केजरीवालजी भी करा रहे कुदरती इलाज !
कुदरती खेती ,कुदरती आहार और कुदरती इलाज में कोई फर्क नहीं है !
सत्य और अहिंसा का मार्ग
विगत दिनों जब अन्नाजी अनशन कर रहे थे वे बहुत बीमार हो गए थे उनका इलाज एक बहुत महंगे अस्पताल में रासायनिक दवाओं से किया जा रहा था किन्तु उनकी तबियत दिन प्रति दिन बिगडती गयी इसके बाद अन्नाजी को स्व इस बात का आभास हो गया की और उन्होंने रासायनिक दवाओं का इलाज बंद कर दिया और वे बेंगलुरु में जिंदल के कुदरती अस्पताल में चिकित्सा हेतु चले गए।
सूक्ष्म जीवाणुओं की खोज करते गांधीजी |
उन्हें २० दिनों तक फलों के रस पर रखा गया। उनके पूरे बदन में सूजन आ गयी थी ये हाल उनका रासायनिक दवाओं के कारण हुआ था। किन्तु ७४ साल की उम्र में वे मात्र २० दिनों में ठीक हो गए। असल में आज कल बीमारियां रासायनिक दवाओं वाले अस्पतालों उत्पन्न हो रहीं हैं। अस्पतालों में हो रहीं अनेक मौतों के लिए भी इन दवाओं को दोषी माना जा रहा है।
रासयनिक दवाएं शरीर को और अधिक कमजोर कर देती हैं। जिस से बीमारियां लगातार बढ़ती जाती हैं जब बीमारियां ठीक नहीं होती है और दवाओं की मात्रा और अधिक कर दी जाती है जिसके दुश परिणामो के कारण अनेक लोग मर जाते हैं। अन्नाजी जब कुदरती इलाज करवाने पहुंचे उनकी हालत बहुत खराब थी पूरे बदन में सूजन आ गयी थी। अन्नाजी ने बताया की सब से पहले कुदरती इलाज करने वाले डाक्टरों ने उनकी दवाएं पूरी तरह बंद कर दीं। दूसरा उन्होंने उनका सामान्य भोजन जो दाल,रोटी सब्जी ,भात रहता है को बंद कर दिया ,उसके बाद उन्हें पानी और रसों के आधार पर उपवास करवाया गया यह उपवास करीब २० दिन तक चला इस से उनकी सेहत में सुधार आने लगा। फिर उन्हें फलों के रसों के साथ थोड़ा थोड़ा सामान्य भोजन दिया गया जिस से वे पूरी तरह ठीक हो गए।
हमारा शरीर चारों तरफ से बीमारियों के कीटाणुओं से घिरा रहता है किन्तु रोग निरोग शक्ति के कारण हम बच जाते हैं। रोग निरोग शक्ति के कारण जब हमारे शरीर में कोई बीमारी प्रवेश करती है हमारे शरीर की रक्षात्मक फौज उस से लड़ाई कर बीमारी को भगा देती है। हमारे शरीर की रोग निरोग शक्ति तब कमजोर हो जाती है जब उसे कुदरती खान ,पान, हवा और कुदरती पर्यावरण नहीं मिलता है।
अन्नाजी एक गाँधीवादी व्यक्ति हैं। वो उपवास में बहुत विश्वाश करते हैं। उपवास करना भी शरीर की रोग निरोग शक्ति को बढ़ाने में बहुत सहयोगी रहता है। किन्तु उपवास भी किसी जानकार के अनुसार होना चाहिए।
सामान्य उपवास तीन दिन का होता है जिसमे पानी लगातार लेने की सलाह दी जाती है उपवास के दौरान आराम जरूरी है। पानी के साथ हरी पत्तियों का रस जिन्हे बकरी और बंदर पसंद करते हैं लाभप्रद रहता है। फलों का रस ,अंकुरित अनाज ,आदि मन पसंद हलकी फुलकी आनंद दायक कसरत करने से अनेक बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
हम अपने परिवार में पिछले २८ सालो से कुदरती खेती कर रहे हैं इस खेती में जमीन की जुताई , कृषि रसायनो और किसी भी प्रकार के मानव निर्मित खाद और दवाइयों का उपयोग नहीं किया जाता है। इस से मिलने वाली हर अनाज ,सब्जी ,फल ,दूध ,अंडे आदि दवाई की तरह काम करते हैं। हम सामन्यत : अपने परिवार में सामन्य बीमारियों के लिए रासायनिक दवाओं का इस्तमाल नहीं करते हैं। बुखार ,सर्दी जुकाम आदि होने पर उपवास के साथ पानी और हरी पत्तियों का रस पीते और पिलाते हैं। कुछ समय बाद ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
हमने पाया है की जब शरी
गांधीजी के परम शिष्य अन्नाजी और अन्नाजी के शिष्य केजरीवालजी |
कई बार डर के कारण हमे मजबूरी में रासायनिक दवा वाले डाक्टरों के पास जाना पड़ा है किन्तु हमने जल्दी दवाइयों को छोड़ कर स्वास्थ लाभ पाया है।
कुदरती इलाज सही मायने में कोई विशेष इलाज की तकनीक नहीं है यह " सत्य और अहिंसा " के अनुसार कुदरत के साथ रहने का तरीका है ।
गेरकुदरती खान ,पान ,दवाइयों और क्रिया कलापों को छोड़ भर देने से इलाज हो जाता है। जब हम कुछ नहीं करते हैं हमारे शरीर में कुदरत काम करने लगती है। अपने आप कुदरती संतुलन स्थापित हो जाता है। बीमारियां ठीक हो जाती हैं।
रासयनिक दवाओं पर आधारित डाक्टरी हिंसा पर आधारित है। कोई भी बीमारी हो दोष आँखों से नहीं दिखाई देने सूक्ष्म जीवाणुओ पर डाल दिया जाता है फिर उनको मारने के लिए कई किस्म के रासायनिक जहरों को खोजा जाता है। ये जहर हमारे शरीर की रक्षात्मक फौज के जवानो जो असंख्य सूक्ष्म जीवाणु होते हैं को बहुत नुक्सान पहुंचाते हैं। जो इन जहरों के कारण मर जाते हैं जिस से हमारे शरीर की रोग निरोग छमता पर गहरा विपरीत असर पड़ता है बीमारियां ठीक होने के बदले और बढ़ जाती हैं।
यही हिसात्मक डाक्टरी खेती में चल रही है जुताई करने से जमीन जो असंख्य सूख्स्म जीवाणुओं का समूह है मर जाती है उसमे रासायनिक जहर डालने से बचे कुचे जीव भी मर जाते हैं खेत बंजर हो जाते है बंजर खेतों में
भयानक रासायनिक जहर उंडेल जाते हैं जिस से फसलें जहरीली हो जाती हैं जो हमारे शरीर को भी कमजोर कर देती हैं कैंसर , स्वान फ्लू ,डेंगू जैसी अनेक महामारियों का यही मूल कारण है।
कुदरती इलाज के लिए कुदरती वातावरण की जरूरत होती है सही कुदरती वातावरण के लिए कुदरती खेतों की जरूरत है जिनसे हमे कुदरती फसलें ,कुदरती जल और कुदरती साँस लेने लायक हवा प्राप्त कर सकते हैं । महानगरों में कुदरती आवोहवा और पानी की बहुत कमी है। कुदरती इलाज भी अब महानगरों में फैशन बनने लगा है किन्तु सवाल ये है की क्या इन अस्पतालों में कुदरती वातावरण है ?
2 comments:
प्रकृति पर विजय पाने का प्रयास राक्षसी प्रकृति है और प्रकृति के साथ अनुकूलन करना देव संस्कृति है । हमारी
पौराणिक कथाएँ भी प्रतिकात्मक रूप में यही सन्देश देती है।
राक्षस तप (श्रम) करके वरदान(प्रकृति पर नियंत्रण) पाते है।
ऋषि भी तप करके वरदान (भक्ति ; प्रकृति के प्रति समर्पण)
पाते हैं । अंतत: राक्षस मृत्यु व ऋषि मोक्ष पाते हैं ।
बहुत ही सुंदर कमेंट्स के लिए धन्यवाद , कर्म से बहुत बड़ा है अकर्म .धन्यवाद -राजू
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