हार है ! आम कर्ज माफी
आज़ादी के बाद पयावर्णीय टिकाउ विकास के लिये सभी सरकारों ने कृषि कोे प्राथमिकता इसलिये दी कि हमारा देष कृषि प्रधान है। खेती की तरक्की से हमारे गांव विकसित होते हैं तथा गांव से देष। किन्तु आम किसानों के कर्जेंा की माफी से पता चलता हैै कि बरसों से चलाया जा रहा विकास का यह फार्मूला पूरी तरह फेंल हो गया है। हम हार गये हैं।
अहिंसात्मक आज़ादी की जंग जीतने के बाद जब हमारे बापू महात्मा गांधी नहीं रहे थे पूज्य विनोबा जी ने देष के टिकाउ विकास के लिये सत्य और अहिंसा के फार्मूले के अनुरुप देष के विकास का बीड़ा उठाया था। जिसमे उन्होने पर्यावर्णीय टिकाउ खेती पर बल दिया था। जिसका नाम उन्होने ऋषि खेती रखा था। यह खेती पूरी तरह भारतीय सस्ंकृति पर आधारित थी।इसमे सोच यह था कि हर व्यक्ति अपनी आवष्यकता अनुसार ऐसी खेती करे जिससे एक ओर हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे वहीं हर हाथ को काम मिले।
किन्तु पष्चिमी संस्कृति पर आधारित हिसांत्मक विनाषकारी औधोगिक खेती हरिकृान्ति ने उनके इस फार्मूले को बिलकुल चलने नहीे दिया। इस खेती के आने से हरे भरे वन,स्थाई बाग बगीचे ओर तमाम कुदरति चारागाह खेतों मे तथा उपजाउ खेत मरुस्थ्लों मे तब्दील हो गये और किसान कंगाल हो गये। किसान जो कल तक सबका पेट भरता था आज अपना पेट भरने मे अक्षम हो गया है। उसे सरकारी अनुदान कर्ज इसलिये दिया जाता है कि वह आत्मनिर्भर हो जाये किन्तु ऐसा हो नहीं सका इसलिये सरकारों के पास कर्ज माफी के सिवाय कुछ उपाय नहीं रहा। हम हार गये।
हरितकृन्ति मे समतलीकरण, सिंचाई,मशीनो, कृषि अनुसंधान, खाद, बीज और दवाओ के लिये क्या कुछ नहीे किया गया किन्तु कोई फायदा नहीं हुआ और हम हार गये।आज़ादी के बाद पयावर्णीय टिकाउ विकास के लिये सभी सरकारों ने कृषि कोे प्राथमिकता इसलिये दी कि हमारा देष कृषि प्रधान है। खेती की तरक्की से हमारे गांव विकसित होते हैं तथा गांव से देष। किन्तु आम किसानों के कर्जेंा की माफी से पता चलता हैै कि बरसों से चलाया जा रहा विकास का यह फार्मूला पूरी तरह फेंल हो गया है। हम हार गये हैं।
अहिंसात्मक आज़ादी की जंग जीतने के बाद जब हमारे बापू महात्मा गांधी नहीं रहे थे पूज्य विनोबा जी ने देष के टिकाउ विकास के लिये सत्य और अहिंसा के फार्मूले के अनुरुप देष के विकास का बीड़ा उठाया था। जिसमे उन्होने पर्यावर्णीय टिकाउ खेती पर बल दिया था। जिसका नाम उन्होने ऋषि खेती रखा था। यह खेती पूरी तरह भारतीय सस्ंकृति पर आधारित थी।इसमे सोच यह था कि हर व्यक्ति अपनी आवष्यकता अनुसार ऐसी खेती करे जिससे एक ओर हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे वहीं हर हाथ को काम मिले।
किन्तु पष्चिमी संस्कृति पर आधारित हिसांत्मक विनाषकारी औधोगिक खेती हरिकृान्ति ने उनके इस फार्मूले को बिलकुल चलने नहीे दिया। इस खेती के आने से हरे भरे वन,स्थाई बाग बगीचे ओर तमाम कुदरति चारागाह खेतों मे तथा उपजाउ खेत मरुस्थ्लों मे तब्दील हो गये और किसान कंगाल हो गये। किसान जो कल तक सबका पेट भरता था आज अपना पेट भरने मे अक्षम हो गया है। उसे सरकारी अनुदान कर्ज इसलिये दिया जाता है कि वह आत्मनिर्भर हो जाये किन्तु ऐसा हो नहीं सका इसलिये सरकारों के पास कर्ज माफी के सिवाय कुछ उपाय नहीं रहा। हम हार गये।
शलिनी एवं राजू टाईटस,होषंगाबाद.
rajuktitus@gmail.com
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