कृषि-दवाओं का गोरख धंदा
आज कल फसलों के इलाज के लिए अनेक प्रकार की जैविक और अजैविक दवाइयों की चर्चा जोरों पर है. ये दवाएं खाद ,उर्वरक , कीटनाशक ,खरपतवार नाशकों ,टोनिक ,टीकों के रूप प्रचलित है . ये दवा रासायनिक,हारमोनिक ,जैविक आदि तरीकों से बनाई जा रही है। अनेक दवाई जहर के रूप में कीड़ों और नींदों को मारने के लिए बन और बिक रही हैं।
हम पिछले 27 सालों से कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं। इस दोरान हमने आज तक किसी भी प्रकार की दवाई का उपयोग अपने खेतों में नहीं किया है. हम खेती करने के लिए जमीन की जुताई नहीं करते हैं। जुताई नहीं करने से हमारे खेतों में रहने वाले जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,नींदे आदि खेतों को गहराई तक पोला बना देते हैं जिस से बरसात का पानी जमीन में समां जाता है वह बहता नहीं है इस लिए खेतों की खाद भी नहीं बहती है. खेतों में खाद पानी की कोई कमी नहीं रहने से उसमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं। इस लिए उनमे कोई रोग का प्रकोप नहीं रहता है. यदि कोई रोग आता है तो कुदरती संतुलन के कारण वह अपने आप चला जाता है.
असल में फसलों में लगने वाली बीमारियों के पीछे फसलोत्पादन के लिए अमल में लाये जा रहे गेरकुद्रती उपाय हैं जैसे जमीन की जुताई , गेर-कुदरती खाद और दवाओं का उपयोग ,खरपतवारों की हिंसा , कीड़ों को मारना आदि।
गेर-कुदरती खेती के पीछे आज की गेर-कुदरती डाक्टरी का सबसे बड़ा हाथ है. ये डाक्टरी हिंसा पर आधारित है.
कुछ भी बीमारी दिखी तो उसके पीछे बीमारी के कीड़े दिखने लगते हैं बस उन्हें मारने के लिए जहरों का उपयोग शुरू हो जाता है जिस से बीमारी और बढ़ जाती है. फसलें मर जाती है। इसी प्रकार ये डाक्टर लोग अनेक प्रकार की मानव निर्मित खाद ,उर्वरकों ,हारमोनिक टोनिक आदि की सिफारिश करते रहते हैं। अब तो ये अनेक सूक्ष्म-जीवाणुओं को शीशी में भर कर बेचने लगे हैं।
जब से रासायनिक दवाओं और जहरों से होने वाले हानिकारक प्रभावों का असर पहचाना जाने लगा है तब से आर्गेनिक और बायो तकनीको का हल्ला जोरों पर है अनेक नीम हकीम पनपने लगे हैं। गोबर गो मूत्र से भी दवाएं बनने लगी हैं उनके पीछे परंपरागत खेती किसानी और धार्मिक सोच के आधार पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है. ये बहुत बड़ा गोरख-धंधा है.
खेती के डाक्टर किसानो को पहले ऐसी तकनीक बताते हैं जिस से खेत कमजोर हो जाते है उनमे कमजोर फसल पैदा होती है जो बीमार हो जाती हैं फिर वे उन में दवा के नाम पर अनेक जहर डालने की सलाह देते हैं एक दवा के बेअसर हो जाने पर दूसरी दवा फिर तीसरी दवा डलवाते रहते हैं फसलों के मर जाने पर वे भी वे किसानो पीछा नहीं छोड़ते है बेचारा किसान बंजर खेतों ,बीमार फसलों के आगे बेबस हो कर आत्म हत्या तक कर लेता है.
अनेक लोग हमारे खेतों पर पनप रही निरोगी फसलों को जो आस पास के खेतों से अच्छी रहती है को देख कर
दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं। अनेक खेती के डाक्टर भी यहाँ आते हैं वे भी फसलों को देख कर अचंभित तो होते हैं पर इस खेती को करने की सलाह नहीं देते हैं। वो कहते है की जो हम यहाँ देख रहे हैं वह सत्य है किन्तु हमने इसे पढ़ा नहीं है.
कुदरती खेती से जुडी जीवन पद्धति के नहीं पनपने के पीछे एक और जहाँ खेती से जुड़े डाक्टर साधू संतों आदि का दोष है वही इनके सहारे अपनी दुकान चलाने वाले योजनाकारों और जन प्रतिनिधियों का हाथ है. उनका कहना है की यदि सब किसान कुदरती खेती करने लगेंगे तो कम्पनियों और दुकादारों का क्या होगा ?
उन्हें बंजर होते खेत ,आत्म हत्या करते किसानो, खाने की थाली में मिलते जहरों , कुपोषण की समस्या ,बढ़ते केंसर के रोगी ,मौसम परवर्तन ,पर्यावरण प्रदुषण जैसे सामाजिक सरोकारों से कोई लेना देना नहीं है. हमारा मानना है की कुदरती खेती को अपना कर हम आज हम उपरोक्त सभी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।
शालिनी एवं राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान
Natural farming is a method of agriculture which can prevent harmful effect of aggro drugs but monkey business is stopping. Many children born handicapped ,many people dying due to cancer , desertification spreading. Farmers are committing suicide due to crop failure.
आज कल फसलों के इलाज के लिए अनेक प्रकार की जैविक और अजैविक दवाइयों की चर्चा जोरों पर है. ये दवाएं खाद ,उर्वरक , कीटनाशक ,खरपतवार नाशकों ,टोनिक ,टीकों के रूप प्रचलित है . ये दवा रासायनिक,हारमोनिक ,जैविक आदि तरीकों से बनाई जा रही है। अनेक दवाई जहर के रूप में कीड़ों और नींदों को मारने के लिए बन और बिक रही हैं।
हम पिछले 27 सालों से कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं। इस दोरान हमने आज तक किसी भी प्रकार की दवाई का उपयोग अपने खेतों में नहीं किया है. हम खेती करने के लिए जमीन की जुताई नहीं करते हैं। जुताई नहीं करने से हमारे खेतों में रहने वाले जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,नींदे आदि खेतों को गहराई तक पोला बना देते हैं जिस से बरसात का पानी जमीन में समां जाता है वह बहता नहीं है इस लिए खेतों की खाद भी नहीं बहती है. खेतों में खाद पानी की कोई कमी नहीं रहने से उसमे ताकतवर फसलें पैदा होती हैं। इस लिए उनमे कोई रोग का प्रकोप नहीं रहता है. यदि कोई रोग आता है तो कुदरती संतुलन के कारण वह अपने आप चला जाता है.
असल में फसलों में लगने वाली बीमारियों के पीछे फसलोत्पादन के लिए अमल में लाये जा रहे गेरकुद्रती उपाय हैं जैसे जमीन की जुताई , गेर-कुदरती खाद और दवाओं का उपयोग ,खरपतवारों की हिंसा , कीड़ों को मारना आदि।
गेर-कुदरती खेती के पीछे आज की गेर-कुदरती डाक्टरी का सबसे बड़ा हाथ है. ये डाक्टरी हिंसा पर आधारित है.
इस महिला के तीन बेटे केंसर से मर गए। 3 SON DIED DUE TO CANCER |
जब से रासायनिक दवाओं और जहरों से होने वाले हानिकारक प्रभावों का असर पहचाना जाने लगा है तब से आर्गेनिक और बायो तकनीको का हल्ला जोरों पर है अनेक नीम हकीम पनपने लगे हैं। गोबर गो मूत्र से भी दवाएं बनने लगी हैं उनके पीछे परंपरागत खेती किसानी और धार्मिक सोच के आधार पर लोगों की आस्था से खिलवाड़ किया जा रहा है. ये बहुत बड़ा गोरख-धंधा है.
NATURAL CROP OF RICE कुदरती चावल की फसल |
खेती के डाक्टर किसानो को पहले ऐसी तकनीक बताते हैं जिस से खेत कमजोर हो जाते है उनमे कमजोर फसल पैदा होती है जो बीमार हो जाती हैं फिर वे उन में दवा के नाम पर अनेक जहर डालने की सलाह देते हैं एक दवा के बेअसर हो जाने पर दूसरी दवा फिर तीसरी दवा डलवाते रहते हैं फसलों के मर जाने पर वे भी वे किसानो पीछा नहीं छोड़ते है बेचारा किसान बंजर खेतों ,बीमार फसलों के आगे बेबस हो कर आत्म हत्या तक कर लेता है.
अनेक लोग हमारे खेतों पर पनप रही निरोगी फसलों को जो आस पास के खेतों से अच्छी रहती है को देख कर
दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं। अनेक खेती के डाक्टर भी यहाँ आते हैं वे भी फसलों को देख कर अचंभित तो होते हैं पर इस खेती को करने की सलाह नहीं देते हैं। वो कहते है की जो हम यहाँ देख रहे हैं वह सत्य है किन्तु हमने इसे पढ़ा नहीं है.
कुदरती खेती से जुडी जीवन पद्धति के नहीं पनपने के पीछे एक और जहाँ खेती से जुड़े डाक्टर साधू संतों आदि का दोष है वही इनके सहारे अपनी दुकान चलाने वाले योजनाकारों और जन प्रतिनिधियों का हाथ है. उनका कहना है की यदि सब किसान कुदरती खेती करने लगेंगे तो कम्पनियों और दुकादारों का क्या होगा ?
कुदरती गेंहू की फसल NATURAL WHEAT CROP |
उन्हें बंजर होते खेत ,आत्म हत्या करते किसानो, खाने की थाली में मिलते जहरों , कुपोषण की समस्या ,बढ़ते केंसर के रोगी ,मौसम परवर्तन ,पर्यावरण प्रदुषण जैसे सामाजिक सरोकारों से कोई लेना देना नहीं है. हमारा मानना है की कुदरती खेती को अपना कर हम आज हम उपरोक्त सभी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं।
शालिनी एवं राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान
Now a day’s use
of organic and inorganic medicines for the treatment of crops is in full swing.
These medicines are available in the form of fertilizers, weed killers,
pesticides, tonic and bio-fertilizers. These medicines are being made by
chemicals, hormones and organics. Many medicines are highly poisonous.
.
The last 27 years we have been practicing natural farming. In this period
we have not used any medicines for crop protection or treatment. We do not
tilling land. Due to no till field is in full biodiversity which make soil
healthy ,crops remain free from disease. If some disease comes it naturally
cured.
Actually crop diseases product of unnatural ways of farming
such as tilling, use of chemicals, killing of weeds, killing of insects etc.
The unnatural way of farming is based on killing of
biodiversity. Killing of weeds, killing of insects, killing of viruses etc. Ultimate
result of this killing is dead soil. Growing crops in dead soil is not possible
without hazardous chemicals, hormones etc.
Many bottled microbes are also come in market as bio-tonic.
As the awareness spreading about the pollution caused by
agro chemicals many alternative medicines coming in market in the name of
organic and bio. Many fake doctors befooling farmers. Medicines made by cow dung
and urine are also in market, religious faith is being played by monkey
business.
Doctors first advised to make soil poor by deep tilling.
Poor soil produces weak crops prone to disease, than they advised to use poison
to kill insects, insects become immune spread strongly kill all crop. Many
farmers in India
are committing suicide due crop failure by this reason.
Many doctors are
coming to our natural farm after comparing
crops by our neighbor’s they admire truth but do not say that this way of farming is
possible because thy do not read this way in doctor’s course.
Natural farming is a method of agriculture which can prevent harmful effect of aggro drugs but monkey business is stopping. Many children born handicapped ,many people dying due to cancer , desertification spreading. Farmers are committing suicide due to crop failure.
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