Tuesday, February 24, 2015

हमे स्मार्ट सिटी नहीं स्मार्ट खेत चाहिए

हमे स्मार्ट सिटी नहीं स्मार्ट खेत चाहिए  


ये जल जंगल जमीन  पर आश्रित आत्म निर्भर कुदरती(स्मार्ट ) खेती के  किसान लोग हैं .ये सभी एकता परिषद् की पद यात्रा कर राज्गोपल्जी के नेतृत्व में अहिंसात्मक आन्दोलन करते हैं. ये महानगरों की चकाचोंध और तथा कथित "विकास" से कोसों दूर हैं .ये आम शहरी लोगों की  तरह सरकार पर आश्रित नहीं हैं .ये कुछ मांगते नहीं हैं ये अपनी  जमीन,जल ,जंगल से प्यार करते हैं . उसकी पूजा करते हैं उसे खराब  नहीं करते वरन संजोते हैं .ये विकसित हैं .बिना बिजली और पेट्रोल के रहना जानते हैं .अंग्रेजी राज  के समय से आज तक ये अपने को  बचाए हुए हैं। किन्तु अभी कुछ सालो से इनकी आजीविका को खतरा हो गया है।

 इनके जल, जंगल और जमीन को अनेक गेर पर्यावरणीय योजनाओ के तहत छीना जा रहा है।
कभी बड़े बांध की योजना आती है ,कभी सड़क की योजना आती है ,कभी बिजली  घर बनाने की योजना आती है ,कभी अस्पताल ,स्कूलों की योजना के नाम पर  ,कभी टायगर प्रोजेक्ट के लिए कभी  नॅशनल पार्क के लिए योजनाये आती रहती है। खदानों के लिए आदि इनकी जमीने छीनी जा रही हैं।

क्यों इनकी जमीन ही छीनी जा रही हैं ? असल में इनकी जमीने इनकी कुदरती खेती के कारण जलवायू की नजर में तथाकथित विकसित जमीनों की तुलना में बहुत उम्दा हैं जबकि विकसित  छेत्रों की जमीने अब मरुस्थल में तब्दील हो गयी हैं। वहां के किसान अब आत्महत्या करने लगे हैं। विकास तो केवल बहाना है।

पिछली कांग्रेस की सरकार भी आज की सरकार की तर्ज पर विकास कर रही थी इसलिए इन आदिवासियों ने सरकार पर दबाव डाल कर उनसे भूमि अधिग्रहण  बिल को ठीक करवाया था किन्तु नयी सरकार ने आते ही इस कानून को पलट दिया।  इस कारण बेचारे ये आदिवासी फिर से पद यात्रा कर आज दिल्ली आये हैं।

असल में आज कल पूँजीपति लोग सरकार को बनवाने और सरकार को गिरवाने में अहम् भूमिका निभाते हैं।  ये पूँजी पति लोग फिर सरकार  पर दबाव डाल कर अपना उल्लू  सीधा करते रहते हैं और ये सारा काम आमदमी के विकास के नाम पर  किया जाता है। यह विकास नहीं भयानक विनाश है।

मोजूदा सरकार ने अमेरिका की नक़ल से "स्मार्ट" शब्द लाया है वह सभी विकसित शहरों को स्मार्ट शहर बनाना  चाहती है जिसके लिए उसे  निजी जमीनों को अधिग्रहित करने की जरूरत है।इसलिए  वह इस कानून को बदलना चाहती है। जिस से निजी कंपनियों को रोजगार मिले और खूब कमीशन बटोरा जा सके। इसके लिए सरकार गरीबों के कल्याण की बात करने लगी है। 

हमारा कहना है की यदि सरकार सच में गरीबों का कल्याण करना चाहती है तो उसे "स्मार्ट " सिटी के बदले "स्मार्ट खेती" को बढ़ावा देना चाहिए। जैसा  ये आदिवासी लोग कर रहे हैं। ये कुदरती तरीके से जल ,जंगल को बचाते हुए अपनी आजीविका चलाते हैं। ये पानी ,बिजली ,पेट्रोल, मशीने और जहरीले रसायनों का उपयोग नहीं करते हैं। इनकी खेती करने की तकनीक हर हाल में अमेरिका और पंजाब की खेती से अधिक गुणवत्ता और उत्पादकता वाली है।

आधुनिक वैज्ञानिक सिचित खेती जो हरित क्रांति के नाम से जानी जाती है असल में" मरु खेती" है इसके कारण
स्वान फ़्लू ,केंसर ,बेरोजगारी ,भुखमरी ,सूखा और बाढ़ जेसी अनेक समस्याए हैं। गुजरात जेसे विकसित प्रदेश में" स्वास्थ  मंत्रीजी जी " स्वान फ्लू से पीड़ित हैं। दिल्ली जेसे विकसित कहे जाने वाले प्रदेश में AC में लोग मास्क लगाये बेठे हैं जबकि ये "स्मार्ट खेती के किसान" एक समय खाना खाकर ,१५ कम प्रतिदिन चलकर ,भरी ठण्ड में सड़कों पर सोकर निरोग आये  हैं और निरोग जायेंगे। ये कुदरती आवोहवा और खाना खाते हैं।

असल में जब से "मरू खेती "का असर  दिखाई देना शुर हुआ है तब से  मरू खेती के किसान जमीन को सरकार को ऊंची कीमत पर टिकाना चाहते हैं।  ये एक बहुत बड़ी मिलीजुली चाल है जिसे हमे समझने की जरूरत है। उसका कारण यह है की ये मरू खेती अब घाटे का सौदा बन गयी है।

किन्त सरकार यदि ईमनदारी से" मरू खेती" को स्मार्ट खेती में तब्दील करने पर ध्यान दे   तो अपने आप देश की आर्थिक ,सामाजिक ,पर्यावरणीय और अध्यात्मिक स्थित में सुधार आ  जायेगा। जिस से सरकार के कुल खर्च में आधे की बचत निश्चित है। उसे विकास के नाम पर  विश्व बैंक से कर्ज लेने की कोई  जरूरत नहीं है।
स्मार्ट खेती पेड़ों के नीचे बिना जुताई ,खाद ,दवाई गेंहूं की खेती

हमारा देश पढ़े लोगों नोजवानो  का देश है उन्हें स्मार्ट सिटी का सपना अच्छा लग सकता है किन्तु उन्हें पहले कोई स्मार्ट  सिटी के माडल को देखने की जरूरत है पूरी दुनिया में एक भी स्मार्ट सिटी नहीं है जहाँ इन आदिवासियों की तरह कुदरती आवोहवा और ,आहार  उपलब्ध हो।  यह एक धोका है।

अनेक लोग महानगरीय रहन सहन के कारण बीमार हो जाते हैं वे  कुदरती रहन सहन खान पान से बिलकुल  ठीक हो जाते हैं। केंसर ,स्वान फ्लू ,डेंगू, मलेरिया आदि बीमारियों का स्मार्ट खेती को कोई नहीं जाता है।
इसलिए हमारा कहना है की हमे स्मार्ट सिटी नहीं स्मार्ट खेती चाहिए।

 

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