हरियाली और अहिन्सा
जब से जल-वायु परिवर्तन विषय पर काम कर रही अन्र्तदेषीय पैनल को ”शान्ति का नोबल पुरस्कार“ मिला है तबसे “ग्लोबल वार्मिगं” विषय सुर्खियों मे है।अनेक लेख इसके पक्ष और विपक्ष मे आने लगे हैं।यह भारत के लिये अच्दी खबर है। हमारा यह मानना है कि अब आयातित आधुनिक विज्ञान के दिन टल गये और भारतीय परम्परागत् विज्ञान के दिन आ गये हैं।हमे इस बात की खुषी है कि यह इनाम बिना-जुताई की खेती किसानी के आधार पर मिला है। हालाकि एक कहावत है कि रस्सी जल जाती है किन्तु बल नहीे जाता, इसलिये मौज़ूदा जल-वायु परिवर्तन की अनेक आधुनिक वैज्ञानिक कहानियां बनाई जा रहीं हैं जैसे “ग्रीनहाउस गैस” और कार्बन की थ्योरी आदी।
भारतीय अहिन्सात्मक आन्देालन की विजय के उपरान्त जब बापू जी नहीं रहे थे उनके परम षिष्य विनोबाजी ने सत्य और अहिसां पर आधारित ऋषि-खेती को , हरियाली और स्थाई विकास के लिये आधार मान कर भूदान आन्दोलन चलाया था ,किन्तु उन दिनों आयातित हिन्सात्मक आधुनिक खेती बलवती रही जिसके आगे हमारे योजनाकारेंा ने घुटने टेक दिये जिस कारण हम उनके पीछे पीछे बहुत आगे गर्त मे चले गये। वो तो कई सौ एकड़ मे एक परिवार के लियेे खेती कर रहे हैं लौट लिये किन्तु प्रष्न यह है कि क्या हम अब लौट पायेंगे?
हमारा यह मानना है कि जमीन की जुताई से धरति को ठण्डक देने वाली हरियाली की बहुत भारी हिंसा हेाती है।
हमारा असली विज्ञान अहिंसा हैं इसे अपना कर आज भी हम इस मुसीबत से बच सकते हैं।
शालिनी एवं राजू टाईटस
ऋषि-ख्ेाती किसान ग्राम-खोजनपुर
होषंगाबाद म.प्र.
जब से जल-वायु परिवर्तन विषय पर काम कर रही अन्र्तदेषीय पैनल को ”शान्ति का नोबल पुरस्कार“ मिला है तबसे “ग्लोबल वार्मिगं” विषय सुर्खियों मे है।अनेक लेख इसके पक्ष और विपक्ष मे आने लगे हैं।यह भारत के लिये अच्दी खबर है। हमारा यह मानना है कि अब आयातित आधुनिक विज्ञान के दिन टल गये और भारतीय परम्परागत् विज्ञान के दिन आ गये हैं।हमे इस बात की खुषी है कि यह इनाम बिना-जुताई की खेती किसानी के आधार पर मिला है। हालाकि एक कहावत है कि रस्सी जल जाती है किन्तु बल नहीे जाता, इसलिये मौज़ूदा जल-वायु परिवर्तन की अनेक आधुनिक वैज्ञानिक कहानियां बनाई जा रहीं हैं जैसे “ग्रीनहाउस गैस” और कार्बन की थ्योरी आदी।
भारतीय अहिन्सात्मक आन्देालन की विजय के उपरान्त जब बापू जी नहीं रहे थे उनके परम षिष्य विनोबाजी ने सत्य और अहिसां पर आधारित ऋषि-खेती को , हरियाली और स्थाई विकास के लिये आधार मान कर भूदान आन्दोलन चलाया था ,किन्तु उन दिनों आयातित हिन्सात्मक आधुनिक खेती बलवती रही जिसके आगे हमारे योजनाकारेंा ने घुटने टेक दिये जिस कारण हम उनके पीछे पीछे बहुत आगे गर्त मे चले गये। वो तो कई सौ एकड़ मे एक परिवार के लियेे खेती कर रहे हैं लौट लिये किन्तु प्रष्न यह है कि क्या हम अब लौट पायेंगे?
हमारा यह मानना है कि जमीन की जुताई से धरति को ठण्डक देने वाली हरियाली की बहुत भारी हिंसा हेाती है।
हमारा असली विज्ञान अहिंसा हैं इसे अपना कर आज भी हम इस मुसीबत से बच सकते हैं।
शालिनी एवं राजू टाईटस
ऋषि-ख्ेाती किसान ग्राम-खोजनपुर
होषंगाबाद म.प्र.
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