Saturday, July 14, 2018

रासायनिक खेतों को जंगली खेत में बदलना

जन्तर (ढ़ेंचे ) का उपयोग करके रासायनिक खेत को 
जंगली खेत में बदलें

मारे खेतों को वैज्ञानिकों की अज्ञानता के कारण हरित क्रांति बनाम मरुस्थलीकरण कर बर्बाद कर दिया है। खेत रेगिस्थान में बदल गए हैं ,भूमिगत जल १००० फीट पर भी नही मिल रहा है रासायनिक जहरों के कारण हर तीसरे आदमी को केंसर का खतरा बन गया है। हर रोज किसान आत्महत्या कर रहे हैं। हर किसान गले तक कर्ज में फंसा है।


किन्तु अब घबराने की जरूरत नही है जन्तर जिसे ढेंचा कहा जाता है बिना जुताई की जंगली खेती (फुकुओका विधि ) के माध्यम से एक साल में ठीक करने का वायदा कर रहा है। जन्तर सामान्यतय हरी खाद के नाम से जाना जाता है। इसे जब हम बरसात के मोसम में खेतों में बिना जुताई करे छिड़क देते हैं यह तेजी से उग कर पूरे खेत को धक् लेता है जो जुताई के कारण पैदा होने वाली कठोर घासों को भी मार देता है ,खेत को अपनी गहरी जड़ों के मध्यम से भीतर तक जुताई कर देता है जो काम मशीन नही कर  सकती है. दूसरा यह अपनी जड़ों के माध्यम से कुदरती यूरिया का संचार कर देता है जो गेंहूँ और धान के लिए जरुरी है।

बरसात में मात्र  कुछ दिनों में ४-5 फीट का हो जाता है इसकी छाँव में  धान की बीज गोलियोंको फेंक दिया जाता है जब वो उगने लगती हैं जन्तर को मोड़ कर सुला दिया जाता है या काट कर वहीं फेला दिया जाता है।  धान उग कर बाहर निकल आती है। जिस में पानी भर कर रखने की कोई जरूरत  नही है।

उपरोक्त विडियो में जुताई करना बताया है और रसायनों का इस्तमाल बताया है जो गलत है .ढेंचा सीधे फेंकने से बरसात में उग आता है .इसे जुताई खाद की कोई जरूरत नही है .
दूसरा जन्तर की फसल ली जाती है जिसका बीज इन दिनों बहुत मांग में है। इसको हार्वेस्ट करने से पूर्व ठण्ड के मोसम में इसकी छाँव  में सीधे गेंहू के बीज छिड़क कर उगा लिया जाता है बाद में जन्तर को काटकर गहाई  करने के उपरांत समस्त अवशेषों  को उगते गेंहू पर फेला दिया जाता है दिया जाता है जिस से गेंहू की फसल तैयार हो जाती


जब गेंहू की फसल कटने वाली होती है इस खड़ी फसल में धान की बीज गोलियों  को डाल दिया जाता है जो बरसात में अपने मोसम में उग आती है। सभी अवशेषों को जैसे धान की पुआल या गेंहू की नरवाई को खेतों में जहाँ से लिया जाता है वहीं  वापस डाल दिया जाता.
राजू टाइटस
9179738049, wa 7470402776


Tuesday, July 10, 2018

अफ्रीका के दस हजार एकड़ में होगी जंगली खेती

आयातित वैज्ञानिक खेती ने भारत को ही नही पूरी दुनिया को मरुस्थल बनाया है। 

फुकुओका जंगली खेती वाट्स एप ग्रुप के अरविन्द भाई अब अफ्रीका में उनके दस हजार एकड़ को सुधारने जा रहे हैं। 
बहुत बधाई और शुभ कामना 

रविन्द जी गुजरात के रहने वाले हैं अफ्रीका में गन्ना और शुगर मिल के मालिक हैं। उनके पास अफ्रीका में दस हजार एकड़ के खेत हैं।  फुकुओका जंगली खेती के जागरूक मित्र हैं। बहुत दिनों से वे खेती विषय में जानकारी इकठा कर रहे थे वो भारत से खेती की सभी विधियों  पर निगाह रखे थे।  बता रहे थे की सभी विधियों में उन्हें जंगली खेती आसान और टिकाऊ लगी है। उन्हें पूरा भरोसा है की यदि भारत में बिना जुताई की खेती होने लगे तो किसानो की और हमारे पर्यावरण की समस्या का अंत हो सकता है।


१९९९ में फुकुओका जी जापान से  सेवाग्राम में पधारे थे बता रहे थे की अनेक विदेशियों ने अफ्रीका में जंगलों को काट कर बेच दिया  था और वैज्ञानिक खेती की थी जिस से बहुत बड़ा इलाका मरुस्थल में तब्दील हो गया है वहां अनेक लोग वर्षों से खेती और ग्रामविकास की योजना चला रहे हैं किन्तु कोई लाभ नही मिल रहा है। इसलिए वे भी बहुत दूर के इलाके में चले गए  जहाँ  पहले कोई नही पहुंचा था।  वहां बारिश नही हो रही थी लोगों और पशुओं को खाने को नही था वहां उन्होंने किसानो को सीड बाल बनाना सिखाया वहां दीमक की मिटटी मिलती थी उस से बड़े मजबूत सीड बाल बनते थे। बच्चे बच्चे सीड बाल  बनाकर गुलेल से सीड बाल फेंकना सीख गए थे.

जब पांच  साल बाद फुकुओका जी वहां गए तो देख कर अचंभित हो गए। मरुस्थल हरियाली में बदल गया था। बारिश होने लगी थी भुखमरी सब ख़तम हो गई थी।  और सभी लोग  सीड बनाकर फेंक कर पर जंगली  कर रहे थे।  सभी के जीवन खुश हाली से भर गए थे। हमसे कह रहे थे की आज अमेरिका ,जापान जैसे देश भले आपने को विकसित बताते हैं किन्तु वे हमसे भी गरीब हैं क्योंकि उनके पास जंगल नही है।

हम जंगली खेती ग्रुप की ओर से उन्हें शुभकामना देते हैं  और बधाई देते हैं।