गेंहूँ की नरवाई से करें मूंग की कुदरती खेती
बिना जुताई की कुदरती खेती में जहां सिंचाई का साधन उपलब्ध है गर्मी की मूंग बहुत सहायक सिद्ध होती है
यह एक और जहां आर्थिक लाभ देती है वहींं खेतों में नत्रजन की मांग को भी पूरा कर देती है। इसका यह कारण है की इसकी जड़ों में नत्रजन (यूरिया ) सप्लाई करने वाले जीवाणु रहते हैं।
इसके लिए हमे गेंहूँ की नरवाई बिना बारीक की हुई की जरुरत रहती है सामन्यत : यह नरवाई हाइवेस्टर से प्राप्त हो जाती है अन्यथा हमे इसे पांव से चलने वाले थ्रेशर की सहायता से प्राप्त करने की जरुरत रहती है।
हम गेंहूँ की कटाई और गहाई के उपरांत मूंग के बीजों को जमीन पर सीधे फेंक कर उसके ऊपर गेंहूँ की नरवाई को इस प्रकार डाल देते हैं जिस से सूर्य की रोशनी के सहारे बीज अंकुरित होकर ऊपर आ जाएँ। यदि नरवाई सघन हो जाती है तो बीज बाहर नहीं निकलते हैं।इसलिए नरवाई प्रकार डालने की जरुरत है जैसे वह स्वम् अपने आप गिर जाती है।
गेंहूँ और धान की फसल नत्रजन (यूरिया ) को खाने वाली फसलें हैं जबकि मूंग नत्रजन देने वाली फसलें रहती हैं दोनों के समन्वय से जैविक खादों की आपूर्ती हो जाती है। मूंग की फसल जब थोड़ी बड़ी हो जाती है । हम उसमे धान की क्ले से बनी बीज गोलियों को डाल देते हैं । गर्मियों में मूंग पक जाती है। धान की फसल तैयार होने लगती हैं।
ऋषि खेती में गेंहूँ की नरवाई और धान की पुआल को जहां का थान लोटा देने से बढ़ते क्रम में फसलें मिलती हैं। नरवाई एक और जहां बीजों को सुरक्षित करती हैं वहीं वो खरपतवार नियंत्रण और जलप्रबंधन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाती हैं। अंत में वह सड़ कर उत्तम जैविक खाद देती है कारण आगामी फसलों को कोई खाद की जरूरत नहीं रहती है।
नरवाई के ढकाव में फसलों में कोई रोग नहीं लगते हैं उदाहरण के लिए इल्लियां जब आती हैं भीतर रहने वाली छिपकलियां आदि उन्हें चट कर जाती हैं।
बिना जुताई की कुदरती खेती में जहां सिंचाई का साधन उपलब्ध है गर्मी की मूंग बहुत सहायक सिद्ध होती है
यह एक और जहां आर्थिक लाभ देती है वहींं खेतों में नत्रजन की मांग को भी पूरा कर देती है। इसका यह कारण है की इसकी जड़ों में नत्रजन (यूरिया ) सप्लाई करने वाले जीवाणु रहते हैं।
इसके लिए हमे गेंहूँ की नरवाई बिना बारीक की हुई की जरुरत रहती है सामन्यत : यह नरवाई हाइवेस्टर से प्राप्त हो जाती है अन्यथा हमे इसे पांव से चलने वाले थ्रेशर की सहायता से प्राप्त करने की जरुरत रहती है।
हम गेंहूँ की कटाई और गहाई के उपरांत मूंग के बीजों को जमीन पर सीधे फेंक कर उसके ऊपर गेंहूँ की नरवाई को इस प्रकार डाल देते हैं जिस से सूर्य की रोशनी के सहारे बीज अंकुरित होकर ऊपर आ जाएँ। यदि नरवाई सघन हो जाती है तो बीज बाहर नहीं निकलते हैं।इसलिए नरवाई प्रकार डालने की जरुरत है जैसे वह स्वम् अपने आप गिर जाती है।
गेंहूँ और धान की फसल नत्रजन (यूरिया ) को खाने वाली फसलें हैं जबकि मूंग नत्रजन देने वाली फसलें रहती हैं दोनों के समन्वय से जैविक खादों की आपूर्ती हो जाती है। मूंग की फसल जब थोड़ी बड़ी हो जाती है । हम उसमे धान की क्ले से बनी बीज गोलियों को डाल देते हैं । गर्मियों में मूंग पक जाती है। धान की फसल तैयार होने लगती हैं।
ऋषि खेती में गेंहूँ की नरवाई और धान की पुआल को जहां का थान लोटा देने से बढ़ते क्रम में फसलें मिलती हैं। नरवाई एक और जहां बीजों को सुरक्षित करती हैं वहीं वो खरपतवार नियंत्रण और जलप्रबंधन में महत्व पूर्ण भूमिका निभाती हैं। अंत में वह सड़ कर उत्तम जैविक खाद देती है कारण आगामी फसलों को कोई खाद की जरूरत नहीं रहती है।
नरवाई के ढकाव में फसलों में कोई रोग नहीं लगते हैं उदाहरण के लिए इल्लियां जब आती हैं भीतर रहने वाली छिपकलियां आदि उन्हें चट कर जाती हैं।
3 comments:
गेंहूँ की नरवाई किसे कहते है ?
सरसों के डंठल एबं भूसे को खेत में फैला कर भी क्या मूँग की खेती संभव है
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