जंगल और खेतों की लड़ाई को थामने में कुदरती खेती का योगदान
भारतीय पम्परागत प्राचीन खेती किसानी में जब अटाटूट जंगल थे उस समय खेती ,पशु पालन और जंगलों में एक समन्वय स्थापित रहता था। किसान पशु पालन और वनो के सहारे हजारों साल टिकाऊ खेती करते रहे हैं। किन्तु जब से विज्ञान के सहारे फसलोत्पादन ,पशु पालन और वनीकरण की शुरुवाद हुई है तब से खेती ,जंगल और पशु पालन अलग अलग विषय बन गए हैं जिनमे परस्पर असहयोग पनप रहा है।
एक और जहाँ किसानो के पशुओं से जंगलों को खतरा होने लगा है वहीं वन्य जीवों से फसलों को नुक्सान हो रहा है। दोनों एक दुसरे को प्रतबंधित कर रहे हैं। वनो से ग्रामीण आबादी को हटाया जा रहा है उन्हें गैर संरक्षित छेत्रों में स्थापित किया जा रहा है। इसी प्रकार किसानो के खेतो की फसलों में जंगली जानवरों के नुकसान को रोकने के अनेक उपाय खोजे जा रहे है।
हम पिछले करीब तीन दशकों से बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं इस खेती में तमाम जमीन से जुडी जैव विवधताओं जैसे पेड़ पौधे ,जीव जंतु ,कीड़े मकोडे ,पालतू जानवर ,और आँखों से नहीं दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं आदि को बचाते हुए फसलों का उत्पादन किया जाता है। यह जैव विविधतायें फसलोत्पादन में अहम भूमिका निभाती हैं। आज तक हमने इनमे कोई लड़ाई नहीं देखी है। इतना ही नहीं हमारे इन खेतों में खतपरवार और फसलों की बीमारियों के कीड़ों की कोई समस्या नहीं है वरन उनका रहना बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है।
https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=-aoKA2OtuGA
कुदरती खेती खेतों में अपने आप पनपने वाली वनस्पतियों जिन्हे आमतौर पर खरपतवार या नींदा कहा जाता है , महत्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं। इनके ीचे असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,केंचुए ,दीमक ,चीटियाँ आदि रहते हैं जो जमीन को उपजाऊ ,नम और छिद्रित बना देते हैं। जिनके सहारे बम्पर फैसले पैदा होती हैं। इतना बखूबी होता है की कोई भी वैज्ञानिक तरीका ऐसा नहीं कर सकता है। पेड़ों के कारण खेत और अधिक उपजाऊ हो जाते हैं।
https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=oC2DwiqJBu8
हमारे खेतों में अनेक जंगली जानवर जैसे सूअर ,नेवले सांप ,मोर आदि सहज ही देखे जा सकते है ये हमारी फसलों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते है।
हमारा मानना है की भारी मशीने से की जाने वाली जमीन की जुताई और जहरीले रसायनो के कारण जंगली जैवविवधताएं गुस्सा हो जाती हैं इसलिए वे नुक्सान करने लगती है किसान इनको मारने के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं जिस से दुश्मनी बन जाती है।
बिना मशीनी जुताई और जहरीले रसायनो के उपयोग नहीं करने के कारण जंगली जैवविवधताओं को खेत अपने घर जैसे लगते हैं इसलिए वो हमे भी अपना दोस्त समझने लगते हैं। ना तो हम उनसे डरते हैं ना वो हम से डरते हैं।
कुदरती खेतों में हरियाली और तमाम जंगली जैव विवधताओं के बीच एक कुदरती संतुलन रहता है जिस से फसलों का कोई नुक्सान नहीं होता है।
भारतीय पम्परागत प्राचीन खेती किसानी में जब अटाटूट जंगल थे उस समय खेती ,पशु पालन और जंगलों में एक समन्वय स्थापित रहता था। किसान पशु पालन और वनो के सहारे हजारों साल टिकाऊ खेती करते रहे हैं। किन्तु जब से विज्ञान के सहारे फसलोत्पादन ,पशु पालन और वनीकरण की शुरुवाद हुई है तब से खेती ,जंगल और पशु पालन अलग अलग विषय बन गए हैं जिनमे परस्पर असहयोग पनप रहा है।
एक और जहाँ किसानो के पशुओं से जंगलों को खतरा होने लगा है वहीं वन्य जीवों से फसलों को नुक्सान हो रहा है। दोनों एक दुसरे को प्रतबंधित कर रहे हैं। वनो से ग्रामीण आबादी को हटाया जा रहा है उन्हें गैर संरक्षित छेत्रों में स्थापित किया जा रहा है। इसी प्रकार किसानो के खेतो की फसलों में जंगली जानवरों के नुकसान को रोकने के अनेक उपाय खोजे जा रहे है।
हम पिछले करीब तीन दशकों से बिना जुताई की कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे हैं इस खेती में तमाम जमीन से जुडी जैव विवधताओं जैसे पेड़ पौधे ,जीव जंतु ,कीड़े मकोडे ,पालतू जानवर ,और आँखों से नहीं दिखाई देने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं आदि को बचाते हुए फसलों का उत्पादन किया जाता है। यह जैव विविधतायें फसलोत्पादन में अहम भूमिका निभाती हैं। आज तक हमने इनमे कोई लड़ाई नहीं देखी है। इतना ही नहीं हमारे इन खेतों में खतपरवार और फसलों की बीमारियों के कीड़ों की कोई समस्या नहीं है वरन उनका रहना बहुत लाभप्रद सिद्ध हुआ है।
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कुदरती खेती खेतों में अपने आप पनपने वाली वनस्पतियों जिन्हे आमतौर पर खरपतवार या नींदा कहा जाता है , महत्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं। इनके ीचे असंख्य जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े ,केंचुए ,दीमक ,चीटियाँ आदि रहते हैं जो जमीन को उपजाऊ ,नम और छिद्रित बना देते हैं। जिनके सहारे बम्पर फैसले पैदा होती हैं। इतना बखूबी होता है की कोई भी वैज्ञानिक तरीका ऐसा नहीं कर सकता है। पेड़ों के कारण खेत और अधिक उपजाऊ हो जाते हैं।
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हमारे खेतों में अनेक जंगली जानवर जैसे सूअर ,नेवले सांप ,मोर आदि सहज ही देखे जा सकते है ये हमारी फसलों को कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते है।
हमारा मानना है की भारी मशीने से की जाने वाली जमीन की जुताई और जहरीले रसायनो के कारण जंगली जैवविवधताएं गुस्सा हो जाती हैं इसलिए वे नुक्सान करने लगती है किसान इनको मारने के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हैं जिस से दुश्मनी बन जाती है।
बिना मशीनी जुताई और जहरीले रसायनो के उपयोग नहीं करने के कारण जंगली जैवविवधताओं को खेत अपने घर जैसे लगते हैं इसलिए वो हमे भी अपना दोस्त समझने लगते हैं। ना तो हम उनसे डरते हैं ना वो हम से डरते हैं।
कुदरती खेतों में हरियाली और तमाम जंगली जैव विवधताओं के बीच एक कुदरती संतुलन रहता है जिस से फसलों का कोई नुक्सान नहीं होता है।
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