Monday, May 15, 2017

बहते जल को नहीं बहती मिटटी को रोकने की जरूरत है।



बहते जल  को नहीं बहती मिटटी को रोकने की जरूरत है।

विगत कुछ वर्षों से जल संकट को हल करने के लिए बड़े बड़े बाँध बनाए जा रहे हैं ,अनेक स्टॉप डेम्स बनाए जा रहे हैं ,छोटे बड़े अनेक तालाबों का निर्माण हो रहा है किन्तु जल का संकट कम होने की वजाय बढ़ते ही जा रहा है।  बरसात का असली जल भूमि के ऊपर नहीं भूमि के अंदर जमा होता है। यही जल पूरे साल भर हम सब की  और धरती पर रहने वाली जैव- विविधताओं की प्यास बुझाता है। इतना ही नहीं यह जल वाष्प  बन बदल बनकर बरसात करवाने में  भी सहयोग करता है।
यदि आज कहीं सूखा पड़ता  है तो इसका मतलब यह नहीं है की बरसात नहीं हुई है असल में बरसात  के जल को हमने जमीन के अंदर जाने ही नहीं  दिया है इसलिए जल का संकट आ गया है।  कहा यह जा रहा है की इस साल अच्छी बारिश होगी और जल का संकट खत्म हो जायेगा यह भ्रान्ति है ,जब तक हम बहते जल को धरती के पोर पोर में समाने के लिए प्रयास नहीं करते है और भूमिगत जल के स्तर को नहीं बढ़ाते हैं तब तक ना तो बरसात अच्छी होगी न ही बरसात का जल धरती में सोखा जा सकेगा।

बरसात का जल मिटटी के द्वारा सोखा जाता है कुदरती मिटटी में असंख्य छोटे छोटे छिद्र ,दरार ,चूहों ,जड़ों और असंख्य कीड़ों के द्वारा बनाए घर रहते है जिनसे बरसात का जल धरती के द्वारा सोख लिया जाता है। 

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