नरवाई क्रांति : सूखे की समस्या का समाधान
बिना -जुताई की खेती
पानी न तो आसमान से आता है ना तो वह धरती के नीचे से आता है पानी तो हरीयाली से आता है हरीयाली है तो पानी है। -फुकुओका जापान
राजू टाइटस
(बिना-जुताई की खेती का २७ सालों का अनुभव )
मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है इस साल सामान्य से कम वर्षा होने की सम्भावना है इस कारण अनेक स्थानों पर सूखा पड़ेगा किन्तु भारत में एसे अनेक स्थान है जहां कई सालों से पानी गिरा ही नहीं है क़ई स्थानो पर सालोँ से सामान्य से कम बारिश हो रही है। सूखे की समस्या आब धीरे२ पूरे भारत मे फैलती जा रही है। जहाँ सामान्य वारिश हो रहीं है वहां भी सूखे की समस्या है। जहाँ सामान्य से अधिक बारिश होती है वहां भी किसान सूखे के काऱण होने वालेसूखते खेत नुक्सान की बात करते हैं।
ऐसा खेतों मे पर्याप्त नमी नही रहने के कारण होता है। खेतों में जल धारण शक्ति और जल गृहण शक्त्ति का ना होना सूखते हुए खेतों की निशानी है। हमारे यहाँ आज भी ऋषि पंचमी के पर्व पर कांस घास की पूजा होती है। कांस घास सूखते हुए खेतोँ की निशानी है। भारतीय प्राचीन खेती किसानी मे जब लोग बिन सिँचाई करे खेती करते थे और वे जब अपने खेतों मे कांस घास को बढता देखते थे जान ज़ाते थे कि अब खेत सूखने लगे हैं। इसलिए वे खेतों को पड़ती कर दिया कर देते थे। ऋषि पंचमी के पर्व में बिना जुताई के अनाजों को खाने की सलाह दी जाती है इस से यह पता चलता है कि सूखते खेतोँ मे और जमींन क़ी जुताई मे सम्बन्धमें है।
खेतों की जुताई करने से खेतोँ का बारिक कर बरसात के पानी के साथ मिलकर कीचड मे तब्दिल हो जाता है इस काऱण पानी जमीन मे नहीं समाता है वह तेज़ी से बह जाता है अपने साथ की खाद को भी बहा कर ले जाता है, खेतों में नमी की कमी हो जाती है और सूखा पड़ता है। अमेरिका के अनेक स्थानो मे जहॉं भयंकर सूखा है वहां अब बिना जुताई की खेती करने कारण सूखे क़ी समस्या क अन्त हो गया है।
होशंगाबाद के तवा कमांड के छेत्र में किसान अब बिना जुताई करे सीधे सोयाबीन को बौने लगे हैं वे हार्वेस्टर से काटें गये खेतोँ मे नरवाई को जलाएं बगेर उसमेँ सीधे सोयाबीन की बुआई जीरो टिलेज सीड ड्रिल से कर देते है इस से एक ओर सोयाबीन की बंपर फसल मिलती है वहीं बरसात का पानी खेतों मे समां जाता है और खरपतवारों का भी नियंत्रण हो जाता है फसल मे कोई बीमारी भीं नही लगती है।
इसी प्रकार अनेक किसान अब धान को काट्ने बाद बिना जुताई करे गेंहूँ को भी बौने लगे है इस से खेती का खर्च कम हो जाता है वहीं खेत पानीदार और उर्वरक हो जाते हैं।
खेतों की जुताई करने से खेतोँ का बारिक कर बरसात के पानी के साथ मिलकर कीचड मे तब्दिल हो जाता है इस काऱण पानी जमीन मे नहीं समाता है वह तेज़ी से बह जाता है अपने साथ की खाद को भी बहा कर ले जाता है, खेतों में नमी की कमी हो जाती है और सूखा पड़ता है। अमेरिका के अनेक स्थानो मे जहॉं भयंकर सूखा है वहां अब बिना जुताई की खेती करने कारण सूखे क़ी समस्या क अन्त हो गया है।
होशंगाबाद के तवा कमांड के छेत्र में किसान अब बिना जुताई करे सीधे सोयाबीन को बौने लगे हैं वे हार्वेस्टर से काटें गये खेतोँ मे नरवाई को जलाएं बगेर उसमेँ सीधे सोयाबीन की बुआई जीरो टिलेज सीड ड्रिल से कर देते है इस से एक ओर सोयाबीन की बंपर फसल मिलती है वहीं बरसात का पानी खेतों मे समां जाता है और खरपतवारों का भी नियंत्रण हो जाता है फसल मे कोई बीमारी भीं नही लगती है।
इसी प्रकार अनेक किसान अब धान को काट्ने बाद बिना जुताई करे गेंहूँ को भी बौने लगे है इस से खेती का खर्च कम हो जाता है वहीं खेत पानीदार और उर्वरक हो जाते हैं।
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