Thursday, February 9, 2012

नरवाई की आग में झुलसता तवा का छेत्र

नरवाई की आग में झुलसता तवा का छेत्र


गेंहूं  और सोयबीन की फसल के बाद तवा कमाण्ड के क्षेत्र मे जहां देखो वहां आग ही आग नज़र आयेगी। यह आग खेती  के बाद बची नरवाई को जलाने के कारण फैलती है इस आग से एक ओर जहां अनेक किसानों की फसले तथा झोपडि़यां तबाह हो जाती हैं वहीं ना चाहते हुए अनेक किसानों के पषुओं का चारा आदी सब नष्ट हो जाता है।यह आग मीलों तक अनियत्रित हवा के बहाव से बढ़ती जाती है। इस आग के कारण अब खेतों मे वृक्षों को पालना नामुमकिन हेा गया है। कोई किसान सब्जी या फलों की खेती  भी इस आग के कारण नहीं कर पाता है। खेतों मे केवल सोयाबीन और गेहूं ही नहीं रहता है। अनेक किस्म की जैवविविधतायें इसमे पनपती हैं जैसे सांप , चूहे ,छिपकलियां ,मेढक ,खरगोश  ,लोमडि़यां आदि । सब धीरे2 लुप्त प्राय; हो रहे हैं। सबसे अधिक मुसीबत जलाउ ईधंन की आ गई है। गांव मे खाने को अनाज तो है किन्तु पकाने की गंभीर समस्या है।

कहने को तो यह आधुनिक वैज्ञानिक हरित क्रांति  है किन्तु  इस से हरियाली बुरी तरह नष्ट हो गई है। हमारे सामने सबसे बड़ा प्रष्न यह है कि आखिर किसान क्यों अपने खेतों मे नरवाई को जलाते हैं? जबकि सब यह जानते हैं कि नरवाई खेतों मे सड़ जाये तो खाद बन जाती है।

असल मे इसके पीछे वैज्ञानिकों का हाथ है उनका मानना यह है कि एक फसल के बाद दूसरी फसल लगाने के पहले खेतो की अच्छी सफाई कर उसे गहराई तक जोत देना चाहिये जिससे पिछली फसल से उत्पन्न खरपतवारों एवं बीमारी के कीड़ो का पूरी तरह सफाया हो जाये। यह एक भ्रान्ति है। इसी भ्रान्ति के रहते किसान खेतों मे आग लगाते हैं।इससे उन्हे खेतों की जुताई करने मे भी आसानी हो जाती है। नरवाई जुताई के यन्त्रों मे फंसती नहीं है।

जबकि खेती  करने के लिये जुताई बिलकुल जरुरी नहीं है और करने के कारण ही खरपतवारों और कीड़ो की समस्या होती है।

हम पिछले 20 सालों  से अधिक समय से बिना जुताई की खेती कर रहे हैं तथा इसके प्रचार प्रसार मे लगे हैं। दुनिया भर मे अब अनेक किसान बिना जुताई की खेती करने लगे हैं केवल अमेरिका मे 40 प्रतिषत से अधिक किसान बिना जुताई की खेती करने लगे हैं। बिना जुताई की खेती करने वाले किसान पिछली फसल से बची नरवाई मे बिना जुताई की विषेष सीड ड्रिल से

सीधे  बिना बखरे बुआई कर देते हैं। उनका कहना है ऐसा करने से उन्हे 75 प्रतिषत डीज़ल की तथा 50 प्रतिषत सिंचाई खर्च मे लाभ मिलता है। खरपतवारों और बीमारी के कीड़ों की समस्या खत्म हो जाती है।उत्पादन और गुणवत्ता मे निरन्तर सुधार होता जाता है।इस खेती से अनेक पर्यावर्णीय ,सामाजिक एवं आर्थिक लाभ जुड़े होने के कारण बिना जुताई की खेती करने वाले किसानों को अतिरिक्त अनुदान भी दिया जाता है जिसे आम के आम और गुठली के दाम कहें तो कोई अतिष्योक्ति नही  होगा।

शालिनी एवं राजू टाईटस

बिना.-जुताई खेती के किसान

खोजनपुर गांव होषंगाबाद म.प्र.

461001 फोन-07574-280084

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