Monday, March 24, 2014

STOP DESERTIFICATION

पानी ना तो आसमान से आता है नाही वह जमीन के भीतर से आता है पानी तो हरियाली से आता है.-फुकुओका 

प्राचीन  खेती किसानी में किसान जब अपने खेतों में कान्स घास को फूलता देखते थे वे जुताई को बंद कर खेतों को पड़ती कर दिया करते थे.  उन्हें पता चल जाता था कि अब खेतों का पानी सूखने लगा है. पड़ती करने से खेत हरियाली से ढक जाते हैं  जिस से खेत पुन: पानीदार हो जाते हैं.  हमारे इलाके में ऋषि पंचमी के त्यौहार में कांस घास की पूजा होती है और बिना-जुताई के अनाजों को फलाहार के रूप में सेवन किया जाता है. इस बात से पता चलता है कि हमारे पूर्वज किसान कितने समझदार और उन्नत थे।
कांस घास 


झूम खेती 
आज भी अनेक आदिवासी अंचलों में "झूम खेती " होती है. जो पिछले हजारों साल से हो रही है इसमें किसान पहले हरियाली के भूमि ढकाव को बचाते हैं जिस से जमीन पानीदार और उर्वरक हो जाती है. हरियाली के ढकाव में असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,सूक्ष्म जीवाणु पैदा हो जाते हैं जिनके जीवन चक्र से जमीन के पोषक तत्वों की आपूर्ती हो जाती है और बरसात का पानी जमीन में समां जाता है जो वाष्प बन सिंचाई का काम करता है. इस का लाभ लेने के लिए आदिवासी लोग एक सीमित जमीन के टुकड़े की हरियाली को काटकर उसे जला देते हैं जिस से जमीन फसलोत्पादन के लिए तैयार हो जाती है. इस जमीन में वे बरसात में अनेक बीजों को मिलाकर छिड़क देते हैं जिस से उन्हें अनेक किस्म की फसलें प्राप्त हो जाती है. कुछ फसलें बरसात के रहती है तथा कुछ फासले अगले मौसम की रहती है जिसमे दाल,चावल सब्जियां आदी रहती हैं. बीच बीच में फलों के पेड़ों को छोड़ दिया जाता है जिस से उन्हें फल भी मिल जाते हैं. इस जमीन के टुकड़े में करीब तीन साल तक ही खेती करते हैं इसके बाद वे फिर से जमीन को छोड़ देते है जिस से वह पुन: हरियाली के भूमि ढकाव से धक् जाती है जिसमे पानी और उर्वरकता का संचार हो जाता है.
क्लोवर के साथ धान की खेती 

जापान क विश्व विख्यात कृषि वैज्ञानिक और कुदरती खेती के किसान मासानोबू फुकुओकाजी ने भी इस कुदरती तकिनक के शेयर कुदरती खेती का विकास किया है. वे अपने धान ,गेंहूं और राइ  के खेतों में एक स्थाई भूमिधकाव  की वनस्पती जिसे वे क्लोवर कहते हैं सालभर जीवित रखते हैं जिस से उनके खेत उर्वरक और पानीदार रहते हैं उस में बदल बदल कर धान ,गेंहू और राइ की फसल होती रहती है. जिसका उत्पादन बढ़ते क्रम में रहता है.


आज कल  अनेक किसान अपनी जमीन को उर्वरक और पानीदार बनाने के लिए "हरी खाद " के नाम से खेतों में सन,ढेंचा ,चौलाई, गाजर घास  आदी के हरे ढकाव से जमीन उर्वरक और पानीदार बनाते हैं किन्तु वे जमीन की जुताई कर  इस ढकाव को मिट्टी में मिला देते हैं इस से जमीन की उर्वरकता और नमी का लाभ नहीं मिल पाता  है. जुताई करने से खेत की जैविक खाद गैस  बन कर उड़ जाती है और बरसात के पानी के साथ बह जाती है इस कारण खेत निरंतर कमजोर होते जाते हैं उनमे खाद और पानी की भीमकाय मांग होती जाती है.

हरे भूमिधकाव में बिना जुताई करे बुआई करने का तरीका
सामने क्रिम्पर रोलर पीछे जीरो टिलेज सीड ड्रिल। 

बिना-जुताई की जैविक खेती करने के लिए अनेक किसान ट्रेकटर के आगे हरे भूमि ढकाव को मोड़ कर सुला देते हैं तथा उसमे बिना जुताई की बोने की मशीन से बोनी कर बम्पर फसल ले रहे हैं. ढकाव की फसल को मोड़ कर जमीन  पर सुला देने से वह मरता नहीं है पानी और उर्वरकता प्रदान करता रहता है इसमें हरी छाया में रहने वाले अनेक जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े सहायता प्रदान करते हैं. यह खेती सिचाई के बिना की जाती है. जो पानी पीती नहीं है वरन पानी देती है.

हम पिछले २७ सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती को ऋषि खेती के नाम से कर रहे हैं. जिस से हमारी खेती जो पहले जुताई आधारित खेती करने के कारण घटे का सौदा बन गयी थी अब लाभकारी खेती में तब्दील हो गयी.

बिना पानी भरे कुदरती धान की खेती 
बिना-सिचाई ,बिना-जुताई ,बिना-खाद का कुदरती गेंहूं। 
हमारा मानना है जब तक इस देश के योजनाकार ,किसान ,खेती के डॉ लोग आदी फसलोत्पादन के लिए की जारही जमीन की जुताई पर नियंत्रण नहीं करते है जब इस देश के खेतों और किसानो का विकास नहीं हो सकता है और देश रेगिस्थान में तब्दील होता जायेगा।बड़े बांधों को बनाने से कभी पानी की  समस्या का हल नहीं हो सकता है. खेतों को हरा भरा बनाने से पानी का स्थाई हल हो जाता है. इसलिए फुकुओकाजी जिन्होंने  करीब ७० साल बिना जुताई ,बिना खाद ,बिना निंदाई ,बिना सिंचाई करे खेती कर दुनिया को बता दिया है कि ये सब उपाय निरर्थक ही नहीं बहुत नुक्सान दायक हैं. पानी आसमान से नहीं आता ,पानी धरती से नहीं आता वह तो हरियाली से ही आता है.





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