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मिट्टी में रहने वाले सूख्स्म जीवाणु |
आजकल किसान गेंहू की फसल काटने के बाद खेतों मे बची नरवाई को जला देते हैँ। खेतों को इससे बहुत नुक्सान होता है। यदि हम खेतों की मिट्टी को सूख्स्म दर्शी यन्त्र से देखेँ तो हमे मिट्टि बिल्कुल बेज़ान नजऱ नही आती है उसमेँ असंख्यं सूख्स्म जीवाणु और बीज़ दिखायीं देते है। आग लगाने से ये मर जाते हैं यांनी मिंट्टी मर जातीं है।
असल में नरवाई मे आग लगाने कि पृथा आधुनिक वैज्ञानिक खेती कि देन है वैज्ञनिक लोग किसानो को गर्मियों गहरी जुताई करने की सलाह देते है उनका कहना है कि गर्मी की धूप से जमीन के अन्दर रह्ने वाले बीमारियों के कीडे मर जाते हैं इसलिए किसान आग लगाते हैं इस से उन्हे खेतोँ मे हल चलाने मे भीं सहूलियत हो जातीं है। यह भ्रान्ती है। अनेक वैज्ञानिक खेतों लागने वाळी इस आग को नुक्सान देय बताने लगे हैं किन्तु वे गर्मीं मे हल चलाने को सही मानते हैं। जबकि जमीन की जुताई बहुत हानिकर ऊपाय है। इससे एक और जहाँ खेतों की जैविक खाद बरसात के पानी से बह जाती हैं वही वह गैस बन कर उड़तीं भी है। जुताई और आग लगाना दोनों खेत की मिट्टी के लिए बहुत ही हानिकर काम है। फसलों का गिरता उत्पादन ओर किसानो को हो रहे घाटे के पीछे यह मूल कारण है।
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गेंहू की नरवाई मे बिना जुताई मूंग की खेती |
खेतों में अवशेषों के रुप मे मिल रहे पुआल और नरवाई बहुत कीमती रहते हैं यदि वैज्ञानिक ओर किसान इस के मह्त्व
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मूंग की गेंहूँ की नरवाई मे बिन जुताई बंपर फ़सल |
को समझ ले तो ना केवल खेती वरन इस से जुडीं अनेक समस्याओं क अन्त हो जायेगा। हम पिछले २७ सालो से बिना जुताई ओर नरवाई को जलायें खेती कर रहे हैं इस से हमारे खेतों क़ी उर्वरकता ओर जलधारण शक्ति मे इजाफा हो रहा है।
हमारे इलाके मे आज कल किसान गर्मियां मे मुंग कि खेती करने लगे हैं यह खेती लाभप्रद हो सकती है यदि इसे नरवाई को जलाये बगैर बिनजुताई किय जाएं। मूंग खेतों में जबरदस्त नत्रजन पैदा करती है जो अगली फसल के लिए पर्याप्त रहती है किन्तु जुताई करने से ये नत्रजन उड़ जाती है।
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