Thursday, February 9, 2012

जैविक खेती का पनपता गोरखधंदा

जैविक खेती का पनपता गोरखधन्धा

आज कल खेती किसानी मे दिन प्रति दिन रासायनिक उर्वरको, रासायनिक कीटनाषकों, रासायनिक नीन्दा नाषकों एवं अनेक सूक्ष्म तत्वों, टानिकों आदी का चलन कृषि वैज्ञानिको के माध्यम से बढ़ता ही जा रहा है। इससे एक और जहां खेती किसानी का खर्च आसमान छूने लगा है वहीं हमारी फसलेां ,हवा,पानी, मिटटी आदी मे जहर धुलने लगा है। यह रासायनिक जहर धीर2े पानी मे धुलकर हमारी नदियों और समुन्द्र को भी विषैला बना रहा है।

यह रासानिकों का गोरख धन्धा ठीक एलोपैथिक दवाइयों की तर्ज पर पनपता ही जा रहा है। जैसा कि बाबा रामदेव कहते हैं कि अनेक एलोपैथिक दवायें बेकार हैं। उनकों लेने से फायदे की जगह नुकसान ही होता है वैसे ही खेतो मे डालने वाली अनेक दवायें भी बेकार हैं उनके उपयोग से फसलों को फायदे के अलावा नुकसान होता है।

खेतो मे सर्वाधिक उपयोग मे आने वाली दवा जिसका नाम यूरिया है जो खाद के नाम से बिकती है वह सबसे अधिक हानीकारक है। इसकी अधिक मात्रा शरीर मे चली जाये तो मौत हो जाती है। यह नत्रजन की आपूर्ति के नाम पर डाली जाती है। किन्तु इसका असर उल्टा होता है ख्ेातों मे डिनाइट्रीफिकंेषन हाने लगता है जिससे नाइट्रोजन की भीमकाय मांग उत्पन्न हेा जाती है। यह ठीक शराब की लत जैसा है। उसी प्रकार आजकल खरपतवारों को मारने के लिये परष्यूट नाम का अत्यधिक घातक ज़हर उपयोग मे लाया जा रहा है। यदि शरीर के कटे भाग पर यह लग जाता है तो उससे मौत हो जाती है। इसी प्रकार फसलों पर इल्लियो आदी को मारने के लिये अनेक प्रकार के घातक जहर अब बाजार मे खुले आम बिक रहे हैं।ये जहर पानी मे घुलकर फसलों के अन्दर पहुंचकर अनाजों मे बैठ जाते हैं।अनाजो के माघ्यम से खून मे घुलकर केंसर जैसी बीमारी का कारण बनते हैं।

खेती के डाक्टरों का यह कहना कि फसलें खाद खा लेती हैं इसलिये उर्वरकों की जरुरत पड़ती है यह बिलकुल गलत है। असल मे खेतो की जुताई करने से भूमीक्षरण हेाता है इससे खेतों मे उर्वरकता और जलग्रहण क्षमता मे निरन्तर कमि आती जाती है। खेत कमजोर हो जाते हैं,कमजोर खेतों मे कीड़ों और खरपतवारों की बीमारी उत्पन्न हो जाती है। इसलिये दवाऐं जरुरी लगती हैं।

जबसे पर्यावरण मित्रों ने घातक कृषि रासायनो का विरोध शुरु किया है तबसे रासायनिक खेती की तर्जपर जैविक ख्ेाती का गोरखधन्धा पनपने लगा है अनेक प्रकार की जैविक खाद ,दवा,कीटनाषक, खपतवार नाषको की भरमार बाजार मे बढ़ने लगी है। अनेक दुकाने जैविक खाद्य पदार्थों की खुल गईं हैं। जिनमे अत्यधिक मेहंगे और नकली जैविक खाद्य पदार्थ खुले आम बिक रहे हैं। अनेक एन.जी.ओ इस क्षेत्र मे विदेषों से पैसा मंगाकर इस गोरखधन्धे को हवा दे रहे हैं। नकली सर्टीफिकेट बांटे जा रहे हैं। सरकारे भी इस गोरखधन्धे को हवा देने के लिये राससानिकों की तरह जैविक खाद दवाओं आदी पर अनुदान देने लगी हैं। इसमे बेचारा किसान बुरी तरह पिस रहा है। वह कर्ज मे फंसकर आत्म हत्या करने लगा है।

किन्तु अब दिन प्रतिदिन अभी तक ख्ेाती मे फायदे मन्द समझी जाने वाली जुताई से होने वाले पर्यावर्णीय नुकसान को समझा जाने लगा है इसलिये अनेक किसान ज़्ाीरोटिलेज सीडड्रिल की मदद से या सीधे बीजों को बिना जुताई करे पिछली फसल से बची खड़ी नरवाई के बीच बुआई करने लगे हैं। नरवाई एक ओर जहां खरपतवार का नियं्रत्रण करती है वहीं पूरी खाद की आपूर्ति कर देती है ,जल संग्रहित करती है, फसलों, को बीमारी से बचाती है।

हमारा सरकार से अनुरोध है कि वह खड़ी नरवाई मे बिना जुताई खेती करने वाले किसानो की पहचान कर प्रोतसाहित करें तथा नरवाई; जैविक तत्वद्ध जलाने वाले किसानों को दण्डित करें।

नरवाई जलाने से और भ्ूामी क्षरण से फसलेंा मे घाटा होता है। पषुओं का चारा, लोगों के घर ,जलाउ ईधन ,बाग बगीचे ,चारागाह और जंगल नष्ट हो रहे हैं वह अलग है।

शालिनी एवं राजू टाईटस

ऋषिखेती होशंगाबाद

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