अन्नाजी और केजरीवालजी |
अन्नाजी ,आमआदमी पार्टी और ममताजी
भारतीय सामाजिक आंदोलनो की श्रंखला में अन्नाजी का अहिंसात्मक भ्रस्टाचार उन्मूलन का आंदोलन जो दिल्ली में आयोजित किया गया था ने एक ऐतहासिक छाप छोड़ी है. इसी आंदोलन को केजरीवालजी ने आमआदमी पार्टी बना कर राजनेतिक आंदोलन में तब्दील कर दिया है. दोनों आंदोलन की राह एक है किन्तु दोनों अलग हो जाने से बेचैन हैं. अन्नाजी का कहना है कि मै कभी राजनीती से नहीं जुड़ा मै उसे कीचड मानता हूँ। दलगत पार्टियां पैसे से सत्ता हासिल करती हैं फिर सत्ता से पैसा कमाती हैं. जबकि केजरीवालजी का कहना है कि राजनीती कीचड जरुर बन गयी है किन्तु यदी इस में घुसा ना जाये इस कीचड को साफ़ नहीं किया जा सकता है.
इस कारण आज अन्नाजी और केजरीवालजी भ्रस्टाचार उन्मूलन के आंदोलन में अलग अलग हो गए हैं और करीब आने के लिए बेहद बेचेन हैं.अन्नाजी चाहते हैं केजरीवाल और उनके सभी साथी राजनीति को छोड़कर फिर से अन्ना टीम में शामिल हो जाएँ और केजरीवालजी चाहते हैं कि अन्नाजी साथ मिलकर "आमआदमी " पार्टी को समर्थन करने लगें तो हम मिलकर इस आंदोलन को पहले से और अधिक तेजी प्रदान कर सकते हैं. दोनों अपनी जगह सही हैं.
किन्तु इस से आम अन्नाजी और केजरीवालजी के समर्थक जो ईमानदारी और सच्चाई में विश्वाश रखते हैं और उन के साथ जुड़े हैं बेहद असमंजस की स्थिति में हैं. एक ओर आम जनता की रोजमर्रा की आवशकताओं के लिए उन्हें प्रशाषन से जूझना पड़ता हैं वहीं भ्रस्टाचार के कारण उनका जीना दूभर हो रहा है. दूसरा राजनेताओं पर कोई अंकुश नहीं रहने से वे खुल कर दोनों हाथों से लूटते हैं. जबकी लोकतंत्र में राजनीती समाज सेवा का ही नाम है. केजरीवालजी का कहना है कि आप बाहर से कितना आंदोलन करें भ्रस्टाचारियों पर कोई असर नहीं पड़ता है. इस लिए गंदी राजनीति को साफ़ करने के लिए उसमे घुस कर ही काम करने की जरुरत है और वे इस ओर मुड़ गए हैं और पलटकर देखना नहीं चाहते हैं. अन्नाजी बेचारे केजरीवालजी के बिना असहाय महसूस करने लगे है. किन्तु अब वे ममता जी के लिए काम करने का मन बना रहे हैं.
ये संकेत है कि अन्नाजी केजरीवालजी की बात से कुछ हद तक सहमत हो गए हैं. अब वे ममताजी के लिए काम करें या आमआदमी पार्टी के लिए काम, काम तो अहिंसातमक भ्रस्टाचार उन्मूलन के लिए होगा जिसका फायदा आमआदमी को मिलेगा जो आंदोलन का लक्ष्य है.
किन्तु इस आंदोलन में किरण बेदीजी अन्नाजी से अलग हो जाएंगीं क्यों कि उन्होंने मोदीजी को समर्थन करने का मन बना लिया है.
अन्नाजी मोदीजी की नीतियों से खुश नहीं हैं उनका कहना है कि देश का विकास स्थाई ग्रामीण विकास के बिना असम्भव है. स्थाई ग्रामीण विकास की नीव स्थाई खेती किसानी पर टिकी है जब तक खेत और किसान का विकास नहीं होता देश का विकास भी नहीं हो सकता है.
दूसरी तरफ केजरीवालजी का कहना है कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों बहुरास्ट्रीय कम्पनियों के गुलाम हो गए हैं ये कम्पनियाँ इन दोनों को चंदे के रूप में खूब काला धन मुहैया करती हैं बाद में जो भी जीत जाये उनसे अपने धंदे में खुल कर फायदा लेती हैं इसलिए जब तक इस में रोक नहीं लगती देश का विकास नहीं हो सकता है जो भी विकास होगा वह केवल और केवल कम्पनियों का ही होगा।
विकास की ये दो अवधारणाएं हैं एक अन्नाजी की है दूसरी केजरीवालजी की है. किन्तु आमआदमी के लिए सबसे पहला सवाल रोटी ,कपडे और मकान का है. वह चाहे किसान हो ,मज़दूर हो या स्टूडेंट हो समस्या यहीं आकर रुक जाती है हम अपनी तुरंत की समस्याओं के समाधान को राजनीती में तलाशते हैं और राजनेता लोग समस्याओं को हल करने के बहाने हमे बेफकूफ बना कर वोट ले जाते हैं.
सब ये कहते हैं यदी आमआदमी जाग जायेगा तो सब ठीक का हो जायेगा पर आमआदमी जागते हुए भी इतना भ्रमित है कि उसे नहीं पता कि वह किसका समर्थन करे. अन्नाजी का करे कि केजरीवालजी करे या मोदीजी या कांग्रेस का करे या ममताजी का करे या नोटा का करे.
अब हम आमआदमियों को फैसला करने का मौका मिला है इस लिए हमे सोच समझ कर फैसला करना पड़ेगा कि हम भ्रस्टाचार का साथ दें या ईमानदारी का साथ दें. ये लड़ाई असल में भारत और इंडिया के बीच हो गयी है, ये लड़ाई हमारे पर्यावरण और विकास के बीच आन खड़ी हो गयी है, ये लड़ाई सत्य और असत्य के बीच और हिंसा और अहिंसा के बीच हो रही है,ये लड़ाई गुलामी और आज़ादी में बदल गयी है.
हमे आज गांधीजी का अहिंसातमक आज़ादी का आंदोलन याद आ रहा है आज़ादी के बाद जब देश के स्थाई विकास का प्रश्न आया था तब भी विकास की लड़ाई इसी प्रकार दो धड़ों में बंट गयी थी. एक धड़ा औधौगिक विकास की बात कर रहा था तो दूसरा पर्यावरणीय विकास चाहता था. जीत ओधौगिक विकास की हुई. केजरीवालजी का कहना सही है चाहे मोदीजी आये या राहुलजी आयें हालत में कोई सुधार नहीं होगा यही अन्नाजी का भी कहना है. किन्तु ममताजी का कहना है कि वे अन्नाजी के बताये मार्ग पर चलेंगी अच्छा संकेत है. केजरीवालजी भी अन्नाजी के बताये मार्ग पर आ सकते हैं जिसमे बिना भ्रस्टाचार मुक्त विकास हो,जहाँ पर्यावरण के आधार पर विकास हो ,जहाँ इंडिया भारत एक घाट पर पानी पियें।
आज़ादी के बाद जब गांधीजी नहीं रहे थे तब उनके परमशिष्य विनोबाजी ने देश के स्थाई विकास के लिए सर्वोदय आंदोलन चलाया था यह आंदोलन ऋषि खेती पर केंद्रित था किन्तु उन दिनों के योजनाकारों ने इसे अस्वीकार कर दिया था जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं यदी आज इस योजना को लागु कर दिया जाये तो बिना खर्च देश भ्रस्ट गुलामी से आज़ाद हो सकता है.
हम पिछले २७ सालों ऋषि खेती को करते हुए सुकून की नींद सो रहे हैं.
आज समय आ गया है कि हमे जहरीली रोटी ,पानी और हवा चाहिए या कुदरती खान,पान के साथ सुकून की नींद चाहिए। ये चुनाव निर्णायक सिद्ध होने वाला है क्योंकी इसमें अब केजरीवाल अकेले नहीं है गांधीवादी अन्नाजी भी इसमें शामिल हो गए हैं.
इस कारण आज अन्नाजी और केजरीवालजी भ्रस्टाचार उन्मूलन के आंदोलन में अलग अलग हो गए हैं और करीब आने के लिए बेहद बेचेन हैं.अन्नाजी चाहते हैं केजरीवाल और उनके सभी साथी राजनीति को छोड़कर फिर से अन्ना टीम में शामिल हो जाएँ और केजरीवालजी चाहते हैं कि अन्नाजी साथ मिलकर "आमआदमी " पार्टी को समर्थन करने लगें तो हम मिलकर इस आंदोलन को पहले से और अधिक तेजी प्रदान कर सकते हैं. दोनों अपनी जगह सही हैं.
किन्तु इस से आम अन्नाजी और केजरीवालजी के समर्थक जो ईमानदारी और सच्चाई में विश्वाश रखते हैं और उन के साथ जुड़े हैं बेहद असमंजस की स्थिति में हैं. एक ओर आम जनता की रोजमर्रा की आवशकताओं के लिए उन्हें प्रशाषन से जूझना पड़ता हैं वहीं भ्रस्टाचार के कारण उनका जीना दूभर हो रहा है. दूसरा राजनेताओं पर कोई अंकुश नहीं रहने से वे खुल कर दोनों हाथों से लूटते हैं. जबकी लोकतंत्र में राजनीती समाज सेवा का ही नाम है. केजरीवालजी का कहना है कि आप बाहर से कितना आंदोलन करें भ्रस्टाचारियों पर कोई असर नहीं पड़ता है. इस लिए गंदी राजनीति को साफ़ करने के लिए उसमे घुस कर ही काम करने की जरुरत है और वे इस ओर मुड़ गए हैं और पलटकर देखना नहीं चाहते हैं. अन्नाजी बेचारे केजरीवालजी के बिना असहाय महसूस करने लगे है. किन्तु अब वे ममता जी के लिए काम करने का मन बना रहे हैं.
ममताजी |
ये संकेत है कि अन्नाजी केजरीवालजी की बात से कुछ हद तक सहमत हो गए हैं. अब वे ममताजी के लिए काम करें या आमआदमी पार्टी के लिए काम, काम तो अहिंसातमक भ्रस्टाचार उन्मूलन के लिए होगा जिसका फायदा आमआदमी को मिलेगा जो आंदोलन का लक्ष्य है.
किन्तु इस आंदोलन में किरण बेदीजी अन्नाजी से अलग हो जाएंगीं क्यों कि उन्होंने मोदीजी को समर्थन करने का मन बना लिया है.
अन्नाजी मोदीजी की नीतियों से खुश नहीं हैं उनका कहना है कि देश का विकास स्थाई ग्रामीण विकास के बिना असम्भव है. स्थाई ग्रामीण विकास की नीव स्थाई खेती किसानी पर टिकी है जब तक खेत और किसान का विकास नहीं होता देश का विकास भी नहीं हो सकता है.
दूसरी तरफ केजरीवालजी का कहना है कि भाजपा हो या कांग्रेस दोनों बहुरास्ट्रीय कम्पनियों के गुलाम हो गए हैं ये कम्पनियाँ इन दोनों को चंदे के रूप में खूब काला धन मुहैया करती हैं बाद में जो भी जीत जाये उनसे अपने धंदे में खुल कर फायदा लेती हैं इसलिए जब तक इस में रोक नहीं लगती देश का विकास नहीं हो सकता है जो भी विकास होगा वह केवल और केवल कम्पनियों का ही होगा।
विकास की ये दो अवधारणाएं हैं एक अन्नाजी की है दूसरी केजरीवालजी की है. किन्तु आमआदमी के लिए सबसे पहला सवाल रोटी ,कपडे और मकान का है. वह चाहे किसान हो ,मज़दूर हो या स्टूडेंट हो समस्या यहीं आकर रुक जाती है हम अपनी तुरंत की समस्याओं के समाधान को राजनीती में तलाशते हैं और राजनेता लोग समस्याओं को हल करने के बहाने हमे बेफकूफ बना कर वोट ले जाते हैं.
सब ये कहते हैं यदी आमआदमी जाग जायेगा तो सब ठीक का हो जायेगा पर आमआदमी जागते हुए भी इतना भ्रमित है कि उसे नहीं पता कि वह किसका समर्थन करे. अन्नाजी का करे कि केजरीवालजी करे या मोदीजी या कांग्रेस का करे या ममताजी का करे या नोटा का करे.
अब हम आमआदमियों को फैसला करने का मौका मिला है इस लिए हमे सोच समझ कर फैसला करना पड़ेगा कि हम भ्रस्टाचार का साथ दें या ईमानदारी का साथ दें. ये लड़ाई असल में भारत और इंडिया के बीच हो गयी है, ये लड़ाई हमारे पर्यावरण और विकास के बीच आन खड़ी हो गयी है, ये लड़ाई सत्य और असत्य के बीच और हिंसा और अहिंसा के बीच हो रही है,ये लड़ाई गुलामी और आज़ादी में बदल गयी है.
हमे आज गांधीजी का अहिंसातमक आज़ादी का आंदोलन याद आ रहा है आज़ादी के बाद जब देश के स्थाई विकास का प्रश्न आया था तब भी विकास की लड़ाई इसी प्रकार दो धड़ों में बंट गयी थी. एक धड़ा औधौगिक विकास की बात कर रहा था तो दूसरा पर्यावरणीय विकास चाहता था. जीत ओधौगिक विकास की हुई. केजरीवालजी का कहना सही है चाहे मोदीजी आये या राहुलजी आयें हालत में कोई सुधार नहीं होगा यही अन्नाजी का भी कहना है. किन्तु ममताजी का कहना है कि वे अन्नाजी के बताये मार्ग पर चलेंगी अच्छा संकेत है. केजरीवालजी भी अन्नाजी के बताये मार्ग पर आ सकते हैं जिसमे बिना भ्रस्टाचार मुक्त विकास हो,जहाँ पर्यावरण के आधार पर विकास हो ,जहाँ इंडिया भारत एक घाट पर पानी पियें।
ऋषि खेती के लिए भूदान आंदोलन |
आज़ादी के बाद जब गांधीजी नहीं रहे थे तब उनके परमशिष्य विनोबाजी ने देश के स्थाई विकास के लिए सर्वोदय आंदोलन चलाया था यह आंदोलन ऋषि खेती पर केंद्रित था किन्तु उन दिनों के योजनाकारों ने इसे अस्वीकार कर दिया था जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं यदी आज इस योजना को लागु कर दिया जाये तो बिना खर्च देश भ्रस्ट गुलामी से आज़ाद हो सकता है.
हम पिछले २७ सालों ऋषि खेती को करते हुए सुकून की नींद सो रहे हैं.
आज समय आ गया है कि हमे जहरीली रोटी ,पानी और हवा चाहिए या कुदरती खान,पान के साथ सुकून की नींद चाहिए। ये चुनाव निर्णायक सिद्ध होने वाला है क्योंकी इसमें अब केजरीवाल अकेले नहीं है गांधीवादी अन्नाजी भी इसमें शामिल हो गए हैं.
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