नरवाई क्रांति : खेतों की घटती उर्वरा शक्ति
खेतों की नरवाई और पुआल भले किसानो को बेकार लगते हो किन्तु उनमे खेतों की शक्ति को वापस लाने की पूरी छमता है।
--फुकुओका जापान (जग प्रसिद्ध कुदरती कृषि के वैज्ञानिक )
राजू टाइटस
जब से ओधौगिक खेती का चलन शुरु हुआ है तबसे किसान अधिक से अधिक उत्पादन के चक्कर मे भूल गया है कि धरती माता भी हमारे शरीर के माफिक एक जीवित अंश है उसे भी भूख और प्यास लगती है वह भी साँस लेती है।जब से किसानो ने मशीनो का उपयोग शुरु किया है तब से गोबर और गोजन खेतोँ मे वापस नही ड़ाला जा रहा है जिस से खेत तेजी से उतर रहे हैं वैज्ञानिक लोग इस समस्या से उभरने के लिए खेतों मे जैविक खाद डालने की सलाह देते हैं किन्तु पशुओं की कमी ओर नरवाई तथा पुआल को जला देने से खेतों के लिए जैविक खाद का मिलना अब नामुमकिन हो गया है। ऐसे में किसानो के पास अधिक से अधिक रासायनिक उर्वरक डालने के सिवाय कोई उपाय नहीं बचा है। जिसके कारण खेत रासायनिक प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं।
पुआल के ढकाव से झांकते गेंहूँ के नन्हे पौधे |
हमारे खेतों की जान उनमे रहने वाले असंख्य जीव जंतुओं ,कीड़े मकोड़ों , केंचुओं आदि पर निर्भर रहती है इनके जीवन चक्र से खेतों मे कुदरती पोषक तत्वों का निर्माण होता रहता है। जैविकता को सीधे घूप नुक्सान पहुंचाती है एक तो रासायनिक प्रदूषण ऊपर से तेज धूप इस जैविकता को नस्ट कर देतीं है। नरवाई या पुआल की ढकाव से ये जैविकता सुऱक्षित हो जाती है।
बिना जुताई पुआल के ढकवान मे गेंहूं की खेती |
इस ढकाव का सबसे बङा फायदा यह है कि खेतों को बखरने कि बिल्कुल जरुरत नहीं रहती है केंचुए आदि इस काम को बा खूबी कर देते हैं कोई भी मशीन इतनी उत्तम बखरनी नही कर सकती जितनी केंचुए आंदी करते हैं।
1 comment:
We have our own Fukuoka in India,93 yr old Bhaskar Save,who has been doing the same for as long. In fact,Fukuoka has visited his farm a couple of times n appreciated his efforts.
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