बिना -जुताई की खेती
पर्यावरण बचाने की योजना
परिचय
सामान्यत : फसलोत्पादन के लिए हरे भरे पेड़ों को काट कर ,झाडयों और अनेक प्रकार की वनस्पतियों को हटा कर जमीन को खूब जोता और खोदा जाता है ऐसा करनेसे हरियाली से भरी हमारी धरती रेगिस्थान में तब्दील हो रही है। मोसम में परिवर्तन हो रहा है बाढ़ और सूखा आम समस्या बन गए हैं।
जमीन को बार बार खोदने और जोतने से एक ओर जहाँ बरसात का पानी जमीन में नहीं समाता है वह तेजी से बहता है और अपने साथ खेत की उपजाऊ मिटटी को भी बहा कर ले जाता है।
हमारे पूर्वज किसान इस समस्या से भली भांति परिचित थे वे बिना जुताई करे खेती किया करते थे। अनेक किसान हलकी जुताई कर खेती करते थे और कमजोर होती जमीन को फिर से हरी भरी होने के लिए छोड़ देते थे।
हरियाली और पशु पालन के साथ समन्वय रहने से जमीन की ताकत बढती रहती थी जिस से फसलों की ताकत भी बढती रहती थी। लोग रोग मुक्त बरसों जीते थे।
हमारे इन खेतों को देखिये पिछले २७ सालों से अधिक समय से इन्हें जोता नहीं गया है नाही इनमे किसी भी प्रकार के गेर कुदरती खाद और दव़ा का उपयोग किया गया है। लगातार फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता में लाभ बढ़ते क्रम में प्राप्त हो रहा है। पूरे खेत सालभर हरे भरे हरियाली से भरे रहते हैं। ये बिना जुताई की कुदरती खेती है। जिस से एक और जहाँ साल भर कुदरती खान पान ,चारा ईंधन आदि उपलब्ध रहता है वहीँ ये खेत वर्षा के जल का संग्रह करते हैं और बरसात को करवाने में सहयोग करते हैं। जिस से हमारे आस पास का पर्यावरण संवर्धित हो रहा है।
ठीक इस के विपरीत जुताई आधारित खेती को देखिये कोई भी किसान अनाज के खेतों में पेड़ नहीं रखता मुख्य फसल के आलावा एक एक पौधे को बड़ी बे रहमी से मार दिया जाता है। जुताई करने के कारण खेतों में कीचड हो जाती है बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है। खेत प्यासे रह जाते हैं। पानी तेजी से बहता है अपने साथ उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है। इस कारण खेत भूखे रह जाते हैं। उनकी फसलें भी भूखी और कमजोर रहती हैं। वे बीमार हो जाती है।
अनेक प्रकार की खरपतवार पनपने लगती है। किसान फसलों की बीमारी के इलाज के लिए अनेक प्रकार के जहर खेतों में छिड़कते हैं। जिस से बीमारियाँ और बढ़ जाती है। फसलें भी जहरीली हो जाती हैं। जमीन में रहने वाले तमाम जीवजन्तु ,कीड़े मकोड़े, पेड़ पौधे और सूख्स्म जीवाणु आदि जमीन को उर्वरक बनाते हैं वे सभी नस्ट हो जाते हैं। इस से ना केवल हमारे खेत वरन तमाम हमारा पर्यावरण ख़राब हो जाता है। बिना जुताई की खेती करने से ठीक इसके विपरीत हमारा पर्यावरण सुधरता जाता है। इस खेती की शुरुवाद करने का श्रेय जापान के सूख्स्म जीवाणु वैज्ञानिक स्व. श्री मस्नोबू फुकुओकाजी को जाता है। उनके अनुभवों की किताब "दी वन स्ट्रा रिवोलुशन " अंग्रेजी में और "एक तिनके से आयी क्रांति " हिंदी में जग प्रसिद्ध हैं. इसके आलावा ये किताब अब अनेक देशी एवं विदेशी भाषाओँ
में उपलब्ध है।
बिना -जुताई की खेती की शुरुवाद
प्रारंभ में हमारे खेतों में परंपरागत देशी खेती की जाती थी। हलकी जुताई बेलों से की जाती थी ,गर्मियों में सभी कृषि के अवशेष गोबर,गोंजन आदि को खेतों में वापस डाल दिया जाता था। दलहन फसलों और अनाज की खेती के बीच समन्वय स्थापित कर नत्रजन की कमी को दूर किया जाता था। सिंचाई नहीं की जाती थी।
कुदरती बीजों का उपयोग होता था। कमजोर होते खेतों को छोड़ दिया जाता था उनमे घास पनप जाती थीं जिनमे पशुओं को चराया जाता था। इन चरागाहों में अपने आप अनेक बबूल जाती के पेड़ पैदा हो जाते थे थे जिनसे ईंधन मिल जाता था। ये एक स्थाई खेती थी। किसान अपने लिए पैदा करता था और इसे अपने आस पास के लोगों के साथ बाँट कर बदले में अपनी जरुरत को पूरा कर लिया करते थे।
उन दिनों भारत में हरित क्रांति का जोर चल रहा था यह क्रांति खेती में रसायनों,मशीनो और भारी सिंचाई पर आधारित है।. इस क्रांति में अधिक से अधिक उत्पादन देने का लोभ था हम भी इस लोभ में फंस गए। करीब पंद्रह साल हम इस में फंसे रहे। इस कारण हमारी जमीन मरुस्थल में तब्दील हो गयी।हमें भारी आर्थिक घाटा होने लगा। हमारे सामने खेती को छोड़ने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचा था। इसी दोरान हमें जापान के कुदरती किसान श्री मासानोबू फुकुओकाजी की किताब "दी वन स्ट्रा रेवोलुशन पढने को मिली" इसने हमारी ऑंखें खोल दी। हमने तुरंत फुकुओकाजी की "बिना जुताई की कुदरती खेती" को अपना लिया।
हमारे सामने " दी वन स्ट्रा रेवोलुशन " के आलावा और कोई मार्ग दर्शन नहीं था। हम उसे बार बार पढ़ते और अपने स्तर प्रयोग करते गए। सीधे बीजों को फेंकना ,मिट्टी की गोलियों में बीजों को बंद कर फेंकना ,स्ट्रा मल्चिंग आदि प्रयोग करने से हमें इस खेती को करने का काफी ज्ञान हासिल हो गया। हमारे खेतों में फसलें पकने लगीं।
कैसे करें बिना जुताई की खेती ?
उन दिनों भारत में हरित क्रांति का जोर चल रहा था यह क्रांति खेती में रसायनों,मशीनो और भारी सिंचाई पर आधारित है।. इस क्रांति में अधिक से अधिक उत्पादन देने का लोभ था हम भी इस लोभ में फंस गए। करीब पंद्रह साल हम इस में फंसे रहे। इस कारण हमारी जमीन मरुस्थल में तब्दील हो गयी।हमें भारी आर्थिक घाटा होने लगा। हमारे सामने खेती को छोड़ने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचा था। इसी दोरान हमें जापान के कुदरती किसान श्री मासानोबू फुकुओकाजी की किताब "दी वन स्ट्रा रेवोलुशन पढने को मिली" इसने हमारी ऑंखें खोल दी। हमने तुरंत फुकुओकाजी की "बिना जुताई की कुदरती खेती" को अपना लिया।
हमारे सामने " दी वन स्ट्रा रेवोलुशन " के आलावा और कोई मार्ग दर्शन नहीं था। हम उसे बार बार पढ़ते और अपने स्तर प्रयोग करते गए। सीधे बीजों को फेंकना ,मिट्टी की गोलियों में बीजों को बंद कर फेंकना ,स्ट्रा मल्चिंग आदि प्रयोग करने से हमें इस खेती को करने का काफी ज्ञान हासिल हो गया। हमारे खेतों में फसलें पकने लगीं।
कैसे करें बिना जुताई की खेती ?
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