भारत में खेती किसानी की दशा
लोकसभा में चर्चा
किसानो की आत्महत्या और सूखे का मुद्दा गरमाया
हम विगत अनेक सालो से देश में खेती किसानी की बदहाली की खबरें सुनते आ रहे हैं। हमने स्व. अपनी खेती किसानी में अनेक पड़ाव तय किये हैं। सबसे पहले हम देशी परम्परागत खेती किसानी करते थे इसके बाद पंजाब की आधुनिक खेती को मार्ग दर्शक समझ उसे अपना लिया था। किन्तु मात्र १५ वर्षों में हमे उसे अलाभकारी परिणामो के चलते छोड़ना पड़ा था। उन्ही दिनों हमे कुदरती खेती की जानकारी मिली जिसे हमने अपना लिया जिसे अब हम पिछले २८ सालो से कर रहे हैं।
वैसे तो हमारे लिए खेती किसानी की दशा सम्बन्धी हालात छुपे नहीं हैं फिर भी हम जब भी इस विषय पर संसद में चर्चा होती हम उसे ध्यान से सुनते रहे हैं। पिछले साल तक सरकारों के द्वारा खा जाता रहा है की हमने खेती किसानी में बहुत तरक्की कर ली है पहले हम विदेशों से अनाज बुलवाते थे अब हम विदेशों को भेज रहे हैं। किन्तु इस साल सरकार ने पहली बार यह माना की देश में खेती किसानी की हालत बहुत गंभीर है करोड़ों किसान खेती छोड़ चुके है और छोड़ने वाले हैं ,लाखों किसानो ने आत्महत्या कर ली है और हर रोज करीब दो किसान आत्म हत्या कर रहे हैं।
अनेक सदस्यों ने इस बात को माना की रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों आदि के कारण मिट्टी ,जल ,आनाज प्रदूषित हो रहे हैं इस लिए बीमारियां फेल रही है। अनेक लोक सभा सदस्यों से यह स्वीकारा कि खेत बंजर हो गए हैं और भूमिगत जल पहुँच से नीचे चला गया है।
यह भी माना गया की अनेक १०० एकड़ से अधिक किसानो के पास भी अपनी आजीविका का खतरा उत्पन्न हो गया है जबकि ५ एकड़ से नीचे खेती वाले अनेक किसान अब भूखे मरने की कगार पर खड़े हैं। अनेक गाँव से बड़े लोग अपने बच्चों और बूढ़ों को छोड़ कर से पलायन कर गए हैं। सबसे बड़ी समस्या पानी की है। पीने के लिए पानी लेने के लिए कोसों दूर जाना पड़ता है।
इस चर्चा में देश के सबसे विकसित कहे जाने वाले प्रदेशों जैसे हरयाणा ,पंजाब ,और गुजरात के सांसदों ने भी अपने प्रदेशों का यही हाल बयान किया और कर रहे हैं।
किन्तु बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है की किसी भी सांसद ने गरीब किसान वर्ग के सबसे गरीब "भूमि हीं किसानो " की कोई चर्चा नहीं की। ना ही कोई भी सांसद यह बता सका की आखिर इन हालातों के लिए मूलत: क्या कारण है।
किसी भी सांसद ने भूमि ,जल और जैव विविधताओं के छरण की कोई भी चर्चा नहीं की ,जबकि अनेक सांसद सीना थोक कर अपने को किसान बता रहे थे। अधिकतर संसद खेती किसानी में पानी की कमी को मूल मुद्दा बता रहे हैं। जिसके लिए बड़ी सिंचाई योजना और नदियों को जोड़ने की बात कर रहे हैं।
हम पिछले अनेक सालो से बिना जुताई की कुदरती खेती के अनुभवों को अनेक लोगों के साथ बाँट रहे है अनेक लेख ,मेग्ज़ीनो के माध्यम से इस बात को बताने का प्रयास कर रहे हैं की देश में जो आज खेती किसानी की हालत है उसके पीछे जमीन की जुताई का सबसे बड़ा हाथ है। इसके कारण ही जमीने बंजर हो रही है ,भूमि गत जल का स्तर बहुत नीचे चला गया है। हरियाली की कमी के कारण बरसात कम हो गयी है। पानी जमीन में नहीं समाता है। इस कारण खेत बंजर हो रहे है और सूखा पड़ा है। इस कारण किसान अधिक लागत के कारण घाटे में पड़ जाते हैं फिर आत्म हत्या कर लेते हैं।
इस दशा की जानकारी के अभाव में अब अनेक सांसद यह कहने लगे हैं कि किसानो को खेती छोड़ देना चाहिए उन्हें कोई व्यवसाय करने की जरूरत है। अभी लोक सभा में चर्चा जारी है देखना यह है की इस सभा में नयी सरकार के कृषि मंत्रीजी क्या जवाब देते हैं ?
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