Thursday, March 7, 2013

होशंगाबाद की प्रथम महिला शिक्षाविद् स्व. श्रीमति पी. टाईटस


   
होशंगाबाद की प्रथम महिला शिक्षाविद् स्व. श्रीमति पी. टाईटस

  
न् 1944 मे जब लड़कियों को पढ़ाना समाज मे बुरा माना जाता था उन दिनो होशंगाबाद  मे पहला लड़कियों का प्रायमरी स्कूल खोलने का श्रेय हमारी माताश्री श्रीमति पालिना  टाईटस को जाता है। प्रायमरी से मिडिल, मिडिल से हायर सेकेण्डरी , हायर सेकेण्डरी से कालेज  और बाद मे पोस्ट ग्रेजुएट तक ले जाने के उनके काम को कौन नही जानता। उनकी शादी हमारे पिताश्री जो उन दिनो होशंगाबाद  के कलेक्टरेट मे काम करते थे, से सन् 1942 मे सम्पन्न हुई वे हवाबाग जबलपुर की शिक्षा  स्नातक थीं।
बीच में श्रीमती पी . टाइटस. दायें श्रीमती सुशीला दीक्षित भूत पूर्व शिक्षा मंत्री म. प्र . शासन 


   उन दिनों  हमारे देश  मे गांधी जी का अहिन्सात्मक स्वतन्त्रा संग्राम अपनी चरम सीमा पर था और ’’नई तालीम’’ की चर्चा जोरों पर थी इसी तारतम्य मे हमारी माताश्री का गर्लस शिक्षा  का मिशन  भी अनेक विरोध़ के बावज़ूद जड़ जमा रहा था वे ना केवल भारत मे वरन् बाहर भी एक क्वेकर होने के नाते अपने काम की छाप छोडती जा रही थीं।  हर कोई अपनी लड़की को पढ़ाना तो चाहता था, लड़कियें पढ़ना चाहतीं  थीं पर हमारा समाज था कि लड़कियों को घर के बाहर भेजना ही नहीं चाहता था। आखिर घर घर जाकर वे कुछ लड़कियों को स्कूल लाने मे सफल हो गईं उन गिनी चुनी लड़कियों से आखिर उन्होने हिम्मत करके स्कूल शुरु कर दिया।

     स्कूल के लिये उन्हे बमुश्किल  एक कमरे की जगह मिली टाट पटटी, ब्लेक बोर्ड कुछ भी नहीं था, दरवाजों पर चाक से लिख कर पढ़ाया जाता था।  जिद थी कि स्कूल खोलना  है। उनका साथ दिया उन जांबाज लड़कियों ने  जो ना केवल पढ़ना चाहती थीं वरन् लड़कियों को सामाजिक गुलामी से मुक्त कराना चाहती थीं। जैसे जैसे ये लड़कियां पास होती गईं इनके लिये अगली क्लास खुलती गई और बन गया गृहविज्ञान महाविघ्यालय जो आज नर्मदा नदी के किनारे सरकार के आधीन कुशलता  से चल रहा है।

   मिडिल स्कूल के बाद जब हायर सेकेन्डरी स्कूल खोलने का समय आया था तब समस्या जगह की आई जिसे माननीय स्व. कैलाषनाथ काटजू जो उन दिनों म.प्र. के मुख्यमन्त्री थे ने पूरा कर दिया उन्होने सरकार की जगह को इस नेक काम के लिये आवंटित कर दिया। ज्रगह तो मिल गई पर इनफरा स्ट्रक्चर के लिये पैसा और अन्य साधन जुटाना आसान नहीं था। जैसे तैसे उन्होने होशंगाबाद  के अन्य समाज सेवकों की सहायता से सादगी  से स्कूल को तैयार कर ही लिया। आज यह स्कूल शान से सरकार के आधीन गर्ल्स  हायर सेकेण्डरी स्कूल के नाम से विख्यात है।

   उन दिनो स्कूल सेवा भाव से खोले जाते थे ना कि आज की तरह व्यवसायिक तरीके से। हमारी माताजी की सफलता का राज यह है कि वे सारे खर्चों को निबटाने के बाद ही अपनी पगार लेती थीं अनेक बार तो आधा या बिलकुल नही से भी गुजारा करना पड़ता था। कई बार उनके आधीन काम करने वालों को भी बिना पैसे के काम करना पड़ता था। सबको वास्तु स्थिति पता रहने से उन्हे भरपूर सहयोग मिलता था।

   मुझे याद है स्कूल मे उन्होने एक पर्यावर्णीय प्रोजेक्ट चलाया था वे बागवानी के साथ सिलेबस को जोड़कर पढ़ाती थीं इससे बच्चों को क्लास रुम की बोरियत से निज़ात मिलती थी वे बहुत मन लगाकर पढ़ते थे। वे हमेशा  बच्चों को स्कूल के बाहर आसपास के गांवों मे ले जाकर समाज सेवा के कामो  से भी जोड़ती रहती थीं। आज कीशिक्षा  हमारे पर्यावर्णीय के विनाश  पर टिकी है इसलिये हम कुदरति जल,जंगल,जमीन, और आहार की गंभीर मुसीबत मे जी रहे हैं।

  एक बार जब उनका हायर सेकेण्डरी स्कूल बन गया और उन लड़कियों के कालेज मे पढ़ने की समस्या आई तो उन्होने हिम्मत नही हारी और कालेज खोलने  का निर्णय ले लिया  समस्या भवन और जगह की आई और उन्होने सरकार से गुहार लगाना शुरु कर दिया उनका केवल यह कहना रहता था कि अब से लड़कियां कहां जायेंगी और इस मजबूरी को समझकर सरकार उनकी मदद करती रहती थी इसी तारतम्य मे सरकार ने एस.पी. का बंगला खाली करवाकर उन्हे सोंप दिया और कहा बाकी का प्रबधं आप स्वं करें। अब तक प्रायमरी स्कूल से उनके साथ चलीं मुठठी भर जांबाज लड़कियां  स्कूल पास कर अनेक हो गईं थीं। छत मिल गई पढ़ने वाले मिल गये पर पढ़ायेगा कौन तो उन्होने अवैतनिक अतिथी विद्धानो से पढ़वाकर सरकार को ग्रांट देने पर बाध्य कर दिया सरकारी अनुदान मिलने से कालेज चल पड़ा जो शीघ्र ही स्नाकोत्तर भी हो गया।

वे इसे होम साईसं कालेज बनाना चाहती थीं पर सागर विश्वविध्यालय मे होमसाईसं विभाग ही नहीं था तो इस विभाग को खुलवाने का श्रेय भी हमारी माताजी को जाता है। उन्होने कालेज के साथ साथ एसी महिलाओं के लिये शिक्षा का प्रवधं किया था जो पढ़ना चाहती थीं किन्तु पारिवारिक और सामाजिक कारणों से पढ़ नहीं पाईं थीं । बाद मे सरकार ने  इस कार्यक्रम को मान्यता देकर प्रोढ़ शिक्षा अभियान के तहत सहयोग दिया। कई साल यह कार्यक्रम चला अनेक महिलायें  इससे पढ़कर नौकरियों मे लगीं और  अपना व्यवसाय करने लगीं।



हमारी माताश्री को समाज सेवा का बहुत शोक  था इसीलिये वे ना केवल अपने यहां वरन् देश  के बाहर भी एक क्वेकर महिला होने के नाते जानी जाती थीं और इस कारण वे अनेक बार विदेशों  मे भी  बुलाईं गईं।



जब होम साईसं कालेज ठीक से चलने लगा तो इसके स्थायित्व का प्रष्न आया तो उन्होने इसे सरकार को बिना शर्त सोंप दिया सरकार ने इस बने बनाये कालेज को हाथों हाथ ले लिया, और ठीक इसके बाद सन् 1973 मे होशं गाबाद की अब तक की सबसे भंयकर बाढ़ आई और मां नर्मदे इस कालेज के बीच से निकल गईं इससे यह कालेज बह गया। किन्तु सरकार के आधीन होने के कारण यह बच गया और पुनः खड़ा हो गया। यदि इसे बिना शर्त सरकार को नहीं सोंपा गया होता तो इसका नामोमिशन नहीं रहता हालाकि उन्हे मालूम था कि ऐसा करने से उनकी सेवाओ की सरकार को जरुरत नहीं रहेगी और उन्होने कालेज बचाने के खातिर यह जोखिम उठाया इस कारण उनकी नौकरी नहीं रही किन्तु वे इससे बहुत प्रसन्न रहीं कि हम रहे या नहीं रहे हमारी बनाई संस्था तो रहेगी।


ये लेख में भाई राजू जमनानी जी को "नव दुनिया " के लिए भेंट कर रहा हूँ .

धन्यवाद



राजू टाईटस

महिला दिवस नवदुनिया होशंगाबाद 8 मार्च 2013.

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