भूमि अधिग्रहण
प्रदूषण कारी स्मार्ट सिटी ,कलकरखाने और नौकरियां
कुदरती आहार ,हवा और पानी
हमारी जमीन सड़क के लिए सरकार ने ले कर हमे नहीं के बराबर मुआवजा दिया अब वह जमीन सड़क के दोनों ओर हो गयी है जिसमे एक ओर तो काम में आ रही है किन्तु जो दूसरी ओर हो गयी है वह ५० सालो से बेकार पड़ी है।
कुदरती स्मार्ट खेत |
किसानो की जमीन कल कारखानो के नाम से लेना विकास नहीं है बहुत बड़ा धोखा है। असल में हमारी सरकार को किसानो की भलाई के लिए सोचना चाहिए। किसान आजकल खेती के व्यवसायीकरण के कारण गरीब हो रहा है वह किसानो के प्रति सरकारों के गैर जवाबदारना रवैये के कारण अब आत्महत्या करने लगा है।
प्रदूषित स्मार्ट सिटी |
सरकार को यह मालूम नहीं है की आज देश में जो उधोग धंदे चल रहे हैं और जो लोग बड़ी बड़ी तनख्वाह वाली नौकरियों के मजे लूट रहे हैं उसके पीछे खेती किसानी है यदि खेती किसानी इसी प्रकार अपेक्षित रहती है तो ना उधोग चलेंगे ना ही ये नौकरियां रहेंगी।
इसलिए असली सरकार वही है जो खेती किसानी को उसका खोया सम्मान वापस दिलवाए इस काम में सरकारें पूरी तरह फेल रही है हमे नयी सरकार से बहुत उम्मीद थी वह किसानो के भले के लिए कोई ठोश काम करेगी किन्तु वह भी खेती किसानी को छोड़कर अब उद्घोग धन्दों की बात करने लगी है इस से बहुत निराशा है।
असल में सरकारों का यह मत की उधोग धंदे असली विकास है गलत है इसी अवधारणा के कारण व्यावसायिक खेती आयी है। इसने मात्र ५० सालो में उपजाऊ खेतों को रेगिस्तान बना दिया है जिस से उस पर आधारित सभी धंधे चोपट हो गए हैं।
भारत की अहिंसात्मक आज़ादी की लड़ाई किसानो की लड़ाई थी उन दिनों भी अंग्रेजों ने कंपनी राज कायम करने की कोशिश की थी किसानो से जमीने छीनी जा रहीं थीं उन्हें नौकर बनाया जा रहा था। आज भी वही दशा निर्मित हो रही है। किसानो को जहां आत्म निर्भर बनाना था उन्हें नौकरी के नाम पर कंपनियों का गुलाम बनाया जा रहा है।
असल में हमारे राजनेता लोग ईमानदारी और सच्चाई से कोसो दूर चले गए हैं वे सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता के मोह जाल में फंस गए हैं। इसमें आमआदमी बंदर बन गया है और राजनेता मदारी बन गए हैं। असल में वे यही नहीं जानते है की असली माँ धरती है जिसके बच्चे हम सब हैं। जो इन दिनों बीमार हो गयी है।
ऐसा लगता है हम अब अपनी धरती माँ को बचाने में नाकामयाब हो जायेंगे और सब स्मार्ट सिटी के चक्कर में अपनी बीमार धरती माँ को छोड़ कर स्मार्ट घर में बस जायेंगे जहाँ २४ घंटे बिजली मिलेगी, कारें होंगी किन्तु पीने के लिए कुदरती पानी नहीं मिलेगा ,ना ही वहां हमे सांस लेने के लिए प्राण वायु मिलेगी ,कुदरती रोटी भी हमसे कोसों दूर हो जाएगी। हरयाली और तमाम जैवविविधतयों को देखने के लिए हमे चिड़िया घरों में जाना होगा। हरे भरे वन ,खेत और खलिहान और बाग़ बगीचों की प्रदर्शनियां लगा करेंगी।
आजकल हम पिछले २८ सालों से कुदरती खेती कर रहे हैं इसके पहले हम आधुनिक वैज्ञानिक खेती करते थे हमारे खेत बंजर हो गए थे किन्तु जब से हमने कुदरती अपनाया है। हमारे खेत स्वर्ग बन गए हैं हम मरना पसंद करेंगे पर अपने स्वर्ग को कभी नरक बनने के लिए नहीं देंगे।
हमारा मानना है की सरकार को अभी खेतों खेती की जानकारी नहीं है यदि सरकार पूरे देश में कुदरती खेती करवाती है तो पूरा देश आज भी स्वर्ग में तब्दील हो जायेगा जिसमे जिसमे शून्य निवेश की जरूरत है वरन ८० % लागत बच जाएगी। कुदरती हवा ,खान पान के मिलने से अंग्रेजी स्कूलों,अस्पतालों की जरूरत पूरी तरह खतम हो जाएगी। इसलिए हमारा निवेदन है की प्रदूषणकरी स्मार्ट सिटी के बदले कुदरती स्मारक खेत बनाने पर बल देना चाहिए।
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