भोपाल गैस का जहर इंदौर मे !
हमारे पर्यावरण विभाग के पास आज तक ओद्धौगिक कचरों के जहरों को निष्क्रय करने का कोई उपाय नहीं है वो तो "यंहा का जहर वंहा" कर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं. जब से हमारे देश मे हरित क्रांति के नाम से ओधौगिक खेती की क्रांति आई है तब से आज तक इस समस्या का कोई भी समाधान हमारे वैज्ञानिक ढून्ढ नहीं पाए हैं. भोपाल गैस कांड फसलों मे लगने वाले कीड़ों को मारने के लिए बनाये जा रहे जहर के लीक कर जाने कारण हुआ था. जिसमे हजारों लोग मारे गए थे .. इसी तारतम्य मे आनन और फानन मे भोपाल गैस का बचा कुचे जहरीले कचरे को इंदौर मे डंप कर दिया है. जिस से वंहा का पानी दूषित हो गया है और लोग बीमार होने लगे हैं. किन्तु हमारे पर्यावरण और कृषि विभाग ने फ़िर भी इस से कोई शिक्षा नहीं ली और घातक कृषि रसायनों को खुले आम सब्सिडी देकर बनाना और फसलों पर डालना जारी रखा है. इस से कीड़े तो नहीं वरन इन्सान म़र रहे हैं. और हर साल अनेक कुकरमुत्तों की तरह जहर बनाने वाली कम्पनियां खड़ी हो रही हैं. ये तमाम जहर भोपाल गैस से कोई भिन्न नहीं हैं, ये जहर दवाई के नाम से खुले आम बाजार मे बेचें जा रहे हैं जिनको नियंत्रित करने लिए, निष्क्रिय करने के लिए वैज्ञानिकों के पास कोई हल नहीं है.
असल मे हमें उन कारणों पर गौर फ़रमाना होगा की आखिर फसलों मे कीड़े लगते क्यों हैं. ये एक फसलों की बीमारी है जो फसलों की कमजोरी से आती है. कमजोर खेतों मे कमजोर फसलॆं पैदा होती हैं इस लिए फसलॆं बीमार हो जाती हैं. खेतों की कमजोरी भूमि छरण और खेतों मे पानी की कमी हो जाने से होती हैं. खेतों मे हो रहे भूमि छरण और पानी की कमी के पीछे बार बार खेतों को गहराई तक खोदते और जोतते रहने प्रमुख कारण है. जमीन की जुताई करने से खेतों की बारीक मिटटी बरसात के पानी के साथ मिल कर कीचड बन जाती है जो बरसात के पानी को जमीन मे सोखने नहीं देती है जिससे वो जमीन मे ना जाकर तेजी से बहता है और अपने साथ बारीक बखरी मिटटी को भी बह कर ले जाता है. ये मिटटी ही असली कुदरती खाद है जिस से फसलें पकती हैं के बह जाने से खेत कमजोर और सूखे हो जाते हैं.
इंदोर शहर अपने सुहाने मोसम के कारण मशहूर था किन्तु हमारे पर्यावरण और कृषि विभाग ने इसे औधोगिक जहरों को डंप करने का कचरा घर बना दिया है. इंदौर शहर रसायन रहित जैविक खेती के जनक डॉ हॉवर्ड के नाम से पूरी दुनिया मे मशहूर है. यंहा इस जहर को डंप करना बहुत बड़ा अपराध है.
बहुत लोग ये समझते है की मानव निर्मित खाद को जमीन मे डालने से हम खोई जमीन की शक्ति को वापस पा सकते हैं और सिंचाई कर पानी की कमी से निज़ात पा सकते हैं किन्तु ये एक भ्रम है. जो क़ुदरत बनाती है वो इन्सान नहीं बना सकता है. हर साल जुताई करने से टनॊ जैविक खाद ( मिट्टी) खेतों से बाहर बह कर निकल जाती है. इस की आपूर्ति कम्पोस्ट या रासायनिक खादों से कभी नहीं की जा सकती है. आप खेतों मे कितनी खाद डालें खेत भूमि छरण के कारण कमजोर ही रहेंगे और वे कमजोर फसल ही पैदा करेंगे. इस लिए आज कल बिना जुताई की खेती का चलन शुरू हो गया है. ये रासायनिक बिना जुताई की खेती , बिना जुताई की जैविक खेती और बिना जुताई की कुदरती खेती के रूप मे जड़ जमा रही है.http://picasaweb.google.co.in/rajuktitus/NATURALCROPS?feat=directlink
किन्तु हमारे पर्यावरण और कृषि विभाग मे इस की कोई जागरूकता नहीं है. इस लिए खेती की ये हानी रहित पर्यावरणीय खेती की तकनीक का विकास नहीं हो पा रहा है. हम पिछले २५ सालों से भोपाल के पास होशंगाबाद शहर मे बिना जुताई की कुदरती खेती का सफलता से अभ्यास कर रहे हैं और निजी स्तर पर इस के प्रचार प्रसार मे सलग्न है. हमारा अनुरोध है की अब समय आ गया है की हमें प्रदुषण फैलाने वाली खेती और उधोगों का खुल कर विरोध करना चाहिए. जिस से हमारे सामूहिक भविष्य का सम्बंध है.
धन्यवाद
शालिनी एवं राजू टाइटस
होशंगाबाद .म.प.४६१००१.
हमारे पर्यावरण विभाग के पास आज तक ओद्धौगिक कचरों के जहरों को निष्क्रय करने का कोई उपाय नहीं है वो तो "यंहा का जहर वंहा" कर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं. जब से हमारे देश मे हरित क्रांति के नाम से ओधौगिक खेती की क्रांति आई है तब से आज तक इस समस्या का कोई भी समाधान हमारे वैज्ञानिक ढून्ढ नहीं पाए हैं. भोपाल गैस कांड फसलों मे लगने वाले कीड़ों को मारने के लिए बनाये जा रहे जहर के लीक कर जाने कारण हुआ था. जिसमे हजारों लोग मारे गए थे .. इसी तारतम्य मे आनन और फानन मे भोपाल गैस का बचा कुचे जहरीले कचरे को इंदौर मे डंप कर दिया है. जिस से वंहा का पानी दूषित हो गया है और लोग बीमार होने लगे हैं. किन्तु हमारे पर्यावरण और कृषि विभाग ने फ़िर भी इस से कोई शिक्षा नहीं ली और घातक कृषि रसायनों को खुले आम सब्सिडी देकर बनाना और फसलों पर डालना जारी रखा है. इस से कीड़े तो नहीं वरन इन्सान म़र रहे हैं. और हर साल अनेक कुकरमुत्तों की तरह जहर बनाने वाली कम्पनियां खड़ी हो रही हैं. ये तमाम जहर भोपाल गैस से कोई भिन्न नहीं हैं, ये जहर दवाई के नाम से खुले आम बाजार मे बेचें जा रहे हैं जिनको नियंत्रित करने लिए, निष्क्रिय करने के लिए वैज्ञानिकों के पास कोई हल नहीं है.
असल मे हमें उन कारणों पर गौर फ़रमाना होगा की आखिर फसलों मे कीड़े लगते क्यों हैं. ये एक फसलों की बीमारी है जो फसलों की कमजोरी से आती है. कमजोर खेतों मे कमजोर फसलॆं पैदा होती हैं इस लिए फसलॆं बीमार हो जाती हैं. खेतों की कमजोरी भूमि छरण और खेतों मे पानी की कमी हो जाने से होती हैं. खेतों मे हो रहे भूमि छरण और पानी की कमी के पीछे बार बार खेतों को गहराई तक खोदते और जोतते रहने प्रमुख कारण है. जमीन की जुताई करने से खेतों की बारीक मिटटी बरसात के पानी के साथ मिल कर कीचड बन जाती है जो बरसात के पानी को जमीन मे सोखने नहीं देती है जिससे वो जमीन मे ना जाकर तेजी से बहता है और अपने साथ बारीक बखरी मिटटी को भी बह कर ले जाता है. ये मिटटी ही असली कुदरती खाद है जिस से फसलें पकती हैं के बह जाने से खेत कमजोर और सूखे हो जाते हैं.
इंदोर शहर अपने सुहाने मोसम के कारण मशहूर था किन्तु हमारे पर्यावरण और कृषि विभाग ने इसे औधोगिक जहरों को डंप करने का कचरा घर बना दिया है. इंदौर शहर रसायन रहित जैविक खेती के जनक डॉ हॉवर्ड के नाम से पूरी दुनिया मे मशहूर है. यंहा इस जहर को डंप करना बहुत बड़ा अपराध है.
बहुत लोग ये समझते है की मानव निर्मित खाद को जमीन मे डालने से हम खोई जमीन की शक्ति को वापस पा सकते हैं और सिंचाई कर पानी की कमी से निज़ात पा सकते हैं किन्तु ये एक भ्रम है. जो क़ुदरत बनाती है वो इन्सान नहीं बना सकता है. हर साल जुताई करने से टनॊ जैविक खाद ( मिट्टी) खेतों से बाहर बह कर निकल जाती है. इस की आपूर्ति कम्पोस्ट या रासायनिक खादों से कभी नहीं की जा सकती है. आप खेतों मे कितनी खाद डालें खेत भूमि छरण के कारण कमजोर ही रहेंगे और वे कमजोर फसल ही पैदा करेंगे. इस लिए आज कल बिना जुताई की खेती का चलन शुरू हो गया है. ये रासायनिक बिना जुताई की खेती , बिना जुताई की जैविक खेती और बिना जुताई की कुदरती खेती के रूप मे जड़ जमा रही है.http://picasaweb.google.co.in/rajuktitus/NATURALCROPS?feat=directlink
किन्तु हमारे पर्यावरण और कृषि विभाग मे इस की कोई जागरूकता नहीं है. इस लिए खेती की ये हानी रहित पर्यावरणीय खेती की तकनीक का विकास नहीं हो पा रहा है. हम पिछले २५ सालों से भोपाल के पास होशंगाबाद शहर मे बिना जुताई की कुदरती खेती का सफलता से अभ्यास कर रहे हैं और निजी स्तर पर इस के प्रचार प्रसार मे सलग्न है. हमारा अनुरोध है की अब समय आ गया है की हमें प्रदुषण फैलाने वाली खेती और उधोगों का खुल कर विरोध करना चाहिए. जिस से हमारे सामूहिक भविष्य का सम्बंध है.
धन्यवाद
शालिनी एवं राजू टाइटस
होशंगाबाद .म.प.४६१००१.
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