प्रधानमंत्रीजी की मिट्टी परिक्षण योजना
किसान स्वं अपनी मिट्टी को जाँच कर अपने खेतों को सुधार सकते है। इस से किसान और सरकार पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ में 80 % कम होने की संभावना है।
पिछले २८ सालो से अपने खेतों में कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं इस से पहले हम वैज्ञानिक खेती करते थे से कृषि वैज्ञानिकों से मिट्टी का परिक्षण करवाते थे वो अपनी रिपोर्ट में बताते थे की आप अपने खेतों में अमुक उर्वरक इतनी मात्रा में डालें हम उनके बताये अनुसार उर्वरक डालते रहते थे। किन्तु जब हमे वांछित परिणाम नहीं मिलते थे तो वे हमे दुसरे किस्म के उर्वरकों को डालने की सलाह देते थे।
इस प्रकार हमेशा वैज्ञानिकों के द्वारा करवाई जा रही मिट्टी की जांच और उनके द्वारा बताये उर्वरकों का उपयोग करने के बाद भी हमारे खेत बंजर हो गए तो हमारे पास खेती को छोड़ने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचा था। आज भी वैज्ञानिक खेती की यही दशा है इस कारण खेती घाटे में है किसान खेती छोड़ रहे हैं ,आत्महत्या कर रहे हैं।
वैज्ञानिक लोग इस समस्या का दोष किसान के ऊपर ही मढ़ रहे हैं। उनका कहना है किसान मिट्टी की जाँच नहीं करवाते हैं हमारे बताये अनुसार गोबर की /उर्वरक नहीं डालते हैं जरूरत से अधिक कीट और खरपतवार नाशक डालते जा रहे हैं।
इसलिए उत्पादकता में कमी आ रही है।
हमारे प्रधान मंत्रीजी निश्चित किसानो के प्रति चिंता रखते हैं इसमें कोई संदेह नहीं है इसलिए वो चाहते हैं एक किसान को अपनी मिट्टी की जानकारी होना चाहिए। उसके अनुसार उसे फसलों के उत्पादन के लिए क्या करना है स्व निर्णय लेने की जरूरत है। इस लिए उन्होंने एक बहुत अच्छी बात कही है की हर गाँव के आसपास स्कूल रहते हैं वहां से वे पढ़ने वाले बच्चों की सहायता से अपनी मिट्टी की जांच कर उचित उपाय कर फसलों का उत्पादन करें।
भारतीय परम्परागत प्राचीन खेती किसानी में में अनेक ऐसे उदाहरण मिलते हैं जब किसान अपनी मिट्टी को जांचने के अनेक देशी उपाय अमल में लाते थे तथा उसके अनुसार अपने खेतों को बंजर होने से बचा लेते थे। जैसे आज भी ऋषि पंचमी के पर्व में कांस घास की पूजा होती है किसान जब देखते थे उनके खेत कांस से भर गए हैं वे जुताई बंद कर देते थे जिस से उनके खेत की कांस गायब हो जाती थी और पुन: खेत ताकतवर हो जाते थे। उन दिनों तो कोई रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं होता था। इसलिए प्रश्न उठता है की फिर क्यों खेत कमजोर हो जाते थे। असल में कांस घास जुताई के कारन होने वाले भूमि छरण के कारण पैदा होती है उसकी जड़ें २५-३० फ़ीट तक नीचे पानी की तलाश में चली जाती हैं। इस परिस्थिति में किसान के लिए खेती करना असम्भव हो जाता है। किन्तु जब वह जुताई बंद कर देता है भूमि छरण रुक जाता है और कांस गायब हो जाती है।
कुदरती खेती जिसे हम ऋषि खेती भी कहते हैं वह जुताई के बगैर की जाती है इसका सबसे बड़ा फायदा यह है की खेत की मिट्टी जो असल में जैविक खाद है वह बहती नहीं है। जुताई करने से बरसात का पानी जमीन में नहीं जाता है वह अपने साथ खाद /मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है। इसलिए खेत बंजर जाते हैं।
इस बात को अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं इस वीडियो को देखें
-- https://www.youtube.com/watch?v=q1aR5OLgcc0&feature=player_detailpage
जब हमने इस वीडियो को देखा तो हमने भी अपने खेतों की मिट्टी की जांच करने के लिए अपने घर में ही सधारण यंत्र बना कर अपनी मिट्टी की जाँच कर देखा तो हमे भी पहली मर्तवा विश्वाश नहीं हुआ की मिट्टी की जांच करना इतना सरल है। देखें http://youtu.be/CT1YfZqorGw
इसे भी देखें
https://www.youtube.com/watch?v=XSJdyQ_Yymk&feature=player_embedded
हलकी हम अनेक सालो से बिना जुताई की खेती कर रहे हैं किन्तु हम अब दावे के साथ कह रहे हैं कि किसान को स्वम् अपनी मिट्टी की जाँच कर उचित उपाय करना चाहिए। अब समय आ गया है की वह वैज्ञानिकों और उनके द्वारा बताई गयी दवाइयों का आँख बंद कर उपयोग नहीं करें।
हर खेत की मेढ़ पर बिना जुताई की मिट्टी मिल जाती है वह उसे अपने जुताई वाली खेतों की मिट्टी के बीच तुलना कर देख सकता है की जुताई करने से कितना नुक्सान है।
अनेक वैज्ञानिक कहते हैं की जमीन में यूरिया डालने से खेत बंजर हो रहे हैं ऐसा नहीं है असल में जमीने जुताई के कारण बंजर हो रहीं है किन्तु जब हम जुताई नहीं करते हैं तो खेतों की मिट्टी बहती नहीं है इसलिए यूरिया की कोई जररत नहीं रहती है। इसलिए कम्पोस्ट,अमृत पानी ,अमृत मिटटी को भी बना कर डालने की कोई जरूरत नहीं रहती है।
6 comments:
Raju ji,
I guess you are an AAP supporter and dont like Mr. Modi/BJP too much. Still in the greater interest of the nation, you and likeminded people shud make a presentation to Mr. Modi or Mr. Chauhan or other progressive CMs like Nitishji or Siddharamiahji and request for a large scale project at a district level. Maybe it can then serve as a template for the whole nation.
Regards
No its not true I am supporter of truth Modiji is our PM . I tried to explain this way of farming to my CM but agriculture department is not agree although the forest department is agree and running training of NF for lively hood projects in displaced area of national park .
Rajuji,
The biggest thing the govt can do to support natural/organic farming (NF/OF) is by abolishing all subsidies to power, water, fertiliser, diesel and farm credit. The "productivity" of chemical farming I suspect comes from these subsidies and not from any magical properties in chemicals and fertilisers. If these subsidies are withdrawn I suspect most farmers will revert to rishi krishi in 5-10 years time. Meanwhile to support farmers all such subsidies, which I estimate to be around Rs. 200,000 crores can be replaced by a per hectare subsidy of around Rs. 14,000/hectare (200,000 crores divided by 140 million ha). What do you say, sir?
Regards
I think you are correct . Direct money should be given to those who are doing NF. Because natural farmers protecting environment.
सर में हस्तिनापुर ब्लाक जिला मेरठ से हूँ। सर हमारे ब्लाक हस्तिनापुर में ना तो मिटटी चेक करने के साधन हे ओर नही कोई technisiyan हम कंहा पर अपनी मिटटी की जाँच कराये । हस्तनपुर से मवाना के लिए बोल देते हे ओर मवाना से मेरठ के लिए कोई सुनने के लिए ही तैयार नही है।।।
ऐसे में हम किसान लोग क्या करें । या तो कोई उपाय हमे बताइये या फिर अपने कृषि विज्ञानं केंद्र को सही से काम करने के निर्देश दे। जिससे किसानो की आर्थिक स्थिति सही हो । नही तो किसान मर रहा हे ओर कोई उनकी स्थिति को समझने के लिए ही तैयार नही हे।।
में हस्तिनापुर ब्लाक से अमितोष जैनर मेरे साथ ये घटना हो चुकी हे । में अपने खेत की मिटटी की जाँच नही करवा पा रहा हूँ और दर बदर भटकना पड़ रहा है।
सर कोई समाधान हो तो मुझे 9045465741 इस नंबर पर भेजे ।।।आपकी अति कृपा होगी।।
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