्टी की समस्त जैव विविधताओं का छरण बिलकुल नहीं होता है।
Sustainable agriculture is a way of crop production in which production remains in ascending order without any external help, and without soil, water and biodiversity erosion.


फसलोत्पादन के लिए की जाने वाली जमीन की जुताई एक हिंसात्मक उपाय है इस से मिट्टी मर जाती है. 
Tilling and plowing of soil is violent way of agriculture is responsible for the death of soil.

बारीक बखरी मिट्टी बरसात के पानी  से कीचड में तब्दील हो जाती जिस से बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह बह जाता है जिस से अपने साथ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है. इस से एक ओर भूमिगत जल  में कमी आती है वहीँ बरसात भी कम हो जाती है और मिट्टी कमजोर हो जाती है .
 Fine cultivated soil become mud in rain water do not allow rain water to absorbed by soil, water run fast erode top soil is cause for desertification.

हम पिछले २ ७ सालों से बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं और इसके के प्रचार प्रसार में संलग्न हैं .ये खेती जुताई के बिना की जाती है इस में किसी भी प्रकार की मानव निर्मित खाद और दवाई की जरुरत नहीं रहती है.
We are practicing no-till natural farming since last 27 years and involved its promotion. This way of farming is done by zero tillage there is no need of any man made fertilizer and killer in this way.


इस खेती में नींदा समझी जाने वाली वनस्पतियाँ बहुत काम की होती हैं जिन्हें हम भूमिधकाव की फसल कहते हैं . हम इन्हें मारते नहीं हैं वरन बचाते हैं . इनके नीचे अनेक जीवजन्तु ,कीड़े मकोड़े काम करते हैं जो जमीन को बहुत उपजाऊ, पानीदार और पोला बना देते हैं.
Weeds play very important role in this way of farming. Many useful insects, small animal lives underneath which makes soil perforated ,moist and fertile.

ये खेती करने का तरीका जितना मिट्टी के लिए लाभप्रद है उतना ही ये स्वास्थ के लिए भी लाभप्रद हैं क्योंकि इस से कुदरती आहार के अलावा कुदरती जल और हवा भी मिलती है।
 Natural way of farming is  better for soil and is better for health also, because it  not only produce natural food is also producing natural water and air.


जुताई करने से  मिट्टी का कार्बन , CO2 में परिवर्तित हो जाता है जो ग्रीनहाउस  गेस है जिस से धरती पर निरंतर गर्मी बढ़ रही है।
Tilling of land is responsible for Global warming due to CO2 emission. Carbon of soil converts in to greenhouse gas.

SHALINI AND RAJU TITUS
NATURAL FARMER INDIA

 
 








होशंगाबाद की प्रथम महिला शिक्षाविद् स्व. श्रीमति पी. टाईटस


   
होशंगाबाद की प्रथम महिला शिक्षाविद् स्व. श्रीमति पी. टाईटस

  
न् 1944 मे जब लड़कियों को पढ़ाना समाज मे बुरा माना जाता था उन दिनो होशंगाबाद  मे पहला लड़कियों का प्रायमरी स्कूल खोलने का श्रेय हमारी माताश्री श्रीमति पालिना  टाईटस को जाता है। प्रायमरी से मिडिल, मिडिल से हायर सेकेण्डरी , हायर सेकेण्डरी से कालेज  और बाद मे पोस्ट ग्रेजुएट तक ले जाने के उनके काम को कौन नही जानता। उनकी शादी हमारे पिताश्री जो उन दिनो होशंगाबाद  के कलेक्टरेट मे काम करते थे, से सन् 1942 मे सम्पन्न हुई वे हवाबाग जबलपुर की शिक्षा  स्नातक थीं।
बीच में श्रीमती पी . टाइटस. दायें श्रीमती सुशीला दीक्षित भूत पूर्व शिक्षा मंत्री म. प्र . शासन 


   उन दिनों  हमारे देश  मे गांधी जी का अहिन्सात्मक स्वतन्त्रा संग्राम अपनी चरम सीमा पर था और ’’नई तालीम’’ की चर्चा जोरों पर थी इसी तारतम्य मे हमारी माताश्री का गर्लस शिक्षा  का मिशन  भी अनेक विरोध़ के बावज़ूद जड़ जमा रहा था वे ना केवल भारत मे वरन् बाहर भी एक क्वेकर होने के नाते अपने काम की छाप छोडती जा रही थीं।  हर कोई अपनी लड़की को पढ़ाना तो चाहता था, लड़कियें पढ़ना चाहतीं  थीं पर हमारा समाज था कि लड़कियों को घर के बाहर भेजना ही नहीं चाहता था। आखिर घर घर जाकर वे कुछ लड़कियों को स्कूल लाने मे सफल हो गईं उन गिनी चुनी लड़कियों से आखिर उन्होने हिम्मत करके स्कूल शुरु कर दिया।

     स्कूल के लिये उन्हे बमुश्किल  एक कमरे की जगह मिली टाट पटटी, ब्लेक बोर्ड कुछ भी नहीं था, दरवाजों पर चाक से लिख कर पढ़ाया जाता था।  जिद थी कि स्कूल खोलना  है। उनका साथ दिया उन जांबाज लड़कियों ने  जो ना केवल पढ़ना चाहती थीं वरन् लड़कियों को सामाजिक गुलामी से मुक्त कराना चाहती थीं। जैसे जैसे ये लड़कियां पास होती गईं इनके लिये अगली क्लास खुलती गई और बन गया गृहविज्ञान महाविघ्यालय जो आज नर्मदा नदी के किनारे सरकार के आधीन कुशलता  से चल रहा है।

   मिडिल स्कूल के बाद जब हायर सेकेन्डरी स्कूल खोलने का समय आया था तब समस्या जगह की आई जिसे माननीय स्व. कैलाषनाथ काटजू जो उन दिनों म.प्र. के मुख्यमन्त्री थे ने पूरा कर दिया उन्होने सरकार की जगह को इस नेक काम के लिये आवंटित कर दिया। ज्रगह तो मिल गई पर इनफरा स्ट्रक्चर के लिये पैसा और अन्य साधन जुटाना आसान नहीं था। जैसे तैसे उन्होने होशंगाबाद  के अन्य समाज सेवकों की सहायता से सादगी  से स्कूल को तैयार कर ही लिया। आज यह स्कूल शान से सरकार के आधीन गर्ल्स  हायर सेकेण्डरी स्कूल के नाम से विख्यात है।

   उन दिनो स्कूल सेवा भाव से खोले जाते थे ना कि आज की तरह व्यवसायिक तरीके से। हमारी माताजी की सफलता का राज यह है कि वे सारे खर्चों को निबटाने के बाद ही अपनी पगार लेती थीं अनेक बार तो आधा या बिलकुल नही से भी गुजारा करना पड़ता था। कई बार उनके आधीन काम करने वालों को भी बिना पैसे के काम करना पड़ता था। सबको वास्तु स्थिति पता रहने से उन्हे भरपूर सहयोग मिलता था।

   मुझे याद है स्कूल मे उन्होने एक पर्यावर्णीय प्रोजेक्ट चलाया था वे बागवानी के साथ सिलेबस को जोड़कर पढ़ाती थीं इससे बच्चों को क्लास रुम की बोरियत से निज़ात मिलती थी वे बहुत मन लगाकर पढ़ते थे। वे हमेशा  बच्चों को स्कूल के बाहर आसपास के गांवों मे ले जाकर समाज सेवा के कामो  से भी जोड़ती रहती थीं। आज कीशिक्षा  हमारे पर्यावर्णीय के विनाश  पर टिकी है इसलिये हम कुदरति जल,जंगल,जमीन, और आहार की गंभीर मुसीबत मे जी रहे हैं।

  एक बार जब उनका हायर सेकेण्डरी स्कूल बन गया और उन लड़कियों के कालेज मे पढ़ने की समस्या आई तो उन्होने हिम्मत नही हारी और कालेज खोलने  का निर्णय ले लिया  समस्या भवन और जगह की आई और उन्होने सरकार से गुहार लगाना शुरु कर दिया उनका केवल यह कहना रहता था कि अब से लड़कियां कहां जायेंगी और इस मजबूरी को समझकर सरकार उनकी मदद करती रहती थी इसी तारतम्य मे सरकार ने एस.पी. का बंगला खाली करवाकर उन्हे सोंप दिया और कहा बाकी का प्रबधं आप स्वं करें। अब तक प्रायमरी स्कूल से उनके साथ चलीं मुठठी भर जांबाज लड़कियां  स्कूल पास कर अनेक हो गईं थीं। छत मिल गई पढ़ने वाले मिल गये पर पढ़ायेगा कौन तो उन्होने अवैतनिक अतिथी विद्धानो से पढ़वाकर सरकार को ग्रांट देने पर बाध्य कर दिया सरकारी अनुदान मिलने से कालेज चल पड़ा जो शीघ्र ही स्नाकोत्तर भी हो गया।

वे इसे होम साईसं कालेज बनाना चाहती थीं पर सागर विश्वविध्यालय मे होमसाईसं विभाग ही नहीं था तो इस विभाग को खुलवाने का श्रेय भी हमारी माताजी को जाता है। उन्होने कालेज के साथ साथ एसी महिलाओं के लिये शिक्षा का प्रवधं किया था जो पढ़ना चाहती थीं किन्तु पारिवारिक और सामाजिक कारणों से पढ़ नहीं पाईं थीं । बाद मे सरकार ने  इस कार्यक्रम को मान्यता देकर प्रोढ़ शिक्षा अभियान के तहत सहयोग दिया। कई साल यह कार्यक्रम चला अनेक महिलायें  इससे पढ़कर नौकरियों मे लगीं और  अपना व्यवसाय करने लगीं।



हमारी माताश्री को समाज सेवा का बहुत शोक  था इसीलिये वे ना केवल अपने यहां वरन् देश  के बाहर भी एक क्वेकर महिला होने के नाते जानी जाती थीं और इस कारण वे अनेक बार विदेशों  मे भी  बुलाईं गईं।



जब होम साईसं कालेज ठीक से चलने लगा तो इसके स्थायित्व का प्रष्न आया तो उन्होने इसे सरकार को बिना शर्त सोंप दिया सरकार ने इस बने बनाये कालेज को हाथों हाथ ले लिया, और ठीक इसके बाद सन् 1973 मे होशं गाबाद की अब तक की सबसे भंयकर बाढ़ आई और मां नर्मदे इस कालेज के बीच से निकल गईं इससे यह कालेज बह गया। किन्तु सरकार के आधीन होने के कारण यह बच गया और पुनः खड़ा हो गया। यदि इसे बिना शर्त सरकार को नहीं सोंपा गया होता तो इसका नामोमिशन नहीं रहता हालाकि उन्हे मालूम था कि ऐसा करने से उनकी सेवाओ की सरकार को जरुरत नहीं रहेगी और उन्होने कालेज बचाने के खातिर यह जोखिम उठाया इस कारण उनकी नौकरी नहीं रही किन्तु वे इससे बहुत प्रसन्न रहीं कि हम रहे या नहीं रहे हमारी बनाई संस्था तो रहेगी।


ये लेख में भाई राजू जमनानी जी को "नव दुनिया " के लिए भेंट कर रहा हूँ .

धन्यवाद



राजू टाईटस

महिला दिवस नवदुनिया होशंगाबाद 8 मार्च 2013.

Thursday, February 28, 2013

किसानो की आत्म हत्या समस्या और समाधान FARMERS SUCIDE PROBLEM AND SOLUTION

किसानो की आत्म हत्या
समस्या और समाधान                                                          
FARMERS SUICIDE
PROBLEM AND SOLUTION

भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की करीब सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है किन्तु पिछले कुछ सालों से कृषि की हालत बिगड़ने लगी है। पहले खेती किसानी आत्म निर्भर थी वह आस पास के पर्यावरण और खुद के संसाधनों से संचालित होती थी। किन्तु अब वह आयातित तेल की गुलाम हो गयी है। ट्रेक्टरों से की जाने वाली गहरी जुताई ,कम्पनिओं के बीज ,रासायनिक उर्वरक , जहरीले खरपतवार और कीट नाशक, बिजली   आदि अनेक बाहरी तत्व खेती के लिए जरूरी हो गए हैं। जो किसानो को खरीदना पड़ता है। इस से खेती की लागत बहुत बढ़ जाती है।

एक जमाना था जब किसान जंगलों में रहता था उसे आसानी से कुदरती आहार मिल जाता था। उसके बाद उसने बीजों से फसल पैदा करना सीखा, वह बरसात आने से पहले जमीन पर सीधे बीज बिखरा देता था बरसात आने पर सब बीज उग आते थे। इन बीजों में सभी प्रकार के बीज मिले रहते थे जैसे अनाज के बीज, सब्जियों के बीज ,चारों के बीज ,फलों के बीज आदि। इनमे कुछ फसलें बरसात के बाद पक जाती थीं तो कुछ ठण्ड में पकती थीं तो कुछ गर्मियों में पकती थीं। बीज फेंकने से पूर्व किसान किसी हरे भरे भूमि ढकाव वाले स्थान को साफ़ कर देते थे।

हरियाली को काट कर बचे अवशेषों को जहाँ का तहां मल्च के रूप में  छोड़ देते थे  वे इस मल्च में बीजों को छिड़क कर खेती करते थे इस खेती में फसलों की रखवाली और हार्वेस्टिंग के आलावा और कोई काम नहीं रहता था। कुछ किसान मल्च को जला  कर भी खेती करते थे। जो किसान मल्च को जला कर खेती करते थे वे हरयाली को पुन: पनपने के लिए दो तीन साल के लिए छोड़ देते थे इस से जमीन फिर से तयार हो जाती थी। इस खेती को झूम खेती  का नाम दिया गया है। खेती करने की ये विधि सब से अधिक समय तक टिकाऊ रही है। आज भी अनेक आदिवासी अंचलों में इस खेती को देखा जा सकता  है।
ये पर्यावरण और आत्म निर्भरता के लिहाज से सर्वोत्तम खेती की विधि थी।

इसके बाद किसानो ने जुताई आधारित खेती करना सीखा पहले वे हाथों से जमीन में मामूली सा छेद बना कर बरसात आने से पूर्व बीज बिखेर देते थे फिर उन्होंने पशु बल से जमीन को जोतना सीखा एक किसान इस तरह काफी लम्बी जोत में खेती कर लेता था। बरसात आने से पूर्व वे अनेक प्रकार के बीजों को खेतों में बिखरकर उन्हें मिट्टी से ढँक दिया करते थे। इस प्रकार साल भर की खेती का काम समाप्त हो जाता था। जुताई से कमजोर होती जमीन को कुछ साल बिना जुताई का छोड़ देने से जमीन सुधर जाती है।

इस खेती में फिर सिंचाई की खेती का चलन शुरू हुआ जिस बेमोसम फसलों को उगाया जाने लगा, सिंचाई के साथ साथ मशीनो का खेती चलन शुरू  हो गया, मशीनो के साथ साथ ,रासायनिक उर्वरक ,कीटनाशक आदि का
भी खूब उपयोग शुरू हो गया।
सब ने इस उपलब्धि को बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि बताया। खेती इस से आजीविका साधन ना रहकर उधोग में तब्दील हो गयी इस के कारण तेजी से जंगल काटे जाने लगे , चरागाहों को भी खोद कर खेतों में तब्दील किया जाने लगा अनेक फल के बगीचे नस्ट कर दिए गए। ऐसा गेंहूं चावल जैसे मोटे अनाजों की बाजारू खेती के कारण हुआ। ये गेर कुदरती हिंसात्मक खेती सिद्ध हुई जमीने बंजर होने लगी ,खेती में लागत बढ़ने लगी, आत्म निर्भर खेती आयातित तेल की गुलाम हो गयी ,पशु धन लुप्त होने लगा , अधिक खर्च कम मुनाफे के कारण किसान गरीब होने लगे। अनेक किसान फसलों को पैदा करने के लिए कर्ज लेने लगे ,कर्ज नहीं पटा पाने के कारण वो आत्म हत्या करने लगे। मात्र कुछ ही सालों में वैज्ञानिक खेती का बोरिया बिस्तर लिपटने लगा। अब तक करीब तीन लाख किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। भारत का अनाज का कटोरा कहलाने वाला प्रदेश पंजाब में हर दुसरे दिन तीन  किसान आत्म हत्या कर है। महारास्ट्र  में हालत इस से भी गंभीर है। कोई भी प्रदेश इस समस्या से अछूता नहीं है।
कुदरती खेती के अविष्कारक 

खेती और पर्यावरण का चोली दामन का साथ है। दोनों एक दुसरे पर निर्भर हैं। जंगलों को नस्ट कर ,जमीन को गहराई तक जोतने खोदने और उस में अनेक जहरों को डालने से समस्या विकराल बनी है। भला हो जापान के
कृषि वैज्ञानिक ,कुदरती खेती के किसान ,और गाँधीवादी अहिंसात्मक खेती के प्रणेता श्री फुकुओकाजी का जिन्होंने बिना-जुताई ,बिना निदाई ,बिना खाद ,बिना उर्वरक,बिना कीट नाशकों के ऐसी खेती का अविष्कार कर दुनिया के सामने ये सिद्ध कर दिखाया की खेती से जुडी सब वैज्ञानिकी केवल धोका है इस की कोई जरुरत नहीं है। ये हमारे पर्यावरण और खेत-किसानो के लिए बहुत नुकसान दायक है।  कुदरती खेती से खाद्य ,हवा, पानी ,पर्यावरण की समस्या के साथ साथ  खेतों और किसानो का संवर्धन हो जाता है।
गेंहूं की फसल NATURAL WHEAT CROP
पेड़ों के साथ गेंहूं की खेती GROWING WHEAT WITH TREES  
      हम पिछले 27 सालों से इसका अभ्यास कर रहे हैं और इस के प्रचार और प्रसार में सलग्न हैं। कुदरती खेती जंगलों में अपने आप पनपने वाली वनस्पतियों के समान की जाने वाली खेती है। कुदरती स्थाई वनों में अनेक कुदरती जैव-विविधताओं के रहने से जीने मरने से जिस प्रकार जमीन और वातावरण ताकतवर होता जाता है उसी प्रकार कुदरती खेतों में भी खेतों की ताकत और मोसम में बढ़ते क्रम में इजाफा होता है जिस का लाभ कुदरती फसलों को मिलता है। फसले निरोगी ,रोगों को दूर करने वाली लाभप्रद ,लागत रहित पैदा होती हैं। इस खेती को करने से किसान को कर्ज की कोई जरुरत नहीं रहती है घाटा नहीं होता है। 

      कुदरती खेती सच्ची कुदरत मां की सेवा है जब की जुताई और रसायनों पर आधारित खेती कुदरत मां की हिंसा पर आधारित खेती है। खेतों और किसानो को बचाने का यह एक मात्र उपाय बचा है।

शालिनी एवं राजू टाइटस

 
Through this article I want to tell that Why millions of farmers committing suicide in India?. And how this problem can be avoided.

First we lived in forests eat fruits, roots etc. Than we learned grow seeds. Slash- and-burn was first invention of primitive agriculture. Then we learned cultivating the soil and sow the seeds in the soil. These two types of ways of shifting cultivated and are sustainable ways.

But after when chemicals and mechanical farming started the sustainability of agriculture vanished. Farmers became slave of fossil fuel and harmful chemicals. Deforestation, desertification, climate changes, droughts and floods become common. Self reliant farming converted in to industrialized slave farming.

Masnobu Fukuoka was first world famous scientist who invented farming based on without tilling , without man made fertilizers and compost , without weeding etc. He gave name of this farming “Natural farming” he wrote “The one Straw Revolution”. This book opened new path back to nature.

Titus Farm is pioneer in India. Is in its 27 the year. Many people following this modal. Any body can follow this way and saved his farm and life.


*Raju Titus.Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.*
       rajuktitus@gmail.com. +919179738049.
http://picasaweb.google.com/rajuktitus
http://groups.yahoo.com/group/fukuoka_farming/
http://rishikheti.blogspot.com/
   











Monday, February 25, 2013

कृषि-दवाओं का गोरख धंदा Monkey business in Agree drugs

कृषि-दवाओं का गोरख धंदा

ज कल फसलों के इलाज के लिए अनेक प्रकार की जैविक और अजैविक दवाइयों की चर्चा जोरों पर है. ये दवाएं खाद ,उर्वरक , कीटनाशक ,खरपतवार नाशकों ,टोनिक ,टीकों के रूप प्रचलित है . ये दवा रासायनिक,हारमोनिक  ,जैविक आदि तरीकों से बनाई जा रही है। अनेक दवाई जहर के रूप में कीड़ों और नींदों को मारने के लिए बन और बिक रही हैं।
EFFECT OF PESTICIDES BORN WITHOUT HANDS AND LEGS दवा का असर
बिना हाथ और पांव का बच्चा पैदा हुआ।  

हम पिछले 27 सालों से कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं। इस दोरान हमने आज तक किसी भी प्रकार की दवाई का उपयोग अपने खेतों में नहीं किया है. हम खेती करने के लिए जमीन की जुताई नहीं करते हैं। जुताई नहीं करने से हमारे खेतों में रहने वाले जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,नींदे आदि खेतों को गहराई तक पोला बना देते हैं जिस से बरसात का पानी जमीन में समां जाता है वह बहता नहीं है इस लिए खेतों की खाद भी नहीं बहती है. खेतों में खाद पानी की कोई कमी नहीं रहने से उसमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं। इस लिए उनमे कोई रोग का प्रकोप नहीं रहता है. यदि कोई रोग आता है तो कुदरती संतुलन के कारण वह अपने आप चला जाता है.

असल में फसलों में लगने वाली बीमारियों के पीछे फसलोत्पादन के लिए अमल में लाये जा रहे गेरकुद्रती उपाय हैं जैसे  जमीन की जुताई , गेर-कुदरती खाद और दवाओं का उपयोग ,खरपतवारों की हिंसा , कीड़ों को मारना आदि।

गेर-कुदरती खेती के पीछे आज की गेर-कुदरती डाक्टरी का सबसे बड़ा हाथ है. ये डाक्टरी हिंसा पर आधारित है.
इस महिला के तीन बेटे केंसर से मर गए। 3 SON DIED DUE TO CANCER
कुछ भी बीमारी दिखी तो उसके पीछे बीमारी के कीड़े दिखने लगते हैं बस उन्हें मारने  के लिए जहरों का उपयोग शुरू हो जाता है जिस से बीमारी और बढ़ जाती है. फसलें मर जाती है। इसी प्रकार ये डाक्टर लोग अनेक प्रकार की मानव निर्मित खाद ,उर्वरकों ,हारमोनिक टोनिक आदि की सिफारिश करते रहते हैं। अब तो ये अनेक सूक्ष्म-जीवाणुओं को शीशी में भर कर बेचने लगे हैं।

जब से रासायनिक दवाओं और जहरों से  होने वाले हानिकारक प्रभावों का असर पहचाना जाने लगा है तब से आर्गेनिक और बायो तकनीको का हल्ला जोरों पर है अनेक नीम हकीम पनपने लगे हैं। गोबर गो मूत्र से भी दवाएं बनने लगी हैं उनके पीछे परंपरागत खेती किसानी और धार्मिक सोच के आधार पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है. ये बहुत बड़ा गोरख-धंधा है.
NATURAL CROP OF RICE कुदरती चावल की फसल 

खेती के डाक्टर किसानो को पहले ऐसी तकनीक बताते हैं जिस से खेत कमजोर हो जाते है उनमे कमजोर फसल पैदा होती है जो बीमार हो जाती हैं फिर वे उन में दवा के नाम पर अनेक जहर डालने की सलाह देते हैं एक दवा के बेअसर हो जाने पर दूसरी दवा फिर तीसरी दवा डलवाते रहते हैं फसलों के मर जाने पर वे भी वे किसानो  पीछा नहीं छोड़ते है बेचारा किसान बंजर खेतों ,बीमार फसलों के आगे बेबस हो कर आत्म हत्या तक कर लेता है.



अनेक लोग हमारे खेतों पर पनप रही निरोगी फसलों को जो आस पास के खेतों से अच्छी रहती है  को देख कर
दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं। अनेक खेती के डाक्टर भी यहाँ आते हैं वे भी फसलों को देख कर अचंभित तो होते हैं पर इस खेती को करने की सलाह नहीं देते हैं। वो कहते है की जो हम यहाँ देख रहे हैं वह सत्य है किन्तु हमने इसे पढ़ा नहीं है.

कुदरती खेती से जुडी जीवन पद्धति के नहीं पनपने के पीछे एक और  जहाँ खेती से जुड़े डाक्टर साधू संतों आदि का दोष है वही इनके सहारे अपनी दुकान चलाने  वाले योजनाकारों और जन प्रतिनिधियों का हाथ है. उनका कहना है की यदि सब किसान कुदरती खेती करने लगेंगे तो कम्पनियों और दुकादारों का क्या होगा ?
कुदरती गेंहू की फसल  NATURAL WHEAT CROP

 उन्हें बंजर होते खेत ,आत्म हत्या करते किसानो, खाने की थाली में मिलते जहरों , कुपोषण की समस्या ,बढ़ते केंसर के रोगी ,मौसम परवर्तन ,पर्यावरण प्रदुषण जैसे सामाजिक सरोकारों से कोई लेना देना नहीं है. हमारा मानना है की कुदरती खेती को अपना कर हम आज हम उपरोक्त सभी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।

शालिनी एवं राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान

 
Now a day’s use of organic and inorganic medicines for the treatment of crops is in full swing. These medicines are available in the form of fertilizers, weed killers, pesticides, tonic and bio-fertilizers. These medicines are being made by chemicals, hormones and organics. Many medicines are highly poisonous.

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The last 27 years we have been practicing natural farming. In this period we have not used any medicines for crop protection or treatment. We do not tilling land. Due to no till field is in full biodiversity which make soil healthy ,crops remain free from disease. If some disease comes it naturally cured.


Actually crop diseases product of unnatural ways of farming such as tilling, use of chemicals, killing of weeds, killing of insects etc.





The unnatural way of farming is based on killing of biodiversity. Killing of weeds, killing of insects, killing of viruses etc. Ultimate result of this killing is dead soil. Growing crops in dead soil is not possible without hazardous chemicals, hormones etc.
Many bottled microbes are also come in market as bio-tonic.



As the awareness spreading about the pollution caused by agro chemicals many alternative medicines coming in market in the name of organic and bio. Many fake doctors befooling farmers. Medicines made by cow dung and urine are also in market, religious faith is being played by monkey business.



Doctors first advised to make soil poor by deep tilling. Poor soil produces weak crops prone to disease, than they advised to use poison to kill insects, insects become immune spread strongly kill all crop. Many farmers in India are committing suicide due crop failure by this reason.


Many doctors are coming to our natural farm after comparing  crops by our neighbor’s they admire truth  but do not say that this way of farming is possible because thy do not read this way in doctor’s course.



Natural farming is a method of agriculture which can prevent harmful effect of aggro drugs but monkey business is stopping. Many children born handicapped ,many people dying due to cancer , desertification spreading. Farmers are committing suicide due to crop failure.
   









Friday, February 22, 2013

RICE WORLD RECORD धान का विश्व-कीर्तिमान

धान का  विश्व-कीर्तिमान
श्री सुमंत कुमार किसान
नालंदा बिहार भारत
    जमीन से मिलने वाली पैदावार की कोई सीमा नहीं है . हाल ही में नालंदा के किसान श्री सुमंत कुमार ने 2 2 .4 टन धान प्रति हेक्टर पैदा कर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है . उन्होंने इस से पहले का कीर्तिमान जो 1 9 .5 था को तोडा है. जो चीन के वैज्ञानिक श्री युआन ने स्थापित किया था .

श्री सुमंत कुमार
SUMANT KUMAR 
श्री सुमंत कुमार का कीर्तिमान इस लिए अधिक महत्व का है क्योंकि उन्होंने ये उपज बिना रसायनों और बिना अनु-वांशिक बीजो के प्राप्त किया है. इस की गुणवत्ता बहुत अधिक है . हम ये दावे के साथ कह सकते हैं की एक और जहाँ श्री युआन का चावल केंसर जैसी बीमारी को जन्म देने में समर्थ है वैसे श्री सुमंतजी का चावल केंसर जैसी बीमारी को ठीक करने में समर्थ है .

इस से पूर्व जापान के कुदरती किसान श्री स्व .मासानोबू फुकुओकाजी ने बिना-जुताई खाद और दवा के एक टन से अधिक प्रति एक चोथाई चावल की पैदावार अनेक सालों तक लगातार बढ़ते क्रम में लेकर कीर्तिमान बनाया था . फसलोत्पादन के लिए जमीन की कुदरती ताकत और मौसम  का बड़ा हाथ है. जमीन की ताकत जमीन में पैदा होते मरते जैविक अंशो पर निर्भर है. जैविक अंश जिन्हें हम कीड़े,मकोड़े ,पेड़पौधे ,सूक्ष्म जीवाणु आदि कहते हैं। ये जैव-विविधताएँ जमीन पर उस समय पनपती हैं जब जमीन को अपने कुदरती स्वरूप में रहने दिया जाये . अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के चक्कर में किसान जमीन को खूब खोदते जोतते हैं, उस में अनेक प्रकार के रासायनिक जहर डालते हैं . खेतों को पानी में डूबा कर रखते हैं . इस लिए जमीन की जैव-विविधताएँ मर जाती हैं . उनसे मिलने वाली ताकत भी ख़तम होने लगती है.
सुमंतजी की फसल
SUMANT'S PADDY CROP


कुदरती खेती की फुकुओका विधि एक मात्र ऐसी विधि है जो जमीन ताकत को बढ़ते क्रम में बनाये रखने में सक्षम है. इस विधि में इसी कारण जमीन की जुताई ,कीचड की मचाई ,मानव निर्मित खाद और कीट/नींदा नाशक उपायों, नरवाई ,पुआल आदि को हटाना आदि गेर-कुदरती उपाय वर्जित हैं .

चीन के वैज्ञानिक महोदय जी का कहना है की श्री सुमंतजी का 2 2 .4 टन प्रति हेक्टर का उत्पादन बिना रसायनों और बिना अनुवांशिक उपाय के असंभव है. हम पिछले 2 7 सालों से बिना जुताई बिना रसायनों के खेती कर रहे हैं . इस विधि का अविष्कार श्री फुकुकाजी ने कर दीर्घ कालीन विश्व स्तरीय कीर्तिमान कर बहुत पहले दुनिया को दिखा दिया है.
चीन के वैज्ञानिक श्री युवान लोंगपिंग
MR YUVAN LONGPING OF CHINA
PREVIOUS WORLD RECORD HOLDER.

श्री सुमंत  कुमार जी ने भी इस विधि के बहुत करीब जाकर ये कीर्तिमान स्थापित किया है . इस के लिए वे बधाई के पात्र हैं किन्तु चीन के श्री युवान गेर-कुदरती तरीके से गेर-कुदरती फसल के रिकार्ड के लिए बधाई के पात्र नहीं है। रसायनों और जी एम् से खेत ख़राब होते है।
हमारा ये मानना है की श्री सुमंत कुमार जी यदि अपनी इस विधि से गेर-कुदरती उपाय यदि हैं तो  हटा देते हैं तो साल दर साल वे अपने रिकार्ड को बनाये रख सकते है। किन्तु गेर-कुदरती चावल के तथा कथित पितामह कभी भी उत्पादन को टिकाऊ नहीं रख सकते हैं।
शालिनी एवं राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान

MR SUMANT KUMAR FARMER OF NALANDA BIHAR INDIA PRODUCE 22.4 TONS OF PADDY (WET) FROM ONE HECTARE. HE NOT USED CHEMICAL AND GM SEEDS. HE BROKEN PREVIUS RECORD OF MR YUVAN LONGPING OF CHINA WHO WAS WINNER OF
WORLD RECORD IN PADDY PRODUCTION ,PRODUCED 19.5 TONS.

MR YUVAN IS NOT SATISFIED WITH THE YIELD SHOWN BY MR SUMANT OF INDIA AS PER HIM CLAIM IS FAKE. I AM NOT SATISFIED WITH MR YUVAN'S STATMENT AND WORK BECAUSE HE PRODUCED UNNATURAL CROP WITH GM SEEDS AND HAZARDOUS
CHEMICALS. MR SUMANT KUMAR'S CLAIM IS JUSTIFIED BECAUSE HE PRODUCED NATURAL CROP OF PADDY.

MR KUMAR'S YIELD IS JUST DOUBLE FROM FUKUOKA' YIELD IT SHOWS THAT YIELD IS DEPEND OF GOOD NATURAL HEALTH OS SOIL. THIS HEALTH IS POSSIBLE ONLY BY USING
FUKUOKA PRINCIPALS. THERE IS NO LIMIT OF YIELD IN NATURAL WAY OF FARMING METHODS.
THANKS
RAJU