जैवविविधता संरक्षण और ग्रामीण आजीविका सुधार योजना (BCRLIP) सतपुरा -पेंच कॉरिडोर
TITUS NATURAL FARMING MODAL(RISHI KHETI )
आजकल आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियां जहाँ हमारे जीवन को सुलभ बना रही हैं वहीं इसका विपरीत असर हमारी जलवायु और जैवविधताओं पर बहुत पड़ रहा है। जिसके कारण ग्रामीण आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है।
हम सब जानते हैं की देश 60 % आबादी अभी भी गांवों में रहती है। जो जल ,जंगल और जमीन पर आश्रित है। जिसका मूल व्यवसाय खेती है। ये सही है आधुनिक वैज्ञानिक खेती ने हमारे देश की खाद्य सुरक्षा में महत्व पूर्ण भूमिका निभायी है किन्तु इसके हानिकारक प्रभावों के चलते हमारे सामने जल ,जंगल और जमीन से जुडी जैव विवधताओं के लुप्त होने खतरा उत्पन्न हो गया है। इसलिए इनके संरक्षण की जरूरत आज की सबसे बड़ी मांग बन गयी है।
जंगली ,अर्ध जंगली और फलदार पेड़ों के साथ सब्जियों ,अनाज और चारे की खेती एक साथ "आल इन वन क्वाटर एकड़ बगीचा " |
अब हमे ऐसी खेती करने की जरूरत है जो हमारी लुप्त होती जैवविविधताओं को न सिर्फ थामे वरन फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता को भी बढ़ते क्रम में टिकाऊ बनाये। बिना जुताई की कुदरती खेती जिसका आविष्कार जापान के जग प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक स्व मस्नोबू फुकुकाजी ने किया है। जिसे भारत में किसानो के अपनाने लायक बनाने में टाइटस ऋषि खेती फार्म की अहम भूमिका रही है। इस फार्म ने फुकोओका फार्मिंग को जो नेचरल फार्मिग के नाम से विख्यात है को ऋषि खेती के नाम से दीर्घ कालीन अभ्यास कर प्रचारित करने भी बहुत बड़ा योगदान दिया है।
यह खेती हमारे कुदरती वनो के सिद्धांतों पर आधारित है जैसे वनो में जुताई ,खाद और दवाइयों की कोई जरूरत नहीं रहती है जिस के कारण जल ,जंगल और जमीन की जैवविविधताये संरक्षित रहती हैं। उसी प्रकार ऋषि खेती में जुताई ,खाद दवाइयों के बिना अनाजों,फलों , जंगली और अर्ध जंगली पेड़ों को एक साथ "आल इन वन " के आधार पर फसलों का उत्पादन किया जाता है।
खरपतवारें जल जलवायु और जैवविधताओं की माँ हैं। |
पेड़ों के साथ गेंहूँ की फसल उत्पादन ५०० ग्राम /वर्ग मीटर |
बिना टूटी नरवाई /पुआल और दाने अलग करने की पांव से चलने वाली मशीन |
पुआल के ढकाव से जैविक खाद बनती है. इस से झांकते गेंहूँ के नन्हे पौधे |
इसके लिए हम पांव से चलने वाले कटीले ड्रम का उपयोग करते हैं. इस से अनाज के दाने अलग हो जाते हैं और पुआल तथा नरवाई बिना टूटे हुए अलग हो जाती है।
बिना टूटा हुआ पुआल /नरवाई जमीन पर जहाँ का तंहा डालदेने से बीज सुरक्षित हो जाते हैं जो उग कर बाहर निकल आते हैं। नन्हे पौधे ठीक जुते हुए खेतों की तरह पनप कर बम्बर फसल देते हैं। इस से एक और जहाँ ८०% खेती खर्च कम हो जाता है वहीं उत्पादों की गुणवत्ता बहुत बढ़ जाती है जिसे खाने से कैंसर जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है।
छिपकलियां और मेढक हानिकर कीड़ों को खा जाते हैं |
रात में उल्लू चूहे पकड़ लेते हैं |
खेती में पम्परगत खेती की दो धारणाओं का पूरी तरह अंत हो जाता है पहला की खरपतवार फसलों का खाना खा लेती है दूसरा छाया में फसलें नहीं होती। इस खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है की इसमें श्रम और लागत की भारी कमी रहती है एक किसान परिवार जिसके परिवार में ५-६ सदस्य रहते हैं हर सदस्य को एक घंटे प्रति दिन से अधिक के समय की जरूरत नहीं है।
जल ,जंगल जैविविविधताओं के समन्वय से किसान की आजीविका हर हाल में सबसे अच्छी रहती है।
1 comment:
Rajuji,
The biggest thing the govt can do to support natural/organic farming (NF/OF) is by abolishing all subsidies to power, water, fertiliser, diesel and farm credit. The "productivity" of chemical farming I suspect comes from these subsidies and not from any magical properties in chemicals and fertilisers. If these subsidies are withdrawn I suspect most farmers will revert to rishi krishi in 5-10 years time. Meanwhile to support farmers all such subsidies, which I estimate to be around Rs. 200,000 crores can be replaced by a per hectare subsidy of around Rs. 14,000/hectare (200,000 crores divided by 140 million ha). What do you say, sir?
Regards
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