खेती किसानी को बचाने के लिए नयी सरकार को सुझाव
ऋषि खेती को बढ़ावा दिया जाये !
हमे खुशी है की इस बार देश में एक स्थाई सरकार का गठन हुआ है जो देश की खेती और किसानी की हालत को सुधारने के लिए सब कुछ कर सकती है। हम पिछले २७ सालों से भी अधिक समय से "ऋषि खेती" का अभ्यास कर रहे हैं। यह खेती जुताई ,मानव निर्मित खाद और दवाइयों के बिना की जाती है।ऋषि खेती के जनक माननीय मस्नोबू फुकुओका |
खेती एक पर्यावरणीय प्रक्रिया है यदि हम अपने पर्यावरण को मानवीय हस्तक्षेप से बचा लेते हैं तो कुदरत हम को वह सब कुछ दे देती है जिसकी हमे जरुरत है। भारतीय प्राचीन परम्परागत खेती किसानी पूरी तरह हमारे पर्यवरण पर निर्भर थी। भारी सिचाई ,रासायनिक उर्वरक ,कीटनाशक ,कम्पोस्ट आदि की कोई जरुरत नहीं रहती थी। पशुपालन और जंगलों का खेती के साथ अटूट सम्बन्ध था। खेतों की उर्वरकता और नमी को संरक्षित रखने के लिए किसान खेतों में बदल बदल कर फैसले पैदा करते थे जिस से जंगल और खेत आपस में बदले जाते थे। जिस से खेतों की नमी और उर्वरकता हमेशा एक सी बनी रहती थी।
पेड़ों के साथ गेंहूँ की ऋषि खेती |
किन्तु जब से आधुनिक वैज्ञानिक खेती का चलन शुरू हुआ है तब से खेतों में लगातार एक सी फसलें पैदा की जा रही है। जुताई मशीनो से होती है ,कटाई एवं गहाई मशीनो से होती है . पशु बल और जंगलों का इसमें अब कोई उपयोग नहीं रहा है। इसलिए खेती अब आयातित तेल की गुलाम हो गयी है। भारी सिंचाई ,रासयनिक उर्वरकों ,जहरीली दवाइयों और मशीनो के बिना खेती की कल्पना भी नहीं की जाती है।
अनाज के खेतों में हरियाली को सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है नींदे,झाड़ियाँ और पेड़ खेतों से दूर रखे जाते है।
इस कारण अब बरसात अनियमित हो गयी है ,बरसात का पानी जमीन में नही सोखा जा कर वह तेजी से बहता है अपने साथ खेतों की जैविक खाद को भी बहा कर ले जाता है। इस कारण खेत कमजोर और होकर सूख गए हैं। उनमे अब घास भी पैदा नहीं होता है।
मिटटी की बीज गोलियां रसायनो और मशीनो की जरुरत नहीं। |
बीज गोलियां बनाते बच्चे |
बीज गोलियों से बोनी करता किसान |
ऋषि खेती हरियाली के साथ की जाने वाली खेती है इस में सिचाई रासयनिक उर्वरक ,दवाइयाँ ,कम्पोस्ट आदि की कोई जरुरत नहीं रहती है। खेती का खर्च ८० % कम हो जाता है ,उत्पादकता और गुणवत्ता सबसे अधिक रहती है। किसान को कोई घाटा नहीं होता है। जमीन की ताकत और नमी में लगातार इजाफा होता है। बरसात नियमित हो जाती है ,कार्बन का उतसर्जन घट जाता है बल्कि उसका शोषण बढ़ जाता हो जाता है। यह पूरी तरह पर्यावरणीय खेती है। इस खेती को करवाने में लागत बढ़ती नहीं है वरन घट जाती है। किसान खुश हाल और समाज में सर उठकर चलने वाला बन जाता है।
हमारा सरकार से अनुरोध है वह ऋषि खेती को बढ़ावा देकर खेती किसानी को खुश हाली का धंदा बनाये। २७ साल के ऋषि खेती के अपने अनुभवों के आधार पर हमारा यही सुझाव है।
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