Tuesday, February 18, 2014

भ्रस्टाचार मुक्त भारत का निर्माण

खेती में चल रहा भ्रस्टाचार सर्वोपरी है। 

जमीन की जुताई (टिलिंग ) से मरुस्थल पनप रहे हैं। 
जुताई नहीं ,खाद नहीं ,दवाई नहीं फुकुओकाजी  कुदरती खेती के किसान
कुदरती गेंहूं की फसल दिखाते हुए पैदावार चार टन प्रति एकड़ 

भारतीय प्राचीन परंपरागत खेती किसानी में जब जुताई के कारण खेत सूखने लगते थे वे उसको पड़ती कर दिया करते थे. आज भी ऋषि पंचमी के पर्व में बिनाजुताई के सेवन को पवित्र माना जाता है और सूखते खेतों कि निशानी कांस घांस की पूजा की जाती है. कमजोर सूखते खेतों को पड़ती छोड़ देने से कुदरत उनको पुन : पानीदार और ताकतवर बना देती है. किन्तु जबसे व्यवसायिक औद्धोगिक खेती का चलन शुरू हुआ है खेतों की जुताई भारी मशीनो से बार बार की जाती है जिस से खेत मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं.

जब फसलोत्पादन के लिए खेतों को बखरा या जोता जाता है उनकी बारीक बखरी मिट्टी तमाम बरसात के पानी को जमीन के अंदर ले जाने वाले मुहानों जेसे केंचुओं,चीटियों,चूहों,आदि के घरों को बंद कर देती है यह मिट्टी बरसात के पानी से मिलकर कीचड में तब्दील हो जाती है जिस के कारण पानी तेजी से बहता है साथ में खेतों की उपजाऊ मिट्टी को भी बहा कर ले जाता है जिस से खेत मरुस्थल में तब्दील हो जाते हैं.

जापान के विश्वविख्यात कुदरती खेती के किसान और जाने माने कृषि वैज्ञानिक स्व मस्नोबू फुकुओकाजी ने उनके खेतों में ६० सालों से अधिक समय तक  कुदरती खेती को कर के दुनिया को बता दिया कि खेती चल रही जमीन की जुताई ,रसायनो ,कम्पोस्ट ,कीट नाशकों ,खरपतवार नाशकों , समतलीकरण ,जी.एम. बीजों ,भारी मशीनो ,भारी सिंचायी ,जैव टॉनिकों ,अमृत मिट्टी पानी आदि सब गेर जरूरी हैं. इनका उपयोग भ्रस्टाचार के आलावा कुछ नहीं है। 

1985 में जब हमने पहली मर्तबा फुकुओकाजी की जग प्रसिद्ध किताब " The One Straw Revolution" को पढ़ा तो पहली मरतबा हमे विश्वाश नहीं हुआ हमने उसे नकारते हुए वैज्ञानिक खेती में और जोर लगाया और उलटे मुंह आ गिरे। जबसे हमने अपने खेतों में जुताई, खाद ,दवाइयों का उपयोग बिलकुल बंद कर दिया है 27 सालों से हम इस खेती को सफलता पूर्वक कर रहे है. जिसे हम ऋषि खेती के नाम से पुकारते हैं.
बिना जुताई की कुदरती खेती का परिचय लेखक मासानोबू फुकुओका जापान 


ऐसा नहीं है कि खेती के विशेषज्ञों को इस बात की जानकारी नहीं है किन्तु खेती की मशीनो ,उर्वरकों ,दवाइयों को बनाने वाली कंपनियों को लाभ पहुचाने के खातिर कुदरती खेती को बढ़ावा नहीं दिया जा रहा है. इन दिनों अमेरिका में " No -Till Farming " बड़े पैमाने पर की जाने लगी है. इस खेती को वहाँ की किसान यूनियन और सरकार मौसम परिवर्तन  और  ग्लोबल वार्मिंग को थामने के उदेश्य से बढ़ावा दे रही है बिना जुताई के किसानो को अनुदान दिया जाता है. इस से किसानो को बहुत  लाभ मिलता है खेती की लागत कम हो जाती है जमीने ताकतवर और पानीदार होती जा रही हैं, कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और उत्पादकता में बढ़ोतरी हो रही है ,किसानो के बच्चे खेती करने लगे हैं ,सूखा और बाढ़ नियंत्रित हुआ है.

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है खेती को आत्म निर्भर बनाये हम देश के विकास की कल्पना नहीं कर सकते हैं. आज़ादी के बाद से किसी भी सरकार ने खेती को आत्म निर्भर बनाने के लिए कुछ नहीं किया ऐसा भ्रस्टाचार के चलते नहीं हो सका है. अब देश में भ्रस्टाचार मुक्त भारत निर्माण की बात की जाने लगी है हम इस का स्वागत करते हैं तथा अनुरोध करते हैं कि इस मुहीम को बिना जुताई की कुदरती खेती से शुरू कर तमाम गैरजरूरी खेती की मशीनो और जहरीले रसायनो पर रोक लगाई जाये।

राजू टाइटस
कुदरती खेती के किसान
होशंगाबाद। म. प्र. 461001
rajuktits@gmail.com. mobile 9179738049 

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