विकास के लिए भूमि सुधार जरूरी है
खेती किसानी में चल रही जमीन की जुताई से खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं
भूमि सुधार के लिए करें पेड़ों के साथ खेती
हमारे इन कुदरती खेतों को देखें इनमे पक रही गेंहूँ की फसल सामान्य है। इन खेतों को पिछले 28 सालों से जोता नहीं गया है। जुताई करने से खेत की जैविकता नस्ट हो जाती है बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है वह तेजी से बहता है अपने साथ खेत की जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है।
अच्छी जमीन वही है जिसमे तमाम जैवविविधताएं रहती है जैसे पेड़ , जीव जंतु सूक्ष्मजीवाणु आदि। इसमें गहराई तक घनी जड़ों का जाल पाया जाता है। इसकी ऊपरी सतह से नीचे तक हवा और पानी का संचार होता है। बरसात का पानी जमीन के द्वारा सोख लिया जाता है जो वास्प बन एक और सिंचाई का काम करता है और बादल बन बरसात करवाता है।
अच्छी जमीनो में जैवविविधताएं खूब पनपती है, फसलें भी कुदरती उत्पन्न होती हैं। यही असली विकास है। आजकल खेती किसानी के लिए जंगल काटे जा हैं। विकास के नाम पर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं।
ऊर्जा के लिए ,सड़कों आदि के लिए जंगलों को तेजी साफ़ किया जा रहा है। खदाने खोदी जा रहीं हैं। विकास विनाश है।
इस विनाशकारी विकास के कारण मौसम परिवर्तन की गंभीर समस्या उत्पन्न हो गयी है। जिसके कारण हमारी जमीने ,फसलें तेजी से नस्ट होने लगी हैं। हम अकाल की और बढ़ चले हैं। आज जब हम कुदरती हवा ,आहार और पानी के घरे संकट से गुजर रहे हैं वहीँ बिजली और पेट्रोल की मांग तेजी से बढ़ रही है जिससे सांस लेने लायक हवा और पीने लायक पानी और जीने के लिए कुदरती आहार विलुप्ति की कगार पर है।
एक ओर जहाँ सरकार की ऊर्जा और धन शहरी मांग को ही पूरा नहीं कर पा रहा है वहीँ इस मांग की आपूर्ति में गैरशहरी छेत्रों का भारी शोषण हो रहा है। जिसे से हरियाली ,हवा ,पानी और आहार के श्रोत समाप्त हो रहे हैं। किसान खेती छोड़ने लगे हैं। खेती किसानी में दी जाने वाली सरकारी सहायता ऊँट के मुंह में जीरे के समान है।
इसलिए अब भूमि सुधार मानवीय हित में सर्वोपरि बन गया है। भूमि सुधार के लिए जंगलों को संरक्षित किया जाना एक उपाय है किन्तु खेती किसानी में इसके विपरीत कार्य हो रहा है जिस से मरुस्थल तेजी से पनप रहे हैं। इसलिए पेड़ों के साथ की जाने वाली बिना जुताई की खेती ही सर्वोत्तम उपाय है।
अधिकतर खेती किसानी के विशेषज्ञ भी यह मानते है की मोटे अनाज की फसलें पेड़ों के साथ नहीं हो सकती है यह एक भ्रान्ति है। उनका मानना है की छाया के कारण उत्पादन प्रभावित होता है किन्तु वे नहीं जानते हैं की उत्पादन की कमी जमीन की जुताई और पेड़ों की कमी के कारण है।
अब जबकि खेतों में पेड़ों की कमी ,जुताई आदि के कारण खेती किसानी संकट में पड़ने लगी है उसको सुधारने के बदले पढ़े लिखे नवजवानों की बेरोजगारी की समस्या बड़ा मुद्दा बन गया है इसके लिए उधोगों को बढ़ावा दिया जा रहा है जिस से भूमि के पूरीतरह बर्बाद होने के आसार बढ़ गए है। अभी हम आयातित तेल के गुलाम हैं कल हमे खाने के लिए अनाज ,पानी हवा को आयात करना पड़ सकता है। कोयला ,हवा ,पानी और फसलें सभी पेड़ों के उत्पाद हैं, जिन्हे हम आयात करने लगे हैं इस से खतरनाक बात और क्या हो सकती है।
बिना जुताई की पेड़ों के साथ होने वाली खेती को हम ऋषि हैं यह खेती कुदरती सत्य और अहिंसा पर आधारित है। ऋषि खेती नाम गांधी खेती के लिए आचार्य विनोबाजी ने दिया था किन्तु जापान के गांधी श्री मस्नोबू फुकूओकाजी ने इसे वैज्ञानिक सत्य और अहिंसा से जोड़ कर जो विकास का मार्ग प्रस्तुत किया है उसके आलावा अब हमारे पास बचने का की मार्ग नहीं बचा है। इस मार्ग के कारण हम बचे है इसलिए हम चाहते है की देश भी बचे।
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