भारत सरकार और म. प्र. सरकार की योजना
BCRLIP प्रशिक्षण
"जिओ और जीने दो "
ऋषि खेती फार्म होशंगाबाद म प्र।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। किन्तु आज़ादी के बाद से जब से देश में "हरित क्रांति " (आधुनिक वैज्ञानिक खेती ) का आगमन हुआ है तब से किसान अपनी तरक्की के लिए एक कोल्हू के बेल को तरह तथाकथित विकास की धुरी के इर्द गिर्द घूम रहा है। वह आस लगाये है की अब उसकी मंजिल आने वाली है।
किन्तु भूमि ,जल ,जैव विविधताओं के छरण के कारण उसकी मंजिल दिन दूनी रात चौगनी गति से दूर होती जा रही है। इस का सबसे अधिक प्रभाव हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। मौसम बिगड़ गया है ,सूखा बाढ़ और ज्वार भाटों से आने वाली मुसीबत अब सामान्य हो गयी है।
इसका सबसे बड़ा कारण है "वृक्ष विहीन खेती " है। मीलो तक खेतों में पेड़ नजर नहीं आते हैं किसान मोटे अनाज की खेती के लिए पेड़ों को दुश्मन समझ कर रहने नहीं दे रहे है। बरसात होती है पानी जमीन में नहीं जाता है वह अपने साथ जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है।
दूसरी और हमारा पर्यावरण एवं मौसम परिवर्तन विभाग वर्षों से खेतों में पेड़ लगाने हेतु प्रयास का रहा है वहीँ किसान पेड़ों को मशीन से उखड़वा रहे हैं। वन विभाग जंगलो के छेत्र को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनेक कार्य योजना चला रहा हैं जिसमे "सतपुरा टायगर प्रोजेक्ट " महत्व पूर्ण योजना है। जो होशंगाबाद और छिंदवाड़ा के बीच "टागर कॉरिडोर " के रूप में लाई गयी है। इसमें जंगलों के अंदर एवं बाहर ग्रामीणो की आजीविका के लिए पर्यावरणीय खेती को प्रोत्साहित करना है।
इस योजना का मूल उदेश्य गैरपर्या मित्र खेती को पर्या मित्र खेती में परिवर्तित करना है। जिस से जल ,जंगल और जमीन के बीच सामंजस्य स्थापित हो। इसमें शेर जब जंगल से निकले तो उसे कोई घबराहट न लगे की वह कहाँ आ गया। इसी प्रकार ग्रामीणो को भी शेर और हिरन से होने वाले नुक्सान का कोई भय नहीं रहे। वे उनसे अपने पालतू जानवरों की तरह प्रेम करें ,डरे नहीं ,मारे नहीं बल्कि उन्हें बचाएं।
यह एक सामाजिक पर्यामित्र योजना है जिसमे आमआदमी की भागीदारी की जरूरत है। जिस से हम विलुप्त होती अनेक जैव विविधताओं को संरक्षित कर सकें। जंगल और जमीन से जुडी तमाम जैव विवधताओं का हमारे जीवन और आजीविका से गहरा सम्बन्ध है। हम एक दुसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं।
किन्तु बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड रहा है की हम रोटी के खातिर जल ,जंगल और जानवरों को बहुत बे रहमी से मार रहे हैं। ऋषि खेती एक "सत्य और अहिंसा " पर आधारित जैवविविधताओं के संरक्षण से चलायी जा रही कुदरती रोटी आधारित योजना है।
BCRLIP सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा जैव विविधताओं के संरक्षण से ग्रामीण आजीविका को पोषित करने की योजना है जिसमे ऋषि खेती होशंगाबाद को एक सर्वोत्तम माडल माना गया है। इसलिए मध्य प्रदेश के सतपुरा टागर प्रोजेक्ट ने टाइटस फार्म में प्रशिक्षण का कार्य शुरू किया है। यह विश्व में अब तक किये जा रहे तमाम प्रयोगो से उत्तम प्रोजेक्ट सिद्ध हुआ है। इसके लिए हम म.प्र. सरकार को सलाम करते हैं।
हम जानते हैं की कुदरत हमारी माँ है वह हमे पाल सकती है यदि हम उसे जीने दें। इसके लिए "जिओ और जीने दो "के सिद्धांत पर अमल करने की जरूरत है। स्वान फ्लू , डेंगू ,मलेरिया , बर्ड फ्लू के दोषी बेचारे जानवर नहीं है। असली दोष तो हमारा है जिसने सीमेंट कंक्रीट के जंगलों के खातिर हरियाली को नस्ट कर दिया है। खेतों में चल रही जमीन की जुताई रासायनिक जहरों से पैदा रोटी,गैर कुदरती पानी ,और पेट्रोलियम से दूषित हवा इन बीमारियों का असली कारण है।
अभी कुछ दिनों से "सतपुरा टायगर प्रोजेक्ट " के अधिकारीयों और NGO के लोगों ने फार्म में पधारकर टाइटस फार्म के माडल को देखा और सराहा है अब वे किसानो को यहाँ पर भ्रमण करवा कर इस योजना से अवगत करवाएंगे। इसके बाद इस योजना को किसानो के खेतों में लागू करने की योजना है।
टाइटस ऋषि खेती फार्म एक निजी फार्म है जो इस योजना में स्वम् सेवा की भावना से सहयोग कर रहा है।
BCRLIP प्रशिक्षण
"जिओ और जीने दो "
ऋषि खेती फार्म होशंगाबाद म प्र।
भारत एक कृषि प्रधान देश है। किन्तु आज़ादी के बाद से जब से देश में "हरित क्रांति " (आधुनिक वैज्ञानिक खेती ) का आगमन हुआ है तब से किसान अपनी तरक्की के लिए एक कोल्हू के बेल को तरह तथाकथित विकास की धुरी के इर्द गिर्द घूम रहा है। वह आस लगाये है की अब उसकी मंजिल आने वाली है।
किन्तु भूमि ,जल ,जैव विविधताओं के छरण के कारण उसकी मंजिल दिन दूनी रात चौगनी गति से दूर होती जा रही है। इस का सबसे अधिक प्रभाव हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। मौसम बिगड़ गया है ,सूखा बाढ़ और ज्वार भाटों से आने वाली मुसीबत अब सामान्य हो गयी है।
जुताई नहीं ,रासायनिक उर्वरक नहीं ,कीट नाशक नहीं ,खरपतवार नाशक नहीं ,धान के गड्डे बनाना नहीं , पेड़ों और खरपतवारों के संग गेंहूँ और चावल की खेती |
इसका सबसे बड़ा कारण है "वृक्ष विहीन खेती " है। मीलो तक खेतों में पेड़ नजर नहीं आते हैं किसान मोटे अनाज की खेती के लिए पेड़ों को दुश्मन समझ कर रहने नहीं दे रहे है। बरसात होती है पानी जमीन में नहीं जाता है वह अपने साथ जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है।
दूसरी और हमारा पर्यावरण एवं मौसम परिवर्तन विभाग वर्षों से खेतों में पेड़ लगाने हेतु प्रयास का रहा है वहीँ किसान पेड़ों को मशीन से उखड़वा रहे हैं। वन विभाग जंगलो के छेत्र को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अनेक कार्य योजना चला रहा हैं जिसमे "सतपुरा टायगर प्रोजेक्ट " महत्व पूर्ण योजना है। जो होशंगाबाद और छिंदवाड़ा के बीच "टागर कॉरिडोर " के रूप में लाई गयी है। इसमें जंगलों के अंदर एवं बाहर ग्रामीणो की आजीविका के लिए पर्यावरणीय खेती को प्रोत्साहित करना है।
इस योजना का मूल उदेश्य गैरपर्या मित्र खेती को पर्या मित्र खेती में परिवर्तित करना है। जिस से जल ,जंगल और जमीन के बीच सामंजस्य स्थापित हो। इसमें शेर जब जंगल से निकले तो उसे कोई घबराहट न लगे की वह कहाँ आ गया। इसी प्रकार ग्रामीणो को भी शेर और हिरन से होने वाले नुक्सान का कोई भय नहीं रहे। वे उनसे अपने पालतू जानवरों की तरह प्रेम करें ,डरे नहीं ,मारे नहीं बल्कि उन्हें बचाएं।
यह एक सामाजिक पर्यामित्र योजना है जिसमे आमआदमी की भागीदारी की जरूरत है। जिस से हम विलुप्त होती अनेक जैव विविधताओं को संरक्षित कर सकें। जंगल और जमीन से जुडी तमाम जैव विवधताओं का हमारे जीवन और आजीविका से गहरा सम्बन्ध है। हम एक दुसरे के बिना जीवित नहीं रह सकते हैं।
किन्तु बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड रहा है की हम रोटी के खातिर जल ,जंगल और जानवरों को बहुत बे रहमी से मार रहे हैं। ऋषि खेती एक "सत्य और अहिंसा " पर आधारित जैवविविधताओं के संरक्षण से चलायी जा रही कुदरती रोटी आधारित योजना है।
BCRLIP सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के द्वारा जैव विविधताओं के संरक्षण से ग्रामीण आजीविका को पोषित करने की योजना है जिसमे ऋषि खेती होशंगाबाद को एक सर्वोत्तम माडल माना गया है। इसलिए मध्य प्रदेश के सतपुरा टागर प्रोजेक्ट ने टाइटस फार्म में प्रशिक्षण का कार्य शुरू किया है। यह विश्व में अब तक किये जा रहे तमाम प्रयोगो से उत्तम प्रोजेक्ट सिद्ध हुआ है। इसके लिए हम म.प्र. सरकार को सलाम करते हैं।
हम जानते हैं की कुदरत हमारी माँ है वह हमे पाल सकती है यदि हम उसे जीने दें। इसके लिए "जिओ और जीने दो "के सिद्धांत पर अमल करने की जरूरत है। स्वान फ्लू , डेंगू ,मलेरिया , बर्ड फ्लू के दोषी बेचारे जानवर नहीं है। असली दोष तो हमारा है जिसने सीमेंट कंक्रीट के जंगलों के खातिर हरियाली को नस्ट कर दिया है। खेतों में चल रही जमीन की जुताई रासायनिक जहरों से पैदा रोटी,गैर कुदरती पानी ,और पेट्रोलियम से दूषित हवा इन बीमारियों का असली कारण है।
अभी कुछ दिनों से "सतपुरा टायगर प्रोजेक्ट " के अधिकारीयों और NGO के लोगों ने फार्म में पधारकर टाइटस फार्म के माडल को देखा और सराहा है अब वे किसानो को यहाँ पर भ्रमण करवा कर इस योजना से अवगत करवाएंगे। इसके बाद इस योजना को किसानो के खेतों में लागू करने की योजना है।
टाइटस ऋषि खेती फार्म एक निजी फार्म है जो इस योजना में स्वम् सेवा की भावना से सहयोग कर रहा है।
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