Sunday, February 19, 2012

लुप्त होती खेतों की मिट्टी


लुप्त होती खेतों  की मिटटी

आज विष्व की सबसे गंभीर समस्या खेतों से लुप्त हो रही मिटटी है। अमेरिका के भूगर्भ एवं कृषि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जिस रफ्तार से खेतों की मिटटी बह रही है उससे हमारे पास फसलों को पैदा करने के लिये मिटटी नहीं रहेगी।

यह खबर नेचरल न्यूज़ मे छपे श्री डेविड ग्युटीरेज़ के लेख से मिली है ,जिसमे बताया गया है फसलोत्पादन के लिये खेतों मे की जा रही जुताई से बह रही मिटटी के कारण अब खेतों मे कुल तीन फुट ही मिटटी बची है जो विश्व के कुछ चुने हुए इलाकों मे ही है। विष्व का करीब तीन चैथाई भाग भूमी क्षरण के कारण रेगीस्तान मे तब्दील हो गया है।

खेतों के उपरी सतह की मिटटी अंसख्य सूक्ष्म जीवाणुओं,फफून्दों,जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों से युक्त रहती है इनके निरन्तर पैदा होते मरते रहने के कारण मिटटी का निर्माण होता है। कुदरति वनों मे जहां कोई छेड़ छाड़ नहीं होती है वहां कई सौ सालों मे मुष्किल से एक इन्च मिटटी का निर्माण होता है।

अमेरिका जैसे देशों  मे खेतों की जुताई करने से भूमी का क्षरण करीब दस गुना तेजी से हो रहा है। इसलिये वहां की सरकार ने चेतावनी दी है कि यह समस्या पर्यावरण की सबसे गंभीर समस्या के रुप मे उभर कर आ रही है यह केवल अमेरिका की समस्या नहीं है यह सम्पूर्ण विश्व  की समस्या है। ग्लोबल वार्मिगं, बदलती आव और हवा, जल संकट और पर्यावरण प्रदूषण का इससे सीधा सम्बधं है। वहां के अनेक किसानों ने इस कारण बिना जुताई के खेती करना शुरु कर दिया है। उनका कहना है कि खेती  करने के लिये की जा रही जमीन की जुताई अनावश्यक  है।

शालिनी एवं राजू टाइटस

बिना जुताई(ऋषि खेती) के किसान,

ग्राम-खोजनपुर

होषंगाबाद. म.प्र. 461001. फोन-07574-280084 , 09179738049 , इमेल-rajuktitus@gmail.com

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