Monday, May 15, 2017

 जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को थामने  के लिए अपनाए 'नो टिल फार्मिंग '

 

न दिनों न भारत वरन पूरी दुनिया गर्माती धरती और जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या में फंस गई  है। बेमौसम बरसात ,सूखा , बाढ़ और समुद्रों में उठते ज्वार भाटे समस्या के सूचक हैं।  इस समस्या के पीछे मौजूदा गैरपर्यावरणीय विकास जिम्मेवार है जिसमे हरयाली का नहीं होना मूल बात है। यह समस्या मानव निर्मित है। जिसे हम  ठीक कर सकते हैं। 

सबसे अधिक इस समस्या के पीछे गैरकुदरती खेती है। जिसमे हरियाली विहीन जुताई आधारित खेती का मूल दोष है। जब हम आसमान से नीचे हमारी  धरती को देखते हैं तो सबसे अधिक भू भाग हमे खेती के कारण बन गए मरुस्थलों और बन रहे मरुस्थलों का नजर आएगा जिनमे दूर दूर तक हरियाली का नामोनिशान नहीं है। 

जब भी हम फसलों के उत्पादन के लिए जमीन की जुताई करते हैं सब से पहले  हम हरे भरे पेड़ों को काट देते हैं उसके ठूंठ को  भी खोद खोद कर निकाल देते हैं।  सभी हरी वनस्पतियों जैसे घास आदिको भी हम जमीन पर नहीं रहने देते है। उन्हें बार बार खोद कर निकाल देते हैं। ऐसा करने से घरती की जैविकता पूरी तरह नस्ट हो जाती है।  जैविक खाद (कार्बन ) गैस बन कर उड़ता है जो आसमान में कंबल की तरह आवरण बना लेता है जिस से धरती पर सूर्य की गर्मी प्रवेश तो कर जाती है किन्तु वापस नहीं जा पाती है  लगातार गर्मी बढ़ती रहती है।  

जैसा की हम जानते हैं हमारा मानसून धरती के तापमान से संचालित होता है वह गड़बड़ा जाता है। इसलिए बेमौसम बरसात का होना ,सूखा और बाढ़ की स्थिति निर्मित होती है। 

बिना जुताई की कुदरती खेती जिसे हम कुदरती  खेती कहते हैं ऐसी खेती करने की तकनीक है जिसमे जुताई ,खाद ,निंदाई और दवाई की कोई जरूरत नहीं रहती है। इस खेती को हरयाली के साथ किया जाता है।  जिसमे दलहन जाती के पेड़ ,फसलें और वनस्पतियों का बहुत योगदान है।  ये एक और जहाँ जैविक खाद बनाते हैं वहीँ फसलों में लगने वाली बीमारियों की रोक थाम करते है ,जल का प्रबंधन करते  हैं। 

कुदरती  खेत ठीक कुदरती वर्षा वनो की तरह  कार्य करते हैं।  इसमें मशीनो और रसायनो  को बिलकुल जरूरत  नहीं रहती है।  इसकी उत्पादकता और गुणवत्ता रासयनिक खेती से अधिक रहती है। इस खेती को करने के लिए सरकारी कर्जे ,अनुदान और मुआवजे  की जरूरत भी नहीं रहती है। 

कुदरती  खेती में हम दलहन जाती के पेड़ लगाते हैं जिनसे हमे चारा ,नत्रजन ,जैविक खाद और ईंधन मिल जाता है।  इनके सहारे  हम अनाज ,और दालों  और सब्जियों की खेती करते रहते हैं। बीजों को हम सीधा छिड़कते हैं या उनकी बीज गोलियां बना कर छिड़क देते हैं। 

अमेरिका में आजकल" नो टिल फार्मिंग" का अभ्यास शुरू हो गया है।  जिसे संरक्षित खेती भी कहा जाता है।  नो टिल फार्मिंग से खेतों की जैविक खाद (कार्बन ) गैस बन कर उड़ती नहीं है ना ही वह बरसात के पानी से बहती है। इस कारण खेतों से होने वाले ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन बहुत कम हो जाता है। जमीन में बरसात का जल संरक्षित हो जाता है। जिसके कारण हरियाली पनपने लगती है जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सोखने का काम करती है।

जलवायू परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का चोली दामन का साथ है। जिसका मूल कारण हरियाली की कमी है। हरियाली  का  सबसे अधिक नुक्सान जुताई आधारित खेती से हो रहा है। नो टिल फार्मिंग  अँधेरे में एक रौशनी की किरण के समान है।  

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