खेती का सरलतम उपाय
मिटटी की बीज गोलियां बनाकर बुआई करें।
खेती हमारे जीवन से जुड़ा काम है किन्तु हमने इसे किसानो के हवाले कर दिया है। किसान खेती करेंगे और हम आराम से बैठ कर खाएंगे। ये शोषण है। इसके कारण खेत और किसान दोनों अब मरने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिकों और हमारी सरकार के पास इस समस्या से निपटने का कोई उपाय नहीं बचा है। आधुनिकरण ने खेती को और अधिक जटिल ,खर्चीला और मेहनती बना दिया है। अनेक गैर कुदरती अनावशयक काम खेती में किये जाने लगे हैं जैसे जंगलों को साफ़ करना ,जमीन को समतल बनाना ,खूब जुताई करना ,रासायनिक और जैविक खादों को बनाना और डालना ,कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों का उपयोग करना, संकर बीज बनाना ,जीन में छेड़ छाड़ कर बीजों बनाना।
मस्नोबू फुकूओकाजी भी एक जग प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक थे उन्होंने अपनी खोज के दौरान ये पाया की खेती में बहुत बड़ी हिंसा हो रही है इस कारण हम कितनी भी मेहनत करें कितना भी खाद दवाई का इस्तमाल करे हम जंगलों में अपने आप पैदा होने वाले खाद्य के मुकाबले फसलें नहीं ले पा रहे है जो भी फसलें हमको मिलरही है वे कमजोर और प्रदूषित रहती हैं जिनको खाने से हम बीमार हो रहे हैं। इस खोजने के बाद उन्होंने अहिंसा पर आधारित खेती को खोज डाला उसका नाम उन्होंने रखा नेचरल फार्मिंग जिसे हम ऋषि खेती कहते हैं।
उन्होंने ऋषि खेती को खोजने में "अकर्म ध्यात्मिक दर्शन और वैज्ञानिक सत्यता का उपयोग किया। धीरे धीरे उन सभी गैर कुदरती कार्यों को छोड़ते हुए खेती करना शुरू किया जिनसे कुदरत की हिंसा होती है। उन्होंने सबसे पहले जुताई को छोड़ा ,फिर रसायनो का त्याग किया। फिर कम्पोस्ट बनाना बंद किया ,खरपतवारों कीड़ों को मारना बंद कर दिया। इस प्रकार उन्होंने खेती में कुछ करने की वजाय नहीं करने पर ध्यान दिया। वे सीधे बीजों को बिखरकर खेती करने लगे जिस प्रकार जंगलों में अपने आप बीज पेड़ से गिरते हैं उग आते हैं और पेड़ बन जाते हैं। वहां अनेक प्रकार अन्य वनस्पतियां भी होती हैं किन्तु वे कुछ नुक्सान नहीं करती वरन फायदा पहुंचती है।
बीज गोलियों बनाया गया सब्जियों का जंगल |
वो भारत में पहली बार सं १९८८ में आये थे जब वे हमारे फार्म पर भी पधारे थे हम ऋषि खेती के मात्र तीसरे साल में थे खेती तो कर रहे थे किन्तु अनेक सवाल थे जिनका हल नहीं था दूसरी बार हमारी मुलाकात वर्धा के गांधी आश्रम में हुई उस समय वे केवल बीज गोलियों बनाना सिखा रहे थे. यह विडिओ भी उसी समय का है। देखें और कुछ प्रश्न बनते हैं तो 9179738049 पर संपर्क करें।
वो कह रहे थे की अमेरिका और जापान आधुनिक विज्ञान के कारण अब बर्बादी के कगार पर खड़ा है। भारत और चीन भी अगर उनकी नक़ल करेगा तो वह भी मिट जायेगा । किन्तु भारत की संस्कृती और गांधीजी के चरखे ने जैसे देश बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है वैसे ही ये मिटटी की बीज गोलियां है इन्हे बनाकर और इनसे खेती करते हुए न केवल हम अपने देश को बचा सकते हैं किन्तु इसमें विश्व को भी बचाने की ताकत छुपी है।
राजू टाइटस
ऋषि खेती किसान
होशंगाबाद। मप।
2 comments:
यदि बरसात में सूखी मिट्टी उयलब्ध नहीं है तो गीली मिट्टी से भी गोलियां बन जाती है उन्हें गीला ही फेंका जा सकता इस जानकारी के लिए rajuktitus@gmail.com , 09179738049 पर संपर्क कर सकते हैं।
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