Monday, November 30, 2015

यूरिया जहर है !

यूरिया जहर है !

म बिना जुताई की कुदरती  खेती करते हैं जिसमे हम किसी भी प्रकार की मानव निर्मित खाद और दवाई का उपयोग नहीं करते हैं। हमने यह पाया है की जब हमारे पडोसी अपने खेतों में यूरिया डालते हैं और सिंचाई करते हैं तो पानी यहां वहां डबरों में भर जाता है उस पानी से मेंढक ,मछलियाँ मर जाती हैं यदि उस पानी को मवेशी पी लेते हैं तो वो भी मर जाते हैं।  हमारे स्वम् के मवेशी भी अनेक बार मरे हैं।

मेरा सहयोगी शैलेन्द्र बता रहा था की जंगल के करीब रहने वाले अनेक शिकारी जंगली जानवरो का शिकार करने के लिए यूरिया का इस्तमाल करते हैं वो यूरिया को आटे  में मिला कर रख देते हैं उन्हें खाने वाले जानवर मर जाते हैं या बेहोश हो जाते हैं वो उन्हें पकड़ लेते हैं।

जंगलो के आस पास किसानो की फसलो को जब जंगली जानवर  खाने लगते हैं तो उन्हें यूरिया खिला कर मार डालते हैं। अनेक लोग यूरिया को नशे के लिए भी इस्तमाल करते हैं। जैसा की मालूम है हर नशा जहरीला होता है।  यूरिया को पानी में घोल कर पीने से नशा आ जाता है।

मेरा ये सब बताने का आशय यह है की जब यूरिया खेतों में डाला जाता है वह असंख्य धरती माँ की जैव-विविधताओं को मार देता है जो की हमारी फसलों के लिए बहुत जरूरी हैं जैसे केंचुए आदि। दूसरा यह यूरिया हमारी फसलों के खून में मिल कर हमारी रोटी में भी आ रहा है जिस से हम स्लो जहर के शिकार हो रहे हैं।
यूरिया डालने से जमीन की नत्रजन गैस बन कर उड़ जाती है जिस से ग्रीन हॉउस गैस बनती है जो हमारे वायु मंडल में कम्बल की तरह आवरण बना लेती है जिस से ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की समस्या उत्पन्न होती है।

किसानो को भले इन सब बांतो से कोई सरोकार नहीं हो किन्तु उसे यह मालूम होना चाहिए की उसक जेब का पैसा जब यूरिया के माध्यम से मात्र कुछ मिनटों में गैस बन कर उड़ जाता है यानि आपने जब १०००  रु का यूरिया डाला तो ७०० रु उसको डालते ही उड़ जाते हैं।

हम जानते हैं की नत्रजन फसलों के लिए जरूरी है जो हमे अपने आप वातावरण से मिल जाती है कुदरत यह काम खुद करती है। इसे बचाने की जरूरत है जब जमीन की जताई की जाती है तो हर बार की जुताई से जमीन की अधि नत्रजन उड़ जाती है।

इस प्रकार हमारी खरीदी यूरिया और कुदरत की बनाई यूरिया दोनों गैस बन  कर उड़ रही और हमारी रोटी जहरीली हो रही है।  इस लिए दोस्तों से आग्रह है की किसानो को यूरिया जहर को नहीं डालने हेतु प्रेरित करें। rajuktitus@gmail.com


Sunday, November 29, 2015

ऋषि खेती रोटी बचाओ आंदोलन है।

ऋषि खेती रोटी बचाओ आंदोलन है। 


ले आज आम आदमी को ऋषि खेती की चिंता नहीं है वह टीवी,मोबाइल ,बंगलो और  कार  में मशगूल हैकिन्तु जब उसे पता  चलेगा की यह आधुनिक वैज्ञानिक रोटी कैसे पैदा हो रही है तो उसके नीचे से जमीन खिसक गयी होगी।
 वह पैसा लेके यहां वहां भागेगा किन्तु उसे एक रोटी नहीं मिलेगी।
किसान सबसे पहले हरयाली जो हमे हवा देती है ,जो हमे पानी देती है ,जो गर्मी ,ठण्ड ओर बरसात को नियंत्रित करती है उसे मार डालता है। फिर धरती माँ जो असंख्य जैव-विवधताओं की पालन हार है हमे रोटी खिलाती है को मार डालता है। फिर उसमे असंख्य जहरीले जहर डालकर रोटी पैदा करता है।  जिस से यह रोटी इतनी जहरीली हो जाती है की उसे जानवर भी नहीं खाते हैं । क्योंकि यह रोटी जहरीली है। इस रोटी को खाने से अनेक जानलेवा बीमारिया हो रही है इस को खाने से असंख्य लोग मर रहे हैं।
ऋषि खेती हरियाली और धरती माँ की रक्षा करती है जिस से धरती माँ अपने बच्चों को रोटी खिला सके। 

Saturday, November 28, 2015

कुछ मत करो चिकित्सा



Do Nothing 

कुछ मत करो चिकित्सा


मेरी उम्र ७० साल है मेरा वजन बहुत है चलने में परेशानी होती है। मुझे दो बार शुगर की वजह से हार्ट अटैक आ चुका  है।  चिन्नई के अपोलो में मझे स्टंट लगा दिया है। मेरी दोनों आँखों में मोतिया बिन्द  के कारण लेंस लग गए हैं। शुगर के कारण मेरी जिंदगी बेकार समझ  में आने लगी थी। मेने हर प्रकार के इलाज रासायनिक ,आयुर्वेदिक  ,होम्योपैथिक ,कुदरती सब कुछ कराया किन्तु मुझे लाभ नहीं मिला।
मेरी पत्नी जी को भी शुगर और बी पी की शिकायत है वे भी रासायनिक दवाओं के भरोसे जिंदगी जी रही है।
हम दोनों शहरो में पढ़े लिखे हैं मेरी पत्नी ग्रहणी हैं। मै  सरकारी सेवा में कार्यरत रहा। उसी दौरान मुझे अटैक आये थे।  लाखों रूपये इलाज में खर्च किए। किन्तु कोई फायदा नहीं मिला।

कुछ साल तो में गोलियां खाता रहा बाद में बंद कर दिया इन्तु शुगर और बी पी की समस्या जहाँ कि तहां रही मेरी पत्नी शालिनी जी को भी अनेक बार इलाज के लिए डाक्टरों के पास ले जाना पड़ा था।

हम पिछले 30 सालो से" Do Nothing " सिद्धांत पर आधारित ऋषि खेती का अभ्यास और प्रचार प्रसार कर रहे है। अपने को खान पान से नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे है। उस से हम अभी तक बचे रहे। किन्तु बीमारी बनी रही।

जैसा की मेरे FB दोस्तों को पता है की में समय समय पर लिखता रहता हूँ मेरी दोस्ती विपिन गुप्ताजी  से हुई वे
फार्माश्यूटिकल के विशेषज्ञ है।  वे अनेक साल मेडिकल कालेज में पढ़ाते  रहे किन्तु अब उन्होंने नौकरी को छोड़ कर "दवा कम " विषय पर काम करना शुरू किया है। वे भोपाल में रहते है मधु मेह ,मोटापा और थायरोड के इलाज हेतु  "दवा कम " कर कुछ मत करो विधि से इलाज करते हैं।

वे ऋषि खेती फार्म देखने अपनी पत्नी और दोस्त के साथ पधारे थे।  फार्म को देख कर बहुत खुश  हुए। हमने उन्हें इस फार्म में  शिविर लगाने हेतु निवेदन किया  जिसे उन्होंने  स्वीकार कर लिया , बांतो बांतो में मेने मेरी और अपनी पत्नी की व्यथा का जिक्र किया उन्होंने हमे "कुछ मत करो " पद्धति से इलाज बताया चूंकि हम इस विधि से खेती कर रहे रहे थे हमे पूरा विश्वाश हो गया कि इस से हम स्वस्थ हो सकते हैं तथा और लोगों को भी स्वस्थ कर सकते हैं।

शालिनी जी की तबियत मात्र एक दिन में नियंत्रित हो गयी मुझे करीब एक सप्ताह में आराम लग गया है। अब विपिनजी ने हमे उनके बताए अनुसार रहने की सलाह दी है। जो बहत आसान है।  मुझे ऐसा लग रहा है की मुझे एक नयी जिंदगी मिल गयी है।
मेरा तमाम मेरे FB दोस्तों से गुजारिश है की वे अपनी बीमारियों के लिए विपिन गुप्तजी सम्पर्क कर सकते हैं उनका तरीका हम सब को चिकत्सा के छेत्र में हो रही धोकाधडी से बचा सकता है। 

Thursday, November 26, 2015

नेचरल जैविक खेती


नेचरल जैविक खेती 
ऋषि खेती 
जकल जब से रासयनिक खेती के नुकसान नजर आने लगा हैं जैविक खेती की बात की जाने लगी है।  अधिकतर लोग यह समझते हैं कि रासयनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद डालने से खेती जैविक हो जाती है। असली जैविक खेती का मतलब है खेतों की जैव-विविधताओं को बचा कर जीवित खेती करना है। इसलिए कोई भी कृषि कार्य ऐसा नहीं होना चाहिए  जिस से जमीन की जैव-विवधताओं की हिंसा होती है।  
इस वीडियो में दिखाया गया है की जुताई वाली अजैविक मिटटी  और बिना जुताई वाली जैविक मिटटी में क्या अंतर है। 
जैसे जमीन की जुताई ,जहरीले रसायनो का उपयोग आदि।  अधिकतर लोग यह समझते हैं की जमीन की जुताई करने से कोई नुक्सान नहीं होता है यह गलत है सबसे अधिक जैव-विविधताओं की हिंसा जमीन की जुताई से होती है। ,

परमपरागत  जुताई आधारित जैविक खेती में जुताई के रहते बहुत अधिक जैव- विविधताओं की हिंसा होती है। जापान के कुदरती कृषि के वैज्ञानिक और कुदरती खेती के किसान स्व.मस्नोबू फुकूओकाजी का कहना है की एक बार की जुताई से जमीन की आधी जैविक खाद बह जाती है। इस प्रकार अनेक वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान में यह पाया है की  जुताई करने से करीब १५ टन जैविक खाद बह जाती है। इस खाद को सूक्ष्म दर्शी यंत्र से देखने पर इसमें असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओ के अलावा कुछ अजैविक नहीं होता है। यह जैविकता यदि बचा ली जाये तो खेत में खाद की कोई जरूरत  नहीं रहती है।

अनेक कृषि वैज्ञानिक यह कहते हैं फसलें पोषक तत्व खाती हैं इसलिए खाद ,उर्वरक आदि की जरूरत रहती है यह भ्रम है असल खेत में खाद और उर्वरकों की मांग जुताई के कारण जैविक खाद के बह जाने के कारण है।
हम पिछले ३० सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं जिसे ऋषि खेती के नाम से जाना जाता है इसमें जुताई नहीं करने के कारण विगत ३० सालो  में हमे फसलोत्पादन में किसी भी प्रकार की खाद की जरूरत नहीं हुई है।  खेत में जब पर्याप्त जैविकता रहती है तो फसलों में बीमारियां भी नहीं लगती हैं।  उत्पादन भी सामान्य मिलता है।

हमारा कहना है जुताई एक हिंसात्मक उपाय है इसके रहते खेतों की जैविकता को बचा पाना असम्भव है इसलिए बिना जुताई की जैविक खेती अपनाये।  अनेक किसान आजकल बिना जुताई की खेती करने लगे हैं किन्तु वे जहरीले नींदा नाशक और कीड़ामार जहरों का उपयोग करते हैं जो उचित नहीं है। 

ऋषि खेती असली जैविक खेती है।

ऋषि खेती असली जैविक खेती है 

जुताई करने से हर साल कई टन जैविक खाद बह जाती है। 
जकल जब से रासयनिक खेती के नुकसान नजर आने लगा हैं जैविक खेती की बात की जाने लगी है।  अधिकतर लोग यह समझते हैं कि रासयनिक उर्वरकों की जगह जैविक खाद डालने से खेती जैविक हो जाती है। असली जैविक खेती का मतलब है खेतों की जैव-विविधताओं को बचा कर जीवित खेती करना है। इसलिए कोई भी कृषि कार्य ऐसा नहीं होना चाहिए  जिस से जमीन की जैव-विवधताओं की हिंसा होती है।  
इस वीडियो में जैविक और अजैविक मिट्टी की पहचान करने का
सरल तरीका दिखाया गया है जिसको इस URL से खोज सकते हैं।

 https://youtu.be/XSJdyQ_Yymk

जैसे जमीन की जुताई ,जहरीले रसायनो का उपयोग आदि।  अधिकतर लोग यह समझते हैं की जमीन की जुताई करने से कोई नुक्सान नहीं होता है यह गलत है सबसे अधिक जैव-विविधताओं की हिंसा जमीन की जुताई से होती है। ,

परमपरागत  जुताई आधारित जैविक खेती में जुताई के रहते बहुत अधिक जैव- विविधताओं की हिंसा होती है। जापान के कुदरती कृषि के वैज्ञानिक और कुदरती खेती के किसान स्व.मस्नोबू फुकूओकाजी का कहना है की एक बार की जुताई से जमीन की आधी जैविक खाद बह जाती है। इस प्रकार अनेक वैज्ञानिकों ने अपने अनुसंधान में यह पाया है की  जुताई करने से करीब १५ टन जैविक खाद बह जाती है। इस खाद को सूक्ष्म दर्शी यंत्र से देखने पर इसमें असंख्य सूक्ष्म जीवाणुओ के अलावा कुछ अजैविक नहीं होता है। यह जैविकता यदि बचा ली जाये तो खेत में खाद की कोई जरूरत  नहीं रहती है।

अनेक कृषि वैज्ञानिक यह कहते हैं फसलें पोषक तत्व खाती हैं इसलिए खाद ,उर्वरक आदि की जरूरत रहती है यह भ्रम है असल खेत में खाद और उर्वरकों की मांग जुताई के कारण जैविक खाद के बह जाने के कारण है।
हम पिछले ३० सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं जिसे ऋषि खेती के नाम से जाना जाता है इसमें जुताई नहीं करने के कारण विगत ३० सालो  में हमे फसलोत्पादन में किसी भी प्रकार की खाद की जरूरत नहीं हुई है।  खेत में जब पर्याप्त जैविकता रहती है तो फसलों में बीमारियां भी नहीं लगती हैं।  उत्पादन भी सामान्य मिलता है।

हमारा कहना है जुताई एक हिंसात्मक उपाय है इसके रहते खेतों की जैविकता को बचा पाना असम्भव है इसलिए बिना जुताई की जैविक खेती अपनाये।  अनेक किसान आजकल बिना जुताई की खेती करने लगे हैं किन्तु वे जहरीले नींदा नाशक और कीड़ामार जहरों का उपयोग करते हैं जो उचित नहीं है। 

Wednesday, November 25, 2015

जलवायु का प्रबंधन

जलवायु का प्रबंधन 

ऋषि खेती से रोकें ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन  

विगत दिनों मुझे भोपाल में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के राष्ट्रीय सम्मलेन में  बोलने का अवसर मिला।  जैसा की मित्र जानते हैं की हम पिछले तीस सालो से ऋषि खेती कर रहे है।  यह बिना जुताई की खेती के नाम से भी जानी जाती है। यह सम्मलेन म. प्र. सरकार की और  स्व. सेवी संस्थाओं की सहायता से आयोजित किया गया था।

असल में इस सम्मेलन का आयोजन मूलत : 2015 के पेरिस सम्मलेन और 2016  के कुम्भ के आयोजन की पृष्ठ भूमि में भी देखा जा रहा है। किन्तु असल में इस सम्मेलन का अधिक मतलब म. प्र. की खेती किसानी की बिगड़ती हालत को सुधारने के लिए आयामो को खोजने के लिए था। जिसमे अनेक पर्यावरणीय खेती करने वाले किसान आमंत्रित किए गए थे।सम्मेलन के अद्यक्ष माननीय लोक सभा संसद श्री अनिल माधव द्वेजी थे ,उद्घाटन श्री श्री रविशंकरजी ने किया था ,माननीय शिवराज सिंघजी ने अपने उद्भोदन में बताया की म. प. में सूखा पड़ा है और तमिलनाडु में बाढ़ आ रही है।  इसमें कोई शक नहीं है की हमने गलतियां की हैं जिसे हमे ठीक करना है।
 ऋषि खेती विषय पर बोलते हुए हमने बताया की ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज का मूल कारण धरती पर हरियाली की कमी का होना है। यह कमी मूलत: खेती में चल रही जमीन की जुताई के कारण है। जमीन की जुताई इस धरती पर सब से बड़ी हिंसात्मक प्रक्रिया है। इस से हरयाली नस्ट होती है रेगिस्तान पनपते हैं।
किन्तु जब हम जुताई बंद  कर खेती करने लगते हैं तो इसके विपरीत परिणाम आते हैं हमने बोलते वक्त सेटेलाइट से ली गयी हमारे फार्म की तस्वीर को भी दिखाया की किस प्रकार ऋषि खेती करने के कारण हमारे खेत पूरे बड़े बड़े पेड़ों की हरियाली से ढंक गए हैं।
जुताई करने से खेत की जैविक खाद (कार्बन ) गैस में तब्दील हो जाती है जो आसमान  में एक कम्बल की तरह आवरण बना  लेती है जिस से सूर्य की गर्मी धरती पर प्रवेश तो कर लेती है किन्तु वापस नहीं जाती है जिस से गर्मी बढ़ती जाती है। दूसरा एक ओर  नुक्सान है वह है भूमि छरण होता यह है जुताई के कारण  बखरी हुई मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है वह तेजी से बहता है अपने साथ जैविक खाद को भी बहा  कर ले जाता है।
किन्तु जब बिना जुताई की खेती की जाती है तो जैविक खाद का बहना और गैस बन कर उड़ना रुक  जाता है जिस से हरियाली तेजी से पनपने लगती है।
यह हरियाली एक  ओर   बरसात को आकर्शित  करती है वहीं  वर्षा के जल को हार्वेस्ट भी करती है। गर्मी को रोकती है ग्रीन हॉउस गैस को सोख कर उसे जैविक खाद में तब्दील कर देती है जिस से जलवायु का प्रबंधन हो जाता है।



Do Nothing .(कुछ मत करो )

भारतीय संस्कृति कुदरती संस्कृति है !

ऋषि खेती अपनी संस्कृति की और लोटने  का जरिया है.

जल वायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से मिलेगी सीख 

सीमेंट कंक्रीट ,पेट्रोलियम ,बिजली पर आधारित विकास नहीं वरन विनाश है।
आने वाले कुम्भ 2016 उज्जैन से लिए गया चित्र 
हमारी संस्कृति को पश्चिमी संस्कृति ने बहुत नुक्सान पहुँचाया है। इस संस्कृति को खेती किसानी ने हजारों साल बचा कर रखा किन्तु मात्र कुछ वर्षों की पश्चिमी विज्ञान पर आधारित खेती "हरित क्रांति " से यह मरणासन्न अवस्था में पहुँच गयी है। जिसे हमे  जीवित करना है। ऋषि खेती ,ऋषि मुनियों की संस्कृति "कुछ मत करो " (Do nothing ) के सिद्धांत पर आधारित है। जुताई करना ,रासायनिक उर्वरकों ,कीट और खरपतवार नाशकों का उपयोग ,कम्पोस्ट बनाना ,बायो और GM बीजों का उपयोग इसमें वर्जित है।इस से हरियाली नस्ट हो रही है।

ये खेती ,कुदरती वनो आधारित है। वनो में जिस प्रकार जैव-विविधतायें पनपती हैं उसी प्रकार यह खेती होती है। इसमें नहीं के बराबर मशीनो से काम होता है।  इसका मूल मन्त्र यह है की हर कोई अपनी पसंद से अपना खाना पैदा करे।  यह नहीं कि सब  गेंहूँ और चावल पैदा करें और केवल वही खाएं।  इसके कारण कुदरत का और किसानो का बहुत शोषण होता है।
गैर कुदरती खेती के कारण हमारे खेत रेगिस्तान में तब्दील हो रहे हैं और हम लोग बीमार हो रहे है किसान आत्म  हत्या कर रहे हैं. हम भारत वासी बात अपनी संस्कृति की करते हैं किन्तु अपनाते विदेशी संस्कृति है।
ऋषि मुनियों ने जो हमे ज्ञान दिया है उस से हम आज तक बचे हैं।  किन्तु अब जलवायु परिवर्तन और बढ़ती
गर्मी ने हमे  अपनी संस्कृति की और लोटने  पर बाध्य कर दिया है।
दुनिया में किसी के पास इस से बचने का कोई रास्ता नहीं है किन्तु हमारे पास अभी भी अपनी संस्कृति है जिस से हम बच सकते हैं।  गीताजी में लिखा है "अकर्म " (Do Nothing ) कुदरत के साथ जीने का तरीका है।


Monday, November 23, 2015

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन : समाधान की ओर

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन
दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन : समाधान की ओर 

 विधान सभा भोपाल
21 -22 नवम्बर 



सरकार ने माना की गलती हुई है जिसे हमे ही ठीक करना है। 

ऋषि खेती से होगा समाधान 

रती पर गर्मी बढ़ रही मौसम गड़बड़ाने लगा है कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा पड़ रहा है। फसलें हर मौसम खराब होने लगी हैं खेती किसानी मरने लगी है।  ये सब घरती पर हरियाली की कमी के कारण हो रहा है। हरियाली के नहीं रहने के कारण है।  विषय को समझने और इसके समाधान की खोज के लिए म. प्र. सरकार के पर्यावरण विभाग ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर दो दिवसीय कार्य शाला का आयोजन भोपाल  विधान सभा में आयोजित किआ था जिसमे उन तमाम हस्तियों को बुलाया गया था जो इस समस्या को रोकने के लिए कार्य कर रहे हैं। जिसमे अधिकतर किसान , पर्यावरण विद आदि थे।  इसमें होशंगाबाद की ऋषि खेती के श्री राजू टाइटस को भी बुलाया गया था।  जैसा की विदित है जहाँ जुताई आधारित खेती करने की विधियों से खेत  मरुस्थल में बदल रहे वहीँ बिना जुताई की ऋषि खेती से मरूस्थल हरियाली में बदल रहे है।  होशंगाबाद के ऋषि खेत पूरे हरियाली से ढके रहते है जिसमे बंपर  फसलें पैदा हो रही हैं। Displaying IMG-20151122-WA0001.jpg
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इस सम्मलेन का उद्घाटन श्री श्री जी से माननीय मुख्यमंत्री जी ने करवाया था प्रारंभिक जानकारी का भाषण लोकसभा संसद श्री अनिल माधव द्वे जी ने और विषय की जानकारी का भाषण श्री शरदजोशी जी जो जयपुर की सहयोगी संस्था के निदेशक हैं ने दिया था।
माननीय मुख्य मंत्री जी शिवराज  सिंह जी ने कहा हमारा तीज त्यौहार हमारी संस्कृति के अनुरूप है जो खेती किसानी की देन है। जिस से हम हजारों साल आत्म निर्भर रहे हैं। कभी हमे जलवायु और गर्मी की समस्या नहीं रही है।  अब तो देखो बेमौसम बरसात हो रही है हमारे यहां सूखा पड़ा है तो तमिलनाडु में बाढ़  आ रही है लोग मर रहे हैं। यह समस्या कुदरती नहीं है इसे हमने बनाया है जिसे हमे ठीक करना होगा।
उन्होंने बताया की हमने अपनी गलतियों को सुधारने  के लिए इस सम्मेलन में पूरे देश से इस समस्या से लड़ने के लिए कार्य कर रहे ज्ञानी लोगों को बुलाया है। जो वो बताएंगे हम उसके अनुरूप भविष्य की कार्य योजना बनाकर उसका अमल करेंगे।

इस सम्मेलन में  उत्तराखंड के बारह अनाजी विशेषज्ञ श्री विजय जड़धारी जी ,नागालैंड के झूम खेती विशेषज्ञ श्री माइकल , सतना से आये देशी परंपरागत खेती के विशेषज्ञ श्री बाबूलाल दहिया और होशंगाबाद की ऋषि खेती के जानकार श्री राजू टाइटस जी की प्रस्तुति अपनाने लायक पाई गयी है।
बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़  रहा है कि कोई भी वैज्ञानिक खेती किसानी और पर्यावरण से जुडी समस्याओं
के समाधान हेतु कारगर योजना प्रस्तुत कर सका है।
ऋषि खेती एक ओर  जहाँ विश्व में अपना पहला स्थान बनाये  हुए है वहीं   भारत की "जिओ और जीनो दो "
'सत्य और अहिंसा पर आधारित ' भारतीय संस्कृति से निकली पर्या -मित्र खेती है।


 विधानसभा भवन में ऋषि खेती की प्रस्तुति करते श्री राजू टाइटस 



Sunday, November 22, 2015

Letter to Shri Anil Madhav Dave M.P. Lok sabha

 सिहस्थ मेला अप्रैल 2016 "कुम्भ " उज्जैन 

सन्दर्भ :-  ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन दो दिवसीय सम्मेलन 21 -22 नवंबर भोपाल 

ऋषि खेती योजना  

प्रति ,
माननीय अनिल माधव दवे सांसद 

आदरणीय महोदय ,
सब से पहले हम आपको इस अति महत्वपूर्ण सम्मलेन के सफल आयोजन के लिए बधाई देते हैं और  फिर इस आयोजन में  ऋषि खेती को प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान करने मौका देकर आपने  ऋषि खेती जो गौरव प्रदान किया है उसके लिए हम आपके बहुत आभारी है।
इस सम्मलेन से हमे पूरा विश्वाश हो गया है कि हमारा प्रदेश कुम्भ के माध्य्म से न केवल भारत को वरन पूरे विश्व को इस संकट से उबरने में नेतृत्व प्रदान करने  में सक्षम है क्योंकि उसके पास इस संकट को खड़ा करने वाली गैर कुदरती खेती को बंद कर ग्लोबल वार्मिंग और जल वायु परिवर्तन को थामने वाली विश्व में प्रथम योजना "ऋषि खेती " है। यह असली जैविक खेती है। यह बात इस सम्मेलन से उभर कर सामने आई है। 

जैसा की हम सभी जानते हैं की "कुम्भ " हमारे पर्यावरण को संरक्षण प्रदान करने वाला पर्व  है।  इसमें करोड़ों विश्वाशी इस आशय से सम्मलित होते हैं कि उन्हें एक ऐसी जीवन दायनी  डुबकी लगाने का अबसर मिलेगा जिस से उनके अंदर की तमाम गंदगी समाप्त  हो जाये । इसलिए हम प्रदेश वासियों का यह परम  कर्तव्य है कि उम उनके इस इस विश्वाश पर खरे उतरे इसलिए हमे अपनी पवित्र नदियों की रक्षा करे करने का संकल्प लेना होगा।

हमारी पवित्र नदियां तब  पवित्र होंगी  जब हम उनको जीवन देने वाली सहायक नदियों नालों को पवित्र रखेंगे। यह तब ही सम्भव है जब हम इन नदी नालो को जल प्रदान करने वाले कैचमेंट एरिया को पवित्र रखेंगे।
यह एरिया अधिकांश हमारे खेतों का है जिन्हे पवित्र होना बहुत जरूरी है क्योंकि ये खेत केवल अन्न पैदा करने का नहीं करते है ये बरसात के जल को सोख कर नदियों का पेट भरते हैं। किन्तु दुर्भाग्य से ये ऐसा नही कर पा रहे हैं उसका मूल कारण जमीन की जुताई है।

जुताई एक अजैविक हिंसात्मक प्रक्रिया इस से खेतों की जल को सोखने की शक्ति नस्ट हो जाती है बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है वह अपने साथ खेत की जैविक  खाद को भी बहा कर  ले जाता है। इसलिए खेत भूखे और नदियां प्यासी रह जाती है। इसी कारण खेत और किसान मर रहे हैं।

इसलिए हमे सर्व प्रथम खेत और किसानो  को बचाने की जरूरत है जिसे हम बिना लागत के बचा सकते हैं। इसके लिए हमे फसलोत्पादन के लिए जमीन की जा रही जमीन की जुताई को बंद करने की जरूरत है। जुताई को बंद करने से अपने आप खेतों में कुदरती खाद जमा होने लगती है खेत बरसात के जल को सोखने लगते हैं। जिसके कारण प्रदूषण कारी कृत्रिम खादों की जरूरत नहीं रहती है खेत ताकतवर हो जाते हैं वे कुदरती जल ,हवा और फसलों को पैदा करें वाले बन जाते  हैं, खेती लाभप्रद हो जाती है किसानो का घाटा  रुक जाता है इस से उनका पलायन रुक जाता है। नदियों को साल भर कुदरती जल मिलता है।

इन दिनों बिना जुताई करने की वैज्ञानिक तकनीकें उपलब्ध हैं जिसमे जीरो टिलेज कृषि सब से अधिक प्रचलन में है। जिसके बहुत अच्छे परिणाम आ रहे है। इसमें कृषि लागत ८०% कम हो जाती है सिंचाई  की मांग भी ५०% कम  जाती है। किन्तु इसकी जानकारी किसानो को नहीं कृषि वैज्ञानिको को भी नहीं है।  असली जैविक खेती बिना जुताई पर आधारित है।  बिना जुताई हर कृषि को हम "ऋषि खेती " मानते है।

ऋषि खेती शब्द बिनोबा भावे जी का दिया है। जब गांधीजी नहीं रहे थे और देश के टिकाऊ विकास का प्रश्न आया था तब विनोबाजी तीन कृषि विधियों का तुलनात्मक अध्यन कर ऋषि खेती को सबसे उत्तम पाया था।  उन्होंने बेलों से जुताई कर की जाने वाली खेती को ऋषब खेती  नाम दिया था तथा रासयनिक खेती को उन्होंने इंजिन खेती नाम दिया था।  ऋषि खेती वे उस खेती को कहते थे जो किसी भी बाहरी  बल के बिना आसानी से  की जा सके।  इसका उदेश्य सब अपना खाना स्व. अपने हाथों से उगाये हर हाथ को काम मिले। उन्होंने ऋषि खेती को "गांधी खेती " कहकर गाँवो के विकास की प्रथम कड़ी के रूप में स्थापित किया था। किन्तु सरकारों ने आयातित तेल पर आधारित खेती इंजिन खेती को ही बढ़ावा दिया जिसका  खामयाजा आज हम भुगत रहे है.

सन १९८४ -८५ में हम "हरित क्रांति " से हार गए थे हमारे पास भी आत्महत्या जैसा कोई कदम उठाने के सिवाय  कोई उपाय नहीं बचा था किन्तु उसी समय जापान के विश्व विख्यात ऋषि खेती के जानकार फुकूओकाजी के अनुभवों  की किताब "The One Straw Revolution " पढ़ने को मिली जिस से हमें पता चला की समस्या की जड़ में जमीन की जुताई है तब से लेकर आज तक हमने मुड़  कर नहीं देखा है।  अब हम नहीं हमारे ऋषि खेत बोलते हैं  हजारों लोग देश विदेश से इसे देखने आते हैं।

आज हमारा ऋषि खेत फार्म पूरी दुनिया में एक माडल बन कर खेत और किसानो को बचाने का काम कर रहा है।जिसका स्थान पहले नंबर पर है।
हमारी प्राचीन खेती किसानी हजारो साल टिकाऊ रही किन्तु "हरित क्रांति " ने इसे बर्बाद कर दिया है। इस लिए हम जैविक खेती ला रहे हैं।  किन्तु जुताई आधारित  जैविक खादों  और जैविक दवाइयों पर आधारित "जैविक खेती "  ऐसा है जैसे "आसमान से गिरे खजूर में लटके " पशु पालन खेती की रीढ़ है।
 जुताई करने और नरवाई को जलाने से पशु चारा  नस्ट हो जाता है। जुताई नहीं करने से फसलों पर छाया का असर नहीं होता है इसलिए चारे के पेड़ लगाये जाते हैं जिनसे ईंधन भी मिल जाता है।

महोदय  पर्यवरण की समस्या से निजात पाने के लिए बिना जुताई की खेती सर्वोत्तम उपाय है इसे हम ऋषि खेती कह सकते है।  यह शब्द सर्व मान्य है सबको अच्छा लगता है। हमारी संस्कृति और  परम्परा और ऋषि मुनियो की विरासत से जुडी है ।  ऋषि खेती से एक और जहाँ जलवायु संकट से लड़ सकते वहीँ यह आतंकवाद को भी खतम करने की ताकत रखती है क्योंकि  अन्न वैसा होय मन !

इसलिए कुम्भ की सफलता तब ही सम्भव है जब हम ऋषि खेती करें।

धन्यवाद
राजू टाइटस  rajuktitus @ gmail.com


Monday, November 16, 2015

वंशानुगत बीजों(GM ) का विरोध घड़ियाली आंसू है !

वंशानुगत बीजों(GM ) का विरोध 

घड़ियाली आंसू है !

पिछले अनेक वर्षों से जब से रासायनिक खेती सवालों के घेरे में आई है तबसे "जैविक " खेती की बात की जा रही है।
जब हमने १९९९ में गांधी आश्रम में  फुकूओकाजी से इस बारे में पुछा तो उन्होंने बताया कि "जैविक " खेती और रासायनिक खेती एक सिक्के के दो पहलू हैं। उन्होंने अपने इस तर्क को विस्तार से समझते हुए बताया की जैसे जब अनेक लोग गरीब बनते हैं तब एक राजा बन जाता है।  इसी प्रकार बहुत बड़े छेत्र से इकठे किए जाने वाले जैविक खाद को जब एक छोटे जमीन के टुकड़े पर डाला जाता है उसे जैविक खेती कहा जाता है। इस से बहुत अधिक जमीन खराब होती है और थोड़ी सी जमीन पर खेती होती है। यह शोषण की प्रक्रिया है। बिना जुताई की कुदरती खेती या बिना जुताई की जैविक खेती में ऐसा  नहीं होता है पूरी  जमीन एक साथ  समृद्ध होती है।
इसलिए हम जुताई आधारित किसी भी  खेती को जैविक या कुदरती खेती नहीं मानते है। 
कल हमारे यहां जिले के खेती के बड़े अधिकारीजी पधारे थे हमने  उनसे पुछा की अपने जिले में "जैविक खेती " का क्या ?  हाल है तो उन्होंने बताया जितना हल्ला हो रहा है उसके मुकाबले नहीं के बराबर प्रगति है। उसका मूल   कारण उत्पादन और लागत  में बहुत फर्क है।
एक और जहाँ जैविक लाबी रासायनिक खेती को नहीं रोक  पा रही है वह अब GM के विरोध में आवाज उठा रहे हैं। GM भी बहुत हानिकारक हैं।  किन्तु सवाल यह उठता है की हम जैविक में पीछे क्यों हैं ? क्यों हम GM को नहीं रोक पा रहे हैं उसका  सीधा सच्चा जवाब है।  जैविक वाले जुताई को हानिकारक नहीं मानते है।  जबकि जमीन की जुताई कृषि रसायनो और GM के मुकाबले १००% नुक्सान दायक है।
जमीन की जुताई ? जब तक नहीं रुकेगी तब तक कोई भी कृषि रसायनो  और GM को नहीं रोक सकता है।
सारा विरोध घड़ियाली आंसू हैं। 

Saturday, November 14, 2015

Climate change क्या है ?



Climate change  क्या है ? 

मय पर बरसात ,ठण्ड और गर्मी के नहीं और बेमौसम होने को Climate change ( जलवायु परिवर्तन )कहा जा रहा है।  इस शब्द की शुरुवाद अमेरिका से हुई है। ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज दोनों एक सिक्के  के दो पहलू हैं। इन दिनों हम अपने देश में सबसे अधिक इस  समस्या से ग्रस्त है। बरसात समय पर नहीं हुई है, हुई है तो बहुत कम है गर्मी अभी तक पीछा नहीं छोड़ रही है।

जलवायु परिवर्तन की समस्या का मूल कारण हरियाली का निरंतर कम होते जाना है जिसके पीछे सबसे अधिक हाथ खेती का है।  परम्परगत खेती किसानी में खेतों को वृक्ष विहीन रखा जाता है किसानो और कृषि वैज्ञानिकों की यह मान्यता है पेड़ के नीचे फैसले पैदा नहीं होती है इसलिए मीलो तक किसान पेड़ नहीं रखते है। यह हाल हर जगह है।
दूसरा अनेक इस विषय से जुड़े वैज्ञानिको का यह मानना है की फसलों को पैदा करने के लिए खेतों की जुताई से खेत की जैविक खाद (कार्बन )  गैस में तब्दील हो जाती है। जो आसमान में एक कम्बल की तरह आवरण बना लेती है जिस सूर्य  की गर्मी धरती में प्रवेश तो करती है किन्तु वह वापस नहीं जा पाती है।  इस लिए धरती  का तापमान बढ़ जाता है और मौसम गड़बड़ा जाता है।
यही कारण है की आजकल बिना जुताई की खेती को बढ़ावा दिया जाने लगा है जिसमे जापान के स्व  मस्नोबू फुकूओकाजी की नेचरल फार्मिंग (ऋषि खेती ) का भी बहुत योगदान है।
हम पिछले ३० सालो ऋषि खेती कर रहे हैं हमारे १००% खेत साल भर हरियाली से ढके रहते हैं। इस संकट से निपटने का यह सब से सरल सस्ता और टिकाऊ उपाय है। 

Friday, November 6, 2015

पुआल नहीं जलाएं !



पुआल नहीं जलाएं !

कैसे करें धान के पुआल से गेंहूँ की ऋषि खेती 

धान के पुआल के ढकाव से झांकते गेहूं के नन्हे पौधे 
न दिनों किसान अपने खेतों में धान की कटाई और गहाई  में व्यस्त हैं।  उन्हें धान के पुआल की चिंता रहती है इसके रहते  खेतों में जुताई नहीं कर पाते हैं उन्हें मजबूरी में उसे जलाना पड़ता है। दूसरा धान के खेतों की मिट्टी जुताई ,कीचड मचाने और  पानी भर कर रखने से बहुत सख्त हो जाती है जिसे आसानी से जोता नहीं जा सकता है। धान के ठूंठ भी किसान की नाक में दम  कर देते हैं।

ऐसी परिस्थिती में धान की ऋषि खेती बहुत फायदे मंद रहती है।  जिसमे जुताई ,खाद और दवाइयों की कोई जरूरत नहीं रहती है। किसान को केवल खेतों में गेंहूँ के बीजों के साथ बरसीम या राय के बीज  खेतों में फेंकने भर की जरूरत है। जिसमे प्रति एकड़ ४० किलो गेंहूँ के बीज के साथ  दो किलो बरसीम या राय छिड़कने की जरूरत है। बरसीम या राय दलहन जाती के बीज हैं जो उगने के बाद अपनी छाया की गोलाई में  लगातार नत्रजन (यूरिया ) सप्लाई करने का काम करते हैं। इन बीजों के ऊपर धान की पुआल को आडा  तिरछा  तिरछा इस प्रकार फैला दिया जाता है जिस से सूर्य की रौशनी बीजों तक आती रहे।  पानी सामान्य तरीके से जो भी  साधन उपलब्ध से दिया जाता है।

 इस तरीके से गेंहूँ की पैदावार प्रति एकड़ २० क्विंटल तक आसानी से मिल जाती है बरसीम या राय की पैदावार अतिरिक्त रहती है और अजैविक गेंहूँ कुदरती गेंहूँ में तब्दील जाता है जिसके कारण गेंहूँ की कीमत ५ -६ हजार रु प्रति क्विंटल से ऊपर चली जाती है। जिसमे किसी भी पमाण पत्र  की जरूरत नहीं रहती है ,केवल किसान को बोनी  से लेकर गहाई  तक के फोटो खींच कर रखने की जरूरत है।

ऋषि खेती के कुदरती गेंहूँ में कैंसर जैसी बीमारी को ठीक करने की ताकत रहती है। इसकी लकड़ी के चूल्हे में बनी रोटी बड़ी से बड़ी बीमारी को दूर कर देती  है। रासायनिक खेती के गेंहूँ से आजकल कुपोषण ,रक्त की कमी ,
मधुमेह, रक्तचाप ,नवजात बच्चों की मौत के अनेक मामले आ रहे हैं। इसका मूल कारण जमीन की जुताई और कृषि रसायनो का उपयोग है।  

पुआल के ढकाव से अनेक फायदे हैं जैसे खरपतवार नियंत्रण ,नमी का संरक्षण ,फसलों में बीमारी का नियंत्रण, मिट्टी को  भुरभुरा बनाना  और पुआल सड़कर अगली फसल के लिए पर्याप्त पोषक  तत्व प्रदान करती है।  इसलिए पुआल नहीं जलाएं !