Saturday, May 31, 2014

अच्छे दिन आने वाले हैं

अच्छे दिन आने वाले हैं


कांग्रेस के जाने से या भाजपा के आने  से यदि अच्छे दिन आने वाले होते तो वो कभी के आ गए होते क्योंकि ये तो आते जाते रहते हैं। किन्तु ये ज़रूर है की कुछ लोगों के अच्छे दिन आ गए हैं और कुछ लोगों के अच्छे दिन चले गए हैं ।
हम तो पूरे देश के अच्छे दिन चाहते हैं ।
वो तब तक नहीं  आ सकते हैं जब हमारे देश के खेत और किसान आत्मनिर्भर नहीं  हो जाते है। खेती किसानी के आत्मनिर्भर होने का मतलब है जहर मुक्त हवा,रोटी और पानी चारों तरफ हरियाली ही हरियाली और खुश हाली ही खुश हाली।
कुछ साल कांग्रेस विकास करती है कुछ साल भाजपा विकास करती है दोनों कहते हैं 'अच्छे दिन आने वाले हैं '
किन्तु हम जहाँ के तहाँ रहते हैं। हाँ इतना जरूर है की इन लगों का विकास हो जाता है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है जो परंपरागत खेती किसानी से हजारों साल आत्म निर्भर रहा है। ये खेती किसानी पूरी तरह भारतीय संस्कृति पर आधारित रही है। किन्तु आज़ादी के बाद से ये खेती किसानी आयातित तेल से चलने वाली मशीनो ,रासायनिक उर्वरकों ,कीटनाशकों ,खरपतवार नाशको ,बड़े बांधो पर आधारित भारी सिचाई आदि अनेक आयातित तकनीकों के सहारे  से चल रही है जो तेल की  गुलाम हो गयी है। खेत दिन प्रतिदिन मरुस्थल में तब्दील हो रहे हैं किसान आत्महत्या कर रहे हैं या पलायन कर रहे हैं इस कारण बेरोजगारी चरम सीमा पर है।

आज की खेती हरित क्रांति के नाम से विख्यात है इसकी खासियत  यह है की इस से तेजी से हरियाली नस्ट हो रही है अनेक कुदरती वन , स्थाई चारागाह ,बाग़ बगीचे सब के सब अनाज की खेती को भेंट चढ़ गए हैं इसलिए साँस लेने की हवा और प्यास बुझाने का पानी भी   दूभर होगया है। रोटी में जहर घुलने लगा है।

भारतीय संस्कृति पर आधारित परम्परगत खेती किसानी कुदरती वनो ,चरागाहों और पशुपालन के समन्वय से होती थी बरसात नियमित होती थी बरसात का जल भूमि में समां जाता था देशी उथले कुए लबालब रहते थे। नदी नालों का पानी साल भर निर्मल बहता रहता था।

किन्तु जब से सरकारों को विकास का भूत चढ़ा है तब से हम लोगों का पर्यावरण रहने लायक नहीं रहा है। प्रदूषण चरम सीमा पर है ग्लोबल वार्मिंग ,मौसम परिवर्तन ,कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ मुसीबत बने हुए है।

 पिछले २७ सालों से भी अधिक समय से आत्म निर्भर ऋषि खेती का अभ्यास कर रहे हैं  एक और जहाँ हमारे खेत आत्म निर्भर हो गए हैं वहीँ हम भी इन खेतों के माध्यम से कुदरती खान ,पान और हवा के मामले में आत्म निर्भर हो गए है।  सरकारी अनुदान ,कर्ज और मुआवजे से पूरी तरह मुक्त हैं।
हम अब दावे के साथ कह सकते हैं की हमारे अच्छे दिन आ गए है।
               हमारी धरती माँ में ही अच्छे दिन लाने  की छमता है। उस की सेवा कर हम खुश रह सकते हैं।

राजू टाइटस

rajuktitus@gmail.com. मोबइल -09179738049 

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