Sowing Seeds in Desert
ऋषि- खेती
जुताई के कारण पनपता मरुस्थल -अनार और संतरे के बगीचे सूख गए -महारास्ट्र
जुताई ,निंदाई ,गुड़ाई के कारण फल बाग़ मरुस्थल में तब्दील हो गया है। |
मरुस्थलों को हरा भरा बनाने की योजना |
लेखक :मासानोबू फुकुओका जापान। अनुवादक : लॉरी कॉर्न अमेरिका।
कुछ मत करो
जमीन की नही करना है ,थाले बनाना नहीं है ,कोई भी जैविक या रासायनिक खाद नहीं डालना है ,कोईभी केंचुआ ,गोबर,गौ मूत्र खाद या दवा नहीं ,अमृत मिट्टी ,अमृत पानी नहीं ,जीवाणु खाद नहीं ,निंदाई नहीं,जड़ों को और शाखाओं को छांटना नहीं है. कोई भी कीट या नींदा नाशक का उपयोग नहीं करना है.
कुछ करो
पेड़ों की छाया के छेत्र में सीधे बीजों को छिड़कर हरियाली का ढकाव सब्जियों , फसलों या खरपतवारों से होना जरूरी है जिस से केंचुए ,चीटियां ,दीमक आदि वहाँ पनपे और मिट्टी को छिद्रित हवादार ,उर्वरक और पानीदार बना सकें। सूखे अवशेषों जैसे पुआल,नरवाई ,पत्तियां ,टहनियां आदि का जहाँ का तहां छोड़ दें. ये जीवित विवधताओं का खाना है इस से जैविक खाद बनती है. इस हरियाली के ढकाव
जुताई नहीं,निंदाई नहीं ,गुड़ाई नहीं फुकुओकाजी का मोसम्बी का बगीचा |
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