Monday, March 23, 2015

पलायन करने से अच्छा है पलायन रोकना

छिंदवाड़ा वन ग्रामो के किसानो की आजीविका और जैवविविधता संरक्षण 

अधिकारियों और किसानो ने सीखा ऋषि खेती 

पलायन करने से अच्छा है पलायन रोकना 

जैव विविधता संरक्षण और ग्रामीण आजीविका सुधार  प्रशिक्षण
टाइटस ऋषि खेती फार्म होशंगाबाद। 
भारत सरकार के वन एवं जलवायु परवर्तन विभाग और मप वन विभाग के सहयोग से होशंगाबाद के सतपुरा टायगर रिज़र्व  ने आज कल जैव विविधता संरक्षण और ग्रामीण आजीविका की सुधार योजना को शुरू किया है। यह योजना सतपुरा -पेंच कॉरिडोर में लागू है।

इस योजना के तहत जल ,जंगल, जमीन और ग्रामीण आजीविका को सुधारने  का लक्ष्य है। यह योजना शहरी विकास की योजनाओं से अलग है। इसमें जंगल में रहने वाले लोगों को विस्थापित किए बिना ऐसी जीवन पद्धति  से जोड़ना है जिसमे लोग हजारों सालो से रहते रहे हैं किन्तु ऐसा तभी संभव है जब किसान अपनी आजीविका के लिए ऐसी खेती करने लगे जिसमे जल,जंगल का विनाश नो होकर वह और अधिक विकसित हो जाये।  आजकल हो ये रहा है है कि पर्यावरण के नाम पेड़ तो लगाये जा रहे हैं किन्तु खेती के लिए उन्हें उखाड़ या काट दिया जा रहा है। जमीनो को खूब जोत खोद कर उसे मुरदार  बना दिया जा रहा है। जिस से हरीभरी जमीने रेगिस्तान में तब्दील हो रही है।

ऋषि खेती ऐसी योजना हैं जिसमे खेती कुदरती वनो के अनुसार की जाती है जुताई ,खाद ,दवाई ,सिंचाई ,समतलीकरण ,कीचड मचाना ,फलदार पेड़ों की शाखाओं की छटायीं आदि कार्यों को नहीं किया जाता है। ये किसान अभी जंगलों में ही रहते है कुदरती खेती के बहुत करीब हैं। इसलिए इन्हे यहाँ सरकार की ओर  से प्रशिक्षण कराया जा रहा है। इनकी समस्याओं का समाधान केवल ऋषि खेती के पास है कोई भी आधुनिक वैज्ञानिक खेती का डाक्टर इनकी समस्याओं को ना तो समझ सकता है न ही वह उसका निवारण कर सकता है। जैसे एक किसान ने पुछा की हम लैंटाना से परेशान है , दुसरे ने पुछा की हमारी जमीन कंकरीली है क्या किया  जाये तीसरे ने कहा की बरसात तो होती है पर सूखा पड़ा है।

ऐसे अनेक सवाल हैं जिसका वैज्ञानिक कारण और निवारण ऋषि खेती के पास है क्योंकि यह खेती जापान के जाने माने वैज्ञानिक और कुदरती खेती के  किसान स्व श्री मस्नोबू फुकूओकाजी के  ८० साल के कुदरती खेती के अनुभवों पर आधारित है जिसे  टाइटस ऋषि खेती फार्म पिछले २८ सालो से कर रहा है।

हमारा पूरा विश्वाश  है की यदि इन किसानो ने ऋषि खेती को अपना लिया तो उन्हें जंगल छोड़ने की जरूरत नहीं रहेगी वरन  संरक्षण का काम वे स्वयं कर लेंगे। हम इस प्रयास के लिए सतपुरा टायगर रिज़र्व को सलाम करते हैं।


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