Wednesday, May 31, 2017

सीड बॉल क्रांति



सीड बॉल क्रांति 


1999 में जापान के ख्याति प्राप्त कृषि वैज्ञानिक एवं कुदरती खेती के प्रणेता श्री स्व मस्नोबू फुकुओकाजी गाँधी आश्रम सेवाग्राम में पधारे थे। उन्हें वहां एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आमंत्रित किया था। इस की जानकारी मुझे मेरे मित्र जेकब नेलिथेनम ने दी मै  सीधे वहां पहुँच गया। जब हम वहां पहुंचे फुकुओकाजी अपनी टीम के साथ मीटिंग हाल के बाहर कुर्सी लगाकर बैठे थे उनके साथ श्री मकीनो अनुवादक ,दो लड़कियां और एक वीडियो ग्राफर भी थे। हाल के अंदर भाषण चल रहे थे जो उन्हें पसंद नहीं थे इसलिए वो बाहर पोस्टर आदि लगाकर बैठे थे। किन्तु अफ़सोस की बात उन्हें सुनने के लिए वहां कोई नहीं था।

मै और जेकब उनके पास सीढ़ियों पर बैठ गए थे। इस से 10 साल पहले वे हमारे फार्म पर पधार चुके थे। हम सन 84 -85 से कुदरती खेती का अभ्यास कर रहे थे उन्होंने हमे पहचान लिया। फिर क्या था हमारे बीच संवाद शुरू हो गया। मकीनो जी हिंदी  में अनुवाद करने लगे।  देखते देखते अनेक लोग उनकी बांतो को सुनने के लिए के लिए इकठे होने लगे भीड़ इकठा होने लगी। हाल के अंदर के लोग भी भाषण छोड़ कर बाहर आ गए।

वो बता रहे थे की पिछले अनेक सालो से वो नेचरल फार्मिंग कर रहे हैं अनेक किताबें उन्होंने लिखी हैं अनेक बार अख़बार में और मेगज़ीनो में उनके लेख छपे हैं। अभी यहां आने से पहले में तंजानिया गया था वहां पांच साल पहले भी में गया था। वहां बहुत भयंकर सूखा पड़ा था वहां बरसात होना भी बंद हो गई थी।

Image may contain: 1 person, sitting and childपहले वहां घने जंगल थे किन्तु जुताई और रसायनो पर आधारित खेती के आने से सारे जंगल नस्ट हो गए थे। खान ,पानी और पशुओं के लिए चारा भी नहीं था। गंभीर  संकट पैदा हो गया था। दुनिया भर से समाज सेवक वहां जा रहे थे पर कुछ नहीं हो रहा था। उन्होंने बताया की वो ऐसे दूर दराज  के इलाके में में गए  जहाँ पहले कोई नहीं गया था।

वहां कुछ लोग बिना जुताई करे हाथों से बीजों को गड़ा  कर खेती कर जैसे तैसे गुजर कर रहे थे।वहां उन्होंने लोगों को सीड बॉल बनाना सिखाया दुर्भाग्य से वहां क्ले मिट्टी नहीं मिली पर दीमक की मिट्टी बहुत थी उस से सीड बॉल बनाई  गयी। मरता क्या नहीं करता बच्चा बच्चा सीड बॉल बनाकर गुलेल से  सीड बाल बनाकर फेंकने लगा। जब दुबारा फुकुओका जी ५ साल बाद वहां गए तो दंग रह गए बहुत बड़ा इलाका हरियाली से ढक गया था। जहां बरसात नहीं होती थी वहां बरसात होने लगी पशुओं के लिए चारा खाने को अनाज सब उपलब्ध था।
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फुकुओकाजी ने बताया कि "जुताई वाली खेती "के कारण पनपते रेगिस्तानों को थामने  के लिए सीड बाल सब से सरल सस्ता उपाय है। इसमें हरियाली का विज्ञान और दर्शन  छुपा है। 

Monday, May 29, 2017

धार्मिक आहार

धार्मिक आहार



जितने धर्म गुरु हैं वो उतने प्रकार के आहार के बारे में कहते हैं जैसे कोई शाकाहार को अच्छा बताता है तो कोई दूध को अच्छा कहता है। कहीं मछली की पूजा होती है तो कहीं बकरे को पूजा जाता है। कोई प्याज और लहसुन को गलत बताता है तो कोई अच्छा कहता है।  हमारा कहना यह है की हर किसी को अपने खाने के बारे में  कुदरती नजर से देखने की जरुरत है।  जैसे गेंहूं और चावल शाकाहार हैं। किन्तु जुताई के कारण कमजोर हो गयी जमीन में उगाये जा रहे हैं जिनमे यूरिया सहित अनेक विषैले जहर उँडेले जा रहा रहे हैं।  जो शुगर जैसी अनेक बीमारियों का कारण बन रहे हैं।
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उसी प्रकार गाय के दूध को अमृत कहा जाता है। किन्तु अनेक गाये गोशालाओं में बंधी रहती हैं उनको अनेक प्रकार का गैरकुदरती चारा और दवाइयां दी जाती हैं जिसके कारण दूध भी विषैला हो जाता है। वैसे मछली अब गैर कुदरती तरीके से पाली जाने लगी हैं। यही हाल प्याज  और लहसुन पर भी लागू होती है।

आंवला और तुलसी अब जुताई वाले खेतों में पैदा किया जा रहा है इस लिए अब उनमे भी रोग निरोग शक्ति नहीं है। यही हाल शहद का हो गया है गैर कुदरती तरीके से पैदा किया गया शहद  अब सेवन करने लायक नहीं है।

इसलिए हमारा कहना है की हमे जो भी खाना हो उसे कुदरती होना चाहिए।  

Monday, May 22, 2017


जुताई से बड़ी कोई हिंसा नहीं है।

जुताई से बड़ी कोई हिंसा नहीं है 


ब हम फसलों के उत्पादन के लिए खेतों में हल या बखर चलाते हैं उस समय हम खेतों के सभी पेड़ों को काट देते हैं उनके ठूंठ भी खोदकर फेंक देते हैं।  पेड़ जो हमे प्राण वायु प्रदान करते हैं ,पेड़ जो हमे बरसात देते हैं ,पेड़ हमे जो फल और चारा देते हैं ,पेड़ हमे ईंधन देते हैं उनके काटने से हमारी धरती गर्म हो जाती है।

पेड़ों के साथ साथ हम उन तमाम झाड़ियों को भी काट देते हैं जिनके सहारे असंख्य जीव जंतु कीड़े मकोड़े जीवन यापन करते हैं वो मर जाते हैं। पेड़ों के साथ झाड़ियां और झाड़ियों के साथ घास और अनेक वनस्पतियां रहती हैं जो एक दुसरे के पूरक होते हैं इनके साथ असंख्य जीव जंतु कीड़े मकोड़े और जानवर रहते हैं जो मर जाते हैं। ये कीड़े मकोड़े जमीन में बहुत काम करते हैं मिट्टी को भुर भुरा बनाते हैं इनके जीवन चक्र से खाद और पानी का संचार होता है। जुताई करने से ये सब मर जाते हैं।
अपनी मिट्टी की स्व  जांच करें अपने खेत से जुताई वाली और बिना जुताई वाली मिट्टी उठायें उसे पानी में डाल कर देखें। 

असल मरती है हमारी धरती माँ जो दुनिया की सबसे बड़ी हिंसा है। यही कारण है हमारे किसान अब मरने लगे हैं लाखों  किसानो ने आत्म हत्या कर ली है और हर दिन करते जा रहे हैं। जब धरती माँ मर जाती है तो हम उसमे अनेक जहरीले रसायन जैसे यूरिया आदि डालते हैं इस से माँ की बची कूची जान भी निकल जाती है हमारा भोजन जहरीला हो जाता है जिस से हम लोग भी मरने लगे हैं।
जुताई करने का सबसे बड़ा नुक्सान बरसात के पानी का शोषण नहीं होना है इसलिए सूखा पड़  रहा है रेगिस्तान पनप रहे हैं। 

Sunday, May 21, 2017

खेतों की जुताई और हम लोग

खेतों की जुताई का हमारे जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव 

ज कल जो भी शाकाहार हम खा रहे हैं वह अधिकतर खेतों से आता है। जब भी फसलों के उत्पादन के लिए खेतों में हल /बखर चलाये जाते हैं तो  पेड़ों और झाड़ियों और घासों आदि को साफ़ कर दिया जाता है। जमीन को खूब जाता और खोदा जाता है।  इस प्रक्रिया से जब बरसात आती है बखरी  मिट्टी कीचड बन जाती है जो बरसात के पानी को जमीन में नहीं जाने देती है।  इस कारण बरसात क अपनी तेजी से बहता है अपने साथ खेत की खाद को भी बहा कर ले जाता है। इस कारण बाढ़ आ जाती है और सूखा पड़ता है।

एक बार की जुताई में करीब खेत की आधी खाद बह  जाती है ऐसा हर बार होता है खेत कमजोर हो जाते हैं इसलिए किसान खेतों में यूरिया डालते हैं जो जहरीला रसायन है। जिस से हमारा खाना भी जहरीला हो जाता है। १- पेड़ों झाड़ियों घासों आदि की कमी के कारण हमे सांस लेने लायक कुदरती हवा कमी हो जाती है।
२- बाढ़ आने से सब डूब जाता है और पानी की कमी के कारण पीने के पानी की कमी हो जाती है।
३-यूरिया आदि  विषैले  रसायनो से  हमारी रोटी  भी जहरीली हो जाती है।
४-इस कारण हम और हमारा परिवार बीमार होने लगता है कैंसर जैसी आनेक बीमारियां  हमे घेर लेती हैं।

क्ले की सही पहचान करें और यूरिया हटाएँ

क्ले की सही पहचान करें और यूरिया को टाटा करें


क्ले मिट्टी की सही पहचान करने के लिए गोलियॉं को पानी में डाल कर कुछ समय रखते हैं जो क्ले होती है वह घुलती या बिखरती नहीं है।
कटोरी में पानी भरकर उसमे गोलियां डाली गयी हैं। जो नहीं घुल रही हैं
इस से बीज सुरक्षित बने रहते हैं। 
यह मिट्टी जुताई वाले खेतों से या जंगलों से बह कर निकलती है। जो नदी नालो और तालाब के अंदर मिलती है। इस मिट्टी में असंख्य खेत को उर्वरता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणु रहते हैं।  असली नत्रजन हमे इस मिटटी से मिलता है।
यह सर्वोत्तम खाद है यूरिया और गोबर ,गोमूत्र की खाद की  जरूरत नहीं है उस से फसलें कमजोर होती हैं उस से फसलें कमजोर होती हैं जिनमे कीड़े लग जाते हैं। 

Saturday, May 20, 2017

अरहर के सीड बॉल बनाना

अरहर की सीड बाल बनाना 


बसे पहले हम क्ले मिट्टी की जांच करते हैं।  जांच करने के लिए एक दो गोलियों को बिना बीज के बना कर पानी में  कर रखते हैं क्ले की गोली घुलती नहीं है।

दूसरा अरहर के बीज एक दम  गीली मिट्टी के साथ मिलने पर फूलने लगते हैं इस कारण गोलियां टूट जाती हैं।
इसके दो उपाय हैं पहला बीजों को गर्मियों में पानी में भिगालकर पहले ही फूल लिए जाता है फिर गोली बना कर जल्दी धुप में सुख लिया जाता है। दूसरा गर्मियों में क्ले को बारीक कर रख लें बोने  से पहले बरसात में गीली गोलियों को बना कर फेंक लें।

अरहर के लिए हम आधा इंच व्यास की गोलियां बनाते हैं इसमें 1 :7 के अनुपात यानि एक भाग बीज और ७ भाग मिट्टी ली जाती है किन्तु इस अनुपात का भी  टेस्ट कर लेना चाहिए।




Thursday, May 18, 2017

किडनी बचाओ !


बेवर खेती श्री नरेश विश्वाश जी की पोस्ट

यूरिया से पैदा खाना तुरंत बंद करें

यूरिया का खाना तुरंत बंद करें


 फसलों के उत्पादन के लिए जब खेतों को खोदा / जाता उसकी कुदरती नत्रजन (यूरिया ) गैस बन कर उड़ जाती है इसलिए खेती के डाक्टर लोग यूरिया डालने की सलाह देते हैं।  यूरिया जहर है।  इसको डालने से जो खाना पैदा होता है उसको खाने से शुगर को बीमारी हो जाती है जो सब बीमारियों की माँ है।

जब हमको शुगर हो जाती है डाक्टर हमको मेटाफॉर्मिन और इन्सुलिन इंजेक्शन लेने की सलाह देते हैं। इन दवाइयों से जांचने पर ब्लड शुगर समान्य दिखाई देती है ,किन्तु बीमारी जाती नहीं है। यह ठीक बुखार उतरने वाली दवा जैसा है बुखार तो उत्तर जाता है पर बीमारी जहां की तहां रहती है।

किन्तु जब हम यूरिया का खाना बंद कर देते हैं   तो शुगर की बीमारी ठीक हो जाती है इस बीमारी से आगे होने वाले खतरे भी टल  जाते हैं। हार्ट अटैक ,स्ट्रोक ,कैंसर ,गैंग्रीन अनेक बीमारियां मूलत: शुगर के कारण होती हैं।
ये जानकारी डाक्टर लोग नहीं देते हैं क्योंकि उन्हें यह पढ़ाया ही नहीं जाता है।

हम पिछले 30 सालो से  बिना जुताई ,खाद और यूरिया की खेती कर रहे हैं हमे भी शुगर हो गई थी मेरी पत्नी को हार्ट अटैक और मुझे स्ट्रोक हो गया था। इसलिए हमने यह जानकारी हासिल की है।  बिना दवाइयों के स्वस्थ हैं। हम यूरिया का खाना बिलकुल नहीं खाते हैं।

जब हम बिना यूरिया के खाने की जानकारी लेते हैं  गेहूं ,चावल ,आलू और शकर इस से ग्रसित मिलती हैं। प्राय : सभी कार्बोहैड्रेट इस से ग्रसित हैं किन्तु फलों ,दूध ,अंडे ,मांस और मछली में इसका असर कम पाया जाता है किन्तु आजकल मक्का ज्वार बाजरा भी इस से अछूते नहीं हैं। इसलिए हम नारियल के बूरे का इस्तमाल करते हैं। नारियल सब जगह मिलता है। नारियल के आते की रोटी भी बन जाती है।  जैसे ही हम गेंहूं ,चावल आलू शक़्कर आदि को बंद करते हैं शुगर की बीमारी राम राम करती चली जाती है।
एक भाग नारियल का बूरा +२ भाग बेसन मिला कर रोटी बन जाती है। दालों में भी यूरिया का उपयोग नहीं होता है। इसलिए दालें भी खाये जा सकती हैं।
यह इस बात का उदाहरण है की यूरिया  कितना खतरनाक जहर है। अधिक जानकारी के लिए मुझे फोन किया जा सकता है। 09179738049


Wednesday, May 17, 2017

मुर्गा जाली से बनाये ढेर सारी गोलियां

मुर्गा जाली से बनाये ढेर सारी गोलियां 


धिकतर लोग यह पूछते हैं इतनी ढेर गोलियां कैसे बनेंगी ?
बीजों को क्ले में मिलाकर रोट बनाकर छोटे छोटे टुकड़े काटना 
हम प्राय : बीज गोलियां रोज बनाते है। इसे हम सीड बॉल  योगा  कहते हैं। इस से एक तो हमारा समय पास होता है साथ में व्यायाम हो जाता है और बहुत सी गोलियां इकठ्ठी हो जाती हैं। सीड बाल योगा  घर में टीवी देखते भी हो जाता है। असल में बिना जुताई की खेती और हमारे पर्यावरण की समृधि के लिए सीड बॉल्स का बहुत बड़ा योगदान है।


गोलियों को तेजी से और अधिक मात्रा में बनाने के लिए हम क्ले मिट्टी में बीजो को मिला कर उसे आटे  की तरह गूथ लेते हैं फिर उसके मोटे मोटे रोट बनाकर उन्हें मुर्गा जाली से छोटे छोटे टुकड़ों में काट लेते हैं। इन टुकड़ों को एक तगाड़ी में डाल कर गोल गोल घुमा कर गोल कर लिया जाता है।

टुकड़ों को तगाड़ी में डाल कर गोल गोल बना लिया जाता है। 
फिर जब ये गोलियां अच्छे से सूख जाती हैं इन्हे खेतों में बिखरा दिया जाता है ऊगने से पहले तक ये चूहों /चिड़ियों से सुरक्षित रहती हैं बरसात आने पर बीज जो जमीन के ऊपर से उगते हैं बहुत ताकतवर होते हैं इनमे कीड़े नहीं लगते हैं।  क्ले जो असंख्य खेत को उर्वरता प्रदान करने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं का समूह रहती है खेत  में जैविक खाद  बना देती है।  इस से अच्छा कोई खाद नहीं होता है।

इस प्रकार बिना जुताई करे बिना मानव निर्मित खाद और यूरिया के सबसे उत्तम खेती हो जाती है।  आज कल GM और जीवा अमृत की बहुत बात होती है जिसकी कोई जरूरत नहीं है। जुताई करके पहले खेत कीजैविक उत्तम खाद को बहा देना फिर बाहर से GM ,जैविक और जीवा अमृत डालना कुल मिला कर मूर्खतापूर्ण काम है इस से बचने की जरूरत है।

Tuesday, May 16, 2017

धान की ऋषि खेती

धान की ऋषि खेती


धान के खेत को समतल नहीं करें न उसमे पानी रोकने के लिए मेड बनाये यदि पानी रुकता है तो उसकी अच्छे से निकासी के लिए नाली बना लें। फिर धान की बीज गोलिया बनाकर अच्छे से सुखा कर बारिश से पहले खेतों में बिखेर दे।  एक वर्ग मीटर में कम से कम १० गोलिया रहना चाहिए। पिछली फसल से जो भी अवशेष मिले हैं उन्हें जहां का तहाँ  रहने दें।

साथ में मूंग और उड़द के बीज सीधे यानी बिना गोली बनाये बरसात आने पर बिखेर दें। यह सहफसल नत्रजन के लिए जरूरी है। हर दाल का पौधा अपनी छाया के छेत्र में नत्रजन (यूरिया ) बनाता है। पहले साल थोड़ी निंदाई  हाथों से करने की जरुरत रहती है इसके बाद आगे कोई काम नहीं रहेगा।

यदि सावधानी से धान की गोलियां बनाई जाती हैं तो एक चौथाई एकड़ में एक  किलो के करीब बीज लगता है।  मूंग और उड़द साथ में सीधे फेंकना है इसमें कुल दो किलो बीज प्रति चौथाई एकड़ पड़ता है। शुरू में खरपतवार नियंत्रण के लिए बीज की मात्रा अधिक रखी जाती है।
यह चित्र फुकुओकाजी के खेत की धान का है।  

Monday, May 15, 2017

बहते जल को नहीं बहती मिटटी को रोकने की जरूरत है।



बहते जल  को नहीं बहती मिटटी को रोकने की जरूरत है।

विगत कुछ वर्षों से जल संकट को हल करने के लिए बड़े बड़े बाँध बनाए जा रहे हैं ,अनेक स्टॉप डेम्स बनाए जा रहे हैं ,छोटे बड़े अनेक तालाबों का निर्माण हो रहा है किन्तु जल का संकट कम होने की वजाय बढ़ते ही जा रहा है।  बरसात का असली जल भूमि के ऊपर नहीं भूमि के अंदर जमा होता है। यही जल पूरे साल भर हम सब की  और धरती पर रहने वाली जैव- विविधताओं की प्यास बुझाता है। इतना ही नहीं यह जल वाष्प  बन बदल बनकर बरसात करवाने में  भी सहयोग करता है।
यदि आज कहीं सूखा पड़ता  है तो इसका मतलब यह नहीं है की बरसात नहीं हुई है असल में बरसात  के जल को हमने जमीन के अंदर जाने ही नहीं  दिया है इसलिए जल का संकट आ गया है।  कहा यह जा रहा है की इस साल अच्छी बारिश होगी और जल का संकट खत्म हो जायेगा यह भ्रान्ति है ,जब तक हम बहते जल को धरती के पोर पोर में समाने के लिए प्रयास नहीं करते है और भूमिगत जल के स्तर को नहीं बढ़ाते हैं तब तक ना तो बरसात अच्छी होगी न ही बरसात का जल धरती में सोखा जा सकेगा।

बरसात का जल मिटटी के द्वारा सोखा जाता है कुदरती मिटटी में असंख्य छोटे छोटे छिद्र ,दरार ,चूहों ,जड़ों और असंख्य कीड़ों के द्वारा बनाए घर रहते है जिनसे बरसात का जल धरती के द्वारा सोख लिया जाता है। 

बिना -जुताई की जैविक खेती



बिना -जुताई की  जैविक खेती 

मिटटी ,पानी और फसलों की बंपर हार्वेस्ट 

जैविक खेती करने वाले किसानो के सामने खरपतवारों  नियंत्रण का मुख्य मसला  रहता है। इसलिए वो अपने खेतों को बार बार जोतते रहते हैं  और जहां किसानों पर काम और खर्च का भार  बढ़ जाता है वहीं उनके खेतों में जैविक खाद और पानी की कमी  हो जाती है। जिस से खेत खराब हो जाते हैं और उत्पादन घट जाता है। 

सामने से रोलर हरयाली को सुला  रहा है पीछे से बिना -  जुताई की बोने  की मशीन
बुआई कर रही है। 
जबकि बिना जुताई  जैविक खेती को अपनाने से अनेक फायदे रहते हैं। इसमें किसान अपने ट्रेकटर के आगे खरपतवारों को सुलाने वाला  रोलर लगा लेते हैं जो आगे से खरपतवारों को जमीन पर सुला देता है और पीछे से एक बिना जुताई की सीड  ड्रिल चलती है जो बीजों को बो देती है। इस प्रकार एक बार में काम हो जाता है। इस प्रकार जहां खरपतवारों का नियंत्रण हो जाता है वहीं जुताई नहीं करने से भूमि और छरण  बिलकुल रुक जाता है जिस से जमीन  की उर्वरकता और जल  ग्रहण छमता में बहुत सुधार आ जाता है। 


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जबकि जुताई करने से मिट्टी धूला  बन जातीहै जिस से जमीन में रहने वाली केंचुए सहित तमाम जैव विविधताएं और उनके घर जो जमीन को उर्वरकता  प्रदान करते हैं नस्ट हो जाते हैं। बिना जुताई की जैविक खेती से एक  बार में बोनी का काम हो जाने से खेत कम दबते हैं जबकि बार २ ट्रेकटर के चलने से जमीन बहुत दब  जाती है उसकी छिद्रियता नस्ट हो जाती है। 

हरे और जिन्दा भूमि ढकाव से नमि संरक्षित रहती  है सिंचाई की जरूरत नहीं रहती है। इस ढकाव के कारण खरपतवारों का भी नियंत्रण हो जाता है। फसलों में  लगने वाली बीमारियों के दुश्मन इस ढकाव में छुप  जाते हैं जिस से बीमारियां नहीं होती   हैं। 

वैज्ञानिकों  के सर्वेक्षणों के  द्वारा यह पाया गया है की इस प्रकार फसलों का सबसे अधिक उत्पादन मिलता है तथा   यह सबसे  अच्छा खरपतवारों के नियंत्रण का तरीका है। 

वैकल्पिक खेती की विधियां

वैकल्पिक खेती की विधियां 


ब से रासायनिक खेती की विधियों पर प्रश्न चिन्ह लगे हैं तब से अनेक वैकल्पिक विधियों की चर्चा होने लगी है। किसान खेती में चल रहे घाटे और प्रदूषण के कारण वैकल्पिक खेती की विधियों की और देखने लगे है।  किन्तु समस्या यह है की अभी तक सरकारों और कृषि वैज्ञानिकों की और से ऐसी किसी भी विधि पर मोहर नहीं लगी है जो रासायनिक खेती का विकल्प बन सके।

इसी विषय को समझने के लिए हम पिछले तीस सालो से बिना जुताई  की कुदरती का अभ्यास कर रहे हैं। जिसके आधार पर आज हम यह बताने में सक्षम है की किसान किस वैकल्पिक खेती को अपनाए जिस से उन्हें घाटा ना हो ,और खेत की कुदरती ताकत तथा जलधारण शक्ति में लगातार इजाफा होते जाये।

सबसे पहले हम इस बात को पूरी तरह साफ़ कर देना चाहते हैं की आज रासायनिक खेती में हो रहे घाटे  और प्रदूषण के पीछे मूलत : क्या कारण है।
जुताई 

रासायनिक खेती का चलन आज़ादी के बाद से ही शुरू हो गया था इस खेती को हरित क्रांति का नाम दिया गया है। खेती गहरी जुताई, भारी सिंचाई , कृषि रासायनिकों और संकर नस्ल के बीजों पर आधारित है। जिसमे जुताई सबसे नुक्सान दयाक काम है। एक बार ट्रैकटर से गहरी जुताई करने से खेत की आधी ताकत नस्ट हो जाती है। यह नुक्सान भूमि-छरण  के माध्यम से होता है। होता यह है की गहरी जुताई बाद खेतों में बरसात होने के कारण जुटी हुई मिटटी कीचड में तब्दील हो जाती है जो बरसात के पानी को जमीन के अंदर सोखने में बाधा  उत्पन्न करती है जिस के कारण पनि जमीन के भीतर ना जाकर तेजी से बहता है वह अपने साथ जुती बारीक मिटटी को भी भा कर ले जाता है। वैज्ञानिकों पता लगाया है की इस प्रकार एक एकड़ से करीब 10 -15 टन मिट्टी बहकर चली जाती है। 

 जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को थामने  के लिए अपनाए 'नो टिल फार्मिंग '

 

न दिनों न भारत वरन पूरी दुनिया गर्माती धरती और जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या में फंस गई  है। बेमौसम बरसात ,सूखा , बाढ़ और समुद्रों में उठते ज्वार भाटे समस्या के सूचक हैं।  इस समस्या के पीछे मौजूदा गैरपर्यावरणीय विकास जिम्मेवार है जिसमे हरयाली का नहीं होना मूल बात है। यह समस्या मानव निर्मित है। जिसे हम  ठीक कर सकते हैं। 

सबसे अधिक इस समस्या के पीछे गैरकुदरती खेती है। जिसमे हरियाली विहीन जुताई आधारित खेती का मूल दोष है। जब हम आसमान से नीचे हमारी  धरती को देखते हैं तो सबसे अधिक भू भाग हमे खेती के कारण बन गए मरुस्थलों और बन रहे मरुस्थलों का नजर आएगा जिनमे दूर दूर तक हरियाली का नामोनिशान नहीं है। 

जब भी हम फसलों के उत्पादन के लिए जमीन की जुताई करते हैं सब से पहले  हम हरे भरे पेड़ों को काट देते हैं उसके ठूंठ को  भी खोद खोद कर निकाल देते हैं।  सभी हरी वनस्पतियों जैसे घास आदिको भी हम जमीन पर नहीं रहने देते है। उन्हें बार बार खोद कर निकाल देते हैं। ऐसा करने से घरती की जैविकता पूरी तरह नस्ट हो जाती है।  जैविक खाद (कार्बन ) गैस बन कर उड़ता है जो आसमान में कंबल की तरह आवरण बना लेता है जिस से धरती पर सूर्य की गर्मी प्रवेश तो कर जाती है किन्तु वापस नहीं जा पाती है  लगातार गर्मी बढ़ती रहती है।  

जैसा की हम जानते हैं हमारा मानसून धरती के तापमान से संचालित होता है वह गड़बड़ा जाता है। इसलिए बेमौसम बरसात का होना ,सूखा और बाढ़ की स्थिति निर्मित होती है। 

बिना जुताई की कुदरती खेती जिसे हम कुदरती  खेती कहते हैं ऐसी खेती करने की तकनीक है जिसमे जुताई ,खाद ,निंदाई और दवाई की कोई जरूरत नहीं रहती है। इस खेती को हरयाली के साथ किया जाता है।  जिसमे दलहन जाती के पेड़ ,फसलें और वनस्पतियों का बहुत योगदान है।  ये एक और जहाँ जैविक खाद बनाते हैं वहीँ फसलों में लगने वाली बीमारियों की रोक थाम करते है ,जल का प्रबंधन करते  हैं। 

कुदरती  खेत ठीक कुदरती वर्षा वनो की तरह  कार्य करते हैं।  इसमें मशीनो और रसायनो  को बिलकुल जरूरत  नहीं रहती है।  इसकी उत्पादकता और गुणवत्ता रासयनिक खेती से अधिक रहती है। इस खेती को करने के लिए सरकारी कर्जे ,अनुदान और मुआवजे  की जरूरत भी नहीं रहती है। 

कुदरती  खेती में हम दलहन जाती के पेड़ लगाते हैं जिनसे हमे चारा ,नत्रजन ,जैविक खाद और ईंधन मिल जाता है।  इनके सहारे  हम अनाज ,और दालों  और सब्जियों की खेती करते रहते हैं। बीजों को हम सीधा छिड़कते हैं या उनकी बीज गोलियां बना कर छिड़क देते हैं। 

अमेरिका में आजकल" नो टिल फार्मिंग" का अभ्यास शुरू हो गया है।  जिसे संरक्षित खेती भी कहा जाता है।  नो टिल फार्मिंग से खेतों की जैविक खाद (कार्बन ) गैस बन कर उड़ती नहीं है ना ही वह बरसात के पानी से बहती है। इस कारण खेतों से होने वाले ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन बहुत कम हो जाता है। जमीन में बरसात का जल संरक्षित हो जाता है। जिसके कारण हरियाली पनपने लगती है जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सोखने का काम करती है।

जलवायू परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का चोली दामन का साथ है। जिसका मूल कारण हरियाली की कमी है। हरियाली  का  सबसे अधिक नुक्सान जुताई आधारित खेती से हो रहा है। नो टिल फार्मिंग  अँधेरे में एक रौशनी की किरण के समान है।  

आंगनबाड़ी में बेल वाली सब्जियां पैदा करने का सरलतम कुदरती तरीका

आंगनबाड़ी में बेल वाली सब्जियां पैदा करने का सरलतम कुदरती तरीका
क्ले (कपा ) से बनी बीज गोलियां 

क्ले के साथ गिलकी के बीज दिखाए हैं 

एक इंच व्यास वाली गोली में केवल एक बीज रखते हैं 

इसके बाद हाथों से गोल गोल घुमाकर गोल कर लेते हैं
फिर अच्छे से सुखा लेते हैं 
लौकी कददू गिलकी बलहर तोरईआदि के लिए कपे की कम से कम एक इंच व्यास की गोली बनाकर अच्छे से कड़क सुखा लें फिर अपनी आंगन बाड़ी में बिखरा दें।क्ले मिट्टी को आटे की तरह गूथ लिया फिर एक एक बीज में चिपका लिया फिर हाथों से गोल गोल कर लिया। ऐसे हम अनेक गोलियां बना सकते हैं गोली का साइज करीब एक इंच का रखते हैं। छोटे बीजों के लिए तथा अधिक मात्रा में गोलियों को बनाने के लिए दूसरा तरीका है। यह तरीका किचन गार्डनिंग के लिए है। अच्छे से गोलियों को सुखा कर गार्डन में बिखराते जाएँ। ये बेल हैं उन्हें मालूम है कि कहाँ जाना है। जुताई निंदाई गुड़ाई कीट और नींदा मारने काम नहीं करना है। खाद भी नहीं डालना है क्ले खाद बना देती।

 गोलियों को बरसात से पूर्व अपनी आंगनबाड़ी में बिखरा देते हैं। 

Friday, May 12, 2017

यूरिया और गोबर /गोमूत्र से बनी दवाई गैर जरूरी हैं।


यूरिया और गोबर /गोमूत्र से बनी दवाइयां गैर जरूरी हैं। 

 जुताई नहीं करने और कृषि अवशेषों को जहां का तहां वापस कर देने से पोषक तत्वों की आपूर्ति हो जाती है। 

तालाब  की मिटटी (क्ले ) सर्वोत्तम खाद है इस से बीज गोलियां बनाकर  करे बिना जुताई खेती 


भारत में परम्परगत देशी खेती किसानी का सबसे बड़ा इतिहास है।  हजारों साल तक यह खेती "टिकाऊ "रही है।  किसान हलकी या  बिलकुल जुताई के बिना खेती करते थे।  वो जुताई से होने वाले जल और भूमि के छरण  से जागरूक थे इसलिए  जब खेत जुताई से कमजोर हो जाते थे वो खेतों की जुताई बंद कर देते  थे। बिना जुताई के खेतों में पशु चराए जाते थे इस से खेत पुन : ताकतवर हो जाते हैं। ऋषि -पंचमी में आज भी कान्स घास की पूजा की जाती है और बिना -जुताई के कुदरती अनाजों को फलाहार की तरह सेवन करने की सलाह दी जाती है।
परम्परागत देशी खेती किसानी में गोबर ,गोमूत्र  से बनी खाद और दवाई का कोई उपयोग नहीं किया जाता था। गर्मियों  में किसान सभी कृषि अवशेषों जैसे गोबर ,गोंजन ,नरवाई ,पुआल आदि को खेतों  में वापस डाल देते थे।
बिना जुताई करे खेती करने के लिए तालाब की मिटटी
जिसे क्ले कहते हैं से बीज गोलियां बनाकर अच्छी बरसात हो जाने
पर खेतों में डाल देते हैं क्ले सर्वोत्तम खाद है। 
आधुनिक वैज्ञानिक खेती ने अनावश्यक रासायनिक खाद और दवाइयों को  बढ़ावा दिया है। जो हानिकारक सिद्ध हो गए हैं।  इनसे पर्यवरण प्रदूषण होरहा है रोटी में जहर घुलने लगा है। यूरिया आदि के  विकल्प में गोबर और गो मूत्र की खाद  दवाइयां बनाई जा रही हैं।  ये मानव निर्मित गैर कुदरती होने के कारण नुक्सान देय सिद्ध हो रही है। असल में कृत्रिम नत्रजन जमीन को मान्य नहीं होती है इसलिए गैर  कुदरती नत्रजन को जमीन गैस बनाकर उड़ा देती है इसे Denitrification कहा जाता है। इस प्रक्रिया में जमीन में जमा कुदरती नत्रजन भी उड़ जाती है,  किसान को इस से बहुत अधिक आर्थिक नुक्सान होता है।

असल में कृषि के सभी अवशेषों जैसे पुआल ,नरवाई ,पत्तियों ,टहनियों आदि में फसलों के लिए आवश्यक तत्व रहते है। जिन्हे अधिकतर किसान जला देते है या खेतों से बाहर फेंक देते हैं और खेतों को जोत  बखर देते हैं। जब बरसात होती तब जुताई के कारण  खेतों की बारीक मिटटी कीचड़ बन जाती है जिसके कारण बरसात का पानी जमीन में नहीं सोखा जाता है वह तेजी से बहता  है अपने साथ सभी पोषक तत्वों को बहाकर ले जाता है।
 जुताई नहीं करने और  नरवाई ,पुआल आदि को जहां का तहां डाल  देने   एक ओर जहाँ पोषक तत्वों की आपूर्ति हो जाती है हैं वहीं ये नमी भी संरक्षित हो जाती है ,खरपतवार  नियंत्रित हो जाते  हैं और फसलों का  कीड़ों से  बचाव हो जाता  है। इस ढकाव के नीचे असंख्य केंचुए , दीमक ,चींटे /चींटीं जैसे अनेक कीड़े मकोड़े ,सूख्स्म जीवाणु रहने लगते हैं। जिनसे नमी और पोषकतत्व मिलते रहते हैं।  इसलिए किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद दवाई और  गोबर /गोमूत्र से बनी दवाइयों की जरूरत नहीं रहती है।

किसान जुताई कर पहले अपने खेत की जैविक खाद को बहा या गैस बनाकर उड़ा  देते हैं फिर गोबर /गोमूत्र ,रासायनिक खाद दवाओं को डालने के लिए आवश्यक श्रम /खर्च करते हैं।
गेंहूं की नरवाई से बीज गोलियों से अंकुरित होकर झांकते
धान के नन्हे पौधे 

रासायनिक और गोबर गोमूत्र से बनाई गयी गैर कुदरती दवाइयां डालने से खेतों की  नत्रजन गैस बन कर उड़ जाती है   जिस से किसान का बहुत पैसा और महनत  बेकार चली जाती है। किसान को घाटा होने लगता है।
 घाटे के  कारण किसान आत्म -हत्या जैसे कठोर कदम भी उठा लेते हैं।

लाखों किसान जुताई ,खाद और दवाइयों के चक्कर में फंस कर आत्म -हत्या कर चुके हैं। इस से खेत भी मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं। पानी का संकट उत्पन्न हो गया है।  जुताई करने से बारीक मिट्टी बरसात के पानी के साथ मिल कर कीचड में तब्दील हो जाती है  बरसात का पानी जमीन में नहीं सोखा जाता है। वह बहता है अपने साथ जैविक खाद को भी बहा  कर ले जाता है।
इसलिए हमारा कहना है कि रासायनिक या गोबर/गोमूत्र से खाद खरीदना या बनाना मूर्खता पूर्ण काम है। 

Wednesday, May 10, 2017

आंगनबाड़ी में उगाएं कुदरती सब्जियां

आंगनबाड़ी में उगाएं कुदरती सब्जियां 
आजकल जबसे विषैली खेती की जानकारी का पता चला है तबसे विष मुक्त आहार उगाने की होड़ लगी है। अनेक लोग इस कारण अपनी खुद की आंगन बाड़ी में सब्जियां उगाने लगे हैं। किन्तु अधिकतर लोगों का कहना है की उन की आंगनबाड़ी  में कीड़े बहुत लगते हैं।  इसका मतलब है की उनकी आंगनबाड़ी कुदरती नहीं है। कुदरती आनाज हो या सब्जियाँ की खासियत यह है की उनमे कीड़े नहीं लगते हैं। 

कुदरती आंगनबाड़ी बनाते समय निम्न बांतो का ध्यान जरूरी है। 
१- जुताई या खुदाई बिलकुल नहीं करना है।

२- किसी भी प्रकार की मानव निर्मित खाद का उपयोग नहीं करना है। 

३- खरपतवारों और कीड़ों को मारने का कोई भी उपाय अमल में नहीं लाना है। 

४ -बीजों को क्ले (कपे ) वाली मिटटी से सीडबाल बनाकर डालें या सीधे छिड़क कर बीजों को जमीन के ऊपर से उगाएं। 

५ -खरपतवारों या अन्य अवशेषों को जहां से लेते हैं  काट कर वहीं इस प्रकार फैला दे जैसा वो अपने आप गिरते हैं। 

Wednesday, May 3, 2017

किसान बचाओ आंदोलन

किसान बचाओ आंदोलन

हम विगत 30 सालों ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हैं। हम हर हाल में खेती किसानी के लिए मिलने वाले कर्ज ,अनुदान और मुआवजे से पूरी तरह मुक्त हैं। जबकि आज म प्र में एक भी किसान नहीं है जिस पर भारी  भरकम कर्ज  न चढ़ा हो इस कारण हमारी प्रदेश की सरकार भी कर्जे में धंसती जा रही है।

हमने अपने ऋषि खेती के अनुभव से पाया है कि खेती के लिए जमीन की जुताई ,यूरिया और कम्पोस्ट आदि गैर जरूरी हैं।  इसी प्रकार समतली करण  भारी  सिंचाई भी गैर जरूरी है। जिसके लिए बड़े बाँध ,तालाब और गहरे नल कूप  गैर जरूरी हैं। फिर सवाल उठता है कि  क्यों किसानो पर इनका कर्जा लादा जा रहा है ? उसका मूल कारण है आज कृषि वैज्ञानिक और सरकार मिल कर किसानो को लूट रहे हैं। ये सब कंपनियों के दलाल हैं। ये बहुत बड़ा भ्रस्टाचार है।

स्वामिनाथजी जिनकी आप बात कर रहे हैं वो हरित क्रान्ति के जनक के रूप में जाने जाते है जो इस लूट के जनक है। हम हर हाल में किसान बचाओ  आंदोलन के पक्षधर है और आमआदमी पार्टी के डोनर मेंबर हैं। हम चाहते हैं किसान बिना जुताई की खेती करें जिस से भूमि छरण , जल का छरण और जैविक खाद का छरण पूरी तरह रुक जाता है। खेत ताकतवर हो जाते हैं फसलों में बीमारी नहीं लगती है। किसान को कर्ज अनुदान और मुवजे की कोई जरुरत नहीं रहती है।

अनेक किसान इस खेती को करने लगे है. जुताई नहीं करने से बरसात का पानी खेतों के द्वारा सोख लिया जाता है। खेत खतोड़े हो जाते हैं।

विगत दिनों  " आप " की टीम हमारे यहां आयी थी उनको मेने यह जानकारी दी थी यदि हमे किसानो को बचाना है तो उन्हें बिना जुताई की खेती करवाना होगा। मै आंदोलन का पूरा समर्थन करता हूँ।   इसमें सहयोग करना चाहता हूँ। इसलिए आपसे निवेदन है की आप किसी जानकार को भेज कर हमारी खेती का मुआयना करवाएं।
धन्यवाद
राजू टाइटस