धार्मिक आहार
जितने धर्म गुरु हैं वो उतने प्रकार के आहार के बारे में कहते हैं जैसे कोई शाकाहार को अच्छा बताता है तो कोई दूध को अच्छा कहता है। कहीं मछली की पूजा होती है तो कहीं बकरे को पूजा जाता है। कोई प्याज और लहसुन को गलत बताता है तो कोई अच्छा कहता है। हमारा कहना यह है की हर किसी को अपने खाने के बारे में कुदरती नजर से देखने की जरुरत है। जैसे गेंहूं और चावल शाकाहार हैं। किन्तु जुताई के कारण कमजोर हो गयी जमीन में उगाये जा रहे हैं जिनमे यूरिया सहित अनेक विषैले जहर उँडेले जा रहा रहे हैं। जो शुगर जैसी अनेक बीमारियों का कारण बन रहे हैं।
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उसी प्रकार गाय के दूध को अमृत कहा जाता है। किन्तु अनेक गाये गोशालाओं में बंधी रहती हैं उनको अनेक प्रकार का गैरकुदरती चारा और दवाइयां दी जाती हैं जिसके कारण दूध भी विषैला हो जाता है। वैसे मछली अब गैर कुदरती तरीके से पाली जाने लगी हैं। यही हाल प्याज और लहसुन पर भी लागू होती है।
आंवला और तुलसी अब जुताई वाले खेतों में पैदा किया जा रहा है इस लिए अब उनमे भी रोग निरोग शक्ति नहीं है। यही हाल शहद का हो गया है गैर कुदरती तरीके से पैदा किया गया शहद अब सेवन करने लायक नहीं है।
इसलिए हमारा कहना है की हमे जो भी खाना हो उसे कुदरती होना चाहिए।
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