Friday, July 3, 2015

"जैविक खेती" का भ्रम

"जैविक खेती" का भ्रम 

भारत एक कृषि प्रधान देश है। जिसमे परम्परागत खेती किसानी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह खेती हजारों साल स्थाई रही है। किन्तु मात्र कुछ से सालो से "हरित क्रांति " के नाम से लाई गयी वैज्ञानिक खेती ने इसे बर्बाद कर दिया है , किसान खेती छोड़ रहे हैं , लाखों किसान आत्महत्या करने लगे हैं।

इसके पीछे खेती करने के लिए की जा रही गहरी जुताई का बहुत बड़ा योगदान है। जुताई करने से बखरी बारीक मिट्टी कीचड में तब्दील हो जाती है इस कारण बरसात का पानी तेजी से बहता है अपने साथ खेत की उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है। यह मिटटी असली जैविक खाद है इसमें असंख्य जमीन को उर्वरता प्रदान करने वाले जीव ,जंतु कीड़े मकोड़े और सूख्स्म जीवाणु रहते हैं।
 मटमैले पानी में असली खेत की जैविक खाद है करीब एक एकड़ से १५ टन
प्रति वर्ष जैविक खाद बह जाती है जो बहुत बड़ा राष्ट्रीय नुक्सान है। 

हमारी देशी परम्परागत खेती किसानी में बिना जुताई की खेती का  चलन आज भी आदिवासी अंचलों में देखने को मिल जाता है। जिसमे बेगा ,उतेरा आदि हजारों सालो  से आज भी उतनी संपन्न हैं जितनी वो पहले थीं। जुताई आधारित देशी खेती किसानी में किसान जुताई के कारण   कमजोर होते खेतों में  कुछ साल के लिए जुताई बंद कर देते थे   जिस से खेत उपजाऊ हो जाते थे।

जब से जुताई आधारित वैज्ञानिक खेती पर प्रश्न चिन्ह लगा है तबसे "जैविक खेती " करने की बात वैज्ञानिकों के द्वारा की जाने लगी है।यानि खेत की जैव -विविधताओं को बचा कर की जाने वाली खेती , अच्छे संकेत हैं।  किन्तु जो लोग जुताई करके कृषि रसायनों के बदले जैविक तत्वों को डालने की बात करते हैं वो भूल कर रहे हैं उन्हें मालूम नहीं है की एक बार जुताई करने से करने से खेत की आधी जैविकता नस्ट हो जाती है बार बार  रहने से खेत मरुस्थल में तब्दील  हो जाते हैं।

अधिकतर लोग "जैविक खेती " को गौ माता की धार्मिक आस्था के साथ जोड़ कर देखते हैं। यह सही है गौ  साथ हमारा खेती किसानी के माध्यम से एक पारिवारिक सम्बन्ध रहा है।  किसान पशुपालन  के लिए बिना जुताई की चरोखर और चारे पेड़ अपने खेतों में रखते थे।  जुताई नहीं करते थे या कम और हलकी जुताई करते थे और  कमजोर होते खेतों को वो चरोखरों से बदल लिए करते थे।  इसे वो "अल्टा पलटा "कहते थे।

जुताई आधारित रसायनिक खेती ,जैविक खेती और जीरो बजट खेती एक ही हैं इनसे खेत मरुस्थल में बदल रहे हैं  सूखा पड़ रहा है किसान आत्म हत्या कर रहे हैं हजारो लाखों किसान खेती छोड़ रहे हैं।
हम कोई भी खेती करें खेत में एक वर्ग फुट में कम से कम 10 केंचुओं
के घर होना जरूरी हैं। 

बिना जुताई की कुदरती खेती (ऋषि खेती ) ,बिना जुताई की जैविक खेती (No Till Organic farming),बिना जुताई की संरक्षित खेती (No Till consevative farming )आदि टिकाऊ खेती की श्रेणी में आती है किसानो को इन्हे अमल में लाकर अपने को ,खेतों को और खाद्य सुरक्षा को बचाने में सहयोग करने की जरूरत है।

जुताई नहीं करने से खेतों की जैविकता और पानी खेत में ही रहता  है इसके कारण किसी भी प्रकार की मानव निर्मित खाद और दवाई की जरूरत नहीं रहती है। बहुत केंचुए पनप जाते है। जिनसे हम अपने खेतों की बढ़ रही कुदरती ताकत का पता लगा लेते हैं।


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