Monday, May 19, 2014

ऋषि -रोटी

ऋषि -रोटी 

 कुदरती आहार 

भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है। खेती किसानी और पशु पालन इस की  रीड की हड्डी है। भारतीय प्राचीन खेती किसानी हमारे पर्यावरण के अनुसार संचालित होती रही है इसलिए वह हजारों सालो से टिकी रही किन्तु आज़ादी के बाद के मात्र कुछ बरसों में इस पारम्परिक खेती किसानी को आधुनिक खेती ने मिटा कर रख दिया है।  पारम्परिक देशी खेती किसानी पशु पालन और जंगलों के समन्वय से चलती थी हल्की जुताई ,हरी खाद ,कुदरती जल संरक्षण के कारण ये खेती हजारों साल जीवित रही।
फलदार पेड़ों के साथ ऋषि मूंग की  फसल 

आधुनिक वैज्ञानिक खेती भारी सिंचाई ,रासयनिक उर्वरकों और भारी  मशीनो पर आश्रित है जो पूरी तरह आयातित तेल की गुलाम हो गयी है।  इसलिए आज सबसे बड़ा प्रश्न रोटी का बन गया है। पारम्परिक खेती किसानी में किसान देशी  बीजों का ,मिट्टी का और नमी का संरक्षण करते थे। जुताई को वे हानिकर एवं गेरकुदरती उपाय मानते थे। इसलिए बिना जुताई ,कम से कम जुताई का उपयोग करते थे। वे जुताई के कारण कमजोर होती जमीन को पड़ती कर दिया  करते थे जिस से वह अपने आप ताकतवर हो जाती थी। इस प्रकार वे पलट पलट कर जमीन को उपजाऊ और पानीदार बनाकर हजारों साल सुरक्षित रहे।
ऋषि गेंहूँ की फसल 

आधुनिक वैज्ञानिक खेती का आधार गहरी जुताई ,शंकर नस्ल के बीज ,भारी  सिंचाई और  खाद और मशीने है। गहरी जुताई से तेजी से खेत की ताकत नस्ट हो जाती है वह सूख जाती है.रसायनो के उपयोग से मिट्टी ,पानी ,अनाज सब जहरीला हो जाता है इस कारण हमारी रोटी भी जहरीली हो जाती है।

पाम्परिक खेती  किसानी में पड़ती करने से पशुओं और  हरियाली का भी संरक्षण हो जाता था किन्तु वैज्ञानिक खेती में हरियाली को दुश्मन माना जाता है। कोई भी किसान अपने खेतों  में बड़े पेड़ नहीं रखता है इसलिए खेत मरुस्थल में तब्दील हो गए है उनमे भारी  सिचाई रासयनिक उर्वरकों के बिना खेती असंभव हो गयी है। सबसे बड़ी समस्या पानी की हो गयी है। हमने आसमान और भूमिगत जल के सम्बन्ध को तोड़ दिया है इस कारण सूखे की गंभीर समस्या उत्पन्न हो हो गयी हैअसिंचित इलाकों में  खेती अब ना  मुमकिन होती जा रही है।
सुबबूल चारे और ईंधन के पेड़ 

ऋषि खेती एक पर्यावरणीय खेती है जो बिना जुताई ,बिना रसायनो और बिना मशीनो के हो जाती है इस से मिलने वाली रोटी बेहद स्वादिस्ट और गुणकारी रहती है। जहाँ वैज्ञानिक खेती से मिलने वाली रोटी जहरीली होती है कैंसर जैसे भयानक रोगों को  पैदा करती है  वहीं ऋषि  रोटी से कैंसर भी ठीक हो जाता है।

ऋषि खेती केवल रोटी पैदा नहीं करती है ये हरियाली को भी पैदा करती है जिस से हमे  हमे हवा और पानी दोनों मिलते है। ऋषि खेती  सत्य और अहिंसा पर आधारित खेती है इसके किसान समाज में सम्मान की दृस्टी से देखे जाते हैं।

ऋषि खेती करना बहुत आसान है इसे महिलाएं और बच्चे भी आसानी से कर लेते हैं।  इस खेती को करने में सामन्य  ६०% खर्च कम लगता है वही ८०% मेहनत भी काम हो जाती है। ऋषि खेती करने के लिए बड़े पेड़ों
और झाड़ियों आदि को काटा नहीं जाता है वरन उन्हें सुरक्षा प्रदान की जाती है।  इसी प्रकार  वनस्पतियाँ अपने आप उगती  हैं उन्हें भी संरक्षित किया जाता है। इस से खेतों में अनेक किस्म के जीव जंतु ,कीड़े मकोड़े पनप जाते हैं जो खेत को उर्वरक ,पानीदार और पोरस बना देते हैं।  इस आवरण में हम धीरे २ अपने काम के पेड़ ,झाड़ियाँ ,अनाज और सब्जियों को उगने लगते हैं जिस से  ये हमे कुदरती आहार ,चारा ,ईंधन आदि आसानी से मिल जाता है। बीजों को सीधा फेंकर उगाया जाता है जैसा जंगलों में होता है।



No comments: