Sunday, June 1, 2014

ग्लोबल वार्मिंग और सूखती नदियां




ग्लोबल वार्मिंग और सूखती नदियां 

रती पर बढ़ रही गर्मी और सूख रही नदियों का  मूल कारण जुताई आधारित खेती है।

जुताई के कारण हरियाली नस्ट हो रही है। 
हरियाली एक और जहाँ हमे प्राण वायु देती है वहीँ यह दूषित वायु को सोखने का भी काम करती है।  दूषित वायु अनेक प्रकार की गैसों का समूह है जिसे सामन्य भाषा में ग्रीन हॉउस गैस कहा जाता है। इसे हम सी ओ टू  सकते हैं।  यह सी ओ टू  हरियाली के माध्यम से कार्बन में तब्दील हो जाती है जिसे हम जैविक खाद कहते हैं।
जैविक खाद हरियाली का भोजन है

आज कल जो खेती चल रही है उसमे जुताई को एक पवित्र और  जरुरी प्रक्रिया माना  जाता है जिस के कारण जमीन में जमा जैविक खाद (कार्बन ) सी ओ टू में तब्दील हो जाता है जो ग्रीन हॉउस गैस के रूप में आसमान पर छा कर  एक कम्बल जैसा आवरण बना लेता है। जिस  से सूर्य की गर्मी धरती पर प्रवेश तो कर लेती है किन्तु वह वापस नही जा पाती है जिस से धरती पर की गर्मी बढ़ती जाती है।  दूसरा जुताई  का सबसे बड़ा दोष यह है की यह हरयाली को नस्ट करने का काम करती है जिस के कारण धरती से उत्सर्जित सी ओ टू का अवशोषण नहीं हो पाता है वह ग्रीन हॉउस गैस के साथ मिलकर धरती को गर्म करने का काम करती है।

यह गर्मी एक और जहाँ हमारे ग्लेशियर को पिघलाने  का काम कर रही  है वहीँ इस से समुन्द्र का जल स्तर निरंतर बढ़ते जा रहा है जिस से समुन्द्र के किनारे बसे शहरों के डूबने का खतरा बढ़ गया है।  ये कोई नयी बात नहीं है बरसों से वैज्ञानिक इस समस्या से निपटने के अनेक उपाय ढूंढ रहे हैं।  विगत दिनों जब वैज्ञानिक किसी भी सार्थक उपाय से संतुस्ट नहीं हुए तो वे जापान के ऋषि खेती के जनक माननीय मस्नोबू फुकूओका जी से मिलने उनके ऋषि  फार्म पर पहुंचे और उनसे कहा की बताएं की  हम क्या  करें ?
बहुत अचंभित हो गए की इतने बड़े२  वैज्ञानिक मेरे जैसे बूढ़े किसान के  पास आकर पूछ रहे हैं की बताएं हम की क्या करें ?
बिना -जुताई की कुदरती खेती की किताब 

इस से यह पता चलता है की अब वैज्ञानिक सोच का समय चला गया है उनके पास धरती पर बढ़ती गर्मी को रोकने का कोई उपाय नहीं बचा है। जितने भी हरियाली को बचाने के लिए जंगल लगाये जा रहे हैं वे आम आदमी की भूख मिटाने  के लिए खेतों में तब्दील हो रहे है जो जुताई के कारण मरुस्थल में तब्दील होते जा रहे हैं। इस कारण रोटी और हरियाली में जंग छिड़ गयी है।

फुकूओकाजी का कहना है की हमे ऐसी खेती  अपनाना होगा जिस से धरती पर एक स्थाई हरियाली का कवर बन जाये।  ऋषि खेती (बिना जुताई की कुदरती खेती ) एक ऐसी खेती है जो हरयाली के समन्वय से  की जाती है। जबकि मौजूदा अजैविक और जैविक खेती हरियाली  को नस्ट कर के की  जाती है।

फकूओकाजी का कहना है की धरती पर की हरियाली को नस्ट करने में जुताई आधारित खेती का बहुत बड़ा योगदान है जितने मरुस्थल आज हम देख रहे हैं सब खेती करने की गलत तकनीक के कारण पनपे हैं।
जब पिछली बार मेरी उनसे मुलकात सेवाग्राम वर्धा में हुई तो उन्होंने बताया की वे विगत दिनों तंजानिया  के ऐसे गांव में गए थे जहाँ पांच साल पहले हरियाली का नामो निशान नहीं था बरसात होना बंद हो गयी थी ,पशुओं का चारा और फसलें कुछ भी नहीं हो रहा था फुकूओकाजी ने वहां मिट्टी की बीज गोलिओं को बिखराने  की सलाह दी थी जिसे उन्होंने बखूबी अपना लिए था।  बच्चा बच्चा मिट्टी की बीज गोलिओं को बना कर बिखराने  का काम कर रहा था।  बच्चे गुलेल  की सहायता से दूर दूर तक बीज गोलिओं को फेंकने  का काम कर रहे थे।  उसके परिणाम स्वरूप वहां फिर से हरियाली पनप गयी ,बरसात होने लगी और पशुओं का चारा  और खाने की तमाम फसलें मिलने लगीं हैं।
खुशहाली का मंत्र है ऋषि खेती 

फुकूओकाजी का कहना है की हम अपनी खुद की बुद्धि  के कारण गुमराह हो रहे हैं कोई कहता है की" ऐसा नहीं वैसा करो" मै कहता हूँ"कुछ मत करो " कुदरत को अपना काम करने दो सब शुभ होगा। ऋषि खेती "कुछ नहीं करो" के सिद्धांत पर आधारित है इस में गैर कुदरती कार्यों को धीरे २ छोड़ते जाने से उत्तम खेती हो जाती है जिसमे हरियाली ,तमाम जीव जंतु कीड़े मकोड़े ,जानवर और हम लोग सब मिलजुलकर रहते हैं।

ऋषि खेती  सबसे उत्तम ग्लोबल वार्मिंग  को थामने और नदियों को पुनर्जीवित करने  का उपाय है। 

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