Friday, February 21, 2014

हमारी रोटी हुई गुलाम


आज़ादी की दूसरी लड़ाई 

हमारी रोटी हुई गुलाम 

सन्दर्भ : कुदरती खेती 

पहली आज़ादी की लड़ाई "ईस्टइंडिआ कंपनी" के खिलाफ लड़ी गयी थी अब दूसरी आज़ादी की लड़ाई मल्टीनेशनल कंपनियों के खिलाफ लड़ी जा रही है.

असली भारत गांवों में बसता है. गांव खेती किसानी पर निर्भर हैं. प्राचीन भारतीय खेती किसानी हमारे पर्यावरण पर आश्रित आत्म निर्भर थी.किन्तु आजकल की खेती आयातित तेल की गुलाम हो गयी है जिसकी डोर मल्टीनेशनल कंपनियों के हाथ में है. ये मल्टीनेशनल कम्पनियाँ देशी और विदेशी कंपनियों की साथ गांठ से चल रही हैं जिन्हे पूरी तरह हमारी सरकारों ने छूट दे रखी है. ये सरकारें इन कम्पनियों को बहुत ही रियायती दर पर जमीने और सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं. जिसके कारण ये कम्पनियाँ बेशुमार धन कमा रही हैं.

यह बहुत बड़ा भ्रस्टाचार है.

 प्राचीन भारतीय खेती किसानी पूरी तरह  तरह मौसम पर निर्भर रहती थी. मौसम हरियाली पर निर्भर रहता था. किसान भरपूर फसलों को अपनी आवश्यकता  के अनुसार पैदा करता था जिसे वह अपने गांव वासियों के साथ मिल बांटकर कर उपयोग करता था गांव वासी लोग अनेक दुसरे कामों में हाथ बटाते थे.

आजकाल की खेती मशीनो और रसायनो से होती है. मशीने तेल से चलती हैं रसायन गैस से बनते हैं. इन दोनों पदार्थों के बिना आजकल हमारी रोटी ना तो पैदा होती है ना ही पकती है. असल में हमारी रोटी पेट्रोल की गुलाम हो गयी है. यह पेट्रोल लुप्त प्राय: है इसके उपयोग से भयानक प्रदुषण फेल रहा है.

कुदरती फसलों के बीज 
हम पिछले 27 सालों से बिना जुताई की कुदरती खेती कर रहे हैं जिसमे मशीने और रसायनो की कोई जरुरत नहीं है. उत्पादकता और गुणवत्ता ओधोगिक खेती से बहुत अधिक है. इस खेती का आविष्कार जापान के कृषि वैज्ञानिक श्री मास्नोबू फुकुओकाजी ने किआ था जिनके फार्म पर यह खेती आज भी ८० साल के बाद सफलता पूर्वक चल रही है.

आजकल चुनाव विकास के नाम पर लड़ा जाता है जबकी ये विकास नहीं विनाश है जिस से हमारी रोटी गुलाम हो गयी है.कल यदी हमे पेट्रोल नहीं मिला तो हम भूखे मर जायेंगे।

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