Thursday, February 9, 2012

मालवा को रेगिस्थान बनने से बचाने के लिए
रतलाम के व्यवसायी बने बिना जुताई की कुदरती खेती के किसान
तलाम के आस पास जहाँ कुछ साल पहले बरसात में कुए ओवर हो जाया करते थे वहां अब अब बोरिंग की मशीने फेल हो रही हैं  १००० फीट पर भी पानी नहीं मिल रहा है. ये हालत मात्र कुछ सालों में आधुनिक वैज्ञानिक खेती में चल रही ट्रेक्टर की गहरी जुताई के कारण हुई है. खेती करने के लिए जब जमीन की जुताई की जाती है तो जुती हुई जमीन की बारीक मिटटी बरसात के पानी के साथ मिल कर कीचड़ में तब्दील हो जाती है जिस से बरसात का पानी जमीन में ना जाकर तेजी से बहता है वह अपने साथ खेत की खाद  को भी बहा कर ले जाता है.
  अमेरिका के नाब्रसका इलाके में कुछ साल पहले इस समस्या के कारण खेती होना बंद हो गयी थी, बरसात भी नहीं हो रही थी किन्तु जब से उन्होंने बिना जुताई की खेती को शुरू किया है जबसे वहां अब असिचित खेती का उत्पादन और मुनाफा सिचित इलाकों से ज्याद होने लगा है तथा सूखे में भी बम्पर उत्पादन मिल रहा है. बरसात का पानी अब बहता नहीं वह खेतों में ही समां जाता है जिस से भूमिगत जल का स्तर हर साल बढ़ रहा है इसके साथ साथ सालाना बरसात भी बढ़ रही है.
 इसी तर्ज पर रतलाम शहर के व्यवसायी  पिरोदिया परिवार  ने बिना जुताई की खेती का शुभ  आरंभ किया है. उन्होंने अभी सिंचाई की मदद से करीब ५ एकड़ जमीन में कुदरती गेंहूं फसल लगाई है. जिसकी उत्पादकता और गुणवत्ता हर हाल में जुताई से की जाने वाली तमाम खेती करने की विधियों से अधिक है. इस के परिणामो को देख कर उन्होंने अपने १० एकड़ खेतों में भी इस को करने का फेसला किया है तथा वे इस विधि के प्रचार और प्रसार  में लग गए हैं जिस से अनेक किसानो ने इसे करने  का फेसला लिया है. यदि इसी रफ़्तार में इस विधा को समाज का  सहयोग मिला तो वो दिन दूर नहीं जब मालवा का ये छेत्र पानी की कमी को बिलकुल भूल जायेगा.
  अमेरिका के न्ब्रासका छेत्र में बिनाजुताई की खेती करने वाले किसानो की यूनियन है जो इस खेती को अपनाने वाले किसानो को आर्थिक सहायता भी देते हैं. इस से एक और जहाँ किसानो को अतिरक्त आर्थिक लाभ मिलता है वहीँ, उत्पादन/गुण  बढते क्रम में मिल रहे हैं. किसानो के बच्चे खेती किसानी को अपनाने  लगे हैं.
    बिना जुताई की खेती को शुरू करने वाले खेती के जाने माने वैज्ञानिक स्वर्गीय  श्री मस्नोबू फुकुओकाजी का कहना है की "बरसात आसमान से नहीं वरन जमीन के अंदर से आती है." जमीन में पानी होगा तो पानी बरसेगा अन्यथा नहीं.
इनकी" एक तनके से आयी क्रांति " जग प्रसिद्ध है. उन्होंने बिना जुताई ,खाद और दवाई का उपयोग किये दुनिया की सवोत्तम खेती को दीर्घ कालीन बना कर करके दिखा दिया है. अब दुनिया भर में लोग इसे करने लगे हैं.
  हमारे देश में आजादी के बाद से खेती में जुताई के चलते विनाश ही हुआ है इस लिए हमारा देश भरी कर्ज में डूब गया है. हर किसान सिर से लेकर पांव तक कर्ज में डूबा है किसान आत्म हत्या  कर रहे हैं.. ऐसा जुताई आधारित तेल की गुलाम खेती को अपनाने से हुआ है.
  मालवा के छेत्र में आज भी ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है जिस में काँस घास की पूजा होती है और बिना जुताई के अनाजों को खाने की सलाह दी जाती है. किसान खेतों में काँस के फूलने से जान जाते थे की उनके खेत सूखने लगे हैं इस लिए वे  जुताई बंद कर देते थे उन खेतों में पशु चराते  थे जिस से खेत नए पानी दार हो जाते थे.
  कुदरती अनाज , सब्जी फल आदि ना केवल स्वादिस्ट  होते हैं वरन केसर जैसी बीमारी को भी ठीक करने में सक्षम हैं. हम २५ सालों से होशंगाबाद स्थित अपने फार्म में इस विधा से खेती कर रहे हैं तथा इस के प्रचार प्रसार में लगे हैं हमने २ लाख रु प्रति एकड़ तक पेडों से आर्थिक लाभ अर्जित कर दिखा दिया है. इसे अपना कर किसान मालामाल हो सकते हैं. श्री पिरोदिया जी की तरह इस में साधू संतों और व्यापारी वर्ग को इस में आकर सफल बनाने में सहयोग करना चाहिए. मीडिया की इस में महत्व पूर्ण भूमिका है.
https://picasaweb.google.com/rajuktitus/PIRODIYAFARMRATLAMGROWINGNATURALWHEATINCOVEROFSUNNHEMPPARTHENUM?feat=directlink

kudrati genhoon -राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान

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