Thursday, February 28, 2013

किसानो की आत्म हत्या समस्या और समाधान FARMERS SUCIDE PROBLEM AND SOLUTION

किसानो की आत्म हत्या
समस्या और समाधान                                                          
FARMERS SUICIDE
PROBLEM AND SOLUTION

भारत एक कृषि प्रधान देश है यहाँ की करीब सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि पर आश्रित है किन्तु पिछले कुछ सालों से कृषि की हालत बिगड़ने लगी है। पहले खेती किसानी आत्म निर्भर थी वह आस पास के पर्यावरण और खुद के संसाधनों से संचालित होती थी। किन्तु अब वह आयातित तेल की गुलाम हो गयी है। ट्रेक्टरों से की जाने वाली गहरी जुताई ,कम्पनिओं के बीज ,रासायनिक उर्वरक , जहरीले खरपतवार और कीट नाशक, बिजली   आदि अनेक बाहरी तत्व खेती के लिए जरूरी हो गए हैं। जो किसानो को खरीदना पड़ता है। इस से खेती की लागत बहुत बढ़ जाती है।

एक जमाना था जब किसान जंगलों में रहता था उसे आसानी से कुदरती आहार मिल जाता था। उसके बाद उसने बीजों से फसल पैदा करना सीखा, वह बरसात आने से पहले जमीन पर सीधे बीज बिखरा देता था बरसात आने पर सब बीज उग आते थे। इन बीजों में सभी प्रकार के बीज मिले रहते थे जैसे अनाज के बीज, सब्जियों के बीज ,चारों के बीज ,फलों के बीज आदि। इनमे कुछ फसलें बरसात के बाद पक जाती थीं तो कुछ ठण्ड में पकती थीं तो कुछ गर्मियों में पकती थीं। बीज फेंकने से पूर्व किसान किसी हरे भरे भूमि ढकाव वाले स्थान को साफ़ कर देते थे।

हरियाली को काट कर बचे अवशेषों को जहाँ का तहां मल्च के रूप में  छोड़ देते थे  वे इस मल्च में बीजों को छिड़क कर खेती करते थे इस खेती में फसलों की रखवाली और हार्वेस्टिंग के आलावा और कोई काम नहीं रहता था। कुछ किसान मल्च को जला  कर भी खेती करते थे। जो किसान मल्च को जला कर खेती करते थे वे हरयाली को पुन: पनपने के लिए दो तीन साल के लिए छोड़ देते थे इस से जमीन फिर से तयार हो जाती थी। इस खेती को झूम खेती  का नाम दिया गया है। खेती करने की ये विधि सब से अधिक समय तक टिकाऊ रही है। आज भी अनेक आदिवासी अंचलों में इस खेती को देखा जा सकता  है।
ये पर्यावरण और आत्म निर्भरता के लिहाज से सर्वोत्तम खेती की विधि थी।

इसके बाद किसानो ने जुताई आधारित खेती करना सीखा पहले वे हाथों से जमीन में मामूली सा छेद बना कर बरसात आने से पूर्व बीज बिखेर देते थे फिर उन्होंने पशु बल से जमीन को जोतना सीखा एक किसान इस तरह काफी लम्बी जोत में खेती कर लेता था। बरसात आने से पूर्व वे अनेक प्रकार के बीजों को खेतों में बिखरकर उन्हें मिट्टी से ढँक दिया करते थे। इस प्रकार साल भर की खेती का काम समाप्त हो जाता था। जुताई से कमजोर होती जमीन को कुछ साल बिना जुताई का छोड़ देने से जमीन सुधर जाती है।

इस खेती में फिर सिंचाई की खेती का चलन शुरू हुआ जिस बेमोसम फसलों को उगाया जाने लगा, सिंचाई के साथ साथ मशीनो का खेती चलन शुरू  हो गया, मशीनो के साथ साथ ,रासायनिक उर्वरक ,कीटनाशक आदि का
भी खूब उपयोग शुरू हो गया।
सब ने इस उपलब्धि को बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि बताया। खेती इस से आजीविका साधन ना रहकर उधोग में तब्दील हो गयी इस के कारण तेजी से जंगल काटे जाने लगे , चरागाहों को भी खोद कर खेतों में तब्दील किया जाने लगा अनेक फल के बगीचे नस्ट कर दिए गए। ऐसा गेंहूं चावल जैसे मोटे अनाजों की बाजारू खेती के कारण हुआ। ये गेर कुदरती हिंसात्मक खेती सिद्ध हुई जमीने बंजर होने लगी ,खेती में लागत बढ़ने लगी, आत्म निर्भर खेती आयातित तेल की गुलाम हो गयी ,पशु धन लुप्त होने लगा , अधिक खर्च कम मुनाफे के कारण किसान गरीब होने लगे। अनेक किसान फसलों को पैदा करने के लिए कर्ज लेने लगे ,कर्ज नहीं पटा पाने के कारण वो आत्म हत्या करने लगे। मात्र कुछ ही सालों में वैज्ञानिक खेती का बोरिया बिस्तर लिपटने लगा। अब तक करीब तीन लाख किसान आत्म हत्या कर चुके हैं। भारत का अनाज का कटोरा कहलाने वाला प्रदेश पंजाब में हर दुसरे दिन तीन  किसान आत्म हत्या कर है। महारास्ट्र  में हालत इस से भी गंभीर है। कोई भी प्रदेश इस समस्या से अछूता नहीं है।
कुदरती खेती के अविष्कारक 

खेती और पर्यावरण का चोली दामन का साथ है। दोनों एक दुसरे पर निर्भर हैं। जंगलों को नस्ट कर ,जमीन को गहराई तक जोतने खोदने और उस में अनेक जहरों को डालने से समस्या विकराल बनी है। भला हो जापान के
कृषि वैज्ञानिक ,कुदरती खेती के किसान ,और गाँधीवादी अहिंसात्मक खेती के प्रणेता श्री फुकुओकाजी का जिन्होंने बिना-जुताई ,बिना निदाई ,बिना खाद ,बिना उर्वरक,बिना कीट नाशकों के ऐसी खेती का अविष्कार कर दुनिया के सामने ये सिद्ध कर दिखाया की खेती से जुडी सब वैज्ञानिकी केवल धोका है इस की कोई जरुरत नहीं है। ये हमारे पर्यावरण और खेत-किसानो के लिए बहुत नुकसान दायक है।  कुदरती खेती से खाद्य ,हवा, पानी ,पर्यावरण की समस्या के साथ साथ  खेतों और किसानो का संवर्धन हो जाता है।
गेंहूं की फसल NATURAL WHEAT CROP
पेड़ों के साथ गेंहूं की खेती GROWING WHEAT WITH TREES  
      हम पिछले 27 सालों से इसका अभ्यास कर रहे हैं और इस के प्रचार और प्रसार में सलग्न हैं। कुदरती खेती जंगलों में अपने आप पनपने वाली वनस्पतियों के समान की जाने वाली खेती है। कुदरती स्थाई वनों में अनेक कुदरती जैव-विविधताओं के रहने से जीने मरने से जिस प्रकार जमीन और वातावरण ताकतवर होता जाता है उसी प्रकार कुदरती खेतों में भी खेतों की ताकत और मोसम में बढ़ते क्रम में इजाफा होता है जिस का लाभ कुदरती फसलों को मिलता है। फसले निरोगी ,रोगों को दूर करने वाली लाभप्रद ,लागत रहित पैदा होती हैं। इस खेती को करने से किसान को कर्ज की कोई जरुरत नहीं रहती है घाटा नहीं होता है। 

      कुदरती खेती सच्ची कुदरत मां की सेवा है जब की जुताई और रसायनों पर आधारित खेती कुदरत मां की हिंसा पर आधारित खेती है। खेतों और किसानो को बचाने का यह एक मात्र उपाय बचा है।

शालिनी एवं राजू टाइटस

 
Through this article I want to tell that Why millions of farmers committing suicide in India?. And how this problem can be avoided.

First we lived in forests eat fruits, roots etc. Than we learned grow seeds. Slash- and-burn was first invention of primitive agriculture. Then we learned cultivating the soil and sow the seeds in the soil. These two types of ways of shifting cultivated and are sustainable ways.

But after when chemicals and mechanical farming started the sustainability of agriculture vanished. Farmers became slave of fossil fuel and harmful chemicals. Deforestation, desertification, climate changes, droughts and floods become common. Self reliant farming converted in to industrialized slave farming.

Masnobu Fukuoka was first world famous scientist who invented farming based on without tilling , without man made fertilizers and compost , without weeding etc. He gave name of this farming “Natural farming” he wrote “The one Straw Revolution”. This book opened new path back to nature.

Titus Farm is pioneer in India. Is in its 27 the year. Many people following this modal. Any body can follow this way and saved his farm and life.


*Raju Titus.Natural farm.Hoshangabad. M.P. 461001.*
       rajuktitus@gmail.com. +919179738049.
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1 comment:

Merikheti said...


यह एक बहुत ही जानकारीपूर्ण और ज्ञानवर्धक सामग्री है, जो कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में मदद करता है, इसे साझा करने के लिए धन्यवाद।



https://www.merikheti.com/prakritik-kheti-ya-natural-farming-me-jal-jungle-jameen-sang-insaan-ki-sehat-se-jude-hain-raaj/